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सचेतन 257: शिवपुराण- वायवीय संहिता – भाव योग उच्चाति-उच्च प्रेम है

भाव योग की प्रक्रिया में संन्यासी का अर्थ महत्वपूर्ण है  कल हमने द्वेष के बारे में बात किया था और यह किसी दुःख के अनुभव होने के पश्चात् जो वासना चित्त में शेष रह जाती है, वह ‘द्वेष’ क्लेश कहलाती है। अगर हम बात करें तो दुःख के आभास होने या जिससे दुःख को हम […]