“प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यः।” नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे ‘सचेतन सत्र’ में।जो भी विचार साझा किए हैं, वे गहन और प्रेरणादायक हैं। इस कथा के माध्यम से आपने भाग्य और परिश्रम के महत्व को बहुत सुंदरता से व्यक्त किया है। यह कहानी हमें दिखाती है कि कैसे मेहनत और धैर्य के बिना सफलता प्राप्त करना […]
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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-52 : सौ रुपये की किताब
“प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यः।” नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे ‘सचेतन सत्र’ में।जब जीत हाँसिल नहीं होती तो हम कहते हैं की, “जीवन में हर किसी का भाग्य उसके कर्मों से बंधा होता है। जो धन मुझे मिलना था, वह किसी और के हाथ से मेरे पास आया है। इसलिए, मैंने जो किया, वह मेरे कर्म […]