सचेतन, पंचतंत्र की कथा-50 : सूअर और सियार की कथा

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आयु, कर्म, धन, विद्या, और मृत्यु पहले से ही तय होते हैं

नमस्कार! आज के सचेतन एपिसोड में आपका स्वागत है। आज हम एक दिलचस्प कहानी सुनेंगे, जो हमें जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सबक सिखाती है। यह कहानी एक भील, एक सूअर और एक सियार की है।

किसी जंगल में एक भील नाम का शिकार करने वाला आदमी रहता था। एक दिन वह जंगल में शिकार करने के लिए गया। चलते-चलते उसने एक सूअर को देखा। वह सूअर पहाड़ जैसी दिखने वाली जगह पर था। भील ने अपनी तीखी बाण से सूअर को घायल कर दिया। सूअर ने गुस्से में आकर अपने तेज दांतों से भील का पेट फाड़ दिया और वह गिरकर मर गया। लेकिन सूअर भी घायल होने के कारण मरा।

इसी बीच, एक सियार जो भूख से परेशान था, वहां आ पहुंचा। उसने सूअर और भील को मरा हुआ देखा और खुशी से सोचा, “वाह! यह तो मेरे लिए बड़ा सौभाग्य है! बिना मेहनत के मुझे खाना मिल गया।”

सियार ने सोचा, “यह सब मेरे पुराने अच्छे कर्मों का फल है। दैवयोग से, अच्छे और बुरे कर्मों का फल हमें मिलकर ही रहता है।”

सियार ने सोचा, “अब मैं सूअर और भील को खाकर लंबे समय तक भोजन कर सकता हूँ।” फिर उसने तांत की डोरी खाने का सोचा, ताकि उसे लंबे समय तक खाना मिल सके। लेकिन जैसे ही उसने डोरी को मुंह में डाला, वह फंदे में फंस गया और धनुष का छोर उसके सिर में घुस गया। सियार की यह गलती उसकी मौत का कारण बन गई।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए। सियार ने बिना सोचें जल्दी-जल्दी खाना पाने की कोशिश की, लेकिन इससे उसकी जान चली गई।

अब हम सुनते हैं एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी की कहानी। ब्राह्मण ने कहा, “क्या तुमने सुना है कि आयु, कर्म, धन, विद्या, और मृत्यु पहले से ही तय होते हैं?”

ब्राह्मणी ने कहा, “अगर ऐसा है, तो मेरे पास तिल हैं। मैं इन्हें धोकर और सुखाकर तिल-चूर्ण बना दूंगी, जिससे तुम्हारे लिए भोजन तैयार कर सकूं।” वह तिलों को अच्छे से साफ करके धूप में सुखाने लगी, लेकिन उसी समय किसी कुत्ते ने उन तिलों पर पेशाब कर दिया।

ब्राह्मणी ने सोचा, “यह मेरी किस्मत का खेल है। अब मैं इन तिलों को लेकर किसी और के घर जाकर बिना छांटे हुए तिल बदल लाऊंगी।”

वह दूसरे घर में जाकर बिना छांटे हुए तिल के बदले छांटे हुए तिल देने लगी। घर की मालकिन के बेटे ने देखा और कहा, “माँ, इन तिलों में कुछ गड़बड़ है। ये तिल ठीक नहीं हैं।”

यह हमें यह सिखाता है कि बिना सोचे-समझे कुछ भी करना नुकसान का कारण बन सकता है। हमें हमेशा अपने कदम सोच-समझकर उठाने चाहिए।

तो आज की कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए। हमें अपने काम सही समय और परिस्थिति के हिसाब से करने चाहिए।

एक चूहा, खजाना, और धन का भ्रम

यह कहानी एक ऐसे समय की है, जब एक यात्रा में बृहत्स्फिक् और तामूचूड़ यात्रा पर थे। बृहत्स्फिक् ने पूछा, “तामूचूड़, क्या तुम जानते हो इस चूहे का आने का रास्ता?” तामूचूड़ ने जवाब दिया, “भगवान! मैं जानता हूं, यह अकेला नहीं आता, बल्कि हमेशा अपने गिरोह और परिवार के साथ आता है, जो इधर-उधर दौड़ते रहते हैं।”

इस पर बृहत्स्फिक् ने कहा, “क्या कोई खनता है?” तामूचूड़ ने उत्तर दिया, “हां, यह लोहे का खनता है।”
बृहत्स्फिक् ने फिर कहा, “तड़के, तुम मेरे साथ उठना, ताकि हम चूहे के पैरों के निशान चुपचाप देख सकें।”

लेकिन बृहत्स्फिक् के मन में डर बैठ गया। उसने सोचा, ‘इनकी बातें बहुत समझ-बूझकर की गई हैं। अगर वे हमारे खजाने का पता लगा सकते हैं, तो हमारी मुसीबत और बढ़ जाएगी।’ इस प्रकार, उसने अपने परिवार को लेकर किले का रास्ता छोड़ दिया और दूसरे रास्ते से चल पड़ा।

जैसे ही वे आगे बढ़े, बृहत्स्फिक् ने एक मोटा बिल्ला देखा, जो चूहों के झुंड के बीच टूट पड़ा। बिल्ला देख कर चूहे डर के मारे भागने लगे। बृहत्स्फिक् सोचने लगा, “जो रास्ता अपनाया है, वह गलत है, लेकिन हम क्या कर सकते हैं?” उसी समय, चूहे अपनी मृत्यु को प्राप्त हुए और अपने रक्त से पृथ्वी को भिगोते हुए किले में घुस गए।

कहा जाता है, “जहां भाग्य का साथ न हो, वहां पराक्रम क्या कर सकता है?”
बृहत्स्फिक् के मन में यह बात बैठी, और उसने खुद को और अपने परिवार को दूसरी जगह भेज दिया। इस बीच, चूहे की बुरी किस्मत उनके खजाने तक पहुँच गई।

जब बृहत्स्फिक् उस स्थान पर पहुँचा, तो उसने खजाना देखा और महसूस किया कि इस गर्मी में धन पाने के बाद उसे राहत नहीं मिली। वह सोचने लगा, “अब मैं क्या करूं? किससे शांति मिल सकती है?” यह सोचते-सोचते रात ढलने लगी, और वह अपने दल के साथ मठ में चला गया।

तामूचूड़ ने अपनी भिक्षा-पात्र पर फटे बांस को ठोकना शुरू किया। अतिथि ने कहा, “तू क्यों नहीं सोता? तामूचूड़, अब इस चूहे की कूद का उत्साह खत्म हो चुका है। अब कोई भय नहीं है।”

तामूचूड़ हंसा और बोला, “इस चूहे का उत्साह अब धन के साथ चला गया है, और यही जीवन का सच है।”
बृहत्स्फिक् ने गुस्से में आकर भिक्षा-पात्र की ओर कूदने की कोशिश की, लेकिन असफल हुआ। उसके गिरने की आवाज सुनकर तामूचूड़ हंसा और कहा, “देखो, यही है सच – धन के बिना कोई भी मनुष्य केवल नाम का मनुष्य है।”

इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि धन एक स्थायी सुख नहीं लाता। यह हमें ताकत का अहंकार देने का भ्रम पैदा करता है, लेकिन असली शक्ति हमारे आंतरिक गुणों और आत्मविश्वास में है। बिना धन के भी एक व्यक्ति का जीवन सार्थक हो सकता है, और यदि धन मिल भी जाए, तो यह हमारे जीवन को बेहतर नहीं बना सकता।

कहा भी गया है, “धन के बिना पुरुष केवल नाम का पुरुष है,” और यही जीवन का सच है।तो, हमें अपनी वास्तविक शक्ति पहचाननी चाहिए और जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए।
धन्यवाद!

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