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सचेतन, “मेरा नया बचपन”
नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आप सबका हमारे आज के विचार के सत्र में। आज हम बात करेंगे एक ऐसी कविता के बारे में, जिसने हमारे दिल को छू लिया और हमें अपने बचपन के उन अनमोल पलों की याद दिलाई। आज का हमारा विषय है — “मेरा नया बचपन।” यह कविता हमें उन मधुर पलों की बात करती है, जिन्हें हम सभी ने महसूस किया है, जब जीवन पूरी तरह से चिंता-रहित, स्वतंत्र और खुशियों से भरा हुआ था।
बचपन के वे दिन… एक ऐसा समय था, जब हमें दुनिया की कोई चिंता नहीं थी। न ऊँच-नीच का फर्क था, न कोई जिम्मेदारी। अगर आप सोचें, तो बचपन का सबसे बड़ा उपहार है उसकी सरलता और खुशियों की मासूमियत। आज हम कवयित्री, सुभद्रा कुमारी चौहान जी, की कविता में अपनी उन बचपन की यादों को जीवंत करती हैं, जो किसी भी इंसान के दिल को छू सकती हैं।
कविता की शुरुआत में कवयित्री अपने बचपन की यादों को याद करती हैं। वे बताती हैं कि कैसे बचपन में बिना किसी चिंता के खेलने-कूदने और मस्ती करने का मजा कुछ और ही था। वह मस्त समय, जब कोई ऊँच-नीच नहीं थी, न कोई बंधन, न कोई बोझ। सिर्फ खुली हवा में हँसी-खुशी का आकाश था। उस समय में जीवन की मासूमियत का एक अनोखा स्वाद है, जिसे बड़े होने के बाद हम अक्सर भूल जाते हैं।
सुभद्रा जी की कविता का सबसे भावनात्मक हिस्सा तब आता है, जब वह अपनी बेटी के साथ अपने बचपन को फिर से जीती हैं। उनकी बेटी मिट्टी लेकर उनके पास आती है और कहती है, “माँ, आओ!”—जिसमें बच्ची के भोलेपन की मधुरता छिपी हुई है। उस पल में कवयित्री का दिल खुशी से भर जाता है। उन्हें लगता है जैसे उनका बचपन लौट आया हो। वह अपनी बेटी के साथ खेलने लगती हैं, तुतलाने लगती हैं, और इस प्रकार फिर से अपने ही बचपन को पाती हैं। यह क्षण उन्हें वापस उस सुकून और खुशी में ले जाता है, जो शायद समय के साथ खो गई थी।
कवयित्री की यह अनुभूति हमें याद दिलाती है कि बच्चों के साथ बिताया हुआ समय हमें हमारे ही बचपन की ओर खींच लेता है। उनके साथ खेलते, हँसते और तुतलाते हुए हम खुद भी एक बार फिर से वही मासूम बच्चा बन जाते हैं। बचपन की ये यादें हमें वास्तविक खुशी देती हैं—वह खुशी, जो हम कभी-कभी अपनी व्यस्त जिंदगी और जिम्मेदारियों के बीच खो देते हैं।
अब सोचिए, क्या यही कारण नहीं है कि हम अपने अंदर के बच्चे को कभी खोना नहीं चाहते? बच्चों में वह सच्चाई होती है, वह सरलता होती है, जो हमारे दिल को सुकून देती है। वे हमें सिखाते हैं कि कैसे हर पल को खुलकर जिया जाए, कैसे छोटी-छोटी चीजों में बड़ी खुशियाँ ढूँढी जाएं।
बाल दिवस विशेष: आज के इस सचेतन में, जब हम बचपन की बात कर रहे हैं, तो हमें बाल दिवस को भी याद करना चाहिए। बाल दिवस, जो 14 नवंबर को मनाया जाता है, हमें बच्चों के महत्व और उनकी खुशी की ओर ध्यान दिलाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू, जिन्हें बच्चे बहुत प्रिय थे, उनके जन्मदिन को हम बाल दिवस के रूप में मनाते हैं। बाल दिवस का संदेश है कि हर बच्चे को उसका बचपन स्वतंत्रता, खुशी, और प्यार के साथ बिताने का अधिकार मिलना चाहिए। जब हम अपने बच्चों के साथ समय बिताते हैं और उनके साथ उनके बचपन को जीते हैं, तब हम भी अपने अंदर के बच्चे को पुनः जीवित कर पाते हैं।
सुभद्रा जी की कविता का यही संदेश है कि हमें अपनी जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद, अपने अंदर के बच्चे को जिन्दा रखना चाहिए। बच्चों के साथ उनके बचपन में जीना, उनके साथ खेलना, और उसी मासूमियत को फिर से महसूस करना—यही असली आनंद है। यह हमें बताता है कि खुशी केवल बड़ी चीजों में नहीं है, बल्कि उन छोटी-छोटी पलों में है, जब हम जीवन को पूरे दिल से जीते हैं।
इस कविता के माध्यम से हम यह भी समझ सकते हैं कि जीवन में चाहे कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न हों, हमें अपने अंदर के उस मासूम बच्चे को जिन्दा रखना चाहिए। जब हम अपने बच्चों के साथ समय बिताते हैं, तो वे हमें सिखाते हैं कि कैसे बिना किसी चिंता के जीवन को जिया जाए। वे हमें दिखाते हैं कि सच्ची खुशी और शांति कहाँ छिपी है—वे हमारे दिल के अंदर ही है, हमारे अंदर के उस मासूम बच्चे में है।
इसलिए, दोस्तों, आइए हम सभी अपने अंदर के बच्चे को न भूलें। कभी-कभी अपने बच्चों के साथ खेलें, हँसें, तुतलाएँ, और जीवन को उनकी नजर से देखें। यकीन मानिए, वह अनुभव अनमोल होता है। क्योंकि अंत में, सच्ची खुशी उन छोटी-छोटी चीजों में ही मिलती है, जिन्हें हम अपनी व्यस्त जिंदगी में नजरअंदाज कर देते हैं।
तो दोस्तों, यही था आज का हमारा सचेतन —बचपन की मिठास और उसे फिर से पाने की अनमोल खुशी के बारे में। उम्मीद है, आपने भी इस सफर का आनंद लिया होगा और अपने बचपन की यादों में खो गए होंगे।
आशा है कि आपको हमारा आज का एपिसोड पसंद आया होगा। अगले एपिसोड में हम फिर मिलेंगे, एक नए अनुभव के साथ। तब तक के लिए खुश रहें, अपने अंदर के बच्चे को जिंदा रखें, और मुस्कुराते रहें। धन्यवाद!
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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-17 : “बुनकर की वीरता और भगवान नारायण का हस्तक्षेप”
नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है सचेतन के इस विचार के सत्र में में, जहाँ हम सुनते हैं अद्भुत और प्रेरणादायक कहानियाँ। आज की कहानी एक बुनकर की है, जिसने विष्णु का रूप धारण कर छल किया, लेकिन अंततः अपनी वीरता और बलिदान के लिए प्रसिद्ध हुआ। यह कहानी छल, साहस, और भगवान नारायण के हस्तक्षेप की है। तो चलिए, शुरू करते हैं।
बुनकर का संकल्प और युद्ध की तैयारी
सबेरे बुनकर ने दातुन करने के बाद राजकुमारी से कहा, “मैं सब शत्रुओं का नाश करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करूँगा। आज सबेरे तुम्हारे पिता को अपनी सेना के साथ नगर के बाहर युद्ध के लिए निकलना होगा। मैं आकाश में रहकर शत्रुओं को निस्तेज कर दूंगा। इसके बाद तुम उन्हें मार सकोगे। मैं खुद उन्हें नहीं मारूंगा, क्योंकि अगर मैं उन्हें मारता हूँ, तो वे स्वर्ग में चले जाएंगे। इसलिए ऐसा होना चाहिए कि वे भागते हुए मारे जाएं और स्वर्ग न पहुँच पाएं।”
राजकुमारी ने यह सारी बात अपने पिता को जाकर बताई। उसकी बातों में पूरा विश्वास करते हुए राजा ने सवेरे अपनी सुसज्जित सेना के साथ नगर के बाहर निकलने का निश्चय किया। बुनकर भी, जो मरने का संकल्प कर चुका था, लकड़ी के गरुड़ पर चढ़कर और धनुष हाथ में लेकर युद्ध के लिए निकला।
भगवान नारायण का हस्तक्षेप
उसी समय, भगवान नारायण, जो भूत, भविष्य और वर्तमान के जानकार थे, उन्होंने गरुड़ का ध्यान किया। गरुड़ तुरंत भगवान के पास आ पहुँचा। भगवान नारायण ने हँसते हुए उससे कहा, “हे गरुड़! क्या तुम जानते हो कि एक बुनकर ने लकड़ी के गरुड़ पर चढ़कर मेरा रूप धारण किया है और राजकुमारी के साथ विहार कर रहा है?”
गरुड़ ने भगवान से कहा, “हाँ, प्रभु, मैं जानता हूँ। लेकिन अब हमें क्या करना चाहिए?”
भगवान नारायण ने कहा, “उस बुनकर ने आज मरने का निश्चय कर लिया है। वह युद्ध के लिए निकला है और श्रेष्ठ क्षत्रियों के बाणों से घायल होकर उसे अवश्य ही मृत्यु मिलेगी।”
हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:
- धैर्य और साहस: बुनकर ने भले ही छल किया था, लेकिन संकट के समय उसने अपना साहस नहीं खोया। उसने संकल्प कर लिया था कि वह अपने प्रिय के लिए मरने को भी तैयार है। यह सच्ची वीरता का प्रमाण है।
- कर्म और परिणाम: बुनकर ने भगवान विष्णु का रूप धारण कर लोगों को धोखा दिया। लेकिन अंत में उसके कर्मों का परिणाम उसे भुगतना पड़ा। यह कहानी हमें बताती है कि हम चाहे कितनी भी चालाकी क्यों न करें, अंततः हमारे कर्मों का फल हमें जरूर मिलता है।
- भगवान का न्याय: भगवान नारायण ने देखा कि बुनकर ने छल से काम लिया था और अब वह युद्ध में जा रहा है। भगवान ने उसकी चालबाजी को समझा और उसका परिणाम तय कर दिया। यह हमें बताता है कि कोई भी छल भगवान से छिपा नहीं रहता और हर किसी को उसके कर्मों का फल मिलता है।
“बुनकर, विष्णु और भगवान नारायण की लीला”
एक बुनकर की, जिसने छल-कपट से भगवान विष्णु का रूप धारण किया और राजकन्या के साथ विवाह किया। लेकिन जब शत्रुओं ने राजा पर हमला किया, तब भगवान नारायण ने बुनकर की मदद की और इस पूरी कहानी को एक नई दिशा दी। तो चलिए, शुरू करते हैं।
बुनकर का संकल्प और भगवान नारायण का हस्तक्षेप
बुनकर ने युद्ध का संकल्प लिया था, और सबको यकीन था कि वह स्वयं विष्णु हैं। लेकिन असल में, भगवान नारायण को यह पता था कि बुनकर ने उनका रूप धारण किया है और छल से काम लिया है। भगवान ने गरुड़ को बुलाया और कहा, “हे गरुड़, बुनकर ने हमारा रूप धारण किया है और अब युद्ध के लिए जा रहा है। अगर वह मारा गया, तो लोग कहेंगे कि विष्णु और गरुड़ को क्षत्रियों ने मार डाला। इससे हमारी पूजा बंद हो जाएगी। इसलिए तुम लकड़ी के गरुड़ में प्रवेश कर जाओ और मैं बुनकर के शरीर में प्रवेश करूंगा।”
गरुड़ ने भगवान की आज्ञा मानी और लकड़ी के गरुड़ में प्रवेश किया। भगवान नारायण ने बुनकर के शरीर में प्रवेश किया और क्षण-भर में सभी शत्रुओं को निस्तेज कर दिया। राजा और उसकी सेना ने उन शत्रुओं को हराकर जीत हासिल की।
बुनकर की सच्चाई का खुलासा और उसका विवाह
युद्ध के बाद, जब लोग बुनकर को देखते हैं, तो वे हैरान रह जाते हैं। राजा, आमात्य और नागरिक सब उसे बुनकर के रूप में पहचानते हैं और उससे पूछते हैं, “यह क्या हुआ?” बुनकर ने भी सारा हाल बता दिया—कैसे उसने विष्णु का रूप धारण किया और कैसे भगवान ने उसकी सहायता की।
राजा ने बुनकर के साहस और शत्रुओं के नाश से खुश होकर उसे अपनी बेटी का विवाह विधि से दे दिया और साथ में कुछ देश भी उसे दे दिया। बुनकर और राजकन्या ने सुखमय जीवन बिताना शुरू किया और राजमहल में अपनी जगह बनाई।
कहानी का संदेश और शिक्षा
यह कहानी हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाती है:
- चालाकी और धैर्य: बुनकर ने चालाकी और धैर्य से काम लिया। उसने विष्णु का रूप धारण कर राजकन्या के साथ विवाह किया, लेकिन जब संकट आया तो उसने भगवान नारायण का ध्यान किया और उनकी कृपा से शत्रुओं को निस्तेज कर दिया।
- भगवान का न्याय: भगवान नारायण ने देखा कि बुनकर ने छल किया था, लेकिन उसके साहस और संकल्प को देखते हुए उसे मदद दी। यह हमें सिखाता है कि सच्चाई और साहस से किए गए प्रयास का परिणाम हमेशा अच्छा होता है।
- संघर्ष में स्थिरता: बुनकर का संघर्ष हमें यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें अपने संकल्प पर अडिग रहना चाहिए और धैर्यपूर्वक उनका सामना करना चाहिए।
समाप्ति:
तो दोस्तों, यह थी आज की कहानी—एक बुनकर की साहस, छल, और भगवान नारायण की कृपा की। इस कहानी से हमें यह समझने को मिलता है कि चालाकी और धैर्य का सही उपयोग कैसे किया जा सकता है और सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए किस तरह भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अगली बार फिर एक नई और प्रेरणादायक कहानी के साथ मिलेंगे। तब तक के लिए खुश रहिए, सावधान रहिए, और अपने संकल्प पर अडिग रहिए। धन्यवाद और नमस्कार!
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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-16 : “राजकुमारी, बुनकर और झूठी माया की कहानी”
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है सचेतन के इस विचार के सत्र में, जहां हम आपको सुनाते हैं अनोखी और दिलचस्प कहानियाँ। आज हम बात करेंगे एक ऐसी कहानी की, जिसमें चालाकी, प्रेम, और छल की माया ने एक पूरे राज्य को भ्रमित कर दिया। यह कहानी है एक राजकुमारी, एक बुनकर और उसके विष्णु-रूप धारण करने की।
कहानी की शुरुआत: राजा की चिंता और रानी का संदेह
राजा के महल में हलचल मच गई थी। राजकुमारी के महल में कंचुकियों ने उसकी हालत देखी और राजा से शिकायत की। राजा ने अपनी रानी से कहा, “देवी, कंचुकियों की बात पर ध्यान दो। यह देखो कि कौन ऐसा व्यक्ति है जो राजकुमारी के पास आता है। उसके लिए काल भी क्रोधित है।”
रानी ने जल्दी से राजकुमारी के महल में जाकर उसकी हालत देखी। उसके होंठ कटे हुए थे और अंगों पर नाखून के निशान थे। रानी ने अपनी बेटी से गुस्से में पूछा, “कुल-कलंकिनी! किसने तुम्हारी चाल को बर्बाद कर दिया? क्या तू जानती है कि यह कितना बड़ा अपराध है?”
शर्म से झुकी हुई राजकुमारी ने आखिरकार सच बता दिया – उसके पास आधी रात को भगवान विष्णु का रूप धारण करके कोई आता है। रानी ने यह सुनते ही बड़ी खुशी से जाकर राजा को बताया।
राजा और रानी की खुशी और भ्रम
रानी ने राजा से कहा, “देव! हमें बधाई हो। भगवान नारायण खुद हमारे महल में आते हैं और हमारी बेटी से विवाह कर चुके हैं। हम दोनों को रात में खिड़की से उनके दर्शन करने चाहिए।” यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और जैसे-तैसे वह दिन बिताया, जैसे मानो वह दिन सौ साल लंबा हो गया हो।
रात में राजा और रानी खिड़की पर खड़े हुए और उन्होंने देखा – गरुड़ पर सवार, चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म लिए विष्णु का रूप धारण किए वह बुनकर आकाश से नीचे उतर रहा था। यह दृश्य देखकर राजा का हृदय गर्व से भर गया। उन्होंने रानी से कहा, “प्रिये, हमारे जैसा भाग्यशाली इस दुनिया में कोई नहीं है। हमारी बेटी को भगवान नारायण स्वयं भोग कर रहे हैं। अब हमारी सभी इच्छाएं पूरी हो गई हैं।”
राजा की अभिलाषा और युद्ध
राजा ने यह सोचकर सीमावर्ती राजाओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। उन्होंने सोचा कि भगवान नारायण उनके जामाता हैं, तो वे किसी भी युद्ध में हार नहीं सकते। परंतु इससे सारे राजाओं ने एकजुट होकर राजा के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया।
इस संकट की घड़ी में राजा ने रानी से कहा कि वह राजकुमारी को कहे कि वह अपने पति से कहे ताकि वह शत्रुओं का नाश कर सके। राजकुमारी ने रात्रि में बुनकर से विनयपूर्वक कहा, “भगवन्, मेरे पिता शत्रुओं से हारे जा रहे हैं, क्या यह सही है? कृपा करके आप उनकी सहायता करें।”
बुनकर ने जवाब दिया, “तेरे पिता के ये शत्रु कौन हैं? तू निश्चिंत रह, सुदर्शन चक्र से मैं उन्हें कुछ ही क्षणों में नष्ट कर दूंगा।”
अब तक क्या सीख मिलती है?
- माया और भ्रम का खेल: बुनकर ने अपनी चालाकी से विष्णु का रूप धारण किया और पूरे महल को भ्रमित कर दिया। इस घटना ने दिखाया कि कैसे एक झूठी माया पूरे राज्य को भ्रमित कर सकती है। कभी-कभी जो चीजें बाहर से दिखाई देती हैं, वे भीतर से वैसी नहीं होतीं।
- राजा का गर्व और अंधविश्वास: राजा ने यह मान लिया कि भगवान नारायण उनके जामाता हैं और इसी भ्रम में उन्होंने अन्य राजाओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। यह हमें सिखाता है कि कभी भी अंधविश्वास और अहंकार में बहकर ऐसे निर्णय नहीं लेने चाहिए जिनसे हमारा खुद का ही नुकसान हो।
- सच्चे प्रेम का अर्थ: बुनकर ने प्रेम का नाम लेकर राजकुमारी को धोखे में रखा। असली प्रेम विश्वास और ईमानदारी पर आधारित होता है, न कि छल-कपट पर।
“वीरता, छल, और अंतिम बलिदान की कहानी”
कहानी में वीरता, छल, और एक ऐसे बुनकर की अंतिम बलिदान की बात है जिसने विष्णु का रूप धारण करके एक पूरे राज्य को भ्रम में डाल दिया था। आइए, कहानी की गहराई में चलें।
राजा की मुश्किल स्थिति और बुनकर की चाल
समय बीतता गया और शत्रुओं ने पूरे राज्य को घेर लिया। राजा के कब्जे में केवल शहरपनाह बची थी। शत्रु बहुत ताकतवर थे, और राज्य के योद्धा थक चुके थे। लड़ाई के लिए ना तो लकड़ी बची थी, ना ही घास, और ना ही सैनिकों में लड़ने की ताकत। स्थिति बहुत गंभीर थी, और राजा बहुत चिंतित था।
राजा को यह विश्वास था कि उनके जामाता स्वयं भगवान विष्णु हैं। वे हर दिन विशेष सुगंधित पदार्थ, वस्त्र, भोजन और पेय राजकुमारी के माध्यम से बुनकर के पास भेजते और उनसे प्रार्थना करते कि वे उनकी सहायता करें। राजा कहता था, “भगवन्, किला अब टूटने वाला है। हमारे पास कोई संसाधन नहीं बचे हैं और हमारे सैनिक भी घायल हो चुके हैं। अब जो उचित हो, वह आप करें।”
बुनकर की सोच और उसकी योजना
बुनकर, जो स्वयं को विष्णु के रूप में दिखा रहा था, बहुत चिंतित हो गया। उसने सोचा, “यदि किला टूट गया तो इस राजकुमारी से मेरा वियोग हो जाएगा। अगर मैं आकाश में गरुड़ पर चढ़कर हथियारों के साथ दिखूं, तो शायद शत्रु मुझे वासुदेव मानकर डर जाएं और युद्ध छोड़ दें।”
बुनकर ने एक बात सोची, “जैसे बिना विष के सांप को भी बड़ा फन फैलाकर भयभीत करना चाहिए, वैसे ही मुझे भी शत्रुओं को दिखाना चाहिए कि मैं कोई साधारण नहीं, बल्कि स्वयं विष्णु हूँ। चाहे मेरे पास असली शक्ति हो या न हो, पर डर पैदा करना जरूरी है।”
वीरता और बलिदान का संकल्प
बुनकर ने यह भी सोचा कि यदि इस स्थान की रक्षा करते हुए उसकी मृत्यु हो जाती है, तो यह भी एक महान कार्य होगा। उसने मन में यह निश्चय किया कि वह राजकुमारी और राज्य की रक्षा के लिए अपनी जान भी दे देगा।
बुनकर ने खुद से कहा, “जो लोग गाय, ब्राह्मण, स्वामी, स्त्री, या अपनी भूमि के लिए प्राण त्याग करते हैं, उन्हें स्वर्ग के अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। अगर मैं इस युद्ध में मारा भी गया तो यह एक सम्मानजनक मृत्यु होगी। जैसे चन्द्र-मंडल में स्थित सूर्य का राहु द्वारा ग्रहण होता है, वैसे ही यदि मैं इस राज्य के लिए विपत्ति सहता हूँ, तो यह मेरे लिए गौरव की बात होगी।”
कहानी से संदेश:
- वीरता और साहस: इस कहानी में बुनकर का साहस अद्वितीय है। उसने चाहे छल से विष्णु का रूप धारण किया हो, लेकिन संकट के समय उसने राज्य और राजकुमारी की रक्षा के लिए अपने प्राण त्यागने का संकल्प लिया। यह सच्चे वीरता का उदाहरण है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, सच्चा वीर अंत तक नहीं झुकता।
- छल-कपट की सीमाएं: बुनकर ने शुरू में छल से काम लिया, लेकिन अंततः उसे अपनी चालबाजी का सामना करना पड़ा। यह कहानी हमें बताती है कि छल से भले ही कुछ समय के लिए सफल हो सकते हैं, लेकिन सच्ची वीरता और बलिदान ही सबसे ऊपर होती है।
- धैर्य और समझदारी: राजा ने अपने जामाता को भगवान विष्णु मानकर गलतफहमी में युद्ध छेड़ दिया। यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी भी परिस्थिति में जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेना चाहिए। सत्य और धैर्य से ही समस्याओं का समाधान निकलता है।
दोस्तों, यह थी आज की कहानी – एक बुनकर की छल, वीरता, और बलिदान की अनोखी गाथा। इस कहानी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है – चाहे वह वीरता हो, सच्चाई का सामना करने की हिम्मत हो, या फिर यह समझ कि बिना सोच-विचार के लिए गए निर्णय किस प्रकार हानिकारक हो सकते हैं।
हम उम्मीद करते हैं कि इस कहानी ने आपको सोचने पर मजबूर किया होगा और आपको जीवन में सच्ची वीरता और धैर्य का महत्व समझाया होगा।
अगली बार फिर एक नई कहानी के साथ मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुश रहिए, सावधान रहिए, और सच्चाई का साथ दीजिए। धन्यवाद और नमस्कार!
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सचेतन, पंचतंत्र की कथा-15 : “दोस्त की चाल और प्रेम की जीत”
बुनकर की मुश्किल और रथकार का समाधान: हमारी पिछली कहानी में आपने सुना कि कैसे बुनकर ने राजकुमारी को देखकर उसके प्रेम में अपना दिल खो दिया था और अब उसके बिना जीना मुश्किल हो गया था। उसकी हालत इतनी बिगड़ गई कि उसने अपने दोस्त रथकार से मरने की बात तक कह दी। लेकिन रथकार ने अपने मित्र की मदद करने का वादा किया और उसे भरोसा दिलाया कि कोई भी काम असंभव नहीं होता।
रथकार ने मुस्कराते हुए कहा, “मित्र! अगर यही बात है तो समझो तुम्हारा मतलब पूरा हो गया। मैं आज ही तुम्हें राजकुमारी से मिलवा दूंगा।” बुनकर, जो अब तक अपनी हालत को लेकर हताश था, हैरान होकर बोला, “मित्र, तुम मजाक क्यों कर रहे हो? वह राजकुमारी अपने महल में रक्षकों से घिरी रहती है, वहाँ हवा के अलावा और कोई प्रवेश नहीं कर सकता। ऐसे में वहाँ मेरी कैसे पहुँच होगी?”
रथकार की अद्भुत योजना: रथकार ने अपने दोस्त की घबराई बातों को सुनकर मुस्कराते हुए कहा, “मित्र, मेरी बुद्धि और मेरी योजना को देखो।” इसके बाद रथकार ने तुरंत एक पुरानी अर्जुन के पेड़ की लकड़ी से एक उड़ने वाला गरुड़ तैयार किया, जिसमें कील-कांटे और तमाम आवश्यक सामान लगाए गए। फिर उसने भगवान विष्णु की तरह शंख-चक्र और गदा-पद्म वाले बाहु, किरीट (मुकुट), और कौस्तुभ मणि को भी तैयार किया।
उसने बुनकर को गरुड़ पर बिठाया और भगवान विष्णु के सभी लक्षणों से उसे सजाया। फिर रथकार ने बुनकर को समझाया कि कैसे उसे गरुड़ पर उड़कर राजकुमारी के महल के ऊपरी खंड तक पहुंचना है। उसने बुनकर से कहा, “मित्र, आधी रात के समय तुम इस गरुड़ पर सवार होकर राजकुमारी के महल में जाओ। जब वह तुम्हें देखेगी तो वह तुम्हें भगवान विष्णु समझेगी। फिर तुम अपनी मीठी बातों से उसे खुश करना और प्रेमपूर्वक उसके साथ समय बिताना।”
बुनकर का साहस और राजकुमारी से मुलाकात: बुनकर ने रथकार की योजना पर भरोसा किया और भगवान विष्णु के रूप में सजधज कर गरुड़ पर सवार होकर राजकुमारी के महल में पहुँच गया। आधी रात को जब बुनकर ने महल में प्रवेश किया, तो उसने राजकुमारी से कहा, “राजकुमारी, तुम सो रही हो या जाग रही हो? मैं तुम्हारे प्रेम में फंसकर लक्ष्मी को छोड़कर समुद्र से यहाँ चला आया हूँ। अब मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ।”
राजकुमारी, जो अब तक अपने महल में अकेली थी, उसने गरुड़ पर सवार चार भुजाओं वाले, आयुधों और कौस्तुभ मणि से सजे हुए बुनकर को देखा। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। वह तुरंत अपनी खाट से उठ बैठी और बोली, “भगवान, मैं तो एक साधारण मानवी हूँ, आपकी कृपा और पवित्रता के आगे मेरा कोई स्थान नहीं। फिर हमारा यह मेल कैसे हो सकता है?”
बुनकर की मीठी बातें और राजकुमारी का विश्वास: बुनकर ने मुस्कराते हुए कहा, “सुभगे, तुमने सही कहा। लेकिन तुम्हारे अंदर वह राधा है, जो पहले मेरे साथ गोप-कुल में थी। आज उसी प्रेम के कारण मैं यहाँ आया हूँ।” बुनकर की यह मीठी बातें सुनकर राजकुमारी का दिल पिघल गया और उसने विष्णु के रूप में बुनकर का स्वागत किया।
कहानी से सीख: तो दोस्तों, इस कहानी से हमें क्या सीखने को मिलता है?
- दोस्ती और साहस का बलिदान: रथकार ने अपनी बुद्धि का उपयोग करके अपने मित्र बुनकर की मदद की। उसने दिखाया कि सच्चा मित्र वह होता है जो किसी भी स्थिति में आपके साथ खड़ा रहता है और आपकी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार होता है।
- प्रेम और विश्वास: बुनकर ने भगवान विष्णु का रूप धारण कर राजकुमारी का दिल जीतने की कोशिश की। यह दिखाता है कि प्रेम में विश्वास और साहस बहुत मायने रखता है। राजकुमारी ने भी बुनकर की बातों पर विश्वास किया और उसे अपना लिया।
- बुद्धिमत्ता का उपयोग: रथकार ने बुनकर की मदद करने के लिए अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग किया। उसने एक अद्भुत योजना बनाई और उसे सफलता पूर्वक अंजाम दिया। इससे यह सीख मिलती है कि किसी भी कठिनाई का समाधान बुद्धि और धैर्य से निकाला जा सकता है।
“राजकुमारी और बुनकर की गुप्त प्रेम कथा”
बुनकर का प्रेम और राजकुमारी की चिंता: हमारी पिछली कहानी में आपने सुना कि कैसे बुनकर ने अपने मित्र रथकार की मदद से विष्णु का रूप धारण कर राजकुमारी के महल में प्रवेश किया। उसने राजकुमारी को भगवान विष्णु बनकर अपने प्रेम का इजहार किया। राजकुमारी ने कहा, “भगवान, अगर यही बात है तो आप मेरे पिता से विधिपूर्वक मुझे मांग लें। वे संकल्प के साथ मुझे आपको दे देंगे।”
लेकिन बुनकर, जो विष्णु के रूप में वहां था, बोला, “सुभगे, मैं मनुष्यों की आँखों के रास्ते तक नहीं जाता, उनसे बात करना तो दूर की बात है। इसलिए तू मुझसे गांधर्व-विधि से विवाह कर ले, नहीं तो मैं शाप देकर तेरे वंश को भस्म कर दूंगा।” भयभीत और लजाती हुई राजकुमारी ने आखिरकार उसे स्वीकार कर लिया। बुनकर ने राजकुमारी का हाथ पकड़ा और उसे शय्या के पास ले गया, और उसके बाद पूरी रात दोनों ने प्रेमपूर्वक समय बिताया।
राजा की चिंता और कंचुकियों का संदेह: इस तरह बुनकर रोज़ाना राजकुमारी से मिलने लगा और दोनों का समय एक साथ बीतने लगा। लेकिन एक दिन, राजकुमारी के कंचुकियों (दासी/सहायिका) ने उसके मुंह पर चोट के निशान और उसके शरीर के कुछ हिस्सों पर चिह्न देखे, जिससे उन्हें संदेह हुआ कि कोई व्यक्ति राजकुमारी के सुरक्षित महल में आता है।
कंचुकियों ने एकांत में कहा, “यह कैसे हो सकता है कि कोई इस महल में प्रवेश कर सके? राजकुमारी के शरीर पर जो निशान हैं, वे किसी पुरुष द्वारा भोगे जाने के जैसे लगते हैं। हमें यह बात राजा को बतानी चाहिए।”
यह निर्णय करने के बाद, वे सब एक साथ राजा के पास गईं और उससे बोलीं, “महाराज, हमें नहीं पता कि यह कैसे हो रहा है, लेकिन राजकुमारी के सुरक्षित महल में कोई व्यक्ति आ रहा है। इस बारे में आपकी आज्ञा ही प्रमाण हो सकती है।” यह सुनकर राजा बहुत चिंतित हो गया।
राजा की चिंता: पुत्री का होना कष्ट का कारण है: राजा ने अत्यधिक चिंता के साथ सोचना शुरू किया, “मेरी पुत्री पैदा हुई है और उसके भविष्य की चिंता हमेशा मुझे सताती है। उसे किसके हाथ में सौंपूं? क्या वह सुखी रहेगी या नहीं, यह भी मुझे नहीं पता। वास्तव में पुत्री का पिता होना एक बड़ी कष्ट की बात है।”
राजा ने आगे सोचा, “नदियाँ और स्त्रियाँ दोनों एक जैसी होती हैं। जिस प्रकार नदियाँ अपने पानी से किनारे को गिरा देती हैं, उसी प्रकार स्त्रियाँ अपने दोषों से कुल को गिरा देती हैं।”
राजा का दिल इस बात से भारी हो गया कि पुत्री का जन्म होना ही एक आफत का कारण बनता है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इस स्थिति से कैसे निपटे।
कहानी से सीख: तो दोस्तों, इस कहानी से हमें क्या सीखने को मिलता है?
- चालाकी और प्रेम का मिश्रण: बुनकर ने अपने प्रेम को पाने के लिए चालाकी का सहारा लिया। उसने विष्णु का रूप धारण किया और राजकुमारी को अपने प्रेम का इजहार किया। इससे हमें यह सीख मिलती है कि प्रेम में बुद्धिमत्ता और साहस होना जरूरी है, लेकिन किसी को धोखा देने से बचना चाहिए।
- पुत्री का पिता होने का कष्ट: राजा की चिंता ने हमें यह समझाया कि पुत्री का पिता होना उस समय के समाज में कितना कठिन माना जाता था। स्त्रियों को समाज में किस प्रकार के संदेह और अविश्वास का सामना करना पड़ता था, यह भी इस कहानी से स्पष्ट होता है।
- समाज की दृष्टि और पितृसत्तात्मक सोच: इस कहानी में समाज के उस दृष्टिकोण को उजागर किया गया है जिसमें स्त्रियों को हमेशा संदेह की नजर से देखा जाता था। राजकुमारी को दोषपूर्ण और अविश्वसनीय माना गया, जबकि वास्तविकता में उसके साथ छल हुआ था।
तो दोस्तों, यह थी आज की गुप्त प्रेम और चालाकी से भरी कहानी। उम्मीद है आपको यह कहानी पसंद आई होगी। अगली बार हम फिर से एक नई और रोमांचक कहानी लेकर आएंगे। तब तक के लिए खुश रहिए, सतर्क रहिए, और दूसरों के साथ सच्चा व्यवहार कीजिए। धन्यवाद!******