सचेतन, पंचतंत्र की कथा-21 : कौओं के जोड़े और काले नाग की कथा-2
नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है सचेतन के इस विचार के सत्र में में, जहाँ हम पंचतंत्र से अद्भुत और प्रेरणादायक कहानियाँ सुनते हैं। आज कल वाली कहानी जो कौओं के जोड़े और काले नाग की है, जो एक बरगद के पेड़ पर घटित होती है उसको आगे सुनते हैं।कहानी का सरल और समझने में आसान रूप:
सियार ने अपनी बात को समझाने के लिए एक उदाहरण दिया। उसने बताया कि बड़ी, छोटी, और मझली मछलियाँ खाने के बाद एक बगला लालच में आकर एक केकड़े को पकड़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन इसी लालच के कारण वह मारा गया। इस उदाहरण से सियार ने यह समझाने की कोशिश की कि लालच और बिना सोचे-समझे कोई काम करने से अंत में नुकसान होता है।
इस दुनिया में जब संकट आता है तो सब कुछ जैसे नष्ट होने लगता है। बगले ने कहा, “जो लोग चन्द्रमा की स्थिति को समझकर रोहिणी नक्षत्र में शरण लेते हैं, वे अपने बच्चों को भी पकाकर खाने को मजबूर हो सकते हैं और सूर्य की किरणों को पानी की तरह पीने की कल्पना करने लगते हैं।
इस तालाब में अब बहुत कम पानी बचा है और यह जल्द ही सूख जाएगा। जब तालाब सूख जाएगा, तो जिनके साथ मैंने अपना बचपन बिताया, खेला और बड़े हुए, वे सब पानी के बिना मर जाएंगे। मैं उनके इस बिछोह को देखने में असमर्थ हूँ, इसलिए मैंने फैसला किया है कि मैं मृत्यु तक कुछ नहीं खाऊँगा। आज छोटे तालाबों के सारे जलचर अपने परिवार के साथ बड़े तालाबों की ओर जा रहे हैं। बड़े प्राणी जैसे मगरमच्छ, गोह, शिशुमार और जल हाथी खुद ही चलकर सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे हैं। लेकिन इस तालाब के जलचर अभी तक वहीं रुके हुए हैं और मुझे सबसे ज्यादा चिंता इन्हीं की है, क्योंकि इनके बचने की कोई संभावना नहीं है।”
बगले की यह बात सुनकर केकड़े ने इसे बाकी जलचरों को भी बता दिया। सब मछलियाँ, कछुए, आदि डर गए और बगले के पास आकर उससे उपाय पूछने लगे। उन्होंने कहा, “मामा, क्या कोई उपाय है जिससे हम अपनी जान बचा सकें?” बगले ने जवाब दिया, “इस तालाब से थोड़ी दूर पर एक सुंदर तालाब है, जिसमें कमल खिले हैं और जिसका पानी गहरा है। वहाँ चाहे बारह साल तक बारिश न हो, फिर भी वह तालाब सूखने वाला नहीं है। जो भी मेरी पीठ पर चढ़ जाएगा, मैं उसे वहाँ ले जाऊँगा।” सब जलचरों ने उस पर विश्वास कर लिया और एक-एक करके कहने लगे, “मुझे पहले ले चलो, मुझे पहले ले चलो!” वे सब उसे चारों ओर से घेरने लगे।
बदनीयत बगला बारी-बारी से उन्हें अपनी पीठ पर चढ़ाकर तालाब के पास की एक चट्टान पर ले जाता और वहाँ उन्हें पटककर खा जाता। फिर वापस तालाब में आकर बाकी जलचरों को झूठी कहानियाँ सुनाकर उनका मनोरंजन करता और अपनी भूख मिटाता।
एक दिन केकड़े ने बगले से कहा, “मामा! आप मेरे साथ शुरू में प्रेम से बातें करते थे, फिर मुझे छोड़कर दूसरों को क्यों ले जा रहे हैं? आज मेरी भी जान बचाइए।” बगले ने सोचा, “मछली का मांस खा-खाकर मैं थक गया हूँ, अब इस केकड़े को बढ़िया भोजन की तरह खाऊँगा।” यह सोचकर उसने केकड़े को अपनी पीठ पर चढ़ा लिया और उस चट्टान की ओर चल पड़ा।
जब वे चट्टान के पास पहुँचे, तो केकड़े ने दूर से ही मछलियों की हड्डियों का ढेर देखा और समझ गया कि बगला धोखा दे रहा है। केकड़े ने बगले से पूछा, “मामा! वह तालाब अभी कितनी दूर है? आप मेरी वजह से थक गए होंगे, मुझे बताइए।” बगला हंसते हुए बोला, “अरे केकड़े! कोई दूसरा तालाब नहीं है। यह तो मेरी रोजी है। अब अपने इष्ट देवता का स्मरण कर, क्योंकि मैं तुझे भी इसी चट्टान पर पटककर खा जाऊँगा।”
यह सुनते ही केकड़े ने अपनी तेज पंजों से बगले की मुलायम गर्दन को कसकर पकड़ लिया और उसे मार डाला। बाद में वह केकड़ा बगले की गर्दन लेकर धीरे-धीरे तालाब पर वापस आ गया। सब जलचर उसे देखकर हैरान रह गए और पूछने लगे, “अरे केकड़े! तुम कैसे लौट आए? मामा क्यों नहीं लौटे? हम सब तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे थे।”
केकड़ा हंसते हुए बोला, “अरे मूर्खो! वह धोखेबाज था। उसने हम सबको धोखा देकर मछलियों को चट्टान पर पटककर खा लिया। मेरी जान बची हुई थी, इसलिए मैंने उसकी चाल को समझ लिया और उसकी गर्दन काटकर यहाँ ले आया हूँ। अब तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है। आज से हम सबका कल्याण होगा।”
इस प्रकार, केकड़े ने अपनी चतुराई से उस धोखेबाज बगले का अंत किया और बाकी जलचरों को सुरक्षित रहने का आश्वासन दिया।
इसलिए मैं कहता हूँ कि एक बगला, जिसने बड़ी और छोटी बहुत सी मछलियों को खाने के बाद लालच में आकर केकड़े को पकड़ने की कोशिश की, उसी कारण मारा गया। यह सुनकर कौआ और कौई अपनी योजना के अनुसार उड़ चले। उड़ते-उड़ते कौई एक तालाब के पास पहुँची और देखा कि राजा की रानियाँ तालाब के किनारे अपने सोने की चूड़ियाँ, मोती के हार और गहने कपड़े रखकर पानी में खेल रही हैं। कौई एक सोने की चूड़ी उठाकर अपने घोंसले की ओर उड़ चली।
कौई को सोने की चूड़ी लेकर उड़ते हुए देखकर महल के पहरेदार और कंचुकी डंडे लेकर तेजी से उसके पीछे दौड़े। कौई ने उस चूड़ी को साँप के बिल में डाल दिया और वहाँ से दूर उड़ गई। जब राजकर्मचारी पेड़ पर चढ़कर खोखले में पहुँचे तो वहाँ एक काला नाग फन फैलाए बैठा था। उन्होंने उसे डंडों से मारकर सोने की चूड़ी वापस ले ली और अपने स्थान पर लौट गए। इसके बाद कौओं का जोड़ा सुख-शांति से रहने लगा।
इसीलिए मैं कहता हूँ कि जो काम तरकीब से हो सकता है, वह बहादुरी से नहीं हो सकता। कौई ने बुद्धिमत्ता से सोने की चूड़ी का उपयोग कर काले नाग को मरवा दिया।
इसलिए बुद्धिमान लोगों के लिए इस दुनिया में कोई भी चीज असंभव नहीं है। कहा गया है कि “जिसके पास बुद्धि है, वही शक्तिशाली होता है। बुद्धिहीन व्यक्ति के पास ताकत कैसे हो सकती है? वन में एक छोटे खरगोश ने अपनी चतुराई से मतवाले सिंह का अंत कर दिया।”
करटक ने पूछा, “यह कैसे हुआ?” तब दमनक ने कहानी सुनानी शुरू की—