
Sachetan-सचेतन by Manovikas Family
-
सचेतन 254: शिवपुराण- वायवीय संहिता – योग गति में विघ्न
विघ्नों के शांत होने पर उपसर्ग (विशेषता या परिवर्तन) उत्पन्न हो जाते हैं। उपमन्यु बोले ;- हे केशव! आलस्य, व्याधि, प्रमाद, स्थान, संशय, चित्त का एकाग्र न होना, अश्रद्धा, दुख, वैमनस्य आदि योग में पड़ने वाले विघ्न हैं। इन विघ्नों को सदा शांत करते रहना चाहिए। इन सब विघ्नों के शांत होने पर छः उपसर्ग…
-
सचेतन 253: शिवपुराण- वायवीय संहिता – स्पर्श योग करने से जीवन में कोई तनाव या खिंचाव आपके ऊपर एक भी खरोंच नहीं डाल पाएगा
-
सचेतन 252: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आनंदमय कोष तक स्पर्श करने के लिए शरीर के तीनों आयाम का योग आवश्यक है
आप स्वभाव से ही आनंदित हो सकते हैं। आनंदमय कोष या करण-शरीर हमारे अनुभव को आनंदमय बनाता है लेकिन आपको प्रसन्नता से निर्मित स्व को समझना होगा! उदाहरण के लिए, यदि आप चीनी के बारे में बात कर रहे हैं, तो आप कहते हैं कि वह मीठी है। मिठास चीनी का स्वभाव नहीं है। मिठास…
-
सचेतन 251: शिवपुराण- वायवीय संहिता -आनंदपूर्ण शरीर- आनंदमय कोष या करण-शरीर है
आपको प्रसन्नता से निर्मित स्व को समझना होगा हमलोग पंचकोष के बारे में चर्चा कर रहे हैं जिसमें अन्नमय कोश – अन्न तथा भोजन से निर्मित हमारा शरीर और मस्तिष्क है। प्राणमय कोश – प्राणों से बना। यह हमारी मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और उत्तम अवस्था का परत है। मनोमय कोश – मन…
-
सचेतन 250: शिवपुराण- वायवीय संहिता -विज्ञानमय कोष से रूपांतरण संभव है
यदि आप सूक्ष्म शरीर में जरूरी बदलाव लाते हैं, तो वह हमेशा के लिए होता है। पिछले विचार के सत्र में हमने पंचकोश के बारे में बात किया था जो मानव का अस्तित्व है और यह स्पर्श योग में आपके रूपांतरण का भी एक आयाम है, जिससे परिवर्तन संभव है! ये पाँच आवरण या परत…
-
सचेतन 249: शिवपुराण- वायवीय संहिता – पंचकोश मानव का अस्तित्व है
स्पर्श योग में आपका रूपांतरण भी एक आयाम है, जो संभव है! योग की धारणा के अनुसार मानव का अस्तित्व पाँच भागों में बंटा है जिन्हें पंचकोश कहते हैं या यूँ कहें की ये पाँच आवरण या परत है। ये कोश एक साथ विद्यमान अस्तित्व के विभिन्न तल समान होते हैं। विभिन्न कोशों में चेतन,…
-
सचेतन 248: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्रपंच का शमन आवश्यक है
-
सचेतन 247: शिवपुराण- वायवीय संहिता – मंत्रयोग से स्पर्शयोग तक पहुँचने के लिए प्राणायाम का अभ्यास करना होगा
प्राणायाम करते समय आप आपने बाहर और भीतर हो रहे शब्दों को ध्यान से सुने तो लगेगा की आपको मन की एकाग्रता चाहिए! हमने शिवपुराण में मंत्र योग, स्पर्श योग, भावयोग, अभाव योग और महायोग, पांच प्रकार के योग के बारे में ज़िक्र किया था। अगर आप योग का अभ्यास करना चाहते हैं तो ऐसी…
-
सचेतन 246: शिवपुराण- वायवीय संहिता – बालक सुतनु द्वारा मातृका का ज्ञान
तर्कों के अध्ययन से मन में केवल भ्रम हो सकता है। एक बार की बात है की मन में मातृका शक्ति यानी मंत्र के महत्व और इसके प्रभाव के प्रश्नों को लेकर ब्राह्मण यानी जानकार व्यक्ति की खोज के लिए नारद जी कलाप ग्राम पहुंचे। कहते हैं की कलाप ग्राम वह स्थान है, जहां सतयुग…
-
सचेतन 245: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आपके विमर्श-शक्ति से उत्पन्न शब्द आपकी ‘पराशक्ति’ है
“सर्वोच्च ऊर्जा” या “श्रेष्ठ शक्ति” का संचार आपकी परिकल्पनाओं से एक निश्चित प्रभाव एवं सामर्थ्य के साथ दूसरों तक पहुँचता है। मंत्र साधना में वर्ण का महत्व सर्वोपरि है और वर्ण साधना हेतु उसमें स्थित शक्ति के स्वरूप, महिमा एवं मण्डल का ध्यान आवश्यक है। वर्ण का ध्वनि या उच्चारण करने से इसका प्रभाव विशेष…
Got any book recommendations?