प्रज्ञा का अर्थ है – वह गहरी बुद्धि जो केवल सोचने या समझने तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मिक अनुभव से उत्पन्न होती है।यह वह स्थिति है जहाँ सत्य का प्रत्यक्ष बोध होता है — न केवल “जानना”, बल्कि “हो जाना”। 🧠 प्रज्ञा की विशेषताएँ: 📜 वेदांत में प्रज्ञा, उपनिषदों में कहा गया है: “प्राज्ञः […]
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सचेतन- 11: समझदारी (Wisdom) – अनुभव और विवेक का मेल
जब मन स्थिर होता है, तब विज्ञान जाग्रत होता है — और जब विज्ञान शुद्ध होता है, तब प्रज्ञा (आत्मिक बोध) प्रकट होती है। “जब मन स्थिर होता है…” 👉 यानी जब मन चंचलता छोड़कर शांत और एकाग्र होता है, तब वह इंद्रियों से मिली जानकारियों को सही तरह से ग्रहण कर सकता है। “…तब […]
सचेतन- 10: विज्ञान (Vijnana) – विवेकशील बुद्धि
‘विज्ञान’ का अर्थ है – विशेष ज्ञान या विवेकपूर्ण बुद्धि, जो चीज़ों को समझने, परखने और निर्णय लेने में हमारी मदद करती है। यह केवल जानकारी (Information) नहीं, बल्कि समझदारी (Wisdom) है – सही और गलत में फर्क करने की बुद्धि। 🔍 मुख्य कार्य: 🌼 उदाहरण से समझें: मान लीजिए आपने एक मिठाई देखी। यह […]
सचेतन- 9: मन या मनोवृत्ति
‘मनस्’, ‘विज्ञान’, और ‘प्रज्ञा’ — ये तीनों शब्द भारतीय दर्शन और उपनिषदों में मानव चेतना के विभिन्न स्तरों को दर्शाते हैं। 🧠 मनस् • विज्ञान • प्रज्ञा भारतीय दर्शन में चेतना के तीन सोपान: 🌟 1. मनस् (Manas) – विचारों की शुरुआत इंद्रियों से जानकारी लेकर उसे जोड़ता है और विचार बनाता है।उदाहरण: एक किसान […]
सचेतन- 8: मानव चेतना के विभिन्न स्तर
‘मनस्’, ‘विज्ञान’, और ‘प्रज्ञा’ — ये तीनों शब्द भारतीय दर्शन और उपनिषदों में मानव चेतना के विभिन्न स्तरों को दर्शाते हैं। आइए इन्हें सरल और स्पष्ट भाषा में समझें: 🧠 1. मनस् (Manas) – मन या मनोवृत्ति ‘मनस्’ वह मानसिक शक्ति है जो इंद्रियों से जानकारी ग्रहण करती है, उसे जोड़ती है, और विचारों को […]
सचेतन- 7: आत्मा – चेतना का आधार
🕉️ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म को जानना: 🌟 ब्रह्म को जानने का परिणाम: 📖 एक सरल उदाहरण: जैसे समुद्र की लहरें समुद्र से अलग नहीं होतीं, वैसे ही आत्मा ब्रह्म से अलग नहीं है।ब्रह्म को जानना = यह जानना कि मैं लहर नहीं, मैं स्वयं समुद्र हूँ। 1. अहं ब्रह्मास्मि (Aham Brahmasmi) – मैं ब्रह्म […]
सचेतन- 6: निदिध्यासन – आत्मा का साक्षात्कार
स्वामी विवेकानंद कहते थे — “जब विचारों का शुद्धिकरण हो जाता है, तब मन सत्य में स्थित होता है। तब ज्ञाता और ज्ञेय के बीच भेद मिट जाता है। यही है निदिध्यासन — आत्मा के स्वरूप में स्थित हो जाना।” निष्कर्ष निदिध्यासन आत्म-चिंतन की वह पराकाष्ठा है, जहाँ ‘जानना’ और ‘हो जाना’ एक हो जाता […]
सचेतन- 5: सत्य पर गहन ध्यान
निदिध्यासन (Nididhyasanam) – “ध्यान और आत्मसात” सुने और समझे हुए ज्ञान को ध्यानपूर्वक आत्मसात करना, अर्थात उस ज्ञान को अपने जीवन और चेतना में पूरी तरह उतारना। निदिध्यासन (Nididhyasana) – सत्य पर गहन ध्यान निदिध्यासन का अर्थ है — किसी सत्य, विचार, मंत्र या उपदेश पर बार-बार, एकाग्र होकर ध्यान करना। यह केवल सोचने भर […]
सचेतन- 4: चिंतन और संशय निवारण: चेतना का मार्ग
संशय का अर्थ होता है — संदेह या शंका। लेकिन यह केवल नकारात्मक भावना नहीं है। भारतीय दर्शन में संशय को चिंतन का पहला चरण माना गया है। 🌿 संशय – आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी संशय वही अवस्था है जब मन प्रश्न करता है: इन्हीं प्रश्नों से मनन की शुरुआत होती है। संशय हमारी चेतना […]
सचेतन- 3: चिंतन और संशय निवारण चेतना का मार्ग खोलती है
चेतना को जानने के तीन मार्ग मनन (Mananam) – “चिंतन और संशय निवारण” परिभाषा: श्रवण से प्राप्त ज्ञान पर गहराई से विचार करना और उसमें उत्पन्न संदेहों को दूर करना – यही मनन है। महत्व: कैसे करें: यथा याज्ञवल्क्य और गार्गी के बीच संवाद में, गार्गी ने बार-बार प्रश्न पूछे। यह मनन का उदाहरण है […]