सचेतन, पंचतंत्र की कथा-63 : बुद्धिमान खरगोश और गजराज
एक जंगल में चतुर्दन्त नाम का एक बड़ा हाथी रहता था, जो गजराज था। एक बार, वहां काफी समय तक बारिश नहीं हुई और सारे तालाब और झीलें सूख गईं। इससे सभी हाथियों के बच्चे प्यास से बेहाल हो गए और कुछ तो मर भी गए। तब सभी हाथी गजराज के पास गए और बोले, “हमारे बच्चे प्यास से मर रहे हैं, कृपया कोई पानी का स्रोत खोजिए जहाँ हम अपनी प्यास बुझा सकें।”
बहुत सोचने के बाद उत्तने कहा, “एक सुनसान जगह है जहाँ एक गड्ढा है जो हमेशा पाताल-गंगा के पानी से भरा रहता है, तुम सब वहां चलो।” पांच रात चलने के बाद वे सब उस गड्ढे के पास पहुंचे। वहां उन्होंने पानी में स्नान किया और सूरज डूबने पर बाहर आए। उस गड्ढे के आसपास खरगोशों की कई बिलें थीं। इधर-उधर दौड़ते हुए हाथियों ने वह जगह नष्ट कर दी। कई खरगोशों के पांव, सिर और गर्दन टूट गई, कई मर गए और बहुत से बहुत बुरी तरह घायल हो गए और कुछ बहुत दर्द में थे। जब हाथी चले गए, तब ये सभी खरगोश इकट्ठा हुए और सोचने लगे, “हम सब मर जाएंगे! ये हाथी फिर आएंगे क्योंकि यहीं पानी है। अब हमें क्या करना चाहिए?”
कहते हैं की “हाथी छूते ही किसी को मार देता है, सांप सूंघते ही मार देता है, राजा हँसते हुए मारता है, और दुष्ट व्यक्ति सम्मान देते हुए भी मारता है। इसलिए हमें कुछ उपाय सोचना चाहिए।” यह कहावत बहुत ही गहरी और प्रतीकात्मक है, जिसमें विभिन्न प्रकार के खतरों और उनसे निपटने के तरीकों की चर्चा की गई है। इसमें बताया गया है कि प्रत्येक प्राणी या व्यक्ति का अपना एक विशेष चरित्र होता है, और इनसे निपटने के लिए समझदारी और सावधानी आवश्यक है।
हाथी का उदाहरण उन बड़े और शक्तिशाली तत्वों का प्रतीक हो सकता है जो अचानक और भारी प्रभाव डाल सकते हैं। सांप का उदाहरण उन छुपे हुए खतरों को दर्शाता है जो अप्रत्याशित रूप से हमला कर सकते हैं। राजा का उदाहरण उस शक्ति को बताता है जो बाहरी रूप से तो अनुकूल प्रतीत होती है पर उसमें गहरी और विनाशकारी क्षमता होती है। आखिर में, दुष्ट व्यक्ति का उदाहरण उन लोगों को दर्शाता है जो भले ही सम्मान दिखाएं, लेकिन उनकी असली नीयत बहुत ही खतरनाक होती है।
इस कहावत का संदेश यह है कि हमें हमेशा अलग-अलग स्थितियों में सतर्क रहना चाहिए और हर प्रकार के चरित्र या खतरे को पहचानने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। यह हमें यह भी सिखाता है कि सचेत रहकर ही हम विभिन्न प्रकार के जोखिमों से अपना बचाव कर सकते हैं।
तब उनमें से एक खरगोश ने कहा, “और क्या किया जा सकता है? हमें देश छोड़कर चले जाना चाहिए।”
मनु और व्यास ने कहा है कि हमें बड़ी चीजों के लिए छोटी चीजों का त्याग करना चाहिए। अगर परिवार की भलाई के लिए जरूरत हो, तो एक व्यक्ति का त्याग करना चाहिए। अगर गांव की भलाई के लिए जरूरत हो, तो पूरे परिवार का त्याग करना चाहिए। देश के लिए गांव को छोड़ना पड़े तो छोड़ना चाहिए, और खुद की भलाई के लिए पूरी पृथ्वी को छोड़ना पड़े तो वह भी छोड़ देना चाहिए।यह विचार कि बड़ी भलाई के लिए छोटे समर्पण की आवश्यकता होती है, बहुत ही प्रेरणादायक है। मनु और व्यास के इन शब्दों में यह दर्शाया गया है कि कैसे व्यक्तिगत स्तर से लेकर सामाजिक स्तर तक, समर्पण की भावना से ही सच्ची प्रगति संभव है। यह सिखाता है कि कैसे हमें अपने छोटे स्वार्थों को त्याग कर समाज और देश के हित में सोचना चाहिए।
यह विचारधारा सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही नहीं बल्कि विश्व की कई संस्कृतियों में व्याप्त है, जहां समुदाय और देश के हित में व्यक्तिगत त्याग को महत्वपूर्ण माना जाता है। यह शिक्षा हमें सिखाती है कि कैसे हमें बड़े लक्ष्य के लिए कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं और यही वास्तव में हमें सच्चे और गहरे अर्थ में विकसित करता है।
इस दृष्टिकोण को अपनाने से हम सभी को समुदाय और राष्ट्र के प्रति अधिक जिम्मेदार और समर्पित बनने की प्रेरणा मिलती है।
उन्होंने यह भी कहा कि जो जमीन हमें खाना देती है और जानवरों को पालती है, उसे भी राजा को अपनी रक्षा के लिए बिना सोचे समझे छोड़ देना चाहिए। विपत्ति के समय जंगल की रक्षा करनी चाहिए, धन से स्त्री की रक्षा करनी चाहिए और धन और स्त्री दोनों से खुद की रक्षा करनी चाहिए। यह कथन एक प्राचीन भारतीय दार्शनिक विचार को प्रतिबिंबित करता है जिसमें जमीन, धन, और स्त्री की रक्षा के महत्व को बताया गया है। इसमें जमीन को जीवन का आधार माना गया है क्योंकि यह खाना उपलब्ध कराती है और जानवरों को पनाह देती है। इसी तरह, विपत्ति के समय जंगल की रक्षा का उल्लेख उसकी पारिस्थितिकीय भूमिका और प्राकृतिक संसाधनों के रूप में महत्व को दर्शाता है।
धन की रक्षा से यह सुझाव मिलता है कि वित्तीय संसाधन व्यक्ति की सुरक्षा और स्थिरता में मदद करते हैं। इसी तरह, स्त्री की रक्षा करने का उल्लेख समाज में उनके सम्मान और सुरक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
अंत में, धन और स्त्री दोनों से खुद की रक्षा करने का संदेश व्यक्तिगत जिम्मेदारियों और संयम को दर्शाता है, जिससे व्यक्ति अपने साधनों का सही प्रयोग कर सके और अनावश्यक संकट से बच सके।
ये शिक्षाएँ समय के साथ भारतीय समाज में नैतिक और धार्मिक आदर्शों का हिस्सा बनी रही हैं, जिनका उद्देश्य न केवल व्यक्ति की रक्षा करना है, बल्कि पूरे समाज के संतुलन और सद्भाव को बढ़ावा देना है।
खरगोशों का समूह चिंतित और परेशान था, क्योंकि हाथियों का झुंड उनके रहने की जगह पर अपना डेरा जमा चुका था। हाथियों के भारी भरकम शरीर और बड़े पैरों से नन्हे खरगोशों के लिए खतरा बढ़ गया था, और उनका जंगली घर भी नष्ट हो रहा था।
खरगोशों ने फैसला किया कि वे मिलकर कोई योजना बनाएंगे। उन्होंने अपनी समस्या पर विचार-विमर्श करने के लिए एक बैठक बुलाई। सबसे चतुर खरगोश ने एक योजना सुझाई कि कैसे वे हाथियों को समझा सकते हैं कि उनकी मौजूदगी से खरगोशों के जीवन में कितनी परेशानी आ रही है। उसने बताया कि हाथियों को सम्मानपूर्वक समझाना होगा कि वे जहां रहते हैं, वह खरगोशों का पुराना और पारंपरिक निवास स्थान है।