सचेतन 2.76: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हनुमानजी का प्रेम संदेश: सीता को आश्वासन
हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना
नमस्ते और स्वागत है आपका, प्रिय श्रोताओं, हमारे इस सचेतन के विचार के सत्र में “हनुमान् का प्रेम संदेश: सीता को आश्वासन”। आज हम एक दिलचस्प कहानी का संवाद करेंगे, जो हमें भक्ति और प्रेम के महत्वपूर्ण सन्देश से अवगत कराएगी।
हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, उसकी विश्वासपूर्ण भविष्यवाणी को पूरा करने का प्रयास था। उन्होंने सीता को मुद्रिका के साथ कहा, “महाभागे! मैं परम बुद्धिमान् भगवान् श्रीराम का दूत वानर हूँ।”
संवेदनशीलता भरे उत्साहपूर्ण भाव
सीता, उत्सुकता से होकर पूछती है, “श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे?” और हनुमान् उन्हें धैर्य दिलाते हुए कहते हैं, “आपका कल्याण हो। अब आप धैर्य धारण करें।”
आनंद और संतोष की विभिन्न अभिव्यक्ति
सीता, पति के हाथ में सुशोभित मुद्रिका को लेकर ध्यान से देखती हैं। उस समय, जब उन्हें मुद्रिका की दृश्यता होती है, तो वे इतनी प्रसन्न होती हैं, मानो स्वयं उनके पतिदेव ही उन्हें मिल गए हों॥
प्रसन्नता और ध्यान
इस विचार से हमें यह सिखने को मिलता है कि प्रेम और विश्वास की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण होती है। हनुमान जी की सीता के प्रति श्रद्धा और प्रेम ने सीता को सांत्वना और आश्वासन दिया।
हम श्रीहनुमानजी की प्रशंसा” कर रहे हैं जो वीर हनुमानजी की महानता को दर्शाती है।
जब माता सीता ने प्रियतम श्रीराम का संदेश पाया, तो उनके मन में हर्ष की लहर उठी। उनके मन को बड़ा संतोष हुआ, और वे महाकपि हनुमानजी का आदर करते हुए उनकी प्रशंसा करने लगीं।”वानरश्रेष्ठ! तुम बड़े पराक्रमी, शक्तिशाली और बुद्धिमान् हो; क्योंकि तुमने अकेले ही इस राक्षसपुरी को पददलित कर दिया है॥”
इस भविष्यवाणी ने माता सीता को अत्यधिक प्रसन्न किया और उन्होंने हनुमानजी को अत्यधिक प्रशंसा की।
हमने देखा कि कैसे माता सीता ने हनुमानजी की महानता की प्रशंसा की। यह हमें दिखाता है कि जब हम भक्ति और समर्पण के साथ किसी का सम्मान करते हैं, तो हमें अच्छे परिणाम मिलते हैं।
हम “श्रीरामचन्द्रजी की चिंताएं: एक अद्भुत विवाद” पर भी चर्चा करें- इस समय, एक विवाद शुरू हुआ है जो हम सबको सोचने पर मजबूर कर रहा है। यह विवाद श्री रामचन्द्रजी के सम्बंध में है, जो हमें उनके मन में उठने वाली विचारों के बारे में सोचने पर मजबूर करता है।
आँसूपूर्ण भावना की चर्चा है – क्या श्रीराम सकुशल होते हुए भी अपने मित्रों की चिंता करते हैं? क्या वे अपने शत्रुओं को संताप देते हैं या उनकी भलाई की इच्छा रखते हैं?
यह उत्साह और संशय की भी भावना है की यह सवाल हमें सोचने पर मजबूर करता है – क्या श्रीरामचन्द्रजी अपने मन में अनुदान या उदासीनता का सामना करते हैं? क्या वे स्वयं को एक संतप्त और घबराहटी पुरुष के रूप में प्रकट करते हैं?
हमारे प्रश्न और आशंकाएं दोनों हैं की यह सवाल हमें अद्भुत विचारों में डूबने पर मजबूर करता है – क्या श्रीरामचन्द्रजी के मन में कोई व्यथा या चिंता है? क्या उन्हें अपने मित्रों के प्रति किसी प्रकार की दीनता या उपकार करने की आवश्यकता है?
अगर आत्मविश्वास और संघर्ष दोनों दृष्टिकोण से देखें तो यह सवाल हमें श्रीरामचन्द्रजी के चरित्र की गहराई में खो जाने पर मजबूर करता है – क्या वे पुरुषोत्तम के नाम पर उन्नति के संघर्ष में हैं? क्या वे हमें एक नया दृष्टिकोण देने के लिए तैयार हैं?
यह प्रसंग उत्साह और निराशा दोनों का है यह सभी प्रश्न हमें श्रीरामचन्द्रजी के मन की गहराई में प्रवेश करने पर मजबूर करते हैं, और हमें उनके चरित्र के अद्भुत और अनन्त विवादों को समझने के लिए प्रेरित करते हैं।
धन्यवाद, प्रिय श्रोताओं, जो इस सफ़र में हमारे साथ थे। हम फिर मिलेंगे, जब हम अगली बार किसी रोचक विवाद पर चर्चा करेंगे। तब तक, आप अपनी चिंताओं और प्रश्नों को साझा करने के लिए तैयार रहें। धन्यवाद और शांति।