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  • पंचतंत्र की कथा-07 : दमनक और संजीवक के बीच बातचीत:

    पिंगलक एक शेर था, जंगल का शक्तिशाली राजा। वहीं संजीवक एक साधारण बैल था जिसे उसके मालिक ने उसकी बीमारी और कमजोरी के कारण त्याग दिया था। संजीवक को अकेला छोड़ दिया गया और वह यमुना नदी के किनारे आकर रहने लगा। वहीं हरी घास खाकर और आराम करके वह धीरे-धीरे स्वस्थ और मजबूत हो गया।

    एक दिन पिंगलक शेर, अपनी प्यास बुझाने के लिए यमुना के किनारे पहुंचा। लेकिन तभी उसे संजीवक की गहरी और गूंजती हुई हुंकार सुनाई दी। शेर को लगा कि यह कोई बड़ा और भयानक जीव है, और डर के मारे वह पास के एक पेड़ के नीचे छिप गया।

    पिंगलक के दो सियार मंत्री थे—कर्कट और दमनक। कर्कट शांत स्वभाव का था और अधिक हस्तक्षेप से बचता था, जबकि दमनक बहुत चतुर और महत्वाकांक्षी था। उसने शेर को इस हालत में देखकर सोचा कि यह उसके लिए अवसर हो सकता है। दमनक ने पिंगलक के डर का फायदा उठाने की ठानी और संजीवक के पास पहुंचा।

    दमनक और संजीवक के बीच बातचीत:

    जब दमनक ने देखा कि शेर पिंगलक संजीवक की गर्जना से डरकर पेड़ के नीचे छिप गया है, तो उसने इस स्थिति को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने का निश्चय किया। दमनक महत्वाकांक्षी था और वह चाहता था कि शेर के दरबार में उसका फिर से महत्व बढ़े। इसलिए उसने संजीवक से मिलने का निर्णय लिया।

    दमनक संजीवक के पास गया और उसने चतुराई से बातचीत शुरू की। उसने संजीवक को बताया कि शेर पिंगलक जंगल का राजा है और उसकी कोई बुरी मंशा नहीं है। दमनक ने कहा, “स्वामी पिंगलक तुम्हारे गर्जन से भयभीत हैं, लेकिन यह भय सिर्फ अज्ञानता का परिणाम है। अगर तुम उनसे मिलकर अपने उद्देश्यों को स्पष्ट कर दोगे तो तुम्हारी और उनकी मित्रता बन सकती है। और एक बार शेर तुम्हारा मित्र बन गया, तो तुम्हें किसी भी प्रकार के खतरे से डरने की जरूरत नहीं होगी।”

    संजीवक पहले डर गया था। आखिरकार, वह जानता था कि शेर कितना भयंकर शिकारी होता है। लेकिन दमनक की चतुराई भरी बातें और उसके आश्वासन ने संजीवक का मन बदल दिया। उसने सोचा कि अगर वह शेर का मित्र बन जाएगा, तो जंगल में वह सुरक्षित रह सकेगा और बिना किसी डर के जीवन जी सकेगा। अंततः संजीवक पिंगलक से मिलने के लिए तैयार हो गया।

    पिंगलक और संजीवक की मित्रता:

    दमनक ने संजीवक को पिंगलक से मिलवाया और दोनों के बीच मित्रता करा दी। पिंगलक को भी संजीवक की मासूमियत और साहस से प्रभावित हुआ। धीरे-धीरे, दोनों के बीच गहरी मित्रता होने लगी। संजीवक ने पिंगलक के साथ समय बिताना शुरू किया और उसकी कंपनी में पिंगलक अपनी जिम्मेदारियों को भूलने लगा। वह शिकार करने या जंगल के कानून बनाए रखने के बजाय संजीवक के साथ चर्चा करने और समय बिताने में लगा रहा।

    संजीवक पिंगलक को खेती, घास और पशुओं के जीवन के बारे में बातें बताता था, जबकि पिंगलक उसे जंगल के शासकों की कहानियाँ सुनाता था। दोनों का यह संग साथ इतना गहरा हो गया कि शेर अपनी राजसी जिम्मेदारियों को भी संजीवक के साथ बैठकर बातें करने के लिए छोड़ने लगा। यह स्थिति जंगल के अन्य जानवरों के लिए बहुत ही चिंताजनक हो गई थी।

    जंगल में असुरक्षा की भावना:

    शेर की यह उदासीनता जंगल के अन्य जानवरों के लिए खतरे का कारण बन गई। पिंगलक, जो जंगल का राजा था, अब अपनी शक्ति और जिम्मेदारियों का सही से पालन नहीं कर रहा था। इससे जंगल में अराजकता फैलने लगी। छोटे जानवर और अन्य जीव जो शेर के संरक्षण में रहते थे, अब असुरक्षित महसूस करने लगे थे। वे सोचने लगे थे कि अगर शेर ही अपनी जिम्मेदारियों को छोड़ देगा तो उन्हें कौन बचाएगा?

    कर्कट, जो पिंगलक का दूसरा मंत्री था, इस स्थिति से खुश नहीं था। उसने दमनक से कहा कि यह स्थिति जंगल के लिए ठीक नहीं है। लेकिन दमनक ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया। दमनक के मन में पिंगलक और संजीवक की मित्रता को लेकर ईर्ष्या थी। उसे यह बात सहन नहीं हो रही थी कि एक साधारण बैल शेर के इतने करीब कैसे हो सकता है। वह चाहता था कि शेर सिर्फ उसकी सलाह माने और उसे महत्व दे।

    दमनक की चालाकी और मित्रता में दरार:

    दमनक ने धीरे-धीरे अपनी योजना पर काम करना शुरू किया। उसने पिंगलक और संजीवक के बीच गलतफहमियाँ पैदा करनी शुरू कर दीं। उसने पिंगलक को समझाया कि संजीवक उसकी जगह लेना चाहता है और उसके खिलाफ षड्यंत्र रच रहा है। दमनक ने कहा, “स्वामी, संजीवक आपसे मित्रता सिर्फ इसलिए कर रहा है ताकि वह आपकी जगह ले सके। वह चाहता है कि जंगल के सभी जानवर उसे अपना राजा मानें। आपको उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए।”

    दूसरी ओर, उसने संजीवक को भी पिंगलक के इरादों के बारे में संदेह पैदा कर दिया। उसने कहा, “संजीवक, पिंगलक तुम्हें सिर्फ इस्तेमाल कर रहा है। जब उसका काम खत्म हो जाएगा, तो वह तुम्हें खत्म करने की कोशिश करेगा। उसे केवल अपनी शक्ति और राजपाट की चिंता है।”

    दमनक की इन चालाकियों ने दोनों के बीच का विश्वास तोड़ दिया। पिंगलक को लगने लगा कि संजीवक उसके खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है, जबकि संजीवक को पिंगलक की नीयत पर शक होने लगा। दोनों के बीच की मित्रता धीरे-धीरे समाप्त हो गई। अंततः, उनकी दोस्ती का अंत एक भयंकर लड़ाई में हुआ, जिसमें संजीवक की मृत्यु हो गई।

    दमनक की चालाकी का परिणाम:

    दमनक की चालाकी और षड्यंत्र के कारण पिंगलक और संजीवक के बीच की मित्रता समाप्त हो गई और जंगल में फिर से अराजकता फैल गई। दमनक ने अपनी चालाकी से शेर का विश्वास जीता, लेकिन उसकी यह चालाकी अंततः जंगल के जानवरों के लिए घातक सिद्ध हुई। पिंगलक ने अपनी शक्ति और राजसी कर्तव्यों को छोड़कर एक साधारण मित्रता में अपनी सारी ऊर्जा लगा दी, और जब वह मित्रता टूटी तो उसे केवल पश्चाताप और खोया हुआ समय ही मिला।

    कहानी से सीख:

    इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें ईर्ष्या, चालाकी और झूठ से दूर रहना चाहिए। सच्ची मित्रता में विश्वास और निष्ठा का होना बहुत आवश्यक है। यदि किसी के बीच शक और षड्यंत्र आ जाएं, तो वह संबंध कभी भी लंबे समय तक टिक नहीं सकता। दमनक ने अपनी चतुराई से पिंगलक और संजीवक की मित्रता को तोड़ दिया, लेकिन अंततः इसका नुकसान सभी को हुआ—पिंगलक को, संजीवक को, और पूरे जंगल को।

    इसलिए हमें सच्ची मित्रता और विश्वास को संजोकर रखना चाहिए और दूसरों के बारे में गलतफहमी फैलाने वाले लोगों से दूर रहना चाहिए। यही पंचतंत्र की इस कहानी का संदेश है।

  • पंचतंत्र की कथा-06 : पिंगलक का दमनक पर विश्वास

    नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आप सभी का पंचतंत्र की कहानियों की इस खास श्रृंखला में। आज हम फिर से चलेंगे जंगल की ओर, जहाँ सिंहराज पिंगलक और चतुर गीदड़ दमनक के बीच हो रही है एक दिलचस्प चर्चा। इस कहानी में हम सीखेंगे कि धैर्य और समझदारी कैसे बड़े से बड़े डर का सामना करने में मदद कर सकते हैं। तो आइए, शुरू करते हैं।पिछले विचार के सत्र में हमलोगों ने सियार और ढोल की कथा सुनी थी। आज उसी कथा का विश्लेषण सुनते हैं। 

    एक दिन पिंगलक, जंगल का राजा, यमुना के तट पर पानी पीने गया था। वहां उसने एक भयंकर गर्जना सुनी, जिससे वह बहुत डर गया और प्यासा ही लौटकर वापस आ गया। जब वह अपने मंडल में बैठा हुआ था, तभी दमनक ने उसे देखा। दमनक ने प्रणाम किया और पिंगलक ने उसे पास बुलाया।

    पिंगलक के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। दमनक ने पूछा, “स्वामी, आप पानी पीने गए थे, फिर प्यासे ही लौट क्यों आए?” पिंगलक कुछ हिचकते हुए मुस्कराया और बोला, “कुछ नहीं, बस यूं ही।”

    दमनक ने आदरपूर्वक कहा, “स्वामी, यदि यह बताने योग्य नहीं है तो मैं इसे जाने देता हूँ। लेकिन कभी-कभी बड़ी बातें छोटी हो सकती हैं, और उनके पीछे कोई महत्वपूर्ण कारण छिपा हो सकता है।”

    यह सुनकर पिंगलक विचार करने लगा और फिर उसने दमनक को अपनी चिंता बताई। उसने कहा, “मैंने तट पर एक भयंकर गर्जना सुनी। ऐसा लगता है जैसे कोई अद्भुत जीव इस जंगल में आया है। उस गर्जना को सुनकर मुझे लगा कि हमें यह जंगल छोड़ देना चाहिए।”

    दमनक ने पिंगलक को समझाया, “महाराज, केवल एक आवाज से भयभीत होकर अपना राज्य छोड़ देना उचित नहीं है। जैसे जल से पुल टूट सकता है, वैसे ही रहस्य उजागर होने से शक्ति भी क्षीण हो सकती है। हमें अपने डर का सामना करना चाहिए। आवाजें तो अनेक प्रकार की होती हैं—वेणु, वीणा, मृदंग, ताल, और ढोल जैसी। क्या हर आवाज का मतलब कोई बड़ा खतरा होता है? नहीं। इसलिए सिर्फ एक गर्जना से डरना ठीक नहीं है।”

    दमनक ने आगे कहा, “जो राजा विपत्ति में धैर्य नहीं खोता, उसका कभी पराभव नहीं होता। यह धैर्य ही है जो हमें महान बनाता है। जैसे सिंधु (समुद्र) गर्मी में भी बढ़ता रहता है जबकि सरोवर सूख सकते हैं। हमें विपत्ति में धैर्य रखना चाहिए, तभी हम विजयी हो सकते हैं।”

    पिंगलक ने पूछा, “तो फिर तुम क्या करना चाहते हो, दमनक?” दमनक ने कहा, “स्वामी, मुझे उस गर्जना का स्रोत जानने दीजिए। मैं वहाँ जाऊँगा और जानूँगा कि वह कौन-सा प्राणी है।”

    पिंगलक ने आश्चर्य से पूछा, “तुम सच में वहाँ जाना चाहते हो?” दमनक ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, “स्वामी की आज्ञा से योग्य सेवक कहीं भी जाने से नहीं डरता, चाहे उसे सर्प के मुँह में हाथ डालना पड़े या महासागर पार करना पड़े। एक सच्चा सेवक स्वामी की आज्ञा का पालन करने में ही अपना कर्तव्य समझता है।”

    पिंगलक ने दमनक को अनुमति दी और उसे सफलता की शुभकामनाएं दीं। दमनक खुशी-खुशी वहां से निकल पड़ा, यह सोचते हुए कि उसे पिंगलक का विश्वास जीतने का एक शानदार मौका मिला है।

    यह कथा मित्र भेद से है पिंगलक और दमनक की एक ऐसी बातचीत के बारे में जो हमारे जीवन में धैर्य, सावधानी और विश्वास से जुड़े कई महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है।

    तो आइए, इस दिलचस्प कहानी के आगे सुनते हैं। 

    स्वामी और भृत्य के बीच का रिश्ता सिर्फ आज्ञा पालन का नहीं होता, यह रिश्ता विश्वास और समर्पण का होता है। जो भृत्य स्वामी की आज्ञा को न सम मानता है और न विषम, उसे ही सच्चा सेवक कहा जाता है। ऐसे सेवक को राजाओं को सदा अपने पास रखना चाहिए, विशेषकर तब जब वे ऐश्वर्य और शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं।

    जंगल के राजा, पिंगलक, अपने पुराने मंत्री दमनक से बात करते हुए कहते हैं, “अगर ऐसा है, तो तुम्हारा मार्ग मंगलमय हो। जाओ और उस रहस्यमयी गर्जना का पता लगाओ।”

    दमनक ने स्वामी को प्रणाम किया और गर्जना के स्रोत की दिशा में चल पड़ा। लेकिन जैसे ही दमनक वहां से चला गया, पिंगलक के मन में चिंता घर कर गई। वह सोचने लगा, “मुझे शायद नहीं करना चाहिए था जो मैंने दमनक पर भरोसा कर अपना भय उसे बताया। आखिरकार, वह अपने अधिकार से वंचित है और कोई भी अपनी खोई हुई शक्ति को पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।”

    पिंगलक ने अपने मन की बात को और स्पष्ट किया, “जिन्हें पहले राजा द्वारा सम्मान प्राप्त होता है और बाद में वे सम्मान से वंचित हो जाते हैं, वे अपने नाश के लिए प्रयास कर सकते हैं, चाहे वे कुलीन ही क्यों न हों। इसलिए, मैं तब तक किसी और स्थान पर जाकर प्रतीक्षा करता हूँ, जब तक यह दमनक वापस नहीं आ जाता। कौन जाने, यह मुझे धोखा देकर शत्रु को साथ लाकर मुझे मारने की योजना बना रहा हो!”

    विश्वास का महत्व

    पिंगलक ने एक बात स्पष्ट कही, “किसी पर भी विश्वास न करना चाहिए, चाहे वह कितना भी बुद्धिमान क्यों न हो। दुर्बल भी बलवान से इसलिए नहीं बंधता है क्योंकि वह विश्वास नहीं करता। और जो व्यक्ति अपनी आयु और सुख की कामना करता है, उसे किसी के विश्वास में नहीं जाना चाहिए।”

    वह आगे सोचता है, “विश्वास से ही इंद्र ने दिति का गर्भ नाश कर दिया था। यही कारण है कि मैं अन्यत्र जाकर दमनक की प्रतीक्षा करूँगा और देखूँगा कि वह क्या करता है।”

    उधर, दमनक संजीवक के पास पहुंचा और उसे देखकर प्रसन्न हो गया। “यह तो बस एक साधारण बैल है,” उसने मन में सोचा। “यह तो बहुत अच्छा हुआ। इस बैल से पिंगलक की संधि या संघर्ष कुछ भी करवा सकता हूँ। इससे पिंगलक मेरे वश में आ जाएगा।”

    दमनक सोचने लगा, “राजा मंत्रियों की सलाह पर तभी चलता है जब वह किसी संकट या परेशानी में होता है। और जब राजा संकट में हो, तब ही मंत्री का भाग्य चमकता है। ठीक उसी तरह जैसे स्वस्थ व्यक्ति को वैद्य की आवश्यकता नहीं होती, वैसे ही संकट रहित राजा को मंत्री की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए मंत्री चाहते हैं कि राजा किसी संकट में फंसे ताकि उनकी जरूरत बनी रहे।”

    हमें यह सिखने को मिलता है कि केवल किसी आवाज या बाहरी संकेत से डरकर अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए। जीवन में कई बार हमें ऐसे संकटों का सामना करना पड़ता है जो बाहर से बड़े लगते हैं, लेकिन वास्तव में वे खोखले होते हैं, जैसे गोमायु (गीदड़) ने ढोल के बारे में समझा।

    तो दोस्तों, अब तक की कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि किसी पर भी बिना सोच-समझे भरोसा करना हमेशा हानिकारक हो सकता है। जीवन में विश्वास महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें समझदारी से और सावधानीपूर्वक इसका उपयोग करना चाहिए। इसी प्रकार, एक सच्चा सेवक वही है जो स्वामी की आज्ञा का पालन निष्ठा से करता है, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।

    आशा करता हूँ आपको आज की कहानी से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। जुड़े रहिए हमारे साथ पंचतंत्र की और भी ऐसी ही कहानियों के लिए। धन्यवाद, और सुनते रहिए, सीखते रहिए!

  • पंचतंत्र की कथा-05 : सियार और ढोल

    दमनक ने जब देखा कि पिंगलक भयभीत होकर अपने राज्य को छोड़ने का विचार कर रहा है, तो उसने उसे समझाने के लिए एक प्रेरणादायक कहानी सुनाने का निश्चय किया। उसने पिंगलक को आश्वस्त करने के उद्देश्य से गोमायु और ढोल की कथा को प्रस्तुत किया। दमनक जानता था कि इस कहानी के माध्यम से वह पिंगलक के डर को दूर कर सकता है और उसका विश्वास भी जीत सकता है। यह कहानी सुनाने से पहले उसने पिंगलक से एकांत का अनुरोध किया ताकि राजा के डर को प्रकट करना किसी और के सामने अपमानजनक न हो।

    गोमायु और ढोल की कथा इस प्रकार है:

    “महाराज, बहुत समय पहले की बात है। एक जंगल के निकट दो राजाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। युद्ध के बाद विजयी सेना तो अपने नगर लौट गई, लेकिन युद्ध के मैदान में बहुत सारी चीज़ें बिखरी रह गईं, जिनमें एक ढोल भी शामिल था। यह ढोल सेना के साथ गए भाट और चारण वीरता की कहानियाँ सुनाने के लिए बजाया करते थे।

    कुछ दिन बाद एक आंधी आई और वह ढोल लुढ़कता-पुढ़कता जंगल के सूखे पेड़ के पास जाकर रुक गया। उस पेड़ की सूखी टहनियां ढोल से इस प्रकार टकरा रही थीं कि जब भी हवा चलती, ढोल से “ढमाढम” की आवाज़ निकलती थी। यह आवाज़ बहुत जोरदार थी और पूरे जंगल में गूंज उठती थी।

    उसी जंगल में एक सियार रहता था। एक दिन उसने ढोल से आ रही “ढमाढम” की आवाज़ सुनी। उसने ऐसा शोर पहले कभी नहीं सुना था। सियार को लगा कि यह कोई बहुत बड़ा और खतरनाक जानवर है जो ऐसी गर्जना कर रहा है। वह बहुत डर गया और सोचने लगा, “यह कौन सा जीव है जो इतनी जोरदार बोली बोलता है? यह शायद कोई भयंकर जानवर है।”

    कुछ दिनों तक सियार उस ढोल को दूर से देखता रहा और उसके बारे में सोचता रहा। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह जीव उड़ने वाला है या चार पैरों वाला। एक दिन, वह झाड़ियों में छुपकर ढोल को ध्यान से देख रहा था, तभी एक गिलहरी पेड़ से उतरकर उस ढोल पर कूद गई। हल्की “ढम” की आवाज हुई, लेकिन गिलहरी आराम से बैठकर दाना कुतरती रही। यह देखकर सियार बड़बड़ाया, “अरे, यह तो कोई खतरनाक जीव नहीं है। मुझे इससे डरने की जरूरत नहीं है।”

    अब सियार फूंक-फूंककर कदम रखता हुआ ढोल के पास गया। उसने उसे सूंघा, लेकिन उसे न कहीं सिर मिला और न पैर। तभी हवा के झोंके से टहनियां फिर ढोल पर टकराईं और “ढम” की आवाज़ आई। सियार डरकर पीछे हट गया। फिर उसने सोचा, “यह तो किसी खोल जैसा है। जरूर इसके अंदर कोई मोटा-ताजा जानवर छिपा हुआ है। इसलिए यह ऐसी गहरी आवाज़ कर रहा है।”

    सियार अपनी मांद में लौटकर अपनी पत्नी से बोला, “ओ सियारी! दावत खाने के लिए तैयार हो जा। एक मोटे-ताजे शिकार का पता लगाकर आया हूँ।”

    सियारी ने पूछा, “तो तुम उसे मारकर क्यों नहीं लाए?”

    सियार ने उसे झिड़कते हुए कहा, “क्योंकि वह एक खोल के अंदर छिपा बैठा है। अगर मैं एक तरफ से उसे पकड़ने की कोशिश करता, तो वह दूसरी तरफ से भाग जाता। इसलिए मैंने सोचा कि हम दोनों साथ चलकर उसे पकड़ें।”

    चांद निकलने पर दोनों सियार ढोल के पास पहुँचे। जैसे ही वे निकट पहुँचे, हवा से टहनियां ढोल पर टकराईं और “ढम-ढम” की आवाज निकली। सियार अपनी पत्नी से बोला, “देखा, इसकी आवाज कितनी गहरी है। सोचो, जिसके आवाज इतनी गहरी हो, वह खुद कितना मोटा-ताजा होगा!”

    दोनों ने ढोल को सीधा कर उसके दोनों ओर से चमड़े को फाड़ना शुरू किया। जैसे ही उन्होंने चमड़े को काटा, दोनों ने “हूं” की आवाज के साथ अपने हाथ अंदर डाले और अंदर कुछ टटोलने लगे। परंतु अंदर कुछ नहीं था, बस एक-दूसरे के हाथ ही पकड़ में आए।

    दोनों चिल्लाए, “हैं! यहां तो कुछ भी नहीं है!” और माथा पीटकर रह गए।


    कहानी से शिक्षा

    इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बड़ी-बड़ी शेखी मारने वाले लोग अक्सर अंदर से खोखले होते हैं, जैसे वह ढोल। हमें बाहरी दिखावे पर भरोसा नहीं करना चाहिए और किसी भी चीज़ की सच्चाई को जानने का प्रयास करना चाहिए। बिना सोचे-समझे निष्कर्ष निकालना और झूठी उम्मीदें पालना हानिकारक हो सकता है।

  • पंचतंत्र की कथा-04 : व्यर्थ का काम करने से जान भी जा सकती है।

    बुद्धिमान व्यक्ति को स्वामी की इच्छा के अनुकूल कार्य करके उसे प्रसन्‍न करना चाहिए

    बंदर और लकड़ी का खूंटा कहानी सुनाकर करटक बोला, “इसीलिए कहता हूँ कि जिस काम से कोई अर्थ न सिद्ध होता हो, उसे नहीं करना चाहिए। व्यर्थ का काम करने से जान भी जा सकती है। अरे, अब भी पिंगलक जो शिकार करके लाता है, उससे हमें भरपेट भोजन तो मिल ही जाता है। तब बेकार ही झंझट में पड़ने से क्या फायदा!”

    दमनक बोला, “तो तुम क्या केवल भोजन के लिए ही जीते हो? यह तो ठीक नहीं। अपना पेट कौन नहीं भर लेता! जीना तो उसका ही उचित है, जिसके जीने से और भी अनेक लोगों का जीवन चलता हो। दूसरी बात यह कि शक्ति होते हुए भी जो उसका उपयोग नहीं करता और उसे यों ही नष्ट होने देता है, उसे भी अंत में अपमानित होना पड़ता है!”

    करटक ने कहा, “लेकिन हम दोनों तो ऐसे भी मंत्रीपद से च्युत हैं। फिर राजा के बारे में यह सब जानने की चेष्टा करने से क्या लाभ? ऐसी हालत में तो राजा से कुछ कहना भी अपनी हँसी उड़वाना ही होगा। व्यक्ति को अपनी वाणी का उपयोग भी वहीं करना चाहिए, जहाँ उसके प्रयोग से किसीका कुछ लाभ हो!”

    “भाई, तुम ठीक नहीं समझते। राजा से दूर रहकर तो रही-सही इज्जत भी गँवा देंगे हम। जो राजा के समीप रहता है, उसीपर राजा की निगाह भी रहती है और राजा के पास होने से ही व्यक्ति असाधारण हो जाता है।”

    करटक ने पूछा, “तुम आखिर करना क्या चाहते हो?”

    “हमारा स्वामी पिंगलक आज भयभीत है।” दमनक बोला, “उसके सारे सहचर भी डरे-डरे-से हैं। मैं उनके भय का कारण जानना चाहता हूँ।”

    “तुम्हें कैसे पता कि वे डरे हुए हैं?”

    “लो, यह भी कोई मुश्किल है! पिंगलक के हाव-भाव, चाल-ढाल, उसकी बातचीत, आँखों और चेहरे से ही स्पष्ट जान पड़ता है कि वह भयभीत है। मैं उसके पास जाकर उसके भय के कारण का पता करूँगा। फिर अपनी बुद्धि का प्रयोग करके उसका भय दूर कर दूँगा। इस तरह उसे वश में करके मैं फिर से अपना मंत्रीपद प्राप्त करूँगा।”

    करटक ने फिर भी शंका जताई, “तुम इस विषय में तो कुछ जानते नहीं कि राजा की सेवा किस प्रकार करनी चाहिए। ऐसी स्थिति में उसे वश में कैसे कर लोगे?”

    दमनक बोला, “राजसेवा के बारे में मैं नहीं जानता, यह तुम कैसे कह सकते हो? बचपन में पिता के साथ रहकर मैंने सेवाधर्म तथा राजनीति के विषय में जो कुछ भी सुना, सब अच्छी तरह सीख लिया है। इस पृथ्वी में अपार स्वर्ण है; उसे तो बस शूरवीर, विद्वान्‌ तथा राजा के चतुर सेवक ही प्राप्त कर सकते हैं।”

    करटक को फिर भी विश्वास नहीं आ रहा था। उसने कहा, “मुझे यह बताओ कि तुम पिंगलक के पास जाकर कहोगे क्या?”

    “अभी से मैं क्या कहूँ! वार्ततालाप के समय तो एक बात से दूसरी बात अपने आप निकलती जाती है। जैसा प्रसंग आएगा वैसी ही बात करूँगा। उचित-अनुचित और समय का विचार करके ही जो कहना होगा, कहूँगा। पिता की गोद में ही मैंने यह नीति-वचन सुना है कि अप्रासंगिक बात कहनेवाले को अपमान सहना ही पड़ता है, चाहे वह देवताओं के गुरु बृहस्पति ही क्यों न हों।”

    करटक ने कहा, “तो फिर यह भी याद रखना कि शेर-बाघ आदि हिंस्र जंतुओं तथा सर्प जैसे कुटिल जंतुओं से संपन्न पर्वत जिस प्रकार दुर्गण और विषम होते हैं उसी प्रकार राजा भी क्रूर तथा दुष्ट व्यक्तियों की संगति के कारण बड़े कठोर होते हैं। जल्दी प्रसन्‍न नहीं होते और यदि कोई भूल से भी राजा की इच्छा के विरुद्ध कुछ कर दे तो साँप की तरह डसकर उसे नष्ट करते उन्हें देर नहीं लगती।”

    दमनक बोला, ”आप ठीक कहते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति को स्वामी की इच्छा के अनुकूल कार्य करके उसे प्रसन्‍न करना चाहिए। इसी मंत्र से उसे वश में किया जा सकता है।”

    करटक ने समझ लिया कि दमनक ने मन-ही-मन पिंगलक से मिलने का दृढ़ निश्चय कर लिया है। वह बोला, “ऐसा विचार है तो अवश्य जाओ। बस, मेरी एक बात याद रखना कि राजा के पास पहुँचकर हर समय सावधान रहना। तुम्हारे साथ ही मेरा भविष्य भी जुड़ा है। तुम्हारा पथ मंगलमय हो।”

    करटक की अनुमति पाकर दमनक उसे प्रणाम करके पिंगलक से मिलने के लिए चल पड़ा।

    सुरक्षा के लिए व्यूह के बीचोबीच बैठे पिंगलक ने दूर से ही दमनक को अपनी ओर आते देख लिया। उसने व्यूह के द्वार पर नियुक्त प्रहरी से कहा, “मेरे पूर्व महामंत्री का पुत्र दमनक आ रहा है। उसे निर्भय प्रवेश करने दो और उचित आसन पर बैठाने का प्रबंध करो।”

    दमनक ने बेरोक-टोक पिंगलक के पास पहुँचकर उसे प्रणाम किया। साथ ही उसका संकेत पाकर वह निकट ही दूसरे मंडल में बैठ गया।

    सिंहराज पिंगलक ने अपना भारी पंजा उठाकर स्नेह दिखाते हुए दमनक के कंधे पर रखा और आदर के साथ पूछा, “कहो, दमनक, कुशल से तो रहे? आज बहुत दिनों के बाद दिखाई पड़े। किधर से आ रहे हो?’

    दमनक बोला, ”महाराज के चरणों में हमारा क्या प्रयोजन हो सकता है! किंतु समय के अनुसार राजाओं को भी उत्तम, मध्यम तथा अधम-हर कोटि के व्यक्ति से काम पड़ सकता है। ऐसे भी हम लोग महाराज के सदा से ही सेवक रहते आए हैं। दुर्भाग्य से हमें हमारा पद और अधिकार नहीं मिल पाया है तो भी हम आपकी सेवा छोड़कर कहाँ जा सकते हैं। हम लाख छोटे और असमर्थ सही, किंतु कोई ऐसा भी अवसर आ सकता है, जब महाराज हमारी ही सेवा लेने का विचार करें।”

    पिंगलक उस समय उद्विग्न था। बोला, “तुम छोटे-बड़े या समर्थ-असमर्थ की बात छोड़ो, दमनक। तुम हमारे मंत्री के पुत्र हो, अत: तुम जो भी कहना चाहते हो, निर्भय होकर कहो।”

    अभयदान पाकर भी चालाक दमनक ने राजा के भय के विषय में सबके सामने बात करना ठीक नहीं समझा। उसने अपनी बात कहने के लिए एकांत का अनुरोध किया।

    पिंगलक ने अपने अनुचरों की ओर देखा। राजा की इच्छा समझकर आसपास के जीव-जंतु हटकर दूर जा बैठे।

    एकांत होने पर दमनक ने बड़ी चतुराई से पिंगलक की दुखती रग ही छेड़ दी। बोला, “स्वामी, आप तो यमुना-तट पर पानी पीने जा रहे थे, फिर सहसा प्यासे ही लौटकर इस मंडल के बीच इस तरह चिंता से व्यग्र होकर क्यों बैठे हैं? ”

    दमनक की बात सुनकर सिंह पहले तो सकुचा गया। फिर दमनक की चतुराई पर भरोसा करके उसने अपना भेद खोल देना उचित समझा। पल-भर सोचकर बोला, “दमनक, यह जो रह-रहकर गर्जना-सी होती है, इसे तुम भी सुन रहे हो न?

    “सुन रहा हूँ, महाराज!”

    “बस, इसीके कारण मैं क्षुब्ध हूँ।तट पर यही गर्जना बार-बार हो रही थी। लगता है, इस वन में कोई विकट जंतु आ गया है। जिसकी गर्जना ही इतनी भयंकर हैं, वह स्वयं कैसा होगा! इसीके कारण मैं तो यह जंगल छोड़कर कहीं और चले जाने का विचार कर रहा हूँ।”

    दमनक ने कहा, ”लेकिन मात्र शब्द सुनकर भय के मारे अपना राज्य छोड़ना तो उचित नहीं है, महाराज! शब्द अथवा ध्वनि का क्या है। कितने ही बाजों की ध्वनि भी गर्जना की-सी बड़ी गंभीर होती है और अपने पुरखों का स्थान छोड़ने से पहले पता तो करना ही चाहिए कि ध्वनि का कारण कया है। यह तो गोमायु गीदड़ की तरह डरने की बात हुई, जिसे बाद में पता चला कि ढोल में तो पोल-ही-पोल है।”

    पिंगलक ने पूछा, ‘“गोमायु गीदड़ के साथ कया घटना हुई थी?” दमनक गोमायु की कहानी आगे सुनेगें —-