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सचेतन 3.10 : नाद योग: ॐ की बारह कलाएँ और उनका महत्व
नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र में “असंख्य नाद” के एक और रोचक विचार के सत्र में।
ॐ की चार मात्राएँ और बारह कलाएँ नाद योग का मूल तत्व हैं। यह ध्वनि हमें आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में ले जाती है। ॐ की ध्वनि हमारे जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाती है।
आज का हमारा विषय है ॐ की बारह कलाएँ और उनका महत्व। यह विषय गहन और पवित्र है, और आज हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
ॐ की बारह कलाएँ:
ॐ की प्रत्येक मात्रा में तीन कलाएँ होती हैं, जो मिलकर कुल बारह कलाओं का निर्माण करती हैं।
ॐ की पहली मात्रा ‘अ’, ॐ की दूसरी मात्रा ‘ऊ’, ॐ की तीसरी मात्रा ‘म’ और चौथी अर्ध-मात्रा।
इन कलाओं के माध्यम से हम आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। आइए, इन बारह कलाओं को विस्तार से समझें:
- घोषिनी (Ghoshini):
- यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु घोषिनी पर ध्यान करते हुए होती है, तो वह भारतवर्ष में एक महान सम्राट के रूप में जन्म लेता है।
- घोषिनी ध्वनि या नाद की अनुभूति कराती है और हमारे ध्यान को गहन बनाती है।
- विद्युत माली (Vidyut Mali):
- विद्युत माली पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति यशस्वी यक्ष हो जाता है।
- विद्युत माली चेतना को ऊर्जावान बनाती है और मन को तेज करती है।
- पतंगिनी (Patangini):
- पतंगिनी पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति विद्याधर हो जाता है।
- पतंगिनी स्वतंत्रता और उड़ान का अनुभव कराती है।
- वायुवेगिनी (Vayuvegini):
- वायुवेगिनी पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति गंधर्व हो जाता है।
- वायुवेगिनी प्राण (श्वास) को नियंत्रित करती है और प्राणायाम में सहायक होती है।
- नामधेय (Namadheya):
- नामधेय पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति चन्द्रलोक में रहता है।
- नामधेय आत्मा की पहचान और उसके वास्तविक नाम को प्रकट करती है।
- ऐंद्री (Aindri):
- ऐंद्री पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति इंद्र में विलीन हो जाता है।
- ऐंद्री शक्ति और साहस प्रदान करती है।
- वैष्णवी (Vaishnavi):
- वैष्णवी पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति विष्णु के आसन पर पहुँचता है।
- वैष्णवी हमें संरक्षित और सुरक्षित रखती है।
- शंकरी (Shankari):
- शंकरी पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति रुद्र हो जाता है।
- शंकरी शांति और स्थिरता लाती है।
- महती (Mahati):
- महती पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति महारलोक में पहुँचता है।
- महती महानता और उदात्तता का अनुभव कराती है।
- धृति (Dhriti) या ध्रुव (Dhruva):
- धृति (ध्रुव) पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति जनलोक में पहुँचता है।
- धृति धैर्य और स्थिरता प्रदान करती है।
- नारी (Naari) या मौनी (Mauni):
- नारी (मौनी) पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति तपोलोक में पहुँचता है।
- नारी शांति और मौन को प्रकट करती है।
- ब्राह्मी (Brahmi):
- ब्राह्मी पर ध्यान करते हुए मृत्यु होने पर व्यक्ति ब्रह्म की शाश्वत अवस्था को प्राप्त करता है।
- ब्राह्मी ब्रह्म की शक्ति को प्रकट करती है और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर करती है।
इन बारह कलाओं का अभ्यास:
इन बारह कलाओं का अभ्यास और अनुभव हमारे आध्यात्मिक विकास और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में सहायक होता है। यह कलाएँ हमें हमारे भीतर की शक्ति और शांति से जोड़ती हैं और हमारे जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाती हैं।
हे बुद्धिमान व्यक्ति, अपना जीवन हमेशा सर्वोच्च आनंद को जानने में व्यतीत करें, अपने पूरे प्रारब्ध का आनंद लें बिना कोई शिकायत किए। आत्मा-ज्ञान के जाग्रत होने के बाद भी प्रारब्ध नहीं छोड़ता है, लेकिन वह तत्व-ज्ञान के उदय के बाद प्रारब्ध महसूस नहीं करता है क्योंकि शरीर और अन्य चीजें असत हैं।
निष्कर्ष:
ॐ की बारह कलाएँ नाद योग का मूल तत्व हैं। यह ध्वनि हमें आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में ले जाती है। ॐ की ध्वनि हमारे जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाती है।
आज के एपिसोड में इतना ही। हमें आशा है कि आपको ॐ की बारह कलाओं के इस गहन विषय के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। हम फिर मिलेंगे एक नए विषय के साथ। तब तक के लिए, ध्यान में रहें, खुश रहें और नाद की ध्वनियों से अपने जीवन को मधुर बनाएं।
- घोषिनी (Ghoshini):
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सचेतन 3.09 : नाद योग: ॐ की चार मात्राएँ और बारह कलाएँ
नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र में “असंख्य नाद” के एक और रोचक विचार के सत्र में।
कलाएँ हमारे जीवन और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। वे केवल रचनात्मकता और सौंदर्य का ही नहीं, बल्कि मानव चेतना और समाज के विभिन्न पहलुओं को भी दर्शाती हैं। आइए, विस्तार से समझते हैं कि कलाएँ क्या होती हैं और उनका महत्व क्या है।
नाद योग, जिसे ध्वनि योग भी कहा जाता है, योग का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण अंग है। नाद का मतलब होता है ध्वनि या कंपन, और योग का मतलब होता है जुड़ना। इस प्रकार, नाद योग का अर्थ है ध्वनि या संगीत के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के साथ जुड़ना। यह योग की एक ऐसी पद्धति है जिसमें ध्वनि के माध्यम से ध्यान और आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया होती है।
आज का हमारा विषय है ॐ की चार मात्राएँ और उनसे संबंधित बारह कलाएँ। यह विषय गहन और पवित्र है, और आज हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
पहली मात्रा ‘अ’: इसका संबंध अग्नि के देवता से है, जिन्हें अध्यक्ष देवता भी कहा जाता है। अग्नि हमें प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करती है, और ‘अ’ इसी ऊर्जा का प्रतीक है। इस मात्रा में तीन कला (भाग) होते हैं।
दूसरी मात्रा ‘ऊ’: यह वायु के देवता का प्रतिनिधित्व करती है। वायु जीवनदायिनी है और ‘ऊ’ इस जीवनदायिनी वायु का प्रतीक है। यह मात्रा भी तीन कलाओं में विभाजित होती है।
तीसरी मात्रा ‘म’: यह सूर्य के तेज की तरह चमकती है। सूर्य हमारी चेतना का प्रतीक है और ‘म’ इस चेतना का प्रतीक है। इसमें भी तीन कला होती हैं।
अर्ध-मात्रा: अर्ध-मात्रा को बुद्धिमान लोग वरुण (जल के अधिष्ठाता देवता) के रूप में जानते हैं। जल जीवन का स्रोत है और अर्ध-मात्रा इस जीवन स्रोत का प्रतीक है।
इन चार मात्राओं के साथ ही बारह कलाओं की अवधारणा आती है।
ॐ की पहली मात्रा ‘अ’:
- अकार का संबंध अग्नि के देवता से है:
- अग्नि को अध्यक्ष देवता भी कहा जाता है।
- अग्नि हमें प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करती है, और ‘अ’ इसी ऊर्जा का प्रतीक है।
- अकार में तीन कलाएँ होती हैं:
- घोषिनी (Ghoshini): यह ध्वनि या नाद की अनुभूति कराती है।
- विद्युत माली (Vidyut Mali): यह चेतना को ऊर्जावान बनाती है।
- पतंगिनी (Patangini): यह स्वतंत्रता और उड़ान का अनुभव कराती है।
ॐ की दूसरी मात्रा ‘ऊ’:
- ऊकार का संबंध वायु के देवता से है:
- वायु जीवनदायिनी है और ‘ऊ’ इस जीवनदायिनी वायु का प्रतीक है।
- ऊकार में भी तीन कलाएँ होती हैं:
- वायुवेगिनी (Vayuvegini): यह प्राण (श्वास) को नियंत्रित करती है।
- नामधेय (Namadheya): यह आत्मा की पहचान को प्रकट करती है।
- ऐंद्री (Aindri): यह शक्ति और साहस प्रदान करती है।
ॐ की तीसरी मात्रा ‘म’:
- मकार का संबंध सूर्य से है:
- सूर्य हमारी चेतना का प्रतीक है और ‘म’ इस चेतना का प्रतीक है।
- मकार में तीन कलाएँ होती हैं:
- वैष्णवी (Vaishnavi): यह संरक्षित और सुरक्षित रखती है।
- शंकरी (Shankari): यह शांति और स्थिरता लाती है।
- महती (Mahati): यह महानता और उदात्तता का अनुभव कराती है।
अर्ध-मात्रा:
- अर्ध-मात्रा का संबंध वरुण (जल के अधिष्ठाता देवता) से है:
- जल जीवन का स्रोत है और अर्ध-मात्रा इस जीवन स्रोत का प्रतीक है।
- अर्ध-मात्रा में भी तीन कलाएँ होती हैं:
- धृति (Dhriti) या ध्रुव (Dhruva): यह धैर्य और स्थिरता प्रदान करती है।
- नारी (Naari) या मौनी (Mauni): यह शांति और मौन को प्रकट करती है।
- ब्राह्मी (Brahmi): यह ब्रह्म की शक्ति को प्रकट करती है और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर करती है।
इन चार मात्राओं के साथ बारह कलाओं की अवधारणा:
ॐ की प्रत्येक मात्रा में तीन-तीन कलाएँ होती हैं, जो मिलकर बारह कलाओं की अवधारणा को पूर्ण बनाती हैं। यह बारह कलाएँ हमारे आध्यात्मिक विकास और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन कलाओं के अभ्यास से हम अपने जीवन को शुद्ध और पवित्र बना सकते हैं।
- अकार का संबंध अग्नि के देवता से है:
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सचेतन 3.08 : नाद योग: ॐ की कलाओं का अभ्यास
स्वागत है दोस्तों, हमारे इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र में जिसका शीर्षक है “नाद योग में ॐ की बारह कलाएँ”। आज हम बात करेंगे नाद योग के एक महत्वपूर्ण पहलू ॐ की बारह कलाओं के बारे में। इस यात्रा में हम जानेंगे कि नाद योग क्या है, ॐ का महत्व क्या है, और ॐ की बारह कलाओं का हमारी जीवन में क्या योगदान है।
कलाओं का अर्थ और परिभाषा:
- कला एक ऐसी रचनात्मक गतिविधि है, जिसमें व्यक्ति अपनी कल्पना, भावना और अनुभवों को विभिन्न माध्यमों के माध्यम से व्यक्त करता है।
- यह चित्रकला, संगीत, नृत्य, नाटक, मूर्तिकला, साहित्य आदि रूपों में हो सकती है।
- कला का उद्देश्य सुंदरता का सृजन करना, भावनाओं को व्यक्त करना और समाज को प्रेरित करना होता है।
कलाओं का व्यक्तिगत महत्व:
- रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति: कला व्यक्ति को अपनी रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति का साधन प्रदान करती है।
- मानसिक शांति: कला का अभ्यास मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति तनाव और चिंता से मुक्त हो सकता है।
- स्वयं का विकास: कला के माध्यम से व्यक्ति अपनी क्षमताओं को पहचान सकता है और उनका विकास कर सकता है।
कलाएँ हमारे जीवन के हर पहलू को समृद्ध और प्रेरित करती हैं। वे हमें सुंदरता, रचनात्मकता, और आत्म-अभिव्यक्ति का अनुभव कराती हैं। कलाओं का महत्व केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक स्तर पर भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
ॐ की बारह कलाएँ
अब हम पहुँचते हैं आज के मुख्य विषय पर, जो है ॐ की बारह कलाएँ। इन कलाओं के माध्यम से हम ॐ की ध्वनि को और भी गहराई से समझ सकते हैं और अपने ध्यान में इनका उपयोग कर सकते हैं।
- अणिमा – यह कला हमें सूक्ष्मता का अनुभव कराती है।
- लघिमा – यह कला हमें हल्कापन और ऊर्जा का अनुभव कराती है।
- गरिमा – यह कला हमें स्थिरता और गंभीरता का अनुभव कराती है।
- महिमा – यह कला हमें विस्तार और व्यापकता का अनुभव कराती है।
- प्राप्ति – यह कला हमें इच्छाओं की प्राप्ति की शक्ति प्रदान करती है।
- प्राकाम्य – यह कला हमें सभी इच्छाओं की पूर्ति की शक्ति प्रदान करती है।
- ईशित्व – यह कला हमें सृष्टि पर नियंत्रण की शक्ति प्रदान करती है।
- वशित्व – यह कला हमें सभी वस्तुओं और प्राणियों पर वश में करने की शक्ति देती है।
- सर्वकामदुगता – यह कला हमें सभी इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति देती है।
- ब्राह्मण – यह कला हमें ब्रह्मांडीय चेतना से जोड़ती है।
- अक्षय – यह कला हमें अजर-अमर होने का अनुभव कराती है।
- बोधिनी – यह कला हमें ज्ञान और बोध की उच्च अवस्था में पहुँचाती है।
नाद योग में ॐ की कलाओं का अभ्यास
इन कलाओं का अभ्यास नाद योग में कैसे किया जाए, इसके लिए हमें ध्यान और मन की शांति की अवस्था में जाना होगा। ॐ की ध्वनि का उच्चारण धीरे-धीरे करें और उसकी हर कला को महसूस करने की कोशिश करें।
- ध्यान की स्थिति – सबसे पहले, एक शांत स्थान पर बैठें और अपनी रीढ़ को सीधा रखें। आँखें बंद करें और कुछ गहरी साँसें लें।
- ॐ का उच्चारण – अब ॐ का उच्चारण धीरे-धीरे और गहराई से करें। ध्यान दें कि उच्चारण करते समय आपका मन पूरी तरह से ध्वनि पर केंद्रित हो।
- कलाओं का अनुभव – अब ॐ की बारह कलाओं का अनुभव करने की कोशिश करें। एक-एक कर इन कलाओं को महसूस करें और उन्हें अपने भीतर उतारें।
निष्कर्ष
तो दोस्तों, आज हमने जाना नाद योग में ॐ की बारह कलाओं के बारे में। यह कलाएँ हमें शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्तर पर उन्नति की दिशा में ले जाती हैं। अगर आप भी इन कलाओं का अभ्यास नियमित रूप से करेंगे, तो आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन महसूस करेंगे।
आपके सवालों और सुझावों का हमेशा स्वागत है। आप हमें manovikas@manovikas.family के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं। अगले सत्र में फिर मिलेंगे एक और रोचक विषय के साथ।
तब तक के लिए, ध्यान और शांति के इस मार्ग पर आगे बढ़ते रहें। नमस्कार!
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सचेतन 3.07 : नाद योग: नाद योग में ॐ की बारह कलाएँ
सचेतन 3.07 : नाद योग: नाद योग में ॐ की बारह कलाएँ
परिचय
स्वागत है दोस्तों, हमारे इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र में जिसका शीर्षक है “नाद योग में ॐ की बारह कलाएँ”। आज हम बात करेंगे नाद योग के एक महत्वपूर्ण पहलू ॐ की बारह कलाओं के बारे में। इस यात्रा में हम जानेंगे कि नाद योग क्या है, ॐ का महत्व क्या है, और ॐ की बारह कलाओं का हमारी जीवन में क्या योगदान है।
नाद योग का परिचय
तो चलिए, सबसे पहले जानते हैं कि नाद योग क्या है। नाद योग एक प्राचीन योग प्रणाली है जिसमें ध्वनि और संगीत के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार और ध्यान की अवस्था प्राप्त की जाती है। यह मान्यता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक ध्वनि से हुई थी, जिसे ॐ कहा जाता है। नाद योग इसी ध्वनि को ध्यान के केंद्र में रखता है और इसके माध्यम से मन, शरीर और आत्मा को संतुलित करने का कार्य करता है।
नाद योग, जिसे ध्वनि योग भी कहा जाता है, योग का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण अंग है। नाद का मतलब होता है ध्वनि या कंपन, और योग का मतलब होता है जुड़ना। इस प्रकार, नाद योग का अर्थ है ध्वनि या संगीत के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के साथ जुड़ना। यह योग की एक ऐसी पद्धति है जिसमें ध्वनि के माध्यम से ध्यान और आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया होती है।
ॐ का महत्व
अब बात करते हैं ॐ की। ॐ को सबसे पवित्र ध्वनि माना जाता है, जो तीन अक्षरों से मिलकर बना है – अ, उ, और म। यह ध्वनि ब्रह्मांड की तीन अवस्थाओं को दर्शाती है – सृष्टि, स्थिति और लय। अद्वैत वेदांत के अनुसार, सृजन, पालन और विघटन या समाधान का एक आरंभहीन और अंतहीन चक्र है, जिसे ‘सृष्टि’, ‘स्थिति’ और ‘लय’ कहा जाता है। यह वास्तव में आकर्षक है क्योंकि यह पदार्थ की अवधारणा से दृढ़ता से मेल खाता है ऊर्जा में परिवर्तित करना और वापस लाना।ॐ के उच्चारण से हमारे शरीर और मन में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो हमें शांति और संतुलन प्रदान करती है।
ॐ की बारह कलाएँ
अब हम पहुँचते हैं आज के मुख्य विषय पर, जो है ॐ की बारह कलाएँ। इन कलाओं के माध्यम से हम ॐ की ध्वनि को और भी गहराई से समझ सकते हैं और अपने ध्यान में इनका उपयोग कर सकते हैं।
- अणिमा – यह कला हमें सूक्ष्मता का अनुभव कराती है।
- लघिमा – यह कला हमें हल्कापन और ऊर्जा का अनुभव कराती है।
- गरिमा – यह कला हमें स्थिरता और गंभीरता का अनुभव कराती है।
- महिमा – यह कला हमें विस्तार और व्यापकता का अनुभव कराती है।
- प्राप्ति – यह कला हमें इच्छाओं की प्राप्ति की शक्ति प्रदान करती है।
- प्राकाम्य – यह कला हमें सभी इच्छाओं की पूर्ति की शक्ति प्रदान करती है।
- ईशित्व – यह कला हमें सृष्टि पर नियंत्रण की शक्ति प्रदान करती है।
- वशित्व – यह कला हमें सभी वस्तुओं और प्राणियों पर वश में करने की शक्ति देती है।
- सर्वकामदुगता – यह कला हमें सभी इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति देती है।
- ब्राह्मण – यह कला हमें ब्रह्मांडीय चेतना से जोड़ती है।
- अक्षय – यह कला हमें अजर-अमर होने का अनुभव कराती है।
- बोधिनी – यह कला हमें ज्ञान और बोध की उच्च अवस्था में पहुँचाती है।
तो दोस्तों, आज हमने जाना नाद योग में ॐ की बारह कलाओं के बारे में। यह कलाएँ हमें शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्तर पर उन्नति की दिशा में ले जाती हैं। अगर आप भी इन कलाओं का अभ्यास नियमित रूप से करेंगे, तो आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन महसूस करेंगे।
आपके सवालों और सुझावों का हमेशा स्वागत है। आप हमें manovikas@manovikas.family के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं। अगले सत्र में फिर मिलेंगे एक और रोचक विषय के साथ।
तब तक के लिए, ध्यान और शांति के इस मार्ग पर आगे बढ़ते रहें। नमस्कार!