सचेतन- 04: “ज्ञान योग: जब जीवन परीक्षा लेता है”
नमस्कार प्यारे साथियों,
आप सुन रहे हैं सचेतन जहाँ हम “आत्मा की आवाज़” पर विचार करते हैं जो आपको जीवन, योग और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है।
ज्ञान योग में जीवन की परीक्षा का क्या अर्थ है, और हम उसका अभ्यास कैसे करें।
क्या है ज्ञान योग?
ज्ञान योग यानी ज्ञान का मार्ग —
वह रास्ता जहाँ हम स्वयं से हर एक प्रश्न का हल पूछते हैं —
यहाँ तक की “मैं कौन हूँ?”
“क्या मैं केवल शरीर और मन हूँ, या कुछ और — कुछ अमर, कुछ शाश्वत?”
भगवद गीता कहती है —
“ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।”
(जिसका अज्ञान नष्ट हो गया है, वही सच्चा ज्ञानी है।)
जीवन की असली परीक्षा
हम सोचते हैं कि परीक्षा केवल बोर्ड की होती है, नौकरी की होती है।
लेकिन असली परीक्षा तो जीवन खुद लेता है —
जब कोई हमें गलत समझता है,
जब कोई प्रिय दूर चला जाता है,
जब कर्म का फल तुरंत नहीं मिलता…
उस समय क्या हम शांत रहते हैं?
क्या हम विवेक से निर्णय लेते हैं?
या फिर भ्रम, मोह और गुस्से में बह जाते हैं?
वहीं से शुरू होता है — ज्ञान योग का अभ्यास।
अभ्यास कैसे करें?
✅ 1. विवेक से देखना सीखें:
हर परिस्थिति को आत्मा की दृष्टि से देखें —
“क्या यह क्षणिक है या शाश्वत?”
✅ 2. समत्व भाव अपनाएं:
श्रीकृष्ण कहते हैं —
“योगस्थः कुरु कर्माणि, संगं त्यक्त्वा धनञ्जय।” (गीता 2.48)
कर्म करो, लेकिन आसक्ति छोड़कर।
चाहे परिणाम कुछ भी हो, मन शांत रखो।
✅ 3. ध्यान और स्वाध्याय का अभ्यास करें:
हर दिन कुछ पल मौन में बैठें,
गहराई से “मैं कौन हूँ?” पूछें।
शास्त्र पढ़ें, पर आत्मा से समझें।
✅ 4. आत्मा को केंद्र में रखो, दुनिया को नहीं:
दुख-सुख, सफलता-विफलता — सब बाहर की चीजें हैं।
पर जो अंदर है — वह अमिट है, वही तुम्हारी असली शक्ति है।
प्रेरणा की बात
दोस्तों,
जीवन की परीक्षा हमें गिराने नहीं,
जगाने आती है।
ज्ञान योग हमें यह शक्ति देता है कि हम अपने भीतर की रोशनी को पहचानें —
हमारी आत्मा को, जो हर परिस्थिति में शांत रह सकती है,
जो साक्षी बनकर देख सकती है,
और कर्मयोगी बनकर चल सकती है।
“डगमगाए मन को विवेक संभालता है,
और ज्ञान का दीपक अंधेरे में जलता है।”
धन्यवाद मित्रों,
अगर आपको यह अंक पसंद आया हो,
तो इसे अपने आत्म-खोजी दोस्तों के साथ ज़रूर साझा करें।मिलते हैं अगले सत्र में,
एक नई सोच, एक नई रोशनी के साथ।
हरि ओम!