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सचेतन 2.27: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – जीवन में किसी घटना के होने से बचने के लिए प्रतीक्षा करना चाहिए।

वीर वानर हनुमान् विदेहनन्दिनी के दर्शन के लिये उत्सुक हो उस समय सूर्यास्त की प्रतीक्षा करने लगे। देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय जैसी लंकापुरी को देखकर हनुमान जी भी विचार करने लगे और सोचते हैं की – अच्छा तो किस उपाय का अवलम्बन करने से स्वामी का कार्य नहीं बिगड़ेगा। साथ मुझे में […]

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सचेतन 2.26: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – सोच-विचार करने से निरपेक्ष सत्य की स्वानुभूति होती है, वही ज्ञान है

देवताओं और असुरों के लिये भी दुर्जय जैसी लंकापुरी को देखकर हनुमान जी भी विचार करने लगे।  हमने अबतक यह समझा की अवलोकन या निरीक्षण करने से विज्ञान उपजता है और यही  तथ्य और परिकल्पना हनुमान जी को भी लग रह था जब वे विश्वकर्मा की बनायी हुई लंका को एक सुन्दरी स्त्री के तरह […]

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सचेतन 2.24: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड -हनुमान जी वीर्यवान थे 

हनुमान जी ने सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई लंका महापुरी का निरीक्षण स्वयं को जागरूक करने के लिए किया  हम सुंदरकांड के द्वितीयः सर्ग के प्रारंभ में चर्चा किया था की पराक्रमी श्रीमान् वानरवीर हनुमान् जब सौ योजन समुद्र लाँघकर भी वहाँ लम्बी साँस नहीं खींच रहे थे और न ग्लानि का या आलस्य […]

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सचेतन 2.25: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अवलोकन से विज्ञान तक 

विश्वकर्मा की बनायी हुई लंका मानो उनके मानसिक संकल्प से रची गयी एक सुन्दरी स्त्री थी। हनुमान जी ने सोने की चहारदीवारी से घिरी हुई लंका महापुरी का निरीक्षण स्वयं को जागरूक करने के लिए किया उन्होंने देख की लंका का बाहरी फाटक सोने के बने हुए थे और उनकी दीवारें लता-बेलों के चित्र से […]

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सचेतन 2.23: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अथक परिश्रम के लिए पराक्रमी, और वीर्यवान बनना पड़ता है।

पवनपुत्र हनुमान् ने लंका का अवलोकन किया।  आज हम सुंदरकांड के द्वितीयः सर्गः की शुरुआत कर रहे हैं जिसमें लंकापुरी का वर्णन है और, उसमें हनुमान जी के लंका में प्रवेश करने के विषय में विचार लिखा गया  है जिसमें उनका लघुरूप से पुरी में प्रवेश तथा चन्द्रोदय का वर्णन किया गया है।  महाबली हनुमान् […]

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सचेतन 2.22: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – विनम्रता से शक्ति प्राप्त होती है।

हनुमान जी समुद्र को लाँघ जाने के बाद अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हो गये।   धैर्य, सूझ, बुद्धि और कुशलता—ये चार गुणों के परिचय देने बाद हनुमान जी  आकाश में चढ़कर गरुड़ के समान वेग से चलने लगे। सौ योजन के अन्त में प्रायः समुद्र के पार पहुँचकर जब उन्होंने सब ओर दृष्टि डाली, तब […]

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सचेतन 2.21: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – धैर्य, सूझ, बुद्धि और कुशलता जैसे चार गुणों से आप कभी असफलता नहीं होंगे

हनुमान जी से स्पन्द (pulse) होने का संकेत मिलता है जो चेतना और चैतन्य का भाव और प्रत्याभास (reflection) करता है  सफलता के लिए शक्ति इच्छा, ज्ञान और क्रिया शक्ति आपको भी हनुमान जी की तरह से प्राप्त हो सकता है लेकिन उसके लिए दैव का अनुग्रह, स्वाभाविक धैर्य तथा कौशल चाहिए। हनुमान जी की […]

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सचेतन 2.20: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – सफलता के लिए शक्ति के तीन रूप – इच्छा, ज्ञान और क्रिया शक्ति

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सचेतन 2.19: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हनुमान् जी का वायु वेग से गमन 

हनुमान् ने अपने शरीर को अँगूठे के बराबर संकुचित कर लिया और वे उसी क्षण अँगूठे के बराबर छोटे हो गये। देवताओं द्वारा हनुमान जी के बल और पराक्रम की परीक्षा लेने की इक्षा से देवी सुरसा राक्षसी का रूप धारण कर हनुमान् जी को घेरकर कहा की मैं तुम्हें खाऊँगी क्योंकि  यह वर दिया […]

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सचेतन 2.18: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – सुरसा ने अपने मुँह का विस्तार सौ योजन का किया था

सूर्य सिद्धान्त में 1 योजन 8 किलोमीटर के बराबर होता है  देवताओं द्वारा हनुमान जी के बल और पराक्रम की परीक्षा लेने की इक्षा को  सत्कारपूर्वक देवी सुरसा ने स्वीकार किया और समुद्र के बीच में राक्षसी का रूप धारण किया। वह समुद्र के पार जाते हुए हनुमान् जी को घेरकर उनसे इस प्रकार बोली- […]