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  • सचेतन, पंचतंत्र की कथा-45 : चूहे और भिक्षुक की प्रेरणादायक कहानी

    “नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन पॉडकास्ट’ में। आज की कहानी एक चूहे, साधु और भिक्षुक के बीच की है, जो हमें सिखाती है कि आत्मविश्वास और साहस कैसे संसाधनों पर निर्भर करता है। तो आइए, कहानी शुरू करते हैं।”

    कहानी की शुरुआत ऐसे हुई की एक दिन, एक भिक्षुक मंदिर की यात्रा पर आया। लेकिन मंदिर के साधु का पूरा ध्यान एक चूहे को डंडे से मारने पर था। साधु भिक्षुक से मिल भी नहीं पाए। इसे अपना अपमान समझते हुए भिक्षुक क्रोधित हो गया और बोला:
    “मैं आपके आश्रम में फिर कभी नहीं आऊंगा। लगता है, मेरे आने से ज्यादा आपके अन्य काम महत्वपूर्ण हैं।”

    साधु ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया: महोदय, मुझे क्षमा करें। लेकिन यह चूहा मेरी सबसे बड़ी परेशानी बन चुका है। यह किसी भी तरह से मेरे पास से भोजन चुरा ही लेता है।”

    साधु की समस्या 

    साधु ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा: यह चूहा इतना चालाक और ताकतवर है कि किसी भी बिल्ली या बंदर को हरा सकता है, अगर बात मेरे कटोरे तक पहुँचने की हो। मैंने हर कोशिश कर ली, लेकिन यह किसी न किसी तरीके से भोजन चुरा ही लेता है।”

    भिक्षुक ने साधु की बातों को ध्यान से सुना और फिर मुस्कुराते हुए बोला: चूहे में इतनी शक्ति, आत्मविश्वास और चंचलता के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य है। मुझे लगता है कि इसने कहीं बहुत सारा भोजन जमा कर रखा होगा। यही कारण है कि यह अपने आप को बड़ा समझता है और बिना डरे ऊँचा कूदने की हिम्मत करता है।”

    चूहे के बिल का पता लगाने की योजना

    भिक्षुक ने सुझाव दिया: “अगर हम चूहे के बिल तक पहुँच जाएं, तो हमें इसका भोजन भंडार मिल सकता है। यदि इसका भंडार समाप्त हो गया, तो इसका आत्मविश्वास और ताकत भी खत्म हो जाएगी।”

    साधु और भिक्षुक ने फैसला किया कि अगली सुबह वे चूहे का पीछा करेंगे और उसके बिल तक पहुँचेंगे।

    चूहे के बिल का खुलासा

    अगली सुबह, दोनों ने चूहे का पीछा किया और उसके बिल के पास पहुँच गए। उन्होंने बिल की खुदाई शुरू की। जैसे ही उन्होंने खुदाई पूरी की, वे हैरान रह गए – चूहे ने अनाज का एक विशाल भंडार जमा कर रखा था।

    साधु ने तुरंत सारा चुराया हुआ भोजन निकाल लिया और उसे मंदिर में वापस ले गए।

    चूहे की हार

    जब चूहा वापस अपने बिल में पहुँचा, तो उसने देखा कि उसका पूरा भंडार गायब हो चुका है। इसे देखकर वह बहुत दुखी हुआ। उसे गहरा झटका लगा, और उसने अपना आत्मविश्वास खो दिया।

    फिर भी, भूख से परेशान चूहे ने रात में साधु के कटोरे से भोजन चुराने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही वह कटोरे तक पहुँचा, वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। उसे एहसास हुआ कि अब उसकी ताकत और आत्मविश्वास दोनों खत्म हो चुके हैं।

    अंतिम पलायन

    साधु ने उसी समय अपनी छड़ी से चूहे पर हमला किया। किसी तरह चूहे ने अपनी जान बचाई और मंदिर से भाग निकला। वह फिर कभी मंदिर लौटकर नहीं आया।

    कहानी की शिक्षा

    “दोस्तों, इस कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं:

    1. आत्मविश्वास और ताकत अक्सर हमारे संसाधनों और परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
    2. यदि हमारे पास संसाधनों की कमी न हो, तो हम अद्भुत शक्तियाँ और आत्मविश्वास पा सकते हैं।
    3. मुश्किलों को हल करने के लिए सही दृष्टिकोण और योजना जरूरी है।

    याद रखें, आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए हमें अपने जीवन में स्थिरता और संसाधनों का सही उपयोग करना आना चाहिए।”

    “आपको यह कहानी कैसी लगी? हमें जरूर बताएं। अगली बार फिर मिलेंगे एक और प्रेरणादायक कहानी के साथ। धन्यवाद!”

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  • सचेतन, पंचतंत्र की कथा-44 : परिव्राजक और चूहे की यह कहानी

    “नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन पॉडकास्ट’ के इस खास एपिसोड में, जहाँ हमने सुनी पंचतंत्र की कथा ‘विश्वास और मित्रता की परीक्षा।’ पिछले सत्र में हमने जाना कि कैसे लघुपतनक नामक कौए और हिरण्यक नामक चूहे के बीच सतर्कता और विवेक से भरोसेमंद मित्रता का आरंभ हुआ, और कैसे उन्होंने सच्चे मित्र की तरह एक-दूसरे का साथ दिया। इस कहानी में हमने देखा कि लघुपतनक की दुखभरी स्थिति ने उसे अपने मित्र हिरण्यक के पास अपनी समस्या साझा करने पर मजबूर किया, और दोनों ने एक साथ मिलकर समाधान ढूंढा। मंथरक कछुए से मिलन के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि सच्ची मित्रता समय, स्थान, और परिस्थिति की सीमाओं को पार करती है। इस कथा से हमें यह भी सीख मिलती है कि मित्रता का सही अर्थ है – बिना किसी स्वार्थ के एक-दूसरे का सहारा बनना और अपने साथी की भावनाओं को समझना। आज के एपिसोड में, हिरण्यक की दुखभरी कहानी और उसके वैराग्य का कारण जानेंगे। 

    आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं एक अनोखी कथा – ‘परिव्राजक और चूहे की।’ यह कहानी बुद्धिमानी, मेहनत और चतुराई का अद्भुत संगम है। आइए, इस कहानी का आनंद लेते हैं।”

    दक्षिण जनपद में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। उस नगर के पास भगवान शिव का एक मठ था। उस मठ में ताम्रचूड़ नाम का एक संन्यासी रहता था।

    संन्यासी अपनी आजीविका के लिए नगर में भीख मांगता था। जो कुछ भी उसे भीख में मिलता, वह उसे एक भिक्षा पात्र में रखकर मठ की दीवार पर खूंटी पर टांग देता और फिर रात में सो जाता। सबेरे उठकर वह उस अन्न को मजदूरों को बांटता, जो मंदिर की सफाई, लिपाई-पुताई और सजावट का काम करते थे।

    मठ में चूहों का एक समूह भी रहता था। उनमें से एक चूहे ने मुझसे कहा:
    “स्वामी! ताम्रचूड़ संन्यासी का यह मठ हमारे लिए बहुत उपयुक्त है। लेकिन वह भिक्षा पात्र खूंटी पर लटकाकर रखता है, इसलिए हमें उसका अन्न नहीं मिल पाता। स्वामी, आप महान हैं। अगर आप कृपा करें तो हम इस अन्न का आनंद ले सकते हैं।”

    पहला प्रयास

    इस विचार पर हमने उसी दिन एक योजना बनाई। मैंने अपने साथियों के साथ मठ में प्रवेश किया। जैसे ही संन्यासी ने भिक्षा पात्र खूंटी पर टांगा और सो गया, मैंने ऊंचाई पर कूदकर उस भिक्षा पात्र को छुआ।

    फिर मैंने उस पात्र को गिरा दिया और अपने साथियों के साथ उसमें रखा हुआ सारा अन्न खा लिया। मैंने खुद भी भरपेट खाया और अपने साथियों को भी तृप्त किया।

    आदत बन गई

    इसके बाद यह हमारी नियमित आदत बन गई। हम हर रात मठ में जाकर उस भिक्षा पात्र में रखा सारा अन्न खा लेते।

    संन्यासी ने कई बार रखवाली करने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही वह सो जाता, मैं अपने साथियों के साथ आकर सारा अन्न खा जाता।

    सावधानी आवश्यक है: अपनी चीजों की सुरक्षा के लिए हमेशा सतर्क रहना चाहिए।

    योजना बनाकर कार्य करें: कोई भी काम बुद्धिमानी और संगठित प्रयास से सफल होता है।

    परिश्रम और चतुराई का मेल: चूहों ने मिल-जुलकर और चतुराई से अपने लिए भोजन की व्यवस्था कर ली।

    चतुराई और मेहनत से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है, लेकिन दूसरों की मेहनत का सम्मान करना भी जरूरी है। 😊 

    चूहे का आतंक और ताम्रचूड़ का संघर्ष

    ताम्रचूड़ नामक एक परिव्राजक अपने मठ में अकेला रहता था। लेकिन उसका जीवन एक चूहे के कारण बेहद कठिन हो गया था। चूहा रातभर उसका भोजन चुराता और उसकी शांति भंग करता। ताम्रचूड़ ने चूहे को भगाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन सब बेकार गए।

    चूहे को भगाने की तरकीब
    ताम्रचूड़ ने एक तरकीब के तहत फटा हुआ बांस लाया और सोते समय भी उस बांस से अपने भिक्षा-पात्र को ठकठकाने लगा। उसका सोचना था कि भिक्षा-पात्र की आवाज से चूहा डरकर भाग जाएगा। लेकिन चूहा भी हार मानने वाला नहीं था।

    रातभर चलती लड़ाई
    रातभर ताम्रचूड़ और चूहे के बीच लड़ाई चलती रहती। ताम्रचूड़ भिक्षा-पात्र ठकठकाता रहता, और चूहा बार-बार वापस आता। इस लड़ाई के कारण ताम्रचूड़ बिना खाए-पिए परेशान हो गया, लेकिन चूहे का आतंक खत्म नहीं हुआ।

    मठ में अतिथि का आगमन

    एक दिन ताम्रचूड़ के मठ में उसका मित्र बृहत्स्फिक्, जो एक परिव्राजक था, तीर्थ-यात्रा के दौरान अतिथि बनकर आया। ताम्रचूड़ ने उसका सत्कार किया, उसे भोजन कराया और धर्म-कथा की चर्चा के लिए रात में उसके साथ बैठा।

    धर्म-कथा और चूहे का डर: जब वे दोनों कुश की चटाई पर बैठकर धर्म-कथा कहने लगे, तो ताम्रचूड़ का ध्यान लगातार भिक्षा-पात्र और चूहे पर था। वह फटे बांस से भिक्षा-पात्र को ठकठकाता रहा, ताकि चूहा पास न आए।

    इस विचलित व्यवहार से बृहत्स्फिक् नाराज हो गया। उसने गुस्से में कहा: “ताम्रचूड़! तू मेरा सच्चा मित्र नहीं है। तेरी यह उदासीनता मुझे दिखा रही है कि तू मेरे साथ हंसी-खुशी से बात करने में दिलचस्पी नहीं रखता। यदि तू इसी तरह व्यवहार करेगा, तो मैं इसी रात तेरा मठ छोड़कर किसी और मठ में चला जाऊंगा।”

    अतिथि सत्कार का महत्व

    बृहत्स्फिक् ने कहा: “जो व्यक्ति अपने घर आए स्नेही जनों को ‘पधारिए’, ‘विश्राम कीजिए’, ‘क्या समाचार है?’ जैसे प्रेम भरे शब्दों से आदर देता है, वही सच्चा मित्र होता है। ऐसे व्यक्ति के घर में स्नेहीजन बिना किसी डर के हमेशा आते हैं।”

    अतिथि सत्कार का महत्व: अपने मेहमानों का स्वागत प्रेम और सम्मान से करें।

    ध्यान और विनम्रता: मित्रता में ध्यान भटकाना और अनादर करना रिश्तों को कमजोर कर सकता है।

    समस्याओं का समाधान: छोटी-छोटी समस्याओं को तुरंत हल करने का प्रयास करें, ताकि वे रिश्तों पर असर न डालें।

    मित्रता और अतिथि सत्कार में सच्चा मन और सम्मान आवश्यक है। 😊

    चूहे का रहस्य

    बृहत्स्फिक् ने कहा: “क्या तू जानता है कि उस चूहे का बिल कहाँ है?”
    ताम्रचूड़ ने उत्तर दिया: “नहीं, मुझे इसका पता नहीं।”

    बृहत्स्फिक् ने कहा: “निश्चय ही उसका बिल किसी खजाने के ऊपर है। धन की गर्मी से ही वह इतना तेज और कूदने में सक्षम है।”

    “दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है:

    1. मेहनत और बुद्धिमानी से बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है।
    2. धन या संसाधन किसी भी जीव को ताकतवर बना सकते हैं, लेकिन उसका सही उपयोग करना चाहिए।
    3. सच्ची मित्रता में सहयोग और समझदारी आवश्यक है।

    अगले एपिसोड में जानेंगे कि कैसे ताम्रचूड़ और बृहत्स्फिक् ने चूहे की समस्या का समाधान निकाला। तब तक, अपनी मेहनत और मित्रता को संजोएं। धन्यवाद!”

  • सचेतन, पंचतंत्र की कथा-43 : “विश्वास और मित्रता की परीक्षा”

    “नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन पॉडकास्ट’ में, जहाँ हम प्रेरणादायक और विचारशील कहानियाँ आपके साथ साझा करते हैं। आज की कहानी है ‘विश्वास और मित्रता की परीक्षा’, जो हमें सिखाती है कि सच्ची मित्रता, विश्वास और समझ से परिपूर्ण होती है। तो आइए, इस रोचक कहानी को सुनते हैं।”

    एक जंगल में लघुपतनक नामक कौआ और हिरण्यक नामक चूहा रहते थे। लघुपतनक ने हिरण्यक से मित्रता की इच्छा जताई, लेकिन हिरण्यक सतर्क और विवेकी था। उसने कहा: “मित्रता तभी सफल होती है जब दोनों पक्षों में विश्वास हो। शत्रु के साथ कसम खाकर भी सुलह पर भरोसा नहीं करना चाहिए।”

    हिरण्यक ने उदाहरण देते हुए कहा: “इंद्र ने मित्रता का वचन देकर भी वृत्रासुर का वध किया। बिना विश्वास बनाए, कोई शत्रु को वश में नहीं कर सकता।”

    विश्वास की परीक्षा

    हिरण्यक ने आगे समझाया: “पानी का वेग धीरे-धीरे नाव में घुसकर उसे डुबो देता है। उसी तरह शत्रु, चाहे कितना भी छोटा हो, धीरे-धीरे नाश करता है। अविश्वासी का विश्वास नहीं करना चाहिए, और विश्वासी का भी बहुत अधिक भरोसा नहीं करना चाहिए।”

    लघुपतनक ने कहा: “मैं सज्जन हूं और सच्चे मन से तुझसे मित्रता करना चाहता हूं। अगर तुझे भरोसा न हो, तो अपने बिल-दुर्ग में रहते हुए ही मुझसे बातचीत कर।”

    हिरण्यक ने विचार किया और कौए की सच्चाई को समझा। उसने कहा: “मैं तुम्हारे साथ मित्रता करूंगा, लेकिन एक शर्त है—तुम कभी मेरे किले में प्रवेश नहीं करोगे।”

    कौए ने वचन दिया: “ऐसा ही होगा।”
    और इस प्रकार दोनों सच्चे मित्र बन गए।

    मित्रता का विकास

    दोनों मित्र एक-दूसरे की मदद करने लगे। कौआ हिरण्यक के लिए मांस और पकवान लाता, और बदले में हिरण्यक रात को चावल और भोज्य पदार्थ कौए के लिए लाता।

    हिरण्यक ने कहा:
    “सच्ची मित्रता में देना और लेना, प्रेम का आदान-प्रदान, और गुप्त बातें साझा करना जरूरी है। यही मित्रता का आधार है।”

    अकाल और कौए का निर्णय

    एक दिन, लघुपतनक दुखी होकर हिरण्यक के पास आया। उसने कहा:
    “प्रिय हिरण्यक! इस जंगल में अब रहना असंभव है। अकाल पड़ चुका है, लोग भूखे हैं, और हर जगह जाल फैले हुए हैं। मैं खुद एक बार जाल में फँस चुका हूँ, लेकिन किसी तरह बच निकला। अब मैं दक्षिणापथ के एक तालाब में जा रहा हूँ, जहाँ मेरा मित्र मंथरक कछुआ रहता है।”

    हिरण्यक ने कहा: “मित्र, मुझे भी अपने साथ ले चलो। मैं यहाँ अकेला नहीं रह सकता।”

    कौए ने उत्तर दिया: “तुम मेरे साथ कैसे जाओगे? मैं आकाश-मार्ग से उड़ूंगा।”

    हिरण्यक ने कहा: “यदि तुम मेरी जान बचाना चाहते हो, तो मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर ले चलो।”

    कौए ने खुशी-खुशी यह प्रस्ताव स्वीकार किया।

    हिरण्यक कौए की पीठ पर बैठ गया। कौआ ने कहा:“मैं उड़ने के आठ तरीकों को जानता हूँ। सम्पात, विप्रपात, महापात, निपात, वक्रपात, तिर्यकपात, ऊर्धपात, और लघुपात। मैं तुम्हें आराम से तालाब तक ले जाऊँगा।”

    1. सम्पात – धीरे से सीधा उड़ना।
    2. विप्रपात – एकाएक ऊपर उठकर उड़ना।
    3. महापात – जोर से और तेज उड़ना।
    4. निपात – उड़ते हुए नीचे आना।
    5. वक्रपात – टेढ़े-मेढ़े उड़ना।
    6. तिर्यकपात – तिरछे उड़ना।
    7. ऊर्धपात – ऊंचे आकाश में उड़ना।
    8. लघुपात – चपलता और फुर्ती से उड़ना।

    कौआ हिरण्यक को लेकर तालाब पर पहुँचा, जहाँ मंथरक कछुआ रहता था।मंथरक ने कौए को देखा, उसने चूहे को कौए की पीठ पर बैठे देखा, तो वह चौंककर पानी में छिप गया।कौए ने पुकारा: “मंथरक! यह मैं हूँ, तुम्हारा मित्र लघुपतनक। बाहर आओ।”

    मंथरक ने बाहर आकर कहा: “मित्र, इतने समय बाद तुम्हें देखकर मुझे अपार खुशी हुई। लेकिन यह चूहा कौन है, जिसे तुम अपनी पीठ पर लाए हो?”

    यह सुनकर मंथरक ने कौए को ध्यान से देखा और पहचान लिया। वह खुशी और रोमांच से भरकर पानी से बाहर आया। उसकी आँखों में आँसू थे और शरीर पुलकित हो उठा। मंथरक ने कहा: आओ मित्र, मुझसे गले मिलो। बहुत समय बीत गया, इसलिए मैं तुम्हें तुरंत पहचान नहीं पाया और पानी में छिप गया।”

    कौआ पेड़ से उतरकर मंथरक से गले मिला और बोला: “मित्र, तुम्हारी भेंट किसी अमृत से भी अधिक मूल्यवान है।”

    हिरण्यक भी मंथरक के पास आया और कौए के बगल में बैठ गया।

    “दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है:

    1. सच्ची मित्रता समय और परिस्थितियों से नहीं टूटती।
    2. सच्चे मित्र वही हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी साथ निभाते हैं।
    3. मिलन और सहानुभूति जीवन को संवारने की ताकत रखते हैं।

    तो, सच्चे मित्रों को पहचानें और उनकी कद्र करें।”

    चूहे का परिचय 

    मंथरक ने हिरण्यक को देखा और कौए से पूछा:
    “अरे, यह चूहा कौन है? यह तो तेरा भोजन हो सकता है, फिर भी तू इसे अपनी पीठ पर बिठाकर लाया है। इसके पीछे कोई खास कारण होगा।”

    कौए ने कहा:
    “यह हिरण्यक है, मेरा प्रिय मित्र। यह मेरे जीवन के समान है। इसके गुण अनगिनत हैं, जैसे पानी की धाराएं, तारे और बालू के कण असंख्य होते हैं। यह अत्यंत दुख में है, इसलिए मैं इसे तुम्हारे पास लाया हूं।”

    हिरण्यक का वैराग्य

    मंथरक ने हिरण्यक से पूछा: प्रिय हिरण्यक, तुम्हारा वैराग्य का कारण क्या है? हमें बताओ।”

    कौए ने भी कहा: मैंने भी इससे पूछा था, लेकिन इसने कहा कि सारी बातें तुम्हारे पास पहुंचकर ही बताएगा।”

    हिरण्यक ने गहरी सांस लेते हुए कहा: “भाई मंथरक और लघुपतनक, मेरी कहानी लंबी है, लेकिन मैं तुम्हें सब बताने के लिए तैयार हूं।”

    “दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है:

    1. सच्चे मित्र का साथ हर दुख को छोटा कर देता है।
    2. मित्रता वह रिश्ता है, जो हर परिस्थिति में सहारा बनता है।
    3. दुख और वैराग्य का कारण साझा करना मित्रता को और गहरा बनाता है।

    मित्रता का सही अर्थ है – बिना किसी स्वार्थ के एक-दूसरे का साथ देना।”

    “अगले एपिसोड में जानेंगे हिरण्यक की दुखभरी कहानी और कैसे उसके मित्र उसका सहारा बने। तब तक, अपने मित्रों को समय दें और उनकी भावनाओं को समझें। धन्यवाद!”

  • सचेतन, पंचतंत्र की कथा-42 : हिरण्यक और लघुपतनक की कथा

    मित्रता सुबह और दोपहर की छाया के समान है – शुरुआत में छोटी, लेकिन समय के साथ बढ़ती जाती है।

    पिछले सत्र में हमने सुना की दक्षिण भारत के महिलारोप्य नामक नगर के पास एक घना बरगद का पेड़ था, जहां लघुपतनक नाम का बुद्धिमान कौआ रहता था। एक दिन उसने देखा कि एक बहेलिया जाल और चावल लेकर पेड़ की ओर बढ़ रहा है। सतर्क लघुपतनक ने तुरंत अन्य पक्षियों को चेतावनी दी कि यह बहेलिये का जाल है और चावल विष समान हैं। सभी पक्षियों ने उसकी बात मानी और सुरक्षित रहे। उसी दौरान, चित्रग्रीव नामक कबूतरों का राजा अपने झुंड के साथ वहां आया। नीचे बिखरे चावल देखकर वे लालच में पड़ गए और कौए की चेतावनी को अनसुना कर दिया। जैसे ही उन्होंने चावल खाना शुरू किया, वे सभी बहेलिये के जाल में फंस गए।

    चित्रग्रीव ने संकट में धैर्य से काम लिया और अपने साथियों को एकजुट किया। उन्होंने मिलकर अपने पंख फड़फड़ाए और जाल को लेकर उड़ गए। बहेलिया उन्हें रोकने में असफल रहा। चित्रग्रीव ने समझदारी दिखाते हुए अपने मित्र हिरण्यक चूहे की मदद लेने का निश्चय किया। हिरण्यक ने पहले सभी कबूतरों को मुक्त किया और फिर चित्रग्रीव को आजाद किया। इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि लालच और अनदेखी चेतावनी अनर्थ को बुलाते हैं, जबकि एकता, धैर्य और सच्ची मित्रता किसी भी संकट का समाधान कर सकती है। सच्चा मित्र विपत्ति के समय ही पहचाना जाता

    “नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन पॉडकास्ट’ के इस नए एपिसोड में। आज की कहानी है ‘हिरण्यक और लघुपतनक’ की, जो हमें सच्ची मित्रता, विश्वास, और सदाचारी सेवा का महत्व सिखाती है। चलिए, शुरू करते हैं।”

    यह सब देखकर पास के पेड़ पर बैठा लघुपतनक नाम का कौआ हिरण्यक की बुद्धिमानी से बहुत प्रभावित हुआ। उसने सोचा: “इस चूहे की बुद्धि और साहस अद्भुत है। मुझे इसे अपना मित्र बनाना चाहिए।”

    कौआ पेड़ से नीचे उतरा और हिरण्यक के किले के पास जाकर बोला: “हे हिरण्यक, मैं लघुपतनक नाम का कौआ हूँ। मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूँ।”

    हिरण्यक ने जवाब दिया: “अरे, तू मेरा शत्रु है। मैं तेरा भोजन हूँ। हम दोनों के बीच मित्रता कैसे हो सकती है?”

    कौआ ने कहा: “अरे हिरण्यक! मैंने तुझसे कभी मुलाकात तक नहीं की, फिर तेरी मुझसे शत्रुता क्यों?”

    हिरण्यक ने शांत स्वर में उत्तर दिया: “वैर दो प्रकार के होते हैं – सहज वैर और नकली वैर। तू मेरा सहज वैरी है। कहा भी गया है:
    ‘नकली दुश्मनी नकली गुणों से खत्म हो जाती है, पर सहज वैर बिना मरे खत्म नहीं होता।’”

    कौआ उत्सुक होकर बोला: “मैं इन दोनों प्रकार की शत्रुताओं का लक्षण जानना चाहता हूँ। बता, सहज और नकली शत्रुता में क्या अंतर है?”

    शत्रुता के प्रकार का विवरण

    हिरण्यक ने समझाया:
    “किसी कारण से उत्पन्न शत्रुता नकली होती है। योग्य उपचार करने से यह खत्म हो जाती है। लेकिन स्वाभाविक शत्रुता कभी समाप्त नहीं होती। जैसे:

    • नेवला और सर्प,
    • घास खाने वाले और मांसाहारी,
    • जल और अग्नि,
    • देव और दैत्य,
    • कुत्ते और बिल्ली।

    इनमें किसी ने किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं है, फिर भी वे स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे को सताते हैं।”

    कौआ गंभीरता से बोला: “यह तो वैर अकारण है। लेकिन मेरी बात सुन,
    ‘कारण से ही मित्रता होती है और कारण से ही शत्रुता। बुद्धिमान को हमेशा मित्रता की ओर ध्यान देना चाहिए। शत्रुता से कुछ नहीं मिलता। इसलिए, मित्र धर्म निभाते हुए तू मेरे साथ मित्रता कर।’”

    मित्रता पर चर्चा

    हिरण्यक ने मुस्कुराते हुए कहा: “तेरे साथ मेरी मित्रता कैसे हो सकती है? सुन –
    ‘मित्र होते हुए भी एक बार दुश्मनी करने वाले के साथ सुलह करना खच्चर के गर्भ की तरह है, जो असंभव है।’ और यह मत सोच कि गुणवान होने से दुश्मनी नहीं होगी। कहा गया है:

    • व्याकरण शास्त्र बनाने वाले पाणिनि को सिंह ने मार डाला।
    • जैमिनि मुनि को हाथी ने कुचल दिया।
    • समुद्र के किनारे मगर ने छंद-शास्त्र के ज्ञानी पिंगल को खा लिया।

    गुणहीन और क्रोधी जीवों को गुणों से कोई मतलब नहीं होता।”

    कौआ समझाते हुए बोला: “यह सही है। लेकिन सुन: ‘उपकार से मित्रता होती है। भय और लालच से मूर्खों की मित्रता होती है। और सज्जनों की मित्रता केवल भेंट से भी हो सकती है।’

    दुर्जन मिट्टी के घड़े की तरह है, जो आसानी से टूटता है और जुड़ता नहीं। लेकिन सज्जन सोने के घड़े के समान है, जिसे तोड़ना कठिन है, और जोड़ना सरल।”

    सज्जनों की मित्रता का महत्व

    कौआ आगे बोला: “सज्जनों की मित्रता ईख की तरह है, जिसका रस धीरे-धीरे बढ़ता है। यह स्थायी होती है।  सज्जन लोग अपने विपरीतों के प्रति भी उदार होते हैं। और उनकी मित्रता सुबह और दोपहर की छाया के समान है – शुरुआत में छोटी, लेकिन समय के साथ बढ़ती जाती है।

    कहानी की शिक्षा

    “दोस्तों, कौआ और हिरण्यक की इस चर्चा से हमें कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं:

    1. शत्रुता और मित्रता का विवेक: कारण और स्वभाव के आधार पर संबंध बनाए जाएं।
    2. मित्रता का महत्व: सज्जनता और उपकार से मित्रता स्थायी बनती है।
    3. संबंधों में सावधानी: दुर्जनों के साथ मित्रता न करें, क्योंकि वह क्षणिक होती है।

    याद रखें, विवेक से बनाई गई मित्रता जीवन को सुखद बनाती है।”