सचेतन, पंचतंत्र की कथा-39 : टिटिहरी और समुद्र की कहानी
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका “सचेतन” के नए एपिसोड में।
किसी देश में समुद्र किनारे टिटिहरी पक्षी का एक जोड़ा रहता था। एक दिन मादा टिटिहरी ने गर्भधारण के बाद नर से कहा,
“मेरे प्यारे! अब मेरा प्रसव समय आ गया है। कृपया कोई ऐसा सुरक्षित स्थान खोजिए, जहाँ मैं अपने अंडे दे सकूं।”
नर टिटिहरा ने उत्तर दिया,
“भद्रे! यह समुद्र का किनारा बहुत सुंदर और शांत है। यहीं अंडे दे दो।”
मादा ने चिंता जताई और कहा,
“यहाँ पर पूनम (पूर्णिमा) के समय समुद्र में ज्वार आता है, जो बड़े-बड़े हाथियों को भी बहा ले जाता है। यह जगह सुरक्षित नहीं है। कृपया कोई और स्थान खोजिए।”
लेकिन नर टिटिहरा ने हंसते हुए कहा,
“तुम्हारी चिंता गलत है। समुद्र जैसे विशाल स्थान की ताकत मेरे अंडों को नुकसान नहीं पहुँचा सकती। कहा भी गया है कि बहादुर को डरने की जरूरत नहीं है।”
नर ने गर्व से कहा,
“जो अपनी जगह छोड़ देता है, वह कायर कहलाता है। इसलिए तुम निश्चिंत होकर यहीं अंडे दो। समुद्र हमारे अंडों को कुछ नहीं कर सकता।”
समुद्र का अहंकार
समुद्र यह सुनकर सोचने लगा,
“देखो तो, इस छोटे से पक्षी का घमंड! इसे अपनी ताकत पर इतना भरोसा है। मुझे इसे सबक सिखाना चाहिए। अगर मैं इसके अंडे बहा ले जाऊँ, तो यह क्या कर लेगा?”
अंडे देने के बाद, जब टिटिहरी का जोड़ा भोजन की तलाश में गया हुआ था, तो समुद्र ने अपनी लहरों के जरिये अंडे खींच लिए।
मादा टिटिहरी की पीड़ा
जब टिटिहरी वापस आई और अंडे गायब पाए, तो वह रोते हुए बोली,
“अरे मूर्ख! मैंने पहले ही कहा था कि यह जगह सुरक्षित नहीं है। लेकिन तुमने अहंकार में मेरी बात नहीं मानी। अब हमारे अंडे समुद्र की लहरों में बह गए।”
मादा ने नर को समझाते हुए कहा,
“जो व्यक्ति अपने मित्रों और हितैषियों की सलाह नहीं मानता, वह उसी कछुए की तरह नष्ट हो जाता है, जो लकड़ी के ऊपर से गिरकर टूट जाता है।”
नर टिटिहरा ने दुखी होकर पूछा,
“यह कैसे?”
तब मादा टिटिहरी ने एक और कहानी सुनाई।
शिक्षा:
- अहंकार और अति आत्मविश्वास का परिणाम हमेशा दुखद होता है।
- मित्रों और हितैषियों की सलाह को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
- हर समस्या को शांत मन और समझदारी से सुलझाना चाहिए।
यह कहानी हमें सिखाती है कि अपनी ताकत का गलत आकलन करना और दूसरों की सलाह को नजरअंदाज करना भारी नुकसान पहुंचा सकता है। 😊