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  • पंचतंत्र की कथा-04 : व्यर्थ का काम करने से जान भी जा सकती है।

    बुद्धिमान व्यक्ति को स्वामी की इच्छा के अनुकूल कार्य करके उसे प्रसन्‍न करना चाहिए

    बंदर और लकड़ी का खूंटा कहानी सुनाकर करटक बोला, “इसीलिए कहता हूँ कि जिस काम से कोई अर्थ न सिद्ध होता हो, उसे नहीं करना चाहिए। व्यर्थ का काम करने से जान भी जा सकती है। अरे, अब भी पिंगलक जो शिकार करके लाता है, उससे हमें भरपेट भोजन तो मिल ही जाता है। तब बेकार ही झंझट में पड़ने से क्या फायदा!”

    दमनक बोला, “तो तुम क्या केवल भोजन के लिए ही जीते हो? यह तो ठीक नहीं। अपना पेट कौन नहीं भर लेता! जीना तो उसका ही उचित है, जिसके जीने से और भी अनेक लोगों का जीवन चलता हो। दूसरी बात यह कि शक्ति होते हुए भी जो उसका उपयोग नहीं करता और उसे यों ही नष्ट होने देता है, उसे भी अंत में अपमानित होना पड़ता है!”

    करटक ने कहा, “लेकिन हम दोनों तो ऐसे भी मंत्रीपद से च्युत हैं। फिर राजा के बारे में यह सब जानने की चेष्टा करने से क्या लाभ? ऐसी हालत में तो राजा से कुछ कहना भी अपनी हँसी उड़वाना ही होगा। व्यक्ति को अपनी वाणी का उपयोग भी वहीं करना चाहिए, जहाँ उसके प्रयोग से किसीका कुछ लाभ हो!”

    “भाई, तुम ठीक नहीं समझते। राजा से दूर रहकर तो रही-सही इज्जत भी गँवा देंगे हम। जो राजा के समीप रहता है, उसीपर राजा की निगाह भी रहती है और राजा के पास होने से ही व्यक्ति असाधारण हो जाता है।”

    करटक ने पूछा, “तुम आखिर करना क्या चाहते हो?”

    “हमारा स्वामी पिंगलक आज भयभीत है।” दमनक बोला, “उसके सारे सहचर भी डरे-डरे-से हैं। मैं उनके भय का कारण जानना चाहता हूँ।”

    “तुम्हें कैसे पता कि वे डरे हुए हैं?”

    “लो, यह भी कोई मुश्किल है! पिंगलक के हाव-भाव, चाल-ढाल, उसकी बातचीत, आँखों और चेहरे से ही स्पष्ट जान पड़ता है कि वह भयभीत है। मैं उसके पास जाकर उसके भय के कारण का पता करूँगा। फिर अपनी बुद्धि का प्रयोग करके उसका भय दूर कर दूँगा। इस तरह उसे वश में करके मैं फिर से अपना मंत्रीपद प्राप्त करूँगा।”

    करटक ने फिर भी शंका जताई, “तुम इस विषय में तो कुछ जानते नहीं कि राजा की सेवा किस प्रकार करनी चाहिए। ऐसी स्थिति में उसे वश में कैसे कर लोगे?”

    दमनक बोला, “राजसेवा के बारे में मैं नहीं जानता, यह तुम कैसे कह सकते हो? बचपन में पिता के साथ रहकर मैंने सेवाधर्म तथा राजनीति के विषय में जो कुछ भी सुना, सब अच्छी तरह सीख लिया है। इस पृथ्वी में अपार स्वर्ण है; उसे तो बस शूरवीर, विद्वान्‌ तथा राजा के चतुर सेवक ही प्राप्त कर सकते हैं।”

    करटक को फिर भी विश्वास नहीं आ रहा था। उसने कहा, “मुझे यह बताओ कि तुम पिंगलक के पास जाकर कहोगे क्या?”

    “अभी से मैं क्या कहूँ! वार्ततालाप के समय तो एक बात से दूसरी बात अपने आप निकलती जाती है। जैसा प्रसंग आएगा वैसी ही बात करूँगा। उचित-अनुचित और समय का विचार करके ही जो कहना होगा, कहूँगा। पिता की गोद में ही मैंने यह नीति-वचन सुना है कि अप्रासंगिक बात कहनेवाले को अपमान सहना ही पड़ता है, चाहे वह देवताओं के गुरु बृहस्पति ही क्यों न हों।”

    करटक ने कहा, “तो फिर यह भी याद रखना कि शेर-बाघ आदि हिंस्र जंतुओं तथा सर्प जैसे कुटिल जंतुओं से संपन्न पर्वत जिस प्रकार दुर्गण और विषम होते हैं उसी प्रकार राजा भी क्रूर तथा दुष्ट व्यक्तियों की संगति के कारण बड़े कठोर होते हैं। जल्दी प्रसन्‍न नहीं होते और यदि कोई भूल से भी राजा की इच्छा के विरुद्ध कुछ कर दे तो साँप की तरह डसकर उसे नष्ट करते उन्हें देर नहीं लगती।”

    दमनक बोला, ”आप ठीक कहते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति को स्वामी की इच्छा के अनुकूल कार्य करके उसे प्रसन्‍न करना चाहिए। इसी मंत्र से उसे वश में किया जा सकता है।”

    करटक ने समझ लिया कि दमनक ने मन-ही-मन पिंगलक से मिलने का दृढ़ निश्चय कर लिया है। वह बोला, “ऐसा विचार है तो अवश्य जाओ। बस, मेरी एक बात याद रखना कि राजा के पास पहुँचकर हर समय सावधान रहना। तुम्हारे साथ ही मेरा भविष्य भी जुड़ा है। तुम्हारा पथ मंगलमय हो।”

    करटक की अनुमति पाकर दमनक उसे प्रणाम करके पिंगलक से मिलने के लिए चल पड़ा।

    सुरक्षा के लिए व्यूह के बीचोबीच बैठे पिंगलक ने दूर से ही दमनक को अपनी ओर आते देख लिया। उसने व्यूह के द्वार पर नियुक्त प्रहरी से कहा, “मेरे पूर्व महामंत्री का पुत्र दमनक आ रहा है। उसे निर्भय प्रवेश करने दो और उचित आसन पर बैठाने का प्रबंध करो।”

    दमनक ने बेरोक-टोक पिंगलक के पास पहुँचकर उसे प्रणाम किया। साथ ही उसका संकेत पाकर वह निकट ही दूसरे मंडल में बैठ गया।

    सिंहराज पिंगलक ने अपना भारी पंजा उठाकर स्नेह दिखाते हुए दमनक के कंधे पर रखा और आदर के साथ पूछा, “कहो, दमनक, कुशल से तो रहे? आज बहुत दिनों के बाद दिखाई पड़े। किधर से आ रहे हो?’

    दमनक बोला, ”महाराज के चरणों में हमारा क्या प्रयोजन हो सकता है! किंतु समय के अनुसार राजाओं को भी उत्तम, मध्यम तथा अधम-हर कोटि के व्यक्ति से काम पड़ सकता है। ऐसे भी हम लोग महाराज के सदा से ही सेवक रहते आए हैं। दुर्भाग्य से हमें हमारा पद और अधिकार नहीं मिल पाया है तो भी हम आपकी सेवा छोड़कर कहाँ जा सकते हैं। हम लाख छोटे और असमर्थ सही, किंतु कोई ऐसा भी अवसर आ सकता है, जब महाराज हमारी ही सेवा लेने का विचार करें।”

    पिंगलक उस समय उद्विग्न था। बोला, “तुम छोटे-बड़े या समर्थ-असमर्थ की बात छोड़ो, दमनक। तुम हमारे मंत्री के पुत्र हो, अत: तुम जो भी कहना चाहते हो, निर्भय होकर कहो।”

    अभयदान पाकर भी चालाक दमनक ने राजा के भय के विषय में सबके सामने बात करना ठीक नहीं समझा। उसने अपनी बात कहने के लिए एकांत का अनुरोध किया।

    पिंगलक ने अपने अनुचरों की ओर देखा। राजा की इच्छा समझकर आसपास के जीव-जंतु हटकर दूर जा बैठे।

    एकांत होने पर दमनक ने बड़ी चतुराई से पिंगलक की दुखती रग ही छेड़ दी। बोला, “स्वामी, आप तो यमुना-तट पर पानी पीने जा रहे थे, फिर सहसा प्यासे ही लौटकर इस मंडल के बीच इस तरह चिंता से व्यग्र होकर क्यों बैठे हैं? ”

    दमनक की बात सुनकर सिंह पहले तो सकुचा गया। फिर दमनक की चतुराई पर भरोसा करके उसने अपना भेद खोल देना उचित समझा। पल-भर सोचकर बोला, “दमनक, यह जो रह-रहकर गर्जना-सी होती है, इसे तुम भी सुन रहे हो न?

    “सुन रहा हूँ, महाराज!”

    “बस, इसीके कारण मैं क्षुब्ध हूँ।तट पर यही गर्जना बार-बार हो रही थी। लगता है, इस वन में कोई विकट जंतु आ गया है। जिसकी गर्जना ही इतनी भयंकर हैं, वह स्वयं कैसा होगा! इसीके कारण मैं तो यह जंगल छोड़कर कहीं और चले जाने का विचार कर रहा हूँ।”

    दमनक ने कहा, ”लेकिन मात्र शब्द सुनकर भय के मारे अपना राज्य छोड़ना तो उचित नहीं है, महाराज! शब्द अथवा ध्वनि का क्या है। कितने ही बाजों की ध्वनि भी गर्जना की-सी बड़ी गंभीर होती है और अपने पुरखों का स्थान छोड़ने से पहले पता तो करना ही चाहिए कि ध्वनि का कारण कया है। यह तो गोमायु गीदड़ की तरह डरने की बात हुई, जिसे बाद में पता चला कि ढोल में तो पोल-ही-पोल है।”

    पिंगलक ने पूछा, ‘“गोमायु गीदड़ के साथ कया घटना हुई थी?” दमनक गोमायु की कहानी आगे सुनेगें —-

  • पंचतंत्र की कथा-03 : बंदर और लकड़ी का खूंटा

    बिना सोचे-समझे, किसी और के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

    एक घने जंगल में पिंगलक नाम का एक शेर और उसके के साथ दो गीदड़ हमेशा रहते थे—करटक और दमनक। ये दोनों शेर के सहायक थे और उसकी सेवा में लगे रहते थे। संजीवक बैल से पिंगलक की जब दोस्ती बढ़ती गई तो करटक ने साज़िश रचने की सोची, लेकिन दमनक ने उसकी बात नहीं मानी। यह “बंदर और लकड़ी का खूंटा” पंचतंत्र की एक प्रसिद्ध कहानी है जो करटक द्वारा दमनक को समझाने के लिए बताई जाती है। यह कहानी बताती है कि दूसरों के काम में बिना सोचे-समझे हस्तक्षेप करने का परिणाम अक्सर बुरा होता है। आइए इस कहानी को सुनते हैं:

    बंदर और लकड़ी का खूंटा

    किसी नगर में एक राजा ने एक बड़ा मंदिर बनवाने का निश्चय किया था। मंदिर का निर्माण कार्य जोरों पर था, और इसके लिए कई कारीगर और मजदूर दिन-रात मेहनत कर रहे थे। उनमें से कुछ बढ़ई भी थे, जो लकड़ी को काटने और उसे विभिन्न आकार देने का काम कर रहे थे।

    एक दिन दोपहर के समय सभी कारीगर अपने भोजन के लिए विश्राम करने चले गए। उन्होंने अपना अधूरा काम वहीं छोड़ दिया था। उनमें से एक बड़ा लकड़ी का लठ्ठा था जिसे बीच से चीरकर उसमें एक खूंटा फंसा दिया गया था ताकि लकड़ी वापस जुड़ न जाए।

    इसी बीच एक बंदर वहां आ पहुँचा। बंदर स्वभाव से बहुत ही चंचल और शरारती होते हैं। वह बंदर वहां इधर-उधर उछल-कूद करने लगा और उसे वह लकड़ी का लठ्ठा दिखाई दिया। लकड़ी के बीच में फंसे खूंटे ने उसकी जिज्ञासा को बढ़ा दिया। वह सोचने लगा कि यह खूंटा यहां क्यों है और इसे खींचने से क्या होगा।

    अपनी जिज्ञासा पर काबू न रखते हुए बंदर लकड़ी के पास आया और उसने खूंटे को खींचना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में उसने खूंटा निकाल लिया। जैसे ही खूंटा बाहर निकला, लकड़ी के दोनों हिस्से तेजी से जुड़े और बंदर का पैर उनके बीच बुरी तरह फंस गया। दर्द के मारे बंदर जोर-जोर से चिल्लाने लगा, लेकिन उसकी मदद के लिए कोई नहीं था।

    जब कारीगर वापस आए, तो उन्होंने देखा कि बंदर लकड़ी के बीच फंसा हुआ है और तड़प रहा है। बड़ी मुश्किल से उन्होंने लकड़ी को खोला और बंदर को आज़ाद किया। लेकिन तब तक बंदर बुरी तरह घायल हो चुका था।

    कहानी से शिक्षा

    इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बिना सोचे-समझे, बिना समझे किसी और के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बंदर ने अपनी जिज्ञासा और शरारत के कारण लकड़ी का खूंटा खींचा और खुद को मुसीबत में डाल लिया। इसी प्रकार, अगर हम बिना सोचे-समझे किसी काम में दखल देते हैं, तो उसके बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

    दमनक को यह कहानी सुनाकर करटक ने उसे यह समझाने की कोशिश की कि दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप करना हानिकारक हो सकता है। इसलिए, हमें हमेशा सोच-समझकर ही किसी काम में दखल देना चाहिए और अपनी सीमाओं को समझना चाहिए।

  • पंचतंत्र की कथा-02 : पंचतंत्र की कहानियों के पाँच ग्रंथ

    विष्णु शर्मा ने राजपुत्रों को बुद्धिमान और ज्ञानवान बनाने के लिए पाँच ग्रंथ की रचना की थी।

    नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है पंचतंत्र की कहानियों की इस खास श्रंखला में। आज हम जानेंगे पंचतंत्र की कहानियों के पाँच ग्रंथ। यह कहानीयाँ हमें मित्रता, विश्वास और धोखे के बारे में गहरी सीख देती है। तो तैयार हो जाइए एक रोमांचक यात्रा के लिए।

    पंचतंत्र, जो कि विष्णु शर्मा द्वारा रचित एक अद्भुत ग्रंथ है, भारतीय साहित्य में नीति और जीवन के व्यवहारिक ज्ञान को सरल और शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। विष्णु शर्मा ने राजपुत्रों को बुद्धिमान और ज्ञानवान बनाने के लिए इस ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ में पांच प्रमुख तंत्र शामिल हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने के लिए अलग-अलग कहानियों के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। आइए, इन्हें विस्तार से समझते हैं:

    1. मित्रभेद
      मित्रभेद का अर्थ है मित्रों के बीच मतभेद या अलगाव। इसमें ऐसे कई उदाहरण दिए गए हैं जहाँ मित्रों के बीच गलतफहमियों और ईर्ष्या के कारण दोस्ती टूट जाती है। यह तंत्र हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी मित्रता में विश्वास और समझ बनाए रखना चाहिए, अन्यथा छोटे-छोटे मतभेद भी बड़े झगड़े का कारण बन सकते हैं।
    2. मित्रलाभ
      मित्रलाभ का तात्पर्य है सच्चे मित्रों की प्राप्ति और उनसे मिलने वाले लाभ। इसमें ऐसे मित्रों की कहानियाँ हैं जो सच्चे और निस्वार्थ भाव से एक-दूसरे का साथ देते हैं। यह तंत्र हमें सच्ची मित्रता का मूल्य समझाता है और बताता है कि सच्चे मित्र हमारी सबसे बड़ी पूंजी होते हैं।
    3. काकोलुकीयम्
      काकोलुकीयम् में कौवों और उल्लुओं की कहानियाँ हैं, जो हमें युद्ध और संधि के महत्व को समझाती हैं। इसमें बताया गया है कि कब हमें अपने शत्रु से युद्ध करना चाहिए और कब शांति की राह अपनानी चाहिए। यह तंत्र कूटनीति और बुद्धिमानी से काम लेने की शिक्षा देता है।
    4. लब्धप्रणाश
      लब्धप्रणाश का अर्थ है हाथ लगी वस्तु का हाथ से निकल जाना या उसका नष्ट हो जाना। इसमें उन स्थितियों की कहानियाँ हैं जहाँ लोग अपने मूर्खतापूर्ण कृत्यों या लापरवाही के कारण अपने पास आई चीज़ों को खो बैठते हैं। यह तंत्र हमें सिखाता है कि हमें अपने साधनों और अवसरों का ध्यानपूर्वक उपयोग करना चाहिए, ताकि हम उन्हें खो न दें।
    5. अपरीक्षित कारक
      अपरीक्षित कारक का तात्पर्य है बिना सोच-विचार के कोई कार्य करना। इसमें यह बताया गया है कि बिना सोचे-समझे किए गए कार्य अक्सर हानि पहुँचाते हैं। यह तंत्र हमें सिखाता है कि हमें किसी भी कार्य को करने से पहले उसके परिणामों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए।

    इन पाँच तंत्रों के माध्यम से विष्णु शर्मा ने राजपुत्रों को नीतियों, कूटनीति, सच्ची मित्रता, सावधानी, और सोच-समझकर निर्णय लेने की शिक्षा दी। पंचतंत्र का हर तंत्र अपने आप में गहरी सीख छुपाए हुए है, जिसे समझकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बना सकता है।

    पंचतंत्र कथा की शुरुआत 

    किसी समय, महिलारोप्य नाम के नगर में वर्धमान नाम का एक व्यापारी रहता था। उसने ईमानदारी और मेहनत से अपने व्यापार में बहुत धन कमाया था, लेकिन उसे इतने में संतोष नहीं था। वर्धमान की इच्छा थी कि वह और भी अधिक धन कमाए। हमारे जीवन में भी कई बार ऐसा होता है कि हम संतोष करना भूल जाते हैं और कुछ नया करने की चाह में आगे बढ़ते हैं।

    वर्धमान ने अपने व्यापार को और आगे बढ़ाने का निश्चय किया। उसने तय किया कि वह मथुरा जाकर व्यापार करेगा। इसके लिए उसने एक सुंदर रथ तैयार करवाया, जिसमें दो मजबूत बैल जोड़े गए—उनका नाम था संजीवक और नंदक। वर्धमान अपनी यात्रा पर निकला, लेकिन यमुना नदी के किनारे पहुँचते ही संजीवक दलदल में फँस गया। कई कोशिशों के बाद भी जब वह नहीं निकल पाया, तो उसका एक पैर टूट गया। वर्धमान को बहुत दुःख हुआ, लेकिन वह वहाँ और रुक नहीं सकता था।

    वर्धमान ने संजीवक की देखभाल के लिए कुछ रक्षक रखकर अपनी यात्रा जारी रखी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद रक्षक भी जंगल की भयावहता से डरकर भाग गए और वर्धमान से झूठ कह दिया कि “संजीवक मर गया है।”

    लेकिन संजीवक तो जीवित था। उसने यमुना के किनारे की हरी दूब खाकर धीरे-धीरे अपनी ताकत वापस पा ली। समय के साथ वह और भी ताकतवर हो गया और जंगल में स्वच्छंद होकर घूमने लगा।

    एक दिन, उसी यमुना तट पर पिंगलक नाम का शेर पानी पीने आया। उसने दूर से ही संजीवक की गम्भीर हुंकार सुनी और डरकर झाड़ियों में छिप गया। शेर के साथ दो गीदड़ भी थे—करटक और दमनक। दोनों ने जब अपने स्वामी को भयभीत देखा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। दमनक ने करटक से कहा, “हमारा स्वामी वन का राजा है, फिर भी वह इस तरह डरा हुआ क्यों है?”

    करटक ने उत्तर दिया, “दमनक, दूसरों के काम में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं। जो ऐसा करता है, वह उस बंदर की तरह दुख पाता है, जिसने व्यर्थ ही दूसरे के काम में हस्तक्षेप किया था।”

    इस प्रकार कहानी का पहला हिस्सा हमें यह सिखाता है कि समझदारी से काम लेना कितना महत्वपूर्ण है और कैसे गलतफहमी और डर के कारण हम अपनी शक्ति भूल सकते हैं। आशा है कि आप पंचतंत्र की इन कहानियों को आप सचेतन में सुनकर न केवल आनंदित होंगे, बल्कि इससे कुछ सीख भी पाएंगे। धन्यवाद!

    श्रोताओं, हम अगली कड़ी में मिलेंगे, पंचतंत्र के बारे में और मित्रभेद पर रोचक कहानी के साथ आपके लिए विचार रखेगे। तब तक के लिए, खुश रहें, सीखते रहें और अपने आसपास के लोगों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखें। नमस्कार।

  • पंचतंत्र की कथा-01 : पंचतंत्र के बारे में कुछ रोचक बातें

    आइए, आज हम पंचतंत्र की महान कहानियों की दुनिया में कदम रखें। यह कहानी संग्रह हमारे भारतीय संस्कृत साहित्य की एक अद्भुत धरोहर है। इस महान रचना के रचयिता पंडित विष्णु शर्मा थे, जिन्होंने लगभग 80 वर्ष की आयु में इस ग्रंथ की रचना की थी। आइए जानते हैं, इस अद्वितीय ग्रंथ के बारे में कुछ रोचक बातें।

    नमस्कार श्रोताओं! आप सुन रहे हैं पंचतंत्र की अद्भुत यात्रा। पंचतंत्र, जिसका नाम ही बताता है कि इसमें पाँच भागों में विभाजित कहानियों का संग्रह है। यह नीतिपुस्तक न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। हर कहानी में एक महत्वपूर्ण संदेश छुपा है, जो जीवन में हमें सही दिशा दिखाने का कार्य करती है।

    दक्षिण के किसी जनपद में एक नगर था, जिसका नाम था महिलारोप्य। वहाँ के राजा अमरशक्ति बड़े ही पराक्रमी, उदार और कलाओं में निपुण थे। परंतु उनके तीन पुत्र—बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति—दुर्भाग्यवश अज्ञानी और उद्दंड थे। राजा अमरशक्ति अपने पुत्रों की मूर्खता और अज्ञान से बहुत चिंतित थे। एक दिन उन्होंने अपने मंत्रियों से कहा, “ऐसे मूर्ख और अविवेकी पुत्रों से अच्छा तो निस्संतान रहना होता। पुत्रों के मरण से भी इतनी पीड़ा नहीं होती, जितनी मूर्ख पुत्र से होती है। हमारा राज्य विद्वानों और महापंडितों से भरा है, कोई ऐसा उपाय करो जिससे मेरे पुत्र शिक्षित हो सकें।”

    मंत्रियों ने विचार-विमर्श किया और अंत में मंत्री सुमति ने सुझाव दिया, “महाराज, आपके राज्य में विष्णु शर्मा नामक महापंडित रहते हैं, जो सभी शास्त्रों में पारंगत हैं। इनके पास राजपुत्रों को भेजा जाए ताकि वे इनको ज्ञान प्रदान कर सकें।” राजा अमरशक्ति ने यही किया और विनयपूर्वक महापंडित विष्णु शर्मा से अनुरोध किया कि वे उनके पुत्रों को अर्थशास्त्र का ज्ञान प्रदान करें।

    विष्णु शर्मा ने उत्तर दिया, “मैं विद्या का विक्रय नहीं करता। लेकिन मैं वचन देता हूँ कि छह महीने में ही आपके पुत्रों को नीतियों में पारंगत कर दूँगा।” महापंडित की यह प्रतिज्ञा सुनकर सभी स्तब्ध रह गए।

    विष्णु शर्मा ने राजपुत्रों को अपने आश्रम में ले जाकर उन्हें नीति और ज्ञान सिखाने के लिए पंचतंत्र नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में पांच तंत्र शामिल थे—

    1. मित्रभेद – इसमें मित्रों के बीच में मनमुटाव और अलगाव की कहानियाँ हैं।
    2. मित्रलाभ – इसमें सच्चे मित्रों के प्राप्ति और उसके लाभ के बारे में बताया गया है।
    3. काकोलुकीयम् – इसमें कौवों और उल्लुओं की कहानी के माध्यम से युद्ध और सन्धि का महत्व समझाया गया है।
    4. लब्धप्रणाश – इसमें हाथ लगी चीज़ के हाथ से निकल जाने या उसके नष्ट होने की कहानियाँ हैं।
    5. अपरीक्षित कारक – इसमें बिना सोचे-समझे कोई कार्य करने से बचने की शिक्षा दी गई है।

    इन कहानियों में मानव पात्रों के साथ-साथ पशु-पक्षियों का भी प्रमुख स्थान है। यह कहानियाँ केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि इनमें जीवन के हर पहलू की समझ को सरल और रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। यही वजह है कि पंचतंत्र का अनुवाद विश्व की लगभग हर भाषा में हो चुका है।

    यह पुस्तक हमें सिखाती है कि जीवन में बुद्धिमानी, धैर्य, और सच्चे मित्रों का कितना महत्व है। पंचतंत्र के पाठ केवल बच्चों के लिए ही नहीं, बल्कि हर उम्र के व्यक्ति के लिए शिक्षाप्रद हैं। विष्णु शर्मा ने कहानियों के माध्यम से जीवन के गूढ़ सिद्धांतों को सरल और सुगम बनाया है ताकि हर कोई इसे समझ सके और अपने जीवन में इसका अनुसरण कर सके।

    पंचतंत्र की कहानियाँ न केवल बच्चों को बल्कि बड़ों को भी प्रभावित करती हैं। वे हमें बताते हैं कि कैसे जीवन में नीति, मित्रता, समझदारी, और धैर्य का महत्व है। महापंडित विष्णु शर्मा की ये कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें जीवन के हर पहलू में सही निर्णय लेने की सीख देती हैं।

    उम्मीद है कि आपको आज का यह विचार का सत्र पसंद आया होगा। पंचतंत्र की कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि समझदारी और विवेक से हम जीवन की किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। धन्यवाद, और अगले एपिसोड में फिर मिलेंगे।

    आशा है कि आप पंचतंत्र की इन कहानियों को आप सचेतन में सुनकर न केवल आनंदित होंगे, बल्कि इससे कुछ सीख भी पाएंगे। धन्यवाद!

    श्रोताओं, हम अगली कड़ी में मिलेंगे, पंचतंत्र के बारे में और थोड़ा जानेंगे और फिर इसकी रोचक कहानी के साथ आपके लिए विचार रखेगे। तब तक के लिए, खुश रहें, सीखते रहें और अपने आसपास के लोगों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखें। नमस्कार।