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  • सचेतन, पंचतंत्र की कथा-30 :सिंह, ऊँट, सियार और कौए की कथा-३

    नमस्कार दोस्तों! “सचेतन” के तीसरे एपिसोड में आपका स्वागत है। पिछली बार हमने देखा कि कैसे ऊँट को छलपूर्वक मारा गया। आज हम इस कहानी का अंतिम भाग सुनेंगे।

    ऊँट ने अपनी जान देने का प्रस्ताव रखा था, और सियार और चीते ने तुरंत उसकी हत्या कर दी। बाद में सभी ने मिलकर उसे खा लिया। इस पूरी घटना से हमें यह सीखने को मिलता है कि छल-कपट से जीवन जीने वाले लोग अंततः अपने ही कर्मों से नष्ट हो जाते हैं।

    यह कथा पिंगलक और संजीवक के बीच हो रही है, पिंगलक ने जवाब दिया इसलिए हे भद्र! मेरा मानना है कि यह राजा छोटे और कपटी साथियों से घिरा हुआ है। कहा भी गया है, “गीधों से घिरे कन्वहंस जैसे आचरण करने वाले राजा के मंत्रियों के अशुद्ध होने पर राज्य में जनता कभी सुखी नहीं रहती।”उसी तरह” अगर राजा गीध जैसा भी हो, लेकिन उसके सभासद हंस जैसे हों तो उसे सेवा करने योग्य माना जाता है। परंतु यदि राजा हंस जैसा हो, लेकिन उसके सभासद गीध जैसे हों, तो उसे छोड़ देना ही उचित है।”

    यह निश्चित है कि किसी कपटी ने पिंगलक को मुझसे गुस्सा करवा दिया है, तभी वह ऐसा कह रहा है। कहा भी गया है, “कोमल जल की थपकी से पहाड़ और धरती घिस जाती है। फिर शिकायत करने वालों की बातें सुनने से कोमल मन वाले व्यक्ति का क्या होगा?” मूर्ख व्यक्ति जो गलत उपदेशों से प्रभावित होता है, वह क्या-क्या नहीं करता? कभी वह साधु बन जाता है, तो कभी कपालिक बनकर खोपड़ी से शराब पीता है।

    और यह भी ठीक ही कहा गया है कि, “साँप पैर से मारने पर भी और डंडे से पीटे जाने पर भी, जिसे डसता है उसे मार डालता है। लेकिन चुगलीखोर का धर्म अजीब होता है, वह एक व्यक्ति के कान में बात डालता है और दूसरे व्यक्ति का नाश कर देता है।”

    यह सुनकर पिंगलक ने कहा, “ऐसे हालात में मुझे क्या करना चाहिए? यह मैं तुमसे मित्रता से पूछता हूँ।” दमनक ने कहा, “तुम्हें विदेश चले जाना चाहिए। इस प्रकार के अभिमानी और अनुचित स्वामी की सेवा करना ठीक नहीं है। कहा भी गया है, ‘अभिमानी, सही और गलत में भेद न करने वाले, और गलत रास्ते पर चलने वाले गुरु का त्याग करना ही ठीक है।’”

    संजीवक ने जवाब दिया, “यह ठीक है, लेकिन जब स्वामी मुझ पर गुस्सा हो गए हों तो दूसरी जगह जाने से भी कोई फायदा नहीं है, और वहां भी शांति नहीं मिलती। कहा गया है, ‘जो व्यक्ति बड़े आदमी का अपराध करता है, उसे यह मानकर भरोसा नहीं करना चाहिए कि मैं दूर हूं। बुद्धिमान के हाथ लंबे होते हैं और वे किसी भी शत्रु को नष्ट कर सकते हैं। इसलिए मेरे लिए युद्ध के अलावा कोई रास्ता नहीं है।’

    धीर और सुशील पुरुष युद्ध में मरकर एक क्षण में जिस लोक को प्राप्त होते हैं, उस लोक को तीर्थ यात्रा, तपस्या या धन दान से स्वर्ग प्राप्त करने वाले नहीं पहुंच सकते। मरने से स्वर्ग मिलता है और जीवित रहने से कीर्ति। यह दोनों ही गुण वीर पुरुषों के लिए दुर्लभ नहीं हैं। वीर व्यक्ति का माथे से बहता हुआ खून युद्ध रूपी यज्ञ में सोमरस की तरह पुण्य देने वाला होता है। और भी कहा गया है, ‘होम, दान, ब्राह्मण पूजा, यज्ञ, तीर्थों में निवास, व्रत आदि से जो फल प्राप्त होता है, वही फल युद्ध में मरने वाले वीरों को उसी क्षण प्राप्त हो जाता है।’”

    यह सुनकर दमनक सोचने लगा, ‘यह तो युद्ध के लिए तैयार दिख रहा है। अगर उसने अपने तीखे सींगों से स्वामी पर हमला कर दिया तो बड़ा अनर्थ होगा। एक बार इसे समझा कर इसे यहां से भेजना ही बेहतर होगा।’ फिर दमनक बोला, “मित्र, तुमने ठीक कहा, लेकिन स्वामी और सेवक की लड़ाई कैसी? कहा गया है, ‘बलवान शत्रु को देखकर कमजोर को छिप जाना चाहिए और बलवान को निर्बल शत्रु को देखकर शरद ऋतु के चंद्रमा की तरह प्रकट होना चाहिए।’ और यह भी कहा गया है, ‘शत्रु की ताकत जाने बिना जो उससे शत्रुता करता है, वह समुद्र के टिटिहरी से हारने के समान हार जाता है।’ संजीवक ने पूछा, ‘यह कैसे?’ तब दमनक कहने लगा…”

    इसलिए दोस्तों, हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें सच्चाई और ईमानदारी से जीवन जीना चाहिए। कपट और धोखा देकर भले ही हमें कुछ समय के लिए सफलता मिल जाए, पर अंततः उसका परिणाम बुरा ही होता है।

    उम्मीद है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी। अगले सत्र में फिर मिलेंगे एक नई और प्रेरणादायक कहानी के साथ। तब तक के लिए धन्यवाद और खुश रहिए।

  • सचेतन, पंचतंत्र की कथा-29 :सिंह, ऊँट, सियार और कौए की कथा-२

    स्वागत है आपका “सचेतन” के विचार के सत्र में जहां हम सिंह, ऊँट, सियार और कौए की कथा के दूसरे एपिसोड में हैं। पिछली बार हमने देखा कि मदोत्कट सिंह बुरी तरह घायल हो गया था और उसके नौकर भूख से परेशान थे। यहां से कहानी एक और मोड़ लेती है, जहां लोभ और स्वामी-भक्ति के बीच का संघर्ष स्पष्ट हो जाता है। सिंह की गंभीर स्थिति और उसके नौकरों की भूख ने उन्हें कड़ी परीक्षा में डाल दिया है। सभी जानवर अपने स्वामी की सेवा के लिए तत्पर हैं, लेकिन उनके सुझावों में छिपे स्वार्थ और चालाकी की झलक भी मिलती है। विशेष रूप से सियार की चतुराई और छल-कपट को देखा जा सकता है, जिसने अपने स्वामी के आदेश के विपरीत ऊँट को मारने का सुझाव दिया।

    आगे की कहानी में, सिंह के सामने एक कठिन परिस्थिति उत्पन्न होती है, जहां उसे अपने नौकरों की भक्ति का परीक्षण करना पड़ता है। ऊँट, जिसने सिंह के साथ सुरक्षा पाई थी, अब उसी सुरक्षा के कारण खतरे में है। सिंह के अन्य सेवक अपने लाभ और सिंह की भलाई के लिए ऊँट की बलि देने की बात करते हैं। इस द्वंद्व और ऊँट की नियति से हमें इस बात का अहसास होता है कि विश्वास और स्वार्थ के बीच का अंतर कितना सूक्ष्म हो सकता है और कैसे चालाक लोग अपनी बात मनवाने के लिए तरह-तरह के तर्क प्रस्तुत करते हैं।

    मदोत्कट ने कहा, “जो तुम्हें सही लगे वही करो।” सियार दूसरे सेवकों के पास गया और कहा, “स्वामी बहुत बीमार हैं, और उन्हें बचाने के लिए हमें उनकी सेवा में अपनी जान देनी चाहिए। अगर सेवक स्वामी के कष्ट में होते हुए भी उसे नहीं बचाता, तो उसे नरक मिलता है।” इसके बाद सभी सेवक मदोत्कट के पास गए और उससे अपनी जान देने का प्रस्ताव रखा। कौआ बोला, “स्वामी, मुझे खाकर अपनी जान बचाइए, जिससे मुझे स्वर्ग प्राप्त हो सके।” लेकिन सियार ने कहा, “तुम्हारा शरीर छोटा है, तुम्हें खाने से स्वामी की भूख नहीं मिटेगी।” 

    यह सुनकर सियार ने कहा, “थोड़े-थोड़े और कमज़ोर कौए का मांस और कुत्ते का जूठा खाने से क्या फायदा जब उससे भूख नहीं मिटती? लेकिन जो स्वामी-भक्ति तुमने दिखाई है, उससे तुम स्वामी के ऋण से मुक्त हो गए और दोनों लोकों में तुम्हारी प्रशंसा होगी। अब तुम हट जाओ, मैं स्वामी से कुछ निवेदन करूं।” कौए के हटने के बाद सियार हाथ जोड़कर खड़ा हुआ और बोला, “स्वामी! मुझे खाकर अपनी जान बचाइए और मुझे इस लोक और परलोक का उद्धार करने दीजिए। कहा गया है कि खरीदे गए सेवक की जान हमेशा मालिक की होती है और उसे मारने से स्वामी को पाप नहीं लगता।”

    यह सुनकर चीता बोला, “तुमने सही कहा, लेकिन तुम छोटे हो और कुत्ते की जात के हो, इसलिए तुम खाने योग्य नहीं हो।” उसने आगे कहा, “बुद्धिमान व्यक्ति को किसी भी हालत में ऐसी वस्तु नहीं खानी चाहिए जो उसे इस लोक और परलोक में हानि पहुँचाए, खासकर अगर वह वस्तु बहुत छोटी हो। तुमने अपनी कुलीनता दिखा दी है। राजा हमेशा कुलीनों को अपने पास रखते हैं, क्योंकि वे कभी भी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते।” इसके बाद चीते ने मदोत्कट से कहा, “स्वामी, मेरी जान से अपने शरीर को चलाइए, मुझे स्वर्गवास दीजिए और मेरा यश बढ़ाइए। जो सेवक स्वामी के कार्य करते हुए मरता है, उसे स्वर्ग में अमरता प्राप्त होती है।” ऊँट ने सोचा कि सभी ने अपनी जान देने की बातें की हैं, लेकिन स्वामी ने किसी को मारा नहीं है, इसलिए मैं भी ऐसा ही कहता हूँ। फिर वह आगे बढ़कर बोला, “स्वामी! ये सभी आपके लिए अखाद्य हैं, इसलिए मुझे मारकर अपना जीवन बचाइए। स्वामी के लिए जान देने वाले को जो गति मिलती है, वह यज्ञ करने वाले और योगी भी नहीं पाते।”

    ऊँट ने अपनी जान देने का प्रस्ताव रखा था, और सियार और चीते ने तुरंत उसकी हत्या कर दी। बाद में सभी ने मिलकर उसे खा लिया। इस पूरी घटना से हमें यह सीखने को मिलता है कि छल-कपट से जीवन जीने वाले लोग अंततः अपने ही कर्मों से नष्ट हो जाते हैं।

    इसलिए कहा गया है की “कपट से अपनी जीविका चलाने वाले छोटे पंडित ऐसे ही कपट और अकार्य करते हैं, जैसे कौओं और अन्य जानवरों ने ऊँट के साथ किया।” इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि छल से जीवन जीने वाले छोटे बुद्धिमान लोग अपने ही अंत को बुलाते हैं। यहाँ पर आज की कहानी समाप्त होती है। अगले एपिसोड में हम जानेंगे कि इस कपटपूर्ण व्यवहार से हम क्या सीखते हैं।

  • सचेतन, पंचतंत्र की कथा-28 :सिंह, ऊँट, सियार और कौए की कथा

    नमस्कार, दोस्तों! स्वागत है आपका “सचेतन” के नए एपिसोड में। आज हम आपको एक दिलचस्प कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसमें मदोत्कट सिंह, उसके नौकर और एक बेचारा ऊँट शामिल है। चलिए, शुरू करते हैं।

    किसी वन में मदोत्कट नाम का एक सिंह रहता था। उसके नौकरों में चीता, कौआ, सियार और दूसरे पशु शामिल थे। एक बार ये सब इधर-उधर घूम रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक ऊँट कारवां से भटककर अलग हो गया है। इस पर सिंह ने कहा, “अरे! यह कोई अजीब जानवर है। पता लगाओ कि यह गाँव का है या शहर का।” यह सुनकर कौआ बोला, “स्वामी! यह ऊँट नाम का जानवर गाँव में रहने वाला है और आपका भोजन हो सकता है, इसलिए इसे मार दीजिए।” सिंह ने कहा, “घर आने वाले को मैं नहीं मार सकता। कहा गया है कि ‘जो बिना भय के घर आए शत्रु को मारता है, उसे ब्राह्मण के मारने जैसा पाप लगता है।’ इसलिए तुम इसे अभयदान देकर मेरे पास लाओ ताकि मैं इसके आने का कारण पूछ सकूं।”

    इस पर वे सब ऊँट को भरोसा दिलाकर और अभयदान देकर मदोत्कट के पास ले आए। ऊँट ने सिंह को प्रणाम किया और बैठ गया। बाद में सिंह ने जब उससे पूछा, तो उसने कारवां से अलग होने का अपना पूरा हाल बताया। इस पर सिंह ने कहा, “अरे ऊँट! अब तू गाँव जाकर बोझ उठाने की तकलीफ मत उठाओ। इस जंगल की हरी-भरी घास को चरते हुए मेरे पास रहो।” ऊँट भी ‘ठीक है’ कहकर, और यह जानकर कि अब कोई डर नहीं है, खुशी-खुशी वहां रहने लगा।

    कुछ समय बाद, एक दिन मदोत्कट की एक जंगली हाथी से लड़ाई हो गई। हाथी के दांतों से सिंह को गंभीर चोट लगी और वह बुरी तरह घायल हो गया। घायल होने के बावजूद सिंह मरा नहीं, लेकिन कमजोरी के कारण चलने में असमर्थ हो गया। सिंह के नौकर, कौआ, सियार और अन्य, सभी भूख से परेशान थे और अपने मालिक की हालत देखकर चिंतित हो गए। इस पर सिंह ने उनसे कहा, “कहीं से कोई ऐसा जीव खोज लाओ जिसे मैं मारकर तुम सबका खाना जुटा सकूं।”

    सभी नौकर चारों ओर घूमने लगे, लेकिन कोई जानवर नहीं मिला। इस पर कौआ और सियार आपस में बात करने लगे। सियार ने कहा, “अरे कौए! इस भाग-दौड़ का क्या फायदा? हमारे मालिक के पास जो ऊँट रह रहा है, उसी को मारकर अपना गुजारा करना चाहिए।” कौआ बोला, “तूने ठीक कहा, लेकिन मालिक ने उसे अभयदान दिया है, इसलिए उसे मारना उचित नहीं होगा।” सियार ने जवाब दिया, “अरे कौए! मैं मालिक को ऐसा समझाऊंगा कि वे खुद ही ऊँट को मार डालें। तब तक तुम यहीं रुको, मैं मालिक से आज्ञा लेकर आता हूं।” यह कहकर सियार जल्दी से सिंह के पास पहुंचा और बोला, “मालिक! हमने सारा जंगल घूम लिया, लेकिन कोई जानवर नहीं मिला। अब हम क्या करें? हम सभी बहुत कमजोर हो गए हैं और अब आगे चलना भी मुश्किल हो रहा है। अगर आपकी आज्ञा हो तो ऊँट का मांस ही उपयोग में लाया जाए।”

    सियार की इस बात को सुनकर सिंह बहुत गुस्सा हुआ और बोला, “अरे पापी! तुझे धिक्कार है। अगर तूने फिर से ऐसा कहा तो मैं तुझे उसी वक्त मार डालूंगा। मैंने उसे अभयदान दिया है, मैं उसे कैसे मार सकता हूँ? विद्वान लोग इस संसार में सभी दानों में अभयदान को सबसे बड़ा मानते हैं, चाहे वह गोदान हो, भूमि दान हो, या अन्न दान।”

    यह सुनकर सियार ने कहा, “स्वामी! अगर किसी को अभयदान देकर मारा जाए तो उससे पाप लगता है। लेकिन अगर महाराज की सेवा में कोई अपनी जान खुद दे दे, तो उससे कोई दोष नहीं होता। इसलिए अगर वह खुद मरने के लिए तैयार हो जाए, तभी आप उसे मारें। नहीं तो हममें से किसी एक को मार दें, क्योंकि आप बीमार हैं और भूख को सहन नहीं कर सकते। हमारी जान छोटी है, लेकिन अगर स्वामी का कुछ बुरा हुआ तो हमें भी मर जाना पड़ेगा। कहा भी गया है कि किसी कुल के मुख्य व्यक्ति की रक्षा करना बहुत ज़रूरी होता है, क्योंकि उसके न होने से पूरा कुल बर्बाद हो जाता है, जैसे गाड़ी की धुरी के टूटने से आरे उसका भार नहीं उठा सकते।”

    यहां पर आज की कहानी खत्म होती है। अगले एपिसोड में हम जानेंगे कि कैसे भूख से बेहाल सिंह के नौकर एक चाल चलते हैं।

  • सचेतन, पंचतंत्र की कथा-27 :सियार की चाल-2

    सियार चंडरव की कथा

    नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है “सचेतन” के इस सत्र में, जहाँ हम पंचतंत्र की कहानियों से सीख और प्रेरणा लेते हैं। आज की कहानी है एक चालाक सियार ‘चंडरव’ की, जो जंगल के दूसरे जानवरों को अपनी बुद्धिमानी से ठगता है।

    एक दिन भूख से परेशान होकर चंडरव नामक सियार भोजन की तलाश में नगर की ओर निकल गया। जैसे ही वह नगर में घुसा, कुत्तों ने उसे घेर लिया और उसे काटने की कोशिश करने लगे। अपनी जान बचाने के लिए वह एक रंगरेज के घर में जा घुसा और वहां रखे नीले रंग के बड़े बर्तन में कूद पड़ा। जब वह बाहर निकला, तो उसका पूरा शरीर नीले रंग में रंग चुका था। इस अजीब रंग के कारण कुत्ते उसे पहचान नहीं पाए और वहां से भाग गए। चंडरव ने सोचा कि इस नए रूप का फायदा उठाया जाए, और वह जंगल वापस चला गया। जंगल के सभी जानवरों ने जब उसे नीले रंग में देखा, तो वे डर गए और उसे अजीब प्राणी समझकर दूर भागने लगे।

    चंडरव ने जानवरों को घबराते हुए देखा और कहा, “डरो मत, मुझे ब्रह्मा ने स्वयं बनाया है और जंगल का राजा नियुक्त किया है। अब मैं तुम्हारा नया राजा ‘ककुद्रुम’ हूँ और मेरी छत्रछाया में तुम सब सुरक्षित रहोगे।” उसकी बात सुनकर जंगल के सभी जानवर जैसे सिंह, बाघ, भेड़िये आदि उसे अपना राजा मानने लगे। उसने सिंह को मंत्री, बाघ को सेजपाल और चीते को पान-सुपारी का अधिकारी बना दिया। उसने अपने पुराने साथी सियारों को भी बाहर निकाल दिया। इस प्रकार चंडरव से ‘ककुद्रुम’ बन कर जंगल का राज-काज चलाने लगा और सभी जानवर उसका पालन करने लगे। लेकिन आगे क्या होता है-

    इस प्रकार कुछ समय बीतने पर, एक बार ककुद्रुम ने दूर से सियारों को भौंकते हुए सुना। उनकी आवाज सुनकर उसके शरीर के रोएं खड़े हो गए, आंखों में खुशी के आंसू भर आए, और वह ऊंचे स्वर से रोने लगा। इतने में सिंह और अन्य जानवरों ने उसकी ऊंची आवाज सुनी, और उसकी असली पहचान जान ली कि वह सिर्फ एक साधारण सियार है। शर्म से थोड़ा सिर झुकाए उन्होंने कहा, “अरे! इसने हमें धोखा दिया है। यह तो एक छोटा सियार है, इसे मारो।” यह सुनकर चंडरव भागना चाहता था, लेकिन सिंह और अन्य जानवरों ने उस पर हमला कर दिया और उसे मार डाला।

    इसलिए कहा गया है कि जो अपने नजदीकी लोगों को दूर कर देता है और अजनबियों पर भरोसा करता है, वह अंत में राजा ककुद्रुम की तरह मृत्यु को प्राप्त होता है।

    सियार चंडरव की कथा सुनकर पिंगलक ने कहा, “यदि यह संजीवक मेरे प्रति बुरी नीयत रखता है, तो इसकी पुष्टि कैसे हो सकती है?” दमनक ने कहा, “आज ही उसने मेरे सामने यह निश्चय किया है कि वह सुबह आपको मार डालेगा। यही इस बात की पुष्टि है।” सुबह के समय, जब वह लाल आंखों और फड़कते होंठों के साथ सभा में आपकी ओर देखेगा, तो आप समझ जाइएगा। यह जानकर जैसा उचित हो, वैसा कीजिएगा।

    इसके बाद दमनक संजीवक के पास गया, उसे प्रणाम किया और उसके सामने बैठ गया। संजीवक ने उसे अनमने और धीरे-धीरे आते हुए देखकर कहा, “मित्र! बहुत दिनों बाद दिखाई दिए। क्या कुशल से हो? अगर तुम्हें किसी चीज की जरूरत हो, तो चाहे वह देने लायक न हो, फिर भी मैं तुम्हें दूंगा।कहा भी है, ‘जिनके घर मित्रजन आते हैं, वे इस पृथ्वी पर धन्य, बुद्धिमान और प्रशंसा के पात्र होते हैं।’”

    दमनक ने कहा, “अरे, नौकरों की कुशल ही क्या? जो राजा के नौकर हैं, उनकी दौलत पराधीन होती है, उनका मन हमेशा चिंतित रहता है, और उन्हें अपने जीवन के बारे में भी कोई विश्वास नहीं होता।”

    संजीवक ने कहा, “अरे! तूने यह बात ठीक नहीं कही। बदमाश चाहे छोटे भी हों, तो भी उनके बीच रहना नहीं चाहिए। वे कोई न कोई उपाय रचकर रहने वाले को मार सकते हैं। कहा गया है, ‘चालबाजी से अपनी रोजी चलाने वाले छोटे पंडित ऊंट के बारे में जो कुछ कौओं आदि ने किया, उसी प्रकार भला या बुरा करते हैं।’”

    दमनक ने पूछा, “यह कैसे?”

    संजीवक कहने लगा-सिंह, ऊँट, सियार और कौए की कथा

    तो दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि जो लोग अपने पुराने साथियों को छोड़कर अजनबियों पर भरोसा करते हैं, वे अंततः धोखे का शिकार हो जाते हैं। चंडरव ने अपने जैसे सियारों से दूरी बनाकर अपनी असलियत छुपाने की कोशिश की, लेकिन अंत में उसकी सच्चाई सबके सामने आ ही गई। इसलिए, हमेशा अपनी असली पहचान को मानें और दूसरों को धोखा देने से बचें।

    अंततः, दमनक की चालाकियों और साजिशों के कारण पिंगलक संजीवक को मारने का निर्णय ले लेता है। इस प्रकार दमनक सफलतापूर्वक पिंगलक और संजीवक की मित्रता में दरार डाल देता है और अपने स्वार्थ की पूर्ति करता है।

    आशा है आपको आज की यह कहानी पसंद आई होगी। फिर मिलेंगे “सचेतन” के अगले सत्र में, जहाँ हम पंचतंत्र की एक और प्रेरणादायक कहानी लेकर आएंगे। तब तक के लिए धन्यवाद और खुश रहिए।

    सचेतन के साथ रहें, समझदारी की कहानियाँ सुनते रहें।