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सचेतन 256: शिवपुराण- वायवीय संहिता – भाव योग

समत्व-बुद्धि का भाव योग का प्रथम सोपान है  दूसरों के प्रति समान भाव का उद्भव ही समत्व बुद्धि होना है। राग व द्वेष के कारण ही हम अपने से दूसरों को अलग समझने की नादानी करते हैं। ये राग-द्वेष ही काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार को बढ़ाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें कि इन […]