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सचेतन- 32 : तैत्तिरीय उपनिषद् आनंद का क्रम — भीतर के सुख की यात्रा

नमस्कार मित्रों,आज हम बात करेंगे “आनंद के क्रम” की —यानी सुख से लेकर ब्रह्मानंद तक की यात्रा।यह सुंदर विचार हमें तैत्तिरीय उपनिषद् से मिलता है।उपनिषद् हमें सिखाता है —सच्चा आनंद बाहर नहीं, हमारे भीतर है।चलो, इसे बहुत सरल तरीके से समझते हैं।  1. मानव आनंद (मानुष आनंद) सबसे पहले आता है मानव आनंद —यानी हमारे […]

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सचेतन- 31 : तैत्तिरीय उपनिषद् तप के रूप और आनंद का क्रम

उपनिषद् कहते हैं — “तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व।”अर्थात्, ब्रह्म को जानने की इच्छा हो तो तप करो — साधना करो। तप (Tapas) का अर्थ केवल कठोर व्रत या शरीर को कष्ट देना नहीं है,बल्कि मन, वाणी और कर्म को एकाग्र कर सत्य की खोज में लगाना है। 🌿 तप के तीन रूप हैं: जब साधक इन […]