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सचेतन 239: शिवपुराण- वायवीय संहिता – संसार का मूल प्रकृति शून्यता है

अनुभव करें की सारा विश्वात्मक विस्तार मैं ही हूँ  जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो इसका अर्थ है शून्य, यानी ‘शिव’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो नहीं है’। एक बार अपने शून्य होने की सहनशीलता को सक्षम करके देखिए आपको लगेगा की आपका हरेक कर्म इस सृष्टि में शून्यता से ही प्रारंभ होता है।  आपका […]