पंचतंत्र की कथा-02 : पंचतंत्र की कहानियों के पाँच ग्रंथ
विष्णु शर्मा ने राजपुत्रों को बुद्धिमान और ज्ञानवान बनाने के लिए पाँच ग्रंथ की रचना की थी।
नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है पंचतंत्र की कहानियों की इस खास श्रंखला में। आज हम जानेंगे पंचतंत्र की कहानियों के पाँच ग्रंथ। यह कहानीयाँ हमें मित्रता, विश्वास और धोखे के बारे में गहरी सीख देती है। तो तैयार हो जाइए एक रोमांचक यात्रा के लिए।
पंचतंत्र, जो कि विष्णु शर्मा द्वारा रचित एक अद्भुत ग्रंथ है, भारतीय साहित्य में नीति और जीवन के व्यवहारिक ज्ञान को सरल और शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। विष्णु शर्मा ने राजपुत्रों को बुद्धिमान और ज्ञानवान बनाने के लिए इस ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ में पांच प्रमुख तंत्र शामिल हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने के लिए अलग-अलग कहानियों के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। आइए, इन्हें विस्तार से समझते हैं:
- मित्रभेद
मित्रभेद का अर्थ है मित्रों के बीच मतभेद या अलगाव। इसमें ऐसे कई उदाहरण दिए गए हैं जहाँ मित्रों के बीच गलतफहमियों और ईर्ष्या के कारण दोस्ती टूट जाती है। यह तंत्र हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी मित्रता में विश्वास और समझ बनाए रखना चाहिए, अन्यथा छोटे-छोटे मतभेद भी बड़े झगड़े का कारण बन सकते हैं। - मित्रलाभ
मित्रलाभ का तात्पर्य है सच्चे मित्रों की प्राप्ति और उनसे मिलने वाले लाभ। इसमें ऐसे मित्रों की कहानियाँ हैं जो सच्चे और निस्वार्थ भाव से एक-दूसरे का साथ देते हैं। यह तंत्र हमें सच्ची मित्रता का मूल्य समझाता है और बताता है कि सच्चे मित्र हमारी सबसे बड़ी पूंजी होते हैं। - काकोलुकीयम्
काकोलुकीयम् में कौवों और उल्लुओं की कहानियाँ हैं, जो हमें युद्ध और संधि के महत्व को समझाती हैं। इसमें बताया गया है कि कब हमें अपने शत्रु से युद्ध करना चाहिए और कब शांति की राह अपनानी चाहिए। यह तंत्र कूटनीति और बुद्धिमानी से काम लेने की शिक्षा देता है। - लब्धप्रणाश
लब्धप्रणाश का अर्थ है हाथ लगी वस्तु का हाथ से निकल जाना या उसका नष्ट हो जाना। इसमें उन स्थितियों की कहानियाँ हैं जहाँ लोग अपने मूर्खतापूर्ण कृत्यों या लापरवाही के कारण अपने पास आई चीज़ों को खो बैठते हैं। यह तंत्र हमें सिखाता है कि हमें अपने साधनों और अवसरों का ध्यानपूर्वक उपयोग करना चाहिए, ताकि हम उन्हें खो न दें। - अपरीक्षित कारक
अपरीक्षित कारक का तात्पर्य है बिना सोच-विचार के कोई कार्य करना। इसमें यह बताया गया है कि बिना सोचे-समझे किए गए कार्य अक्सर हानि पहुँचाते हैं। यह तंत्र हमें सिखाता है कि हमें किसी भी कार्य को करने से पहले उसके परिणामों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए।
इन पाँच तंत्रों के माध्यम से विष्णु शर्मा ने राजपुत्रों को नीतियों, कूटनीति, सच्ची मित्रता, सावधानी, और सोच-समझकर निर्णय लेने की शिक्षा दी। पंचतंत्र का हर तंत्र अपने आप में गहरी सीख छुपाए हुए है, जिसे समझकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बना सकता है।
पंचतंत्र कथा की शुरुआत
किसी समय, महिलारोप्य नाम के नगर में वर्धमान नाम का एक व्यापारी रहता था। उसने ईमानदारी और मेहनत से अपने व्यापार में बहुत धन कमाया था, लेकिन उसे इतने में संतोष नहीं था। वर्धमान की इच्छा थी कि वह और भी अधिक धन कमाए। हमारे जीवन में भी कई बार ऐसा होता है कि हम संतोष करना भूल जाते हैं और कुछ नया करने की चाह में आगे बढ़ते हैं।
वर्धमान ने अपने व्यापार को और आगे बढ़ाने का निश्चय किया। उसने तय किया कि वह मथुरा जाकर व्यापार करेगा। इसके लिए उसने एक सुंदर रथ तैयार करवाया, जिसमें दो मजबूत बैल जोड़े गए—उनका नाम था संजीवक और नंदक। वर्धमान अपनी यात्रा पर निकला, लेकिन यमुना नदी के किनारे पहुँचते ही संजीवक दलदल में फँस गया। कई कोशिशों के बाद भी जब वह नहीं निकल पाया, तो उसका एक पैर टूट गया। वर्धमान को बहुत दुःख हुआ, लेकिन वह वहाँ और रुक नहीं सकता था।
वर्धमान ने संजीवक की देखभाल के लिए कुछ रक्षक रखकर अपनी यात्रा जारी रखी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद रक्षक भी जंगल की भयावहता से डरकर भाग गए और वर्धमान से झूठ कह दिया कि “संजीवक मर गया है।”
लेकिन संजीवक तो जीवित था। उसने यमुना के किनारे की हरी दूब खाकर धीरे-धीरे अपनी ताकत वापस पा ली। समय के साथ वह और भी ताकतवर हो गया और जंगल में स्वच्छंद होकर घूमने लगा।
एक दिन, उसी यमुना तट पर पिंगलक नाम का शेर पानी पीने आया। उसने दूर से ही संजीवक की गम्भीर हुंकार सुनी और डरकर झाड़ियों में छिप गया। शेर के साथ दो गीदड़ भी थे—करटक और दमनक। दोनों ने जब अपने स्वामी को भयभीत देखा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। दमनक ने करटक से कहा, “हमारा स्वामी वन का राजा है, फिर भी वह इस तरह डरा हुआ क्यों है?”
करटक ने उत्तर दिया, “दमनक, दूसरों के काम में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं। जो ऐसा करता है, वह उस बंदर की तरह दुख पाता है, जिसने व्यर्थ ही दूसरे के काम में हस्तक्षेप किया था।”
इस प्रकार कहानी का पहला हिस्सा हमें यह सिखाता है कि समझदारी से काम लेना कितना महत्वपूर्ण है और कैसे गलतफहमी और डर के कारण हम अपनी शक्ति भूल सकते हैं। आशा है कि आप पंचतंत्र की इन कहानियों को आप सचेतन में सुनकर न केवल आनंदित होंगे, बल्कि इससे कुछ सीख भी पाएंगे। धन्यवाद!
श्रोताओं, हम अगली कड़ी में मिलेंगे, पंचतंत्र के बारे में और मित्रभेद पर रोचक कहानी के साथ आपके लिए विचार रखेगे। तब तक के लिए, खुश रहें, सीखते रहें और अपने आसपास के लोगों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखें। नमस्कार।