-
सचेतन 3.33 : नाद योग: तुरीय अवस्था: शुद्ध चेतना की अंतिम अवस्था
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका हमारे इस खास सचेतन के विचार सत्र में। और आज हम चर्चा करेंगे एक अत्यंत गहन और आध्यात्मिक विषय पर, जिसे “तुरीय अवस्था” कहा जाता है। यह वह अवस्था है जहाँ आत्मा शुद्ध चेतना में प्रवेश करती है और परमात्मा के साथ एकत्व का अनुभव करती है। तो आइए, जानते हैं कि तुरीय अवस्था क्या है और इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है।
तुरीय अवस्था का अर्थ
“तुरीय” शब्द संस्कृत से आया है, जिसका अर्थ है “चौथा”। तुरीय अवस्था वह चौथी अवस्था है, जो जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति अवस्थाओं से परे है। यह शुद्ध चेतना की वह अवस्था है, जहाँ आत्मा अपने सभी बंधनों से मुक्त हो जाती है और परमात्मा के साथ एकत्व का अनुभव करती है। यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति अद्वैत (द्वैत से परे) के अनुभव में होता है, यानी वह अपने और ब्रह्मांड के बीच किसी भी विभाजन का अनुभव नहीं करता।
चार अवस्थाएँ
आत्मा के अनुभव को चार प्रमुख अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है:
- जाग्रत अवस्था (वैश्वानर):
- यह वह अवस्था है जिसमें हम जागते हैं और भौतिक संसार के अनुभवों को प्राप्त करते हैं। यह अवस्था हमारे इंद्रियों और मन के साथ जुड़ी होती है, जहाँ हम बाहरी दुनिया के साथ संलग्न रहते हैं।
- स्वप्न अवस्था (तैजस):
- यह वह अवस्था है जिसमें हम स्वप्न देखते हैं। इसमें हमारी चेतना आंतरिक अनुभवों और कल्पनाओं से गुज़रती है, जो हमारे मानसिक और भावनात्मक अनुभवों का परिणाम होती है।
- सुषुप्ति अवस्था (प्राज्ञ):
- यह गहरी नींद की अवस्था है, जहाँ हम शारीरिक और मानसिक स्तर पर पूरी तरह से शांति और विश्राम का अनुभव करते हैं। इसमें हमारे मन की गतिविधियाँ बंद हो जाती हैं, और हम एक प्रकार की अचेतनता का अनुभव करते हैं।
- तुरीय अवस्था:
- तुरीय अवस्था इन तीनों अवस्थाओं से परे की अवस्था है। यह शुद्ध चेतना की वह स्थिति है, जहाँ आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप का बोध करती है। यहाँ न कोई स्वप्न है, न कोई विचार, और न ही कोई भौतिक अनुभव—यह केवल शुद्ध, अनंत और अद्वितीय चेतना का अनुभव है।
तुरीय अवस्था का अनुभव
तुरीय अवस्था का अनुभव योग और ध्यान के माध्यम से संभव है। जब हम ध्यान में गहराई तक जाते हैं और सभी विचारों और भावनाओं से परे होकर शुद्ध चेतना का अनुभव करते हैं, तो हम तुरीय अवस्था में प्रवेश करते हैं। यह अनुभव किसी भी प्रकार के द्वैत से परे होता है और यहाँ केवल एकत्व का अनुभव होता है। यह वह स्थिति है, जहाँ आत्मा और परमात्मा के बीच कोई भेद नहीं रहता, और व्यक्ति अपने वास्तविक अस्तित्व का बोध करता है।
- आत्मिक शांति:
- तुरीय अवस्था में आत्मा को गहन शांति और संतोष का अनुभव होता है। यह शांति किसी भी बाहरी परिस्थिति पर निर्भर नहीं होती, बल्कि यह आत्मा के भीतर से उत्पन्न होती है।
- अनंत आनंद:
- इस अवस्था में व्यक्ति अनंत आनंद का अनुभव करता है। यह आनंद किसी भी भौतिक सुख या दुख से परे होता है और शुद्ध आत्मिक आनंद का प्रतीक है।
- द्वैत से परे:
- तुरीय अवस्था में व्यक्ति अद्वैत का अनुभव करता है, जहाँ उसे अपने और ब्रह्मांड के बीच कोई भेदभाव नहीं दिखाई देता। यह अवस्था पूर्ण एकत्व की अवस्था है।
तुरीय अवस्था का आध्यात्मिक महत्व
तुरीय अवस्था को आत्म-साक्षात्कार की अंतिम अवस्था माना जाता है। यह वह अवस्था है, जहाँ व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है और सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है। इस अवस्था में प्रवेश करना योगियों और साधकों का अंतिम लक्ष्य होता है, क्योंकि यहाँ आत्मा अपनी मूल और शुद्ध अवस्था में रहती है, जो ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एकाकार होती है।
तुरीय अवस्था तक पहुँचने के उपाय
- नियमित ध्यान:
- तुरीय अवस्था तक पहुँचने का सबसे प्रभावी तरीका नियमित ध्यान है। ध्यान के माध्यम से हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और शुद्ध चेतना का अनुभव कर सकते हैं।
- प्राणायाम और श्वास नियंत्रण:
- प्राणायाम और श्वास नियंत्रण के माध्यम से हम अपने शरीर और मन को स्थिर कर सकते हैं, जिससे तुरीय अवस्था का अनुभव करना आसान हो जाता है।
- आत्म-विश्लेषण और स्वाध्याय:
- आत्म-विश्लेषण और स्वाध्याय के माध्यम से हम अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझ सकते हैं और तुरीय अवस्था की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
तुरीय अवस्था शुद्ध चेतना की अंतिम और उच्चतम अवस्था है, जहाँ आत्मा अपने सभी बंधनों से मुक्त हो जाती है और परमात्मा के साथ एकत्व का अनुभव करती है। यह अवस्था जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति अवस्थाओं से परे है और आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में अंतिम कदम है। तुरीय अवस्था तक पहुँचने के लिए ध्यान, प्राणायाम, और आत्म-विश्लेषण का नियमित अभ्यास करना आवश्यक है।
आज के इस सत्र में इतना ही। हमें उम्मीद है कि आपको तुरीय अवस्था के इस गहन और आध्यात्मिक विषय के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। हम फिर मिलेंगे एक नए और रोचक विषय के साथ। तब तक के लिए, ध्यान में रहें, खुश रहें, और अपनी आत्मा की यात्रा को गहराई तक ले जाएँ।
नमस्कार!
- जाग्रत अवस्था (वैश्वानर):
-
सचेतन 3.32 : नाद योग: चार अवस्थाएँ: आत्मा के अनुभव का सफर
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका “सचेतन” कार्यक्रम में। और आज हम आत्मा के चार प्रमुख अनुभवों पर चर्चा करेंगे, जिन्हें चार अवस्थाएँ कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है, जो हमें आत्मा के विभिन्न अनुभवों के माध्यम से जीवन के गहरे अर्थ को समझने में मदद करता है।
चार अवस्थाएँ: आत्मा का सफर
आत्मा के अनुभव को चार प्रमुख अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है। ये अवस्थाएँ हमें जीवन के विभिन्न स्तरों पर हमारे अस्तित्व का अनुभव कराती हैं। आइए, जानते हैं इन चार अवस्थाओं के बारे में विस्तार से:
1. जाग्रत अवस्था (वैश्वानर):
जाग्रत अवस्था वह स्थिति है, जिसमें हम जागते हैं और अपने भौतिक संसार के अनुभवों को प्राप्त करते हैं। यह हमारी दैनिक गतिविधियों, विचारों और बाहरी दुनिया से जुड़ी होती है। इस अवस्था में हम अपनी इंद्रियों और मन का प्रयोग करके बाहरी दुनिया के साथ संपर्क में रहते हैं। यह वह अवस्था है, जहाँ हम अपनी दिनचर्या, काम, और सामाजिक जीवन में संलग्न होते हैं।
- इस अवस्था में हम खुद को भौतिक शरीर और मन से जोड़ते हैं।
- यह जागरूकता की सामान्य स्थिति है, जिसे हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अनुभव करते हैं।
2. स्वप्न अवस्था (तैजस):
स्वप्न अवस्था वह अवस्था है, जिसमें हमारी चेतना आंतरिक अनुभवों और कल्पनाओं से जुड़ती है। इसमें हमारा मन भौतिक दुनिया से हटकर आंतरिक जगत में प्रवेश करता है, जहाँ हम सपनों के माध्यम से मानसिक और भावनात्मक अनुभवों का सामना करते हैं। यह वह स्थिति है, जहाँ हमारे विचार, कल्पनाएँ, और असंवेदनशील भावनाएँ हमें एक अलग ही दुनिया का अनुभव कराती हैं।
- स्वप्न अवस्था हमारे मानसिक और आंतरिक अनुभवों से भरी होती है।
- यह हमारी आंतरिक यात्रा का प्रतीक है, जहाँ हम अपनी अवचेतन भावनाओं और विचारों का अनुभव करते हैं।
3. सुषुप्ति अवस्था (प्राज्ञ):
सुषुप्ति अवस्था गहरी नींद की वह अवस्था है, जहाँ हम पूरी तरह से शारीरिक और मानसिक विश्राम का अनुभव करते हैं। इस अवस्था में हमारे मन की सभी गतिविधियाँ बंद हो जाती हैं, और हम किसी भी प्रकार के विचार, भावनाएँ, या बाहरी जगत के संपर्क में नहीं रहते। यह अवस्था एक प्रकार की अचेतनता है, जिसमें हम शांति और विश्राम का अनुभव करते हैं।
- इस अवस्था में हमारे शरीर और मन दोनों ही पूर्ण आराम की स्थिति में होते हैं।
- यह वह अवस्था है, जहाँ कोई भी मानसिक गतिविधि नहीं होती, और हमें केवल शांति और विश्राम का अनुभव होता है।
4. तुरीय अवस्था:
तुरीय अवस्था इन तीनों अवस्थाओं से परे की अवस्था है। यह शुद्ध चेतना की वह स्थिति है, जहाँ आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप का बोध करती है। यह अवस्था स्वप्न, जाग्रत, और सुषुप्ति से अलग होती है, क्योंकि यहाँ न कोई विचार है, न कोई स्वप्न, और न ही कोई भौतिक अनुभव। यह केवल शुद्ध, अनंत और अद्वितीय चेतना का अनुभव है, जिसे योग और ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
- तुरीय अवस्था शुद्ध आत्मिक जागरूकता का प्रतीक है।
- यह वह अवस्था है, जहाँ आत्मा परमात्मा से एकाकार होती है और शांति, स्थिरता, और आनंद का अनुभव करती है।
हर अवस्था का अनुभव
इन चार अवस्थाओं का अनुभव हमें यह समझने में मदद करता है कि हमारा जीवन केवल भौतिक और मानसिक अनुभवों तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मा की गहन चेतना में भी हम अपनी जड़ें पाते हैं। तुरीय अवस्था वह लक्ष्य है, जिसे आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, और यही अवस्था हमें शाश्वत शांति और आनंद की ओर ले जाती है।
आत्मा का सफर चार अवस्थाओं से गुजरता है—जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, और तुरीय। इन चार अवस्थाओं का अनुभव हमें जीवन के गहरे अर्थ को समझने और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है। तुरीय अवस्था तक पहुँचना ही आत्मा का अंतिम लक्ष्य है, जहाँ शुद्ध चेतना का अनुभव होता है।
आज के “सचेतन” कार्यक्रम में इतना ही। हमें उम्मीद है कि आपको आत्मा की इन चार अवस्थाओं के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। हम फिर मिलेंगे एक नए और रोचक विषय के साथ। तब तक के लिए, ध्यान में रहें, खुश रहें, और अपनी आत्मिक यात्रा को गहराई तक ले जाएँ।
नमस्कार!
-
सचेतन 3.30 : शिक्षक दिवस: सम्मान और संस्कार का महत्व
सचेतन 3.30 : शिक्षक दिवस: सम्मान और संस्कार का महत्व
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपके पसंदीदा “सचेतन” कार्यक्रम में, और आज हम बात करेंगे एक ऐसे खास दिन के बारे में, जो न केवल शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि हमारे शिक्षकों के प्रति सम्मान और संस्कार की भावना को भी उजागर करता है। यह दिन है—शिक्षक दिवस।
शिक्षक दिवस का महत्व
हर साल 5 सितंबर को हम शिक्षक दिवस मनाते हैं, जो महान शिक्षक और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह दिन हमें यह मौका देता है कि हम अपने शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त कर सकें और उनके द्वारा दिए गए योगदान को सम्मानित कर सकें। शिक्षक न केवल हमें शिक्षा देते हैं, बल्कि हमारे जीवन में महत्वपूर्ण संस्कारों का संचार भी करते हैं, जो हमें एक अच्छे इंसान बनने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
शिक्षक: सम्मान और संस्कार के प्रतीक
शिक्षक हमारे समाज के आधार स्तंभ हैं। वे हमें न केवल सही ज्ञान देते हैं, बल्कि जीवन में सही और गलत का बोध भी कराते हैं। शिक्षक हमें सिखाते हैं कि कैसे हम अपनी प्रतिभा का सही उपयोग कर सकते हैं और जीवन में सफल हो सकते हैं। इसलिए, शिक्षक दिवस पर हमें अपने शिक्षकों का आभार व्यक्त करना चाहिए और उन्हें वह सम्मान देना चाहिए, जिसके वे वास्तव में हकदार हैं।
संस्कारों का संचार
शिक्षक केवल किताबों का ज्ञान नहीं देते, वे हमारे जीवन में अनुशासन, नैतिकता, और जिम्मेदारी जैसे संस्कारों का भी संचार करते हैं। यही संस्कार हमारे जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ाने में मदद करते हैं और हमें एक मजबूत नींव प्रदान करते हैं, जिस पर हमारा संपूर्ण जीवन आधारित होता है।
प्रेरणा के स्रोत
शिक्षक हमारे जीवन में प्रेरणा के स्रोत होते हैं। वे हमें हमारे लक्ष्यों की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं और हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार करते हैं। उनका धैर्य और समर्पण हमें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है और हमारे जीवन को सही दिशा में ले जाता है।
शिक्षक दिवस पर हमारा कर्तव्य
शिक्षक दिवस केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह हमें हमारे शिक्षकों के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है। इस दिन हमें अपने शिक्षकों को यह महसूस कराना चाहिए कि उनके द्वारा दी गई शिक्षा और संस्कार हमारे जीवन में कितने महत्वपूर्ण हैं।
शिक्षकों का सम्मान
इस दिन हमें अपने शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए और उनके योगदान को सराहना चाहिए। यह केवल शब्दों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि हमारे व्यवहार और कर्मों में भी दिखना चाहिए।
संस्कारों का पालन
शिक्षक दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने शिक्षकों से मिले संस्कारों का पालन करेंगे और उन्हें अपने जीवन में उतारेंगे। यह न केवल हमें एक बेहतर इंसान बनाएगा, बल्कि हमारे समाज को भी एक सकारात्मक दिशा में ले जाएगा।
निष्कर्ष
शिक्षक दिवस सम्मान और संस्कार का दिन है। यह हमें हमारे शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करने का एक अवसर प्रदान करता है। हमें अपने शिक्षकों से मिले ज्ञान और संस्कारों को याद रखना चाहिए और उन्हें अपने जीवन में लागू करने का संकल्प लेना चाहिए। यही हमारे शिक्षकों के प्रति सच्चा सम्मान होगा।
आज के इस “सचेतन” कार्यक्रम में इतना ही। हमें उम्मीद है कि आपको शिक्षक दिवस के इस महत्वपूर्ण विषय के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा।
हम आपके शिक्षकों को दिल से धन्यवाद देते हैं और उन्हें शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई देते हैं। आप सभी शिक्षकों को हमारे जीवन में आपके अपार योगदान के लिए सच्चे सम्मान और आभार के साथ धन्यवाद।
हम फिर मिलेंगे एक नए और रोचक विषय के साथ। तब तक के लिए, अपने शिक्षकों का सम्मान करें, उनके द्वारा दिए गए संस्कारों का पालन करें, और हमेशा जीवन में आगे बढ़ते रहें।
नमस्कार!
-
सचेतन 3.29 : नाद योग: ॐ कार के आठ अङ्ग, चार पैर, तीन नेत्र, और पाँच दैवतों का महत्व
जो व्यक्ति ॐ कार (प्रणव) से अनभिज्ञ है, उसे ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता…
नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र में। और आज हम चर्चा करेंगे “ॐ कार” के बारे में, जिसे ब्रह्मांड का सार माना जाता है। यह पवित्र ध्वनि, जो सभी जीवों और तत्वों का मूल है, हमारे जीवन में एक विशेष स्थान रखती है। आइए, समझते हैं ॐ कार के आठ अङ्ग, चार पैर, तीन नेत्र, और पाँच दैवतों का अर्थ और उनका महत्व।
ॐ कार: संपूर्ण ब्रह्मांड का सार
ॐ कार, जिसे प्रणव भी कहा जाता है, न केवल एक ध्वनि है, बल्कि यह संपूर्ण ब्रह्मांड का सार है। इसका उच्चारण हमें ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जोड़ता है और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में मार्गदर्शन करता है। आइए, इसके विभिन्न अंगों के माध्यम से इस महान ध्वनि को समझें।
ॐ कार के आठ अङ्ग
ॐ कार के आठ अङ्ग हमें उस सम्पूर्णता की याद दिलाते हैं, जो इस ध्वनि में निहित है। ये अङ्ग हमें यह समझने में मदद करते हैं कि ॐ में सृष्टि की सभी शक्तियाँ और तत्व समाहित हैं।
- ‘अ’, ‘उ’, ‘म’, और अर्धमात्रा:
- ये चार अंश ॐ के आधारभूत घटक हैं, जो सृष्टि के निर्माण, पालन, और संहार का प्रतीक हैं।
- अर्ध-चंद्र और बिंदु:
- यह तुरीय अवस्था का प्रतीक है, जहाँ आत्मा शुद्ध चेतना में प्रवेश करती है। “तुरीय” शब्द संस्कृत से आया है, जिसका अर्थ है “चौथा”। तुरीय अवस्था वह चौथी अवस्था है, जो जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति अवस्थाओं से परे है। यह शुद्ध चेतना की वह अवस्था है, जहाँ आत्मा अपने सभी बंधनों से मुक्त हो जाती है और परमात्मा के साथ एकत्व का अनुभव करती है। यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति अद्वैत (द्वैत से परे) के अनुभव में होता है, यानी वह अपने और ब्रह्मांड के बीच किसी भी विभाजन का अनुभव नहीं करता।
- शब्द और नाद:
- यह ध्वनि और उसके कंपन का प्रतीक है, जो ब्रह्मांड में व्याप्त है और सभी जीवों को जीवन प्रदान करता है।
ॐ कार के चार पैर
ॐ कार के चार पैर ब्रह्मांड की चार प्रमुख अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं:
- जाग्रत अवस्था:
- यह हमारी जाग्रत स्थिति का प्रतीक है, जहाँ हम भौतिक संसार में जीवन का अनुभव करते हैं।
- स्वप्न अवस्था:
- यह हमारी स्वप्न अवस्था का प्रतीक है, जहाँ हमारी चेतना कल्पनाओं और विचारों के माध्यम से यात्रा करती है।
- सुषुप्ति अवस्था:
- यह गहरी नींद की अवस्था है, जहाँ चेतना शून्यता की स्थिति में होती है।
- तुरीय अवस्था:
- यह चौथी और सबसे उच्च अवस्था है, जहाँ आत्मा शुद्ध चेतना और परमात्मा के साथ एकत्व का अनुभव करती है।
ॐ कार के तीन नेत्र
ॐ कार के तीन नेत्र ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के त्रिमूर्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं:
- ब्रह्मा (सृजन):
- यह सृजन की शक्ति का प्रतीक है, जो ब्रह्मांड में जीवन और अस्तित्व की शुरुआत करती है।
- विष्णु (पालन):
- यह पालन और संतुलन की शक्ति का प्रतीक है, जो ब्रह्मांड को बनाए रखती है और उसका संरक्षण करती है।
- महेश (संहार):
- यह संहार की शक्ति का प्रतीक है, जो पुरानी और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है और नई ऊर्जा का संचार करती है।
ॐ कार के पाँच दैवत
ॐ कार के पाँच दैवत वे पाँच तत्व हैं, जिनसे सृष्टि की रचना हुई है:
- पृथ्वी (Earth):
- यह स्थिरता और भौतिक अस्तित्व का प्रतीक है।
- जल (Water):
- यह शुद्धिकरण और प्रवाह का प्रतीक है।
- अग्नि (Fire):
- यह ऊर्जा और परिवर्तन का प्रतीक है।
- वायु (Air):
- यह गति और जीवन शक्ति का प्रतीक है।
- आकाश (Ether):
- यह शून्यता और अनंतता का प्रतीक है।
आत्म-साक्षात्कार और ॐ कार का महत्व
जो व्यक्ति ॐ कार (प्रणव) से अनभिज्ञ है, उसे ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता। ॐ कार को समझे बिना आत्म-साक्षात्कार संभव नहीं है। यह ध्वनि न केवल ब्रह्मांड की रचना का आधार है, बल्कि आत्मा और परमात्मा के बीच का पुल भी है। जब हम ॐ का उच्चारण करते हैं, तो हम उस अनंत शक्ति से जुड़ते हैं, जो हमें आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में ले जाती है।
ॐ कार केवल एक ध्वनि नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड का सार है। इसके आठ अङ्ग, चार पैर, तीन नेत्र, और पाँच दैवत हमें इस बात का बोध कराते हैं कि सृष्टि की सभी शक्तियाँ और तत्व इसमें समाहित हैं। ॐ कार का नियमित जाप और ध्यान हमें आत्म-साक्षात्कार की दिशा में मार्गदर्शन करता है और हमें ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जोड़ता है।
आज के इस सत्र में इतना ही। हमें उम्मीद है कि आपको ॐ कार और उसके आध्यात्मिक महत्व के इस विषय के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। हम फिर मिलेंगे एक नए और रोचक विषय के साथ। तब तक के लिए, ध्यान में रहें, खुश रहें, और ॐ की शक्ति को अपने जीवन में अनुभव करें।
नमस्कार!
- ‘अ’, ‘उ’, ‘म’, और अर्धमात्रा: