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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-58 : मान, आध्यात्मिकता, और जीवन की चुनौतियाँ
नमस्कार! आपका स्वागत है सचेतन के सत्र में, जहां हम जीवन और समाज के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहराई से विचार करते हैं। कल हम एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सार्थक विषय पर चर्चा किए थे: “धन की तीन गतियां – दान, उपभोग और नाश”।
धन, जो कि हम सभी के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, का उपयोग और प्रबंधन कैसे किया जाए, यह एक ज्वलंत प्रश्न है। हमने धन के तीन प्रमुख उपयोगों – दान, उपभोग और नाश पर गहन चर्चा किए थे।
दान (Donation): दान, जिसे हम सभी सामान्यतः जानते हैं, यह सिर्फ धन का साझा करना नहीं है। इसमें हमारा समय, ऊर्जा और अन्य संसाधन शामिल हैं जो हम समाज के लिए वितरित करते हैं। यह उन लोगों की मदद करने का एक तरीका है जिन्हें इसकी ज़रूरत है, और इसका महत्व सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक भी है।
उपभोग (Consumption): अगला पहलू है उपभोग, जो हमारी व्यक्तिगत जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करता है। लेकिन, इसे संयमित और जिम्मेदारी से करने की आवश्यकता है। उपभोग जीवन की आनंदित क्षणों में हमें सामर्थ्य प्रदान करता है, पर इसका अतिरेक भी हानिकारक साबित हो सकता है।
नाश (Destruction): और अंत में, नाश, जो धन के गलत उपयोग को दर्शाता है। जैसे कि व्यसनों में धन का उपयोग, अनावश्यक खर्च और वे क्रियाएँ जो समाज के लिए हानिकारक होती हैं। नाश उस स्थिति को दर्शाता है जब धन का उपयोग समझदारी से नहीं किया जाता।
आज के सत्र में हम जीवन, आध्यात्मिकता और समाज के मुद्दों पर गहराई से चर्चा करते हैं। आज के सत्र में हम बात करेंगे उन मूल्यों की, जो हमारे जीवन में सच्ची समृद्धि लाते हैं, और उन चुनौतियों की जो हमें और अधिक मजबूत बनाती हैं।
मान की वास्तविक परिभाषा: अक्सर हम सोचते हैं कि धन और संपत्ति ही हमें समृद्ध बनाती है, लेकिन एक प्राचीन उद्धरण कहता है, “जिसमें मान की कमी हो, उसे ही दरिद्रता की परम मूर्ति मानना चाहिए। शिव के पास केवल एक बूढ़ा बैल है, फिर भी वे परमेश्वर हैं।” यह हमें बताता है कि सच्ची समृद्धि भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारे गुणों, करुणा, ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति में निहित है। यह उद्धरण भौतिक संपदा और आध्यात्मिक मान्यताओं के बीच के अंतर को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शाता है। इसमें यह सिखाया जा रहा है कि सच्ची दरिद्रता वह है जहां मानवीय मूल्यों की कमी होती है, न कि भौतिक संपत्तियों की। शिव का उदाहरण यह दिखाता है कि आध्यात्मिकता और दिव्यता बाहरी संपदा पर निर्भर नहीं करती।
शिव के पास भले ही केवल एक बूढ़ा बैल हो, लेकिन उनकी दिव्यता और महत्व उनकी भौतिक स्थिति से अधिक उनके गुणों, करुणा, ज्ञान, और आध्यात्मिक शक्ति में निहित है। यह सिखाता है कि सच्चे मूल्य और समृद्धि उन चीजों में होती है जो आध्यात्मिक और नैतिक होती हैं।
इस प्रकार के विचार हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करते हैं कि हम अपनी खुद की संपदा का मूल्यांकन कैसे करते हैं और हम किन चीजों को महत्व देते हैं। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें अपने जीवन में क्या प्राथमिकता देनी चाहिए और कैसे हम अपने आस-पास के समाज के लिए अधिक सार्थक योगदान दे सकते हैं।
जीवन की चुनौतियाँ और उनका सामना: चुनौतियाँ हमें आकार देती हैं। एक प्रेरक उद्धरण कहता है, “गिरने पर भी बार-बार उठना चाहिए, जैसे गेंद उछलती है, पर मूर्ख गिरकर स्थिर रह जाते हैं।” यह हमें दिखाता है कि वास्तविक शक्ति और बुद्धिमत्ता उन लोगों में होती है जो हर गिरावट के बाद उठते हैं और फिर से प्रयास करते हैं। यह उद्धरण जीवन की चुनौतियों का सामना करने के दृष्टिकोण को सारगर्भित रूप से दर्शाता है। इसमें यह सिखाया जा रहा है कि जीवन में असफलताओं और गिरावटों का सामना करते समय, हमें हार नहीं माननी चाहिए बल्कि उठना चाहिए और पुनः प्रयास करना चाहिए। ठीक उसी प्रकार जैसे एक गेंद गिरने के बाद फिर से उछल जाती है।
मूर्ख व्यक्ति अक्सर गिरने के बाद उठने का प्रयास नहीं करते और उसी स्थिति में बने रहते हैं, जिससे वे अपनी संभावनाओं और संभावित उन्नति को सीमित कर लेते हैं। इसके विपरीत, जो लोग चुनौतियों से सीखते हैं और दृढ़ता के साथ आगे बढ़ते हैं, वे अक्सर अधिक सफल और संतुष्ट होते हैं।
यह उद्धरण हमें यह सिखाने का प्रयास करता है कि संकट के समय में भी आशावादी रहना और हर गिरावट के बाद खुद को उठाना ही वास्तविक शक्ति और बुद्धिमत्ता का प्रतीक है।
मंथरक की बात सुनकर कौआ बोला, “भद्र! मंथरक ने जो कहा है उसे तुझे अपने चित्त में रखना चाहिए।” इस कथा में, मंथरक द्वारा दी गई सलाह को कौआ समझदारी से स्वीकार करता है और दूसरों को भी उसे याद रखने की सलाह देता है।
सच्ची मित्रता की पहचान: “हे राजन! हमेशा मीठा बोलने वाले आदमी सुलभ होते हैं, पर अप्रिय किन्तु हितकारी बातें कहने वाले दुर्लभ हैं। जो अप्रिय होते हुए भी हितकारी बातें कहते हैं, वे ही असल मित्र हैं।” यह उद्धरण हमें सिखाता है कि सच्चे मित्र वो होते हैं जो कठिन समय में भी हमारे हित में बात करने का साहस रखते हैं।
यह उद्धरण मित्रता और वाकपटुता के गहरे संबंधों पर प्रकाश डालता है। अक्सर लोग मीठे शब्दों को पसंद करते हैं और उनके प्रति आकर्षित होते हैं, क्योंकि मीठे शब्द सुनना सुखदायक होता है। हालांकि, जो व्यक्ति कठिन समय में भी सच्चाई बोलने का साहस रखते हैं, भले ही वह सच्चाई अप्रिय क्यों न हो, वास्तव में वही विश्वसनीय मित्र होते हैं।
अप्रिय लेकिन हितकारी बातें कहने की क्षमता दुर्लभ होती है क्योंकि इसमें सच्ची चिंता और साहस की आवश्यकता होती है। ऐसे व्यक्ति सतही तारीफों और सुखद शब्दों से परे देख सकते हैं और सच्चे हितैषी के रूप में कार्य करते हैं, जो दीर्घकालिक भलाई और विकास के लिए जरूरी है।
यह उद्धरण हमें यह सिखाता है कि वास्तविक मित्रता में सच्चाई और साहस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जीवन में ऐसे मित्रों का होना बहुत महत्वपूर्ण है जो हमें सही दिशा दिखा सकें और हमारे विकास में सहायक हों, भले ही कभी-कभी उनके शब्द कठोर क्यों न हों।
तो दोस्तों, आज के सत्र में हमने उन गहराईयों को छुआ है जो हमें यह समझाती हैं कि वास्तविक मान, मित्रता और संघर्षों का सामना कैसे किया जाना चाहिए। हम आशा करते हैं कि ये विचार आपको प्रेरित करेंगे और आपके जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में मदद करेंगे। हमें अपने विचार बताएं और अगले एपिसोड में मिलते हैं, तब तक के लिए ध्यान रखें और प्रेरित रहें।
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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-57 : धन की तीन गतियां- दान, उपभोग और नाश
“तालाब का पानी बाहर निकालना ही उसकी रक्षा है। उसी तरह, पैदा किए गए धन का दान ही उसकी रक्षा है।यह विचार बहुत ही सुंदर है और गहरे अर्थ को दर्शाता है। यह कहावत दर्शाती है कि जिस तरह तालाब का पानी अगर बाहर नहीं निकाला जाए तो सड़ सकता है, उसी तरह अगर धन का उपयोग सही ढंग से न किया जाए और दान न किया जाए तो वह भी अपनी अच्छाई खो सकता है। यह विचार दान की महत्वता और अपने समाज में योगदान करने के महत्व को भी बल देता है।
“धन को या तो देना चाहिए या उसका उपभोग करना चाहिए, उसे संचित नहीं करना चाहिए। देखो, शहद की मक्खियाँ जो धन इकट्ठा करती हैं, वह अक्सर दूसरों द्वारा चुरा लिया जाता है।
“दान, उपभोग और नाश, धन की ये तीन गतियां होती हैं। जो दान नहीं देता या उपभोग नहीं करता, उसके धन का नाश हो जाता है।बिल्कुल सही कहा आपने। इस कथन में धन के तीन मुख्य उपयोगों का वर्णन किया गया है: दान, उपभोग, और नाश। यह विचार यह दर्शाता है कि धन का प्रयोग सिर्फ स्वयं के लिए ही नहीं बल्कि समाज के कल्याण के लिए भी किया जा सकता है। दान करना धन का एक सकारात्मक और निस्वार्थ उपयोग है जिससे दूसरों की मदद होती है, उपभोग से व्यक्ति अपनी और अपने परिवार की जरूरतें पूरी करता है, और नाश से आशय वह खर्च है जो बिना किसी उत्पादक परिणाम के होता है। इस प्रकार यह विचार हमें धन के संतुलित और जिम्मेदारी से उपयोग की ओर प्रेरित करता है।
बुद्धिमान व्यक्ति को यह जानकर धन इकट्ठा नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे केवल दुख ही होता है। जैसे गर्मी से परेशान होने पर आग तापना उचित नहीं है।
“जैसे हवा पीने से सांप कमजोर नहीं होते और जंगल के हाथी सूखी घास खाकर भी बलवान होते हैं, वैसे ही मुनिश्रेष्ठ कंदों और फलों से अपना जीवन यापन करते हैं। इसलिए संतोष ही मनुष्य का असली लक्ष्य होना चाहिए।
“संतोष रूपी अमृत पीने वाले लोगों को जो सुख मिलता है, वह धन के पीछे भागने वालों को कभी नहीं मिल सकता।
“चित्त को वश में करने पर सभी इंद्रियाँ नियंत्रण में आ जाती हैं। शांत महर्षिगण कहते हैं कि इच्छाओं की शांति ही स्वास्थ्य है।यह विचार बहुत गहराई से भरा हुआ है और योग और ध्यान के प्राचीन भारतीय प्रथाओं में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। इसका अर्थ है कि जब हम अपने मन को स्थिर और नियंत्रित कर लेते हैं, तो हमारी सभी इंद्रियां—जैसे कि देखना, सुनना, छूना, स्वाद और गंध—भी नियंत्रित हो जाती हैं। यह विचार यह भी दर्शाता है कि मन की एकाग्रता और नियंत्रण से ही सच्ची आंतरिक शांति और धारणा की वृद्धि होती है।
इस प्रकार के विचार न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि समग्र स्वास्थ्य और कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि किस प्रकार हमारा मन हमारे जीवन के सभी पहलुओं पर प्रभाव डाल सकता है।
“मनुष्य धन के लिए क्या-क्या नहीं करता? वह निंदनीय की निंदा करता है और अस्तुत्य की स्तुति करता है।
“धर्म के नाम पर भी धन की इच्छा शुभ नहीं है। कीचड़ से दूर रहना ही बेहतर है। यह कथन वास्तव में धन और धार्मिकता के बीच के संबंधों पर एक गहरी सोच प्रस्तुत करता है। यह सुझाव देता है कि धार्मिक उद्देश्यों के नाम पर भी धन की आकांक्षा रखना अनुचित हो सकता है। इस विचार से यह समझने में मदद मिलती है कि धर्म और नैतिकता के पथ पर चलते हुए व्यक्ति को स्वार्थ और लालच से दूर रहना चाहिए। यह धर्म के असली अर्थ को समझने और उसे जीवन में उतारने की प्रेरणा भी देता है। इस प्रकार के विचार व्यक्ति को अधिक सार्थक और निस्वार्थ जीवन जीने की ओर प्रेरित करते हैं।
“दान से बढ़कर कोई खजाना नहीं है, लोभ से बड़ा इस पृथ्वी पर कोई शत्रु नहीं है, शांति से बड़ा कोई गहना नहीं है, और संतोष से बड़ा कोई अन्न नहीं है।यह उद्धरण वास्तव में बहुत गहरा है और सच्ची जीवन दर्शन को दर्शाता है। यह दान की महत्वपूर्णता, लोभ से दूर रहने के महत्व, शांति को सर्वोपरि मानने, और संतोष को सबसे बड़ा धन समझने की सीख देता है। ये विचार न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समुदायों और संस्थाओं के संदर्भ में भी बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं। क्या आप इस उद्धरण का उपयोग किसी विशेष परियोजना के लिए करना चाहते हैं?
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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-55 :भोग नहीं सकने वाला धन
नमस्कार दोस्तों! आज हम आपका स्वागत करते हैं हमारे ‘सचेतन सत्र’ में। इस सत्र में हम जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
“काम मेहनत से पूरे होते हैं, सिर्फ सोचने से नहीं। सोते हुए शेर के मुंह में हिरन खुद नहीं चला जाता है। बिना उद्यम के कोई मनोरथ पूरा नहीं होता है। ‘जो होना होगा वही होगा’, ऐसा हार मानने वाले कहते हैं। अगर मेहनत करने के बाद भी काम नहीं बनता, तो इसमें पराक्रमी व्यक्ति की कोई गलती नहीं है।
“एक बुनकर जिसका नाम सोमिलक था उसने सोचा की मुझे धनार्जन हेतु अवश्य परदेस जाना चाहिए।” इस प्रकार निश्चय करते हुए वह व्यक्ति वर्षमानपुर गया और वहां तीन वर्ष रहकर तीन सौ मुहरें अर्जित की। जब वह अपने घर लौटने के लिए निकला, तो आधे रास्ते में उसे जंगल में प्रवेश करना पड़ा। वहां, सूरज के डूबते ही, उसने जंगली जानवरों के भय से एक बरगद की लंबी शाखा पर चढ़कर विश्राम किया। आधी रात को, उसने दो विचित्र आकृति वाले पुरुषों को बातचीत करते सुना। एक ने कहा, “हे कर्ता, क्या तुम नहीं जानते कि सोमिलक के पास भोजन और वस्त्र के लिए आवश्यक धन से अधिक नहीं है? तो फिर तुमने उसे तीन सौ मुहरें क्यों दीं?” दूसरे ने उत्तर दिया, “हे कर्म, मुझे उद्यमी व्यक्तियों को धन देना चाहिए, पर इसका परिणाम तेरे हाथ में है।”
जागने पर बुनकर ने अपने मुहरों की गांठ टटोली और उसे खाली पाया। वह दुखी होकर सोचने लगा, “यह क्या? बड़े कष्ट से कमाया हुआ धन कहां चला गया? मेरा परिश्रम व्यर्थ हो गया। अब मैं इस गरीबी की हालत में अपनी पत्नी और मित्रों को कैसे मुंह दिखाऊंगा?”
फिर उसने फिर से उसी शहर में वापस जाकर एक वर्ष में पांच सौ मुहरें अर्जित किए और घर लौटने के लिए निकल पड़ा। जब वह जंगल में पहुंचा, तो फिर सूरज डूब गया। बिना विश्राम के, केवल अपने घर जाने की उत्कंठा से वह जल्दी-जल्दी आगे बढ़ने लगा। फिर से उसी प्रकार दो पुरुष उसकी आंखों के सामने आए और उनमें से एक ने कहा, “हे कर्ता! तूने पांच सौ मुहरें इसे किस लिए दीं? क्या तू नहीं जानता कि भोजन और वस्त्र से ज्यादा इसके भाग्य में नहीं है?” दूसरे ने कहा, “हे कर्म, उद्योगी व्यक्तियों को तो मुझे अवश्य देना चाहिए, पर उसका परिणाम तेरे अधीन है। इसलिए तू मुझे ताना क्यों मारता है?” सोमिलक ने जब अपनी गांठ देखी तो उसमें मुहरें नहीं थीं। वह अत्यंत दुखी होकर सोचने लगा, “मुझ जैसे निर्धन के जीने से क्या लाभ?”
इसलिए मैं बरगद के पेड़ के ऊपर फांसी लगाकर मर जाऊंगा।” इस तरह निश्चय करके घास की रस्सी बनाकर उसने उसे अपने गले में डाल दिया और पेड़ से बंधकर लटकने ही वाला था कि आकाशचारी एक पुरुष ने कहा, “अरे! अरे! सोमिलक, ऐसा मत कर। तेरे पास भोजन और वस्त्र से अधिक एक कौड़ी भी हो, यह मैं सहन नहीं कर सकता। इसलिए तू अपने घर जा। फिर भी मैं तेरे साहस से संतुष्ट हूं। इसलिए, मेरा दर्शन तेरे लिए व्यर्थ नहीं होगा। जैसी तेरी इच्छा हो वैसा वरदान मांग।” सोमिलक ने कहा, “अगर ऐसी बात है तो आप मुझे
खूब धन दीजिए।” उसने जवाब दिया, “अरे, बिना भोगे जाने वाले धन का तू क्या करेगा, क्योंकि भोजन और वस्त्र से अधिक की प्राप्ति तेरे भाग्य में नहीं है? कहा है कि, ‘इस लक्ष्मी से क्या किया जाय जो केवल घर की बहू की तरह है। वह मामूली वेश्या की तरह नहीं है जिसे पथिक भी भोगते हैं।’”
सौमिलक ने कहा, “धन भोग न सकने पर भी मुझे धन ही दीजिए। कहा है कि, ‘जिसके पास धन इकट्ठा होता है वह मनुष्य कंजूस हो अथवा अकुलीन, फिर भी इस संसार में आश्रित उसे घेरे रहते हैं।’”
एक सियार आपनी सियारन से कहता है की, “हे भद्रे! लम्बे और ढीले पड़े हुए ये दोनों मांस-पिंड गिरेंगे या नहीं इस आशा में मैं पंद्रह वर्ष देखता रहा।” पुरुष ने कहा, “यह कैसे?” सोमिलक कहने लगा, “किसी नगर में तीक्ष्णविषाण नाम का एक लम्बा-चौड़ा बैल रहता था। मदं की अधिकता से वह अपने झुंड को छोड़कर अपने सींगों से नदी के किनारे खोदता हुआ तथा पन्ने जैसी घास चरता हुआ वह जंगल में फिरने लगा। उसके पीछे-पीछे एक सियार चलने लगा जिसे उम्मीद थी कि शायद यह बैल कभी गिर पड़ेगा और उसे खाने को मिलेगा। लेकिन वर्षों बीत गए, और बैल नहीं गिरा।”
इस प्रकार के अनुभव से सोमिलक को समझ आया कि धन का महत्व और उसका संचय भी जीवन में अहम भूमिका निभा सकता है, भले ही वह तुरंत भोग न सके। उसे यह भी समझ आया कि व्यक्ति का भाग्य उसके परिश्रम और नियति पर निर्भर करता है।इस कथा के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि धन संचय करना और उसे समझदारी से उपयोग करना जीवन में उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि किसी भी अन्य जीवन कौशल का होना।
आपके विचारों का स्वागत है। हमें उम्मीद है कि आप इस सत्र से कुछ नया सीखने को मिलेगा और आप अपने जीवन में इन विचारों को उतारने का प्रयास करेंगे।
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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-54 : प्रेम, पहचान, और नियति
“प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यः।”
नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे ‘सचेतन सत्र’ में।जो भी विचार साझा किए हैं, वे गहन और प्रेरणादायक हैं। इस कथा के माध्यम से आपने भाग्य और परिश्रम के महत्व को बहुत सुंदरता से व्यक्त किया है। यह कहानी हमें दिखाती है कि कैसे मेहनत और धैर्य के बिना सफलता प्राप्त करना कठिन है और साथ ही यह भी कि कैसे हमारे कर्म हमें प्रभावित करते हैं।
इस प्रकार की कहानियाँ न केवल मनोरंजन करती हैं बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण पाठ भी सिखाती हैं। जैसे मछलियाँ पानी में, जंगली जानवर ज़मीन पर और पक्षी आसमान में मांस खाते हैं, उसी तरह अमीर व्यक्ति हर जगह परेशान किया जाता है। अगर अमीर व्यक्ति निर्दोष हो तब भी राजा उसे दोषी मानता है और गरीब व्यक्ति अगर दोषी हो तो भी उसे हर जगह आसानी से रहने दिया जाता है। पैसा कमाने में दुख है, पैसे की रक्षा में भी दुख है और जब यह खर्च होता है या बर्बाद होता है तो भी दुख होता है। इसलिए पैसा दुख का कारण है। जो व्यक्ति पैसे की इच्छा रखता है, उसे बहुत दुख सहना पड़ता है। अगर मुक्ति की इच्छा रखने वाला व्यक्ति उतना ही दुख सहे तो उसे मुक्ति मिलनी चाहिए।
विदेश में रहने से भी तुम्हें उदास नहीं होना चाहिए क्योंकि ज्ञानी और धीर व्यक्ति के लिए अपना देश और विदेश में कोई अंतर नहीं होता। जहाँ भी वह रहता है, वहीं विजयी होता है। जिस तरह सिंह जंगल में बड़े हाथियों को मारकर अपनी प्यास बुझाता है, वैसे ही बुद्धिमान गरीब व्यक्ति भी विदेश में दुख नहीं पाता। कहा गया है कि समय के लिए क्या बोझ होता है? व्यापारियों के लिए दूरी क्या होती है? विद्वानों के लिए विदेश क्या होता है और मीठा बोलने वालों के लिए पराया क्या होता है? और तुम तो बुद्धि के धनी हो, सामान्य लोगों की तरह नहीं। तुम में उत्साह है, देरी नहीं करते, काम में कुशल हो, बुराइयों से दूर हो, वीर हो, कृतज्ञ हो और प्रेमी हो। ऐसे व्यक्ति में लक्ष्मी खुद निवास करना चाहती है। पैसा भले ही मिल जाए, लेकिन अगर भाग्य में नहीं है तो वह नष्ट हो जाता है। जब तक वह तुम्हारा था, तब तक तुम्हारा था। अगर कोई वस्तु तुम्हें स्वतः मिल जाती है, तब भी भाग्य उसे ले लेता है। जैसे जंगल में सोमिलक दिशा भूल गया था, उसी तरह धन कमाने के बाद भी (अगर भाग्य में न हो तो) उसे भोगा नहीं जा सकता।
हिरण्यक ने पूछा, “यह कैसे?” मंथरक ने कहा, “सोमिलक और छिपे धन की कहानी कुछ ऐसी है।”
हमारे जीवन में कुछ चीजें बिना कोशिश के होती हैं और कुछ नहीं भी होतीं, वैसे ही कुछ चीजें होती हैं अगर हम कोशिश करें तो। जो नहीं होने वाला होता है, वो नहीं होता है। जो होने वाला होता है, वो अपने आप हो जाता है। जो होने की संभावना नहीं होती, वो हाथ में आने पर भी खो जाता है।
जिस तरह एक बछड़ा हजारों गायों में से अपनी माँ को ढूँढ लेता है, उसी तरह पहले किए गए कर्म हमारे पीछे आते हैं। हमारे कर्म हमारे साथ सोते हैं, हमारे साथ चलते हैं, और हमारे साथ खड़े रहते हैं।
जिस तरह छाया और प्रकाश एक दूसरे के साथ बंधे हैं, उसी तरह कर्म और कर्ता भी एक दूसरे से बंधे होते हैं। इसलिए, तुम्हें यहाँ पर कोशिश करते रहना चाहिए।”
लेकिन बुनकर ने कहा, “प्रिये, तुम्हारी बात सही नहीं है। बिना मेहनत के कर्म फल नहीं देता है। जिस तरह एक हाथ से ताली नहीं बजती, उसी तरह बिना मेहनत के कर्म का फल नहीं मिलता। खाने के समय मिला हुआ भोजन भी बिना हाथ की मेहनत के मुंह में नहीं जाता है।
“मेहनती लोगों को ही सफलता मिलती है। ‘भाग्य ही सब कुछ है’, यह तो निराश लोग कहते हैं। इसलिए भाग्य को एक तरफ रखो और अपनी ताकत के अनुसार मेहनत करो। अगर मेहनत करने पर भी काम नहीं बनता है, तो उसमें क्या दोष है? “काम मेहनत से पूरे होते हैं, सिर्फ सोचने से नहीं। सोते हुए शेर के मुंह में हिरन खुद नहीं चला जाता है। बिना उद्यम के कोई मनोरथ पूरा नहीं होता है। ‘जो होना होगा वही होगा’, ऐसा हार मानने वाले कहते हैं।
“अगर मेहनत करने के बाद भी काम नहीं बनता, तो इसमें पराक्रमी व्यक्ति की कोई गलती नहीं है।”
इस निर्णय के साथ वह परदेस गया और वहाँ तीन वर्ष रहकर तीन सौ मुहरें कमाईं। वापसी में जंगल से होकर आते समय, उसने रात में दो व्यक्तियों की बातचीत सुनी। उनमें से एक ने कहा, “क्या तुम नहीं जानते कि सोमिलक के भाग्य में सिर्फ इतना धन ही लिखा है जितना उसे खाने और पहनने के लिए चाहिए? फिर तुमने उसे तीन सौ मुहरें क्यों दीं?” दूसरे ने जवाब दिया, “मेहनती व्यक्तियों को देना चाहिए, पर इसका परिणाम तुम्हारे हाथ में है।”
जब बुनकर जागा, तो उसने पाया कि उसके मुहरें गायब थे। दुखी होकर उसने सोचा, “मेरा सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया। अब मैं अपने परिवार और मित्रों को कैसे सामना करूंगा?”
इस बैल को देखकर एक सियार उसके पीछे लग गया, सोचते हुए कि शायद यह बैल लड़ाई में मर जाए और उसका मांस खाने को मिले। लेकिन बैल काफी समय तक जीवित रहा और सियार को उसके मांस का कोई लाभ नहीं हुआ। बाद में, जब बैल बूढ़ा हो गया और कमजोर पड़ गया, तब जाकर सियार ने उसे खाया।
सोमिलक ने आगे कहा, “इस कहानी से सिखने को मिलता है कि सब्र का फल मीठा होता है। भले ही मेरे पास धन का कोई तात्कालिक उपयोग न हो, पर एक दिन यह मेरे काम आ सकता है।”
उस पुरुष ने सोमिलक के शब्द सुने और उसे आशीर्वाद दिया कि उसकी सोच सही दिशा में है और उसे वह धन प्रदान करेगा जिसकी वह इच्छा रखता है। सोमिलक ने धन्यवाद दिया और अपने घर को लौट आया, अब वह उम्मीद और संकल्प के साथ कि वह अपने धन का सही उपयोग करेगा और अपने जीवन को बेहतर बनाएगा।