सचेतन, पंचतंत्र की कथा-43 : “विश्वास और मित्रता की परीक्षा”

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“नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन पॉडकास्ट’ में, जहाँ हम प्रेरणादायक और विचारशील कहानियाँ आपके साथ साझा करते हैं। आज की कहानी है ‘विश्वास और मित्रता की परीक्षा’, जो हमें सिखाती है कि सच्ची मित्रता, विश्वास और समझ से परिपूर्ण होती है। तो आइए, इस रोचक कहानी को सुनते हैं।”

एक जंगल में लघुपतनक नामक कौआ और हिरण्यक नामक चूहा रहते थे। लघुपतनक ने हिरण्यक से मित्रता की इच्छा जताई, लेकिन हिरण्यक सतर्क और विवेकी था। उसने कहा: “मित्रता तभी सफल होती है जब दोनों पक्षों में विश्वास हो। शत्रु के साथ कसम खाकर भी सुलह पर भरोसा नहीं करना चाहिए।”

हिरण्यक ने उदाहरण देते हुए कहा: “इंद्र ने मित्रता का वचन देकर भी वृत्रासुर का वध किया। बिना विश्वास बनाए, कोई शत्रु को वश में नहीं कर सकता।”

विश्वास की परीक्षा

हिरण्यक ने आगे समझाया: “पानी का वेग धीरे-धीरे नाव में घुसकर उसे डुबो देता है। उसी तरह शत्रु, चाहे कितना भी छोटा हो, धीरे-धीरे नाश करता है। अविश्वासी का विश्वास नहीं करना चाहिए, और विश्वासी का भी बहुत अधिक भरोसा नहीं करना चाहिए।”

लघुपतनक ने कहा: “मैं सज्जन हूं और सच्चे मन से तुझसे मित्रता करना चाहता हूं। अगर तुझे भरोसा न हो, तो अपने बिल-दुर्ग में रहते हुए ही मुझसे बातचीत कर।”

हिरण्यक ने विचार किया और कौए की सच्चाई को समझा। उसने कहा: “मैं तुम्हारे साथ मित्रता करूंगा, लेकिन एक शर्त है—तुम कभी मेरे किले में प्रवेश नहीं करोगे।”

कौए ने वचन दिया: “ऐसा ही होगा।”
और इस प्रकार दोनों सच्चे मित्र बन गए।

मित्रता का विकास

दोनों मित्र एक-दूसरे की मदद करने लगे। कौआ हिरण्यक के लिए मांस और पकवान लाता, और बदले में हिरण्यक रात को चावल और भोज्य पदार्थ कौए के लिए लाता।

हिरण्यक ने कहा:
“सच्ची मित्रता में देना और लेना, प्रेम का आदान-प्रदान, और गुप्त बातें साझा करना जरूरी है। यही मित्रता का आधार है।”

अकाल और कौए का निर्णय

एक दिन, लघुपतनक दुखी होकर हिरण्यक के पास आया। उसने कहा:
“प्रिय हिरण्यक! इस जंगल में अब रहना असंभव है। अकाल पड़ चुका है, लोग भूखे हैं, और हर जगह जाल फैले हुए हैं। मैं खुद एक बार जाल में फँस चुका हूँ, लेकिन किसी तरह बच निकला। अब मैं दक्षिणापथ के एक तालाब में जा रहा हूँ, जहाँ मेरा मित्र मंथरक कछुआ रहता है।”

हिरण्यक ने कहा: “मित्र, मुझे भी अपने साथ ले चलो। मैं यहाँ अकेला नहीं रह सकता।”

कौए ने उत्तर दिया: “तुम मेरे साथ कैसे जाओगे? मैं आकाश-मार्ग से उड़ूंगा।”

हिरण्यक ने कहा: “यदि तुम मेरी जान बचाना चाहते हो, तो मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर ले चलो।”

कौए ने खुशी-खुशी यह प्रस्ताव स्वीकार किया।

हिरण्यक कौए की पीठ पर बैठ गया। कौआ ने कहा:“मैं उड़ने के आठ तरीकों को जानता हूँ। सम्पात, विप्रपात, महापात, निपात, वक्रपात, तिर्यकपात, ऊर्धपात, और लघुपात। मैं तुम्हें आराम से तालाब तक ले जाऊँगा।”

  1. सम्पात – धीरे से सीधा उड़ना।
  2. विप्रपात – एकाएक ऊपर उठकर उड़ना।
  3. महापात – जोर से और तेज उड़ना।
  4. निपात – उड़ते हुए नीचे आना।
  5. वक्रपात – टेढ़े-मेढ़े उड़ना।
  6. तिर्यकपात – तिरछे उड़ना।
  7. ऊर्धपात – ऊंचे आकाश में उड़ना।
  8. लघुपात – चपलता और फुर्ती से उड़ना।

कौआ हिरण्यक को लेकर तालाब पर पहुँचा, जहाँ मंथरक कछुआ रहता था।मंथरक ने कौए को देखा, उसने चूहे को कौए की पीठ पर बैठे देखा, तो वह चौंककर पानी में छिप गया।कौए ने पुकारा: “मंथरक! यह मैं हूँ, तुम्हारा मित्र लघुपतनक। बाहर आओ।”

मंथरक ने बाहर आकर कहा: “मित्र, इतने समय बाद तुम्हें देखकर मुझे अपार खुशी हुई। लेकिन यह चूहा कौन है, जिसे तुम अपनी पीठ पर लाए हो?”

यह सुनकर मंथरक ने कौए को ध्यान से देखा और पहचान लिया। वह खुशी और रोमांच से भरकर पानी से बाहर आया। उसकी आँखों में आँसू थे और शरीर पुलकित हो उठा। मंथरक ने कहा: आओ मित्र, मुझसे गले मिलो। बहुत समय बीत गया, इसलिए मैं तुम्हें तुरंत पहचान नहीं पाया और पानी में छिप गया।”

कौआ पेड़ से उतरकर मंथरक से गले मिला और बोला: “मित्र, तुम्हारी भेंट किसी अमृत से भी अधिक मूल्यवान है।”

हिरण्यक भी मंथरक के पास आया और कौए के बगल में बैठ गया।

“दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है:

  1. सच्ची मित्रता समय और परिस्थितियों से नहीं टूटती।
  2. सच्चे मित्र वही हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी साथ निभाते हैं।
  3. मिलन और सहानुभूति जीवन को संवारने की ताकत रखते हैं।

तो, सच्चे मित्रों को पहचानें और उनकी कद्र करें।”

चूहे का परिचय 

मंथरक ने हिरण्यक को देखा और कौए से पूछा:
“अरे, यह चूहा कौन है? यह तो तेरा भोजन हो सकता है, फिर भी तू इसे अपनी पीठ पर बिठाकर लाया है। इसके पीछे कोई खास कारण होगा।”

कौए ने कहा:
“यह हिरण्यक है, मेरा प्रिय मित्र। यह मेरे जीवन के समान है। इसके गुण अनगिनत हैं, जैसे पानी की धाराएं, तारे और बालू के कण असंख्य होते हैं। यह अत्यंत दुख में है, इसलिए मैं इसे तुम्हारे पास लाया हूं।”

हिरण्यक का वैराग्य

मंथरक ने हिरण्यक से पूछा: प्रिय हिरण्यक, तुम्हारा वैराग्य का कारण क्या है? हमें बताओ।”

कौए ने भी कहा: मैंने भी इससे पूछा था, लेकिन इसने कहा कि सारी बातें तुम्हारे पास पहुंचकर ही बताएगा।”

हिरण्यक ने गहरी सांस लेते हुए कहा: “भाई मंथरक और लघुपतनक, मेरी कहानी लंबी है, लेकिन मैं तुम्हें सब बताने के लिए तैयार हूं।”

“दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है:

  1. सच्चे मित्र का साथ हर दुख को छोटा कर देता है।
  2. मित्रता वह रिश्ता है, जो हर परिस्थिति में सहारा बनता है।
  3. दुख और वैराग्य का कारण साझा करना मित्रता को और गहरा बनाता है।

मित्रता का सही अर्थ है – बिना किसी स्वार्थ के एक-दूसरे का साथ देना।”

“अगले एपिसोड में जानेंगे हिरण्यक की दुखभरी कहानी और कैसे उसके मित्र उसका सहारा बने। तब तक, अपने मित्रों को समय दें और उनकी भावनाओं को समझें। धन्यवाद!”

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