सचेतन, पंचतंत्र की कथा-54 : प्रेम, पहचान, और नियति
“प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यः।”
नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे ‘सचेतन सत्र’ में।जो भी विचार साझा किए हैं, वे गहन और प्रेरणादायक हैं। इस कथा के माध्यम से आपने भाग्य और परिश्रम के महत्व को बहुत सुंदरता से व्यक्त किया है। यह कहानी हमें दिखाती है कि कैसे मेहनत और धैर्य के बिना सफलता प्राप्त करना कठिन है और साथ ही यह भी कि कैसे हमारे कर्म हमें प्रभावित करते हैं।
इस प्रकार की कहानियाँ न केवल मनोरंजन करती हैं बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण पाठ भी सिखाती हैं। जैसे मछलियाँ पानी में, जंगली जानवर ज़मीन पर और पक्षी आसमान में मांस खाते हैं, उसी तरह अमीर व्यक्ति हर जगह परेशान किया जाता है। अगर अमीर व्यक्ति निर्दोष हो तब भी राजा उसे दोषी मानता है और गरीब व्यक्ति अगर दोषी हो तो भी उसे हर जगह आसानी से रहने दिया जाता है। पैसा कमाने में दुख है, पैसे की रक्षा में भी दुख है और जब यह खर्च होता है या बर्बाद होता है तो भी दुख होता है। इसलिए पैसा दुख का कारण है। जो व्यक्ति पैसे की इच्छा रखता है, उसे बहुत दुख सहना पड़ता है। अगर मुक्ति की इच्छा रखने वाला व्यक्ति उतना ही दुख सहे तो उसे मुक्ति मिलनी चाहिए।
विदेश में रहने से भी तुम्हें उदास नहीं होना चाहिए क्योंकि ज्ञानी और धीर व्यक्ति के लिए अपना देश और विदेश में कोई अंतर नहीं होता। जहाँ भी वह रहता है, वहीं विजयी होता है। जिस तरह सिंह जंगल में बड़े हाथियों को मारकर अपनी प्यास बुझाता है, वैसे ही बुद्धिमान गरीब व्यक्ति भी विदेश में दुख नहीं पाता। कहा गया है कि समय के लिए क्या बोझ होता है? व्यापारियों के लिए दूरी क्या होती है? विद्वानों के लिए विदेश क्या होता है और मीठा बोलने वालों के लिए पराया क्या होता है? और तुम तो बुद्धि के धनी हो, सामान्य लोगों की तरह नहीं। तुम में उत्साह है, देरी नहीं करते, काम में कुशल हो, बुराइयों से दूर हो, वीर हो, कृतज्ञ हो और प्रेमी हो। ऐसे व्यक्ति में लक्ष्मी खुद निवास करना चाहती है। पैसा भले ही मिल जाए, लेकिन अगर भाग्य में नहीं है तो वह नष्ट हो जाता है। जब तक वह तुम्हारा था, तब तक तुम्हारा था। अगर कोई वस्तु तुम्हें स्वतः मिल जाती है, तब भी भाग्य उसे ले लेता है। जैसे जंगल में सोमिलक दिशा भूल गया था, उसी तरह धन कमाने के बाद भी (अगर भाग्य में न हो तो) उसे भोगा नहीं जा सकता।
हिरण्यक ने पूछा, “यह कैसे?” मंथरक ने कहा, “सोमिलक और छिपे धन की कहानी कुछ ऐसी है।”
हमारे जीवन में कुछ चीजें बिना कोशिश के होती हैं और कुछ नहीं भी होतीं, वैसे ही कुछ चीजें होती हैं अगर हम कोशिश करें तो। जो नहीं होने वाला होता है, वो नहीं होता है। जो होने वाला होता है, वो अपने आप हो जाता है। जो होने की संभावना नहीं होती, वो हाथ में आने पर भी खो जाता है।
जिस तरह एक बछड़ा हजारों गायों में से अपनी माँ को ढूँढ लेता है, उसी तरह पहले किए गए कर्म हमारे पीछे आते हैं। हमारे कर्म हमारे साथ सोते हैं, हमारे साथ चलते हैं, और हमारे साथ खड़े रहते हैं।
जिस तरह छाया और प्रकाश एक दूसरे के साथ बंधे हैं, उसी तरह कर्म और कर्ता भी एक दूसरे से बंधे होते हैं। इसलिए, तुम्हें यहाँ पर कोशिश करते रहना चाहिए।”
लेकिन बुनकर ने कहा, “प्रिये, तुम्हारी बात सही नहीं है। बिना मेहनत के कर्म फल नहीं देता है। जिस तरह एक हाथ से ताली नहीं बजती, उसी तरह बिना मेहनत के कर्म का फल नहीं मिलता। खाने के समय मिला हुआ भोजन भी बिना हाथ की मेहनत के मुंह में नहीं जाता है।
“मेहनती लोगों को ही सफलता मिलती है। ‘भाग्य ही सब कुछ है’, यह तो निराश लोग कहते हैं। इसलिए भाग्य को एक तरफ रखो और अपनी ताकत के अनुसार मेहनत करो। अगर मेहनत करने पर भी काम नहीं बनता है, तो उसमें क्या दोष है? “काम मेहनत से पूरे होते हैं, सिर्फ सोचने से नहीं। सोते हुए शेर के मुंह में हिरन खुद नहीं चला जाता है। बिना उद्यम के कोई मनोरथ पूरा नहीं होता है। ‘जो होना होगा वही होगा’, ऐसा हार मानने वाले कहते हैं।
“अगर मेहनत करने के बाद भी काम नहीं बनता, तो इसमें पराक्रमी व्यक्ति की कोई गलती नहीं है।”
इस निर्णय के साथ वह परदेस गया और वहाँ तीन वर्ष रहकर तीन सौ मुहरें कमाईं। वापसी में जंगल से होकर आते समय, उसने रात में दो व्यक्तियों की बातचीत सुनी। उनमें से एक ने कहा, “क्या तुम नहीं जानते कि सोमिलक के भाग्य में सिर्फ इतना धन ही लिखा है जितना उसे खाने और पहनने के लिए चाहिए? फिर तुमने उसे तीन सौ मुहरें क्यों दीं?” दूसरे ने जवाब दिया, “मेहनती व्यक्तियों को देना चाहिए, पर इसका परिणाम तुम्हारे हाथ में है।”
जब बुनकर जागा, तो उसने पाया कि उसके मुहरें गायब थे। दुखी होकर उसने सोचा, “मेरा सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया। अब मैं अपने परिवार और मित्रों को कैसे सामना करूंगा?”
इस बैल को देखकर एक सियार उसके पीछे लग गया, सोचते हुए कि शायद यह बैल लड़ाई में मर जाए और उसका मांस खाने को मिले। लेकिन बैल काफी समय तक जीवित रहा और सियार को उसके मांस का कोई लाभ नहीं हुआ। बाद में, जब बैल बूढ़ा हो गया और कमजोर पड़ गया, तब जाकर सियार ने उसे खाया।
सोमिलक ने आगे कहा, “इस कहानी से सिखने को मिलता है कि सब्र का फल मीठा होता है। भले ही मेरे पास धन का कोई तात्कालिक उपयोग न हो, पर एक दिन यह मेरे काम आ सकता है।”
उस पुरुष ने सोमिलक के शब्द सुने और उसे आशीर्वाद दिया कि उसकी सोच सही दिशा में है और उसे वह धन प्रदान करेगा जिसकी वह इच्छा रखता है। सोमिलक ने धन्यवाद दिया और अपने घर को लौट आया, अब वह उम्मीद और संकल्प के साथ कि वह अपने धन का सही उपयोग करेगा और अपने जीवन को बेहतर बनाएगा।