सचेतन 2.84: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हनुमान जी ने सीता माता को आश्वस्त करने का निश्चय किया।

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सचेतन में हम हनुमान जी की यात्रा और उनका सीता माता को आश्वासन देने का अद्भुत प्रसंग की अनुभूति कर रहे हैं।

समुद्र-तरण के विषय में शंकित हुई सीता जी को वानरों का पराक्रम बताकर हनुमान जी ने उन्हें कैसे आश्वस्त किया, यह सुनिए- 

सीताजी : “मणि देने के पश्चात् सीता हनुमान जी से बोलीं, ‘मेरे इस चिह्न को भगवान् श्रीरामचन्द्रजी भलीभाँति पहचानते हैं। इस मणि को देखकर वीर श्रीराम निश्चय ही तीन व्यक्तियों का—मेरी माता का, मेरा तथा महाराज दशरथ का एक साथ ही स्मरण करेंगे।

कहती हैं हे हनुमान! कपिश्रेष्ठ! तुम पुनः विशेष उत्साह से प्रेरित हो इस कार्य की सिद्धि के लिए जो भावी कर्तव्य हो, उसे सोचो। वानरशिरोमणे! इस कार्य को निभाने में तुम्ही प्रमाण हो—तुम पर ही सारा भार है। तुम इसके लिए कोई ऐसा उपाय सोचो, जो मेरे दुःख का निवारण करने वाला हो।

हनुमान जी ने सीता माता को आश्वस्त करने का निश्चय किया।

सीता माता कहती हैं हनुमान! तुम विशेष प्रयत्न करके मेरा दुःख दूर करने में सहायक बनो।’ तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर सीताजी की आज्ञा के अनुसार कार्य करने की प्रतिज्ञा करके वे भयंकर पराक्रमी पवनकुमार विदेहनन्दिनी के चरणों में मस्तक झुकाकर वहाँ से जाने को तैयार हुए।

“पवनपुत्र वानरवीर हनुमान को वहाँ से लौटने के लिए उद्यत जान मिथिलेशकुमारी का गला भर आया और वे अश्रुगद्गद वाणी में बोलीं— हनुमान! तुम श्रीराम और लक्ष्मण दोनों को एक साथ ही मेरा कुशल-समाचार बताना और उनका कुशल-मंगल पूछना। वानरश्रेष्ठ! फिर मंत्रियों सहित सुग्रीव तथा अन्य सब बड़े-बूढ़े वानरों से धर्मयुक्त कुशल-समाचार कहना और पूछना। महाबाहु श्रीरघुनाथजी जिस प्रकार इस दुःख के समुद्र से मेरा उद्धार करें, वैसा ही यत्न तुम्हें करना चाहिए।

सीता माता की ये भावुक वाणी और हनुमान जी का अटल निश्चय हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और दृढ़ निश्चय से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।

जहाँ हम महाकाव्य रामायण की कहानियों को आपके सामने सचेतन में जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं। 

सीता जी कहती हैं की हनुमान! यशस्वी रघुनाथ जी जिस प्रकार मेरे जीते जी यहाँ आकर मुझसे मिलें—मुझे सँभालें, वैसी ही बातें तुम उनसे कहो और ऐसा करके वाणी के द्वारा धर्माचरण का फल प्राप्त करो। यों तो दशरथनन्दन भगवान् श्रीराम सदा ही उत्साह से भरे रहते हैं, तथापि मेरी कही हुई बातें सुनकर मेरी प्राप्ति के लिये उनका पुरुषार्थ और भी बढ़ेगा। तुम्हारे मुख से मेरे संदेश से युक्त बातें सुनकर ही वीर रघुनाथजी पराक्रम करने में विधिवत् अपना मन लगायेंगे।

सीता की यह बात सुनकर पवनकुमार हनुमान् ने माथे पर अञ्जलि बाँधकर विनयपूर्वक उनकी बात का उत्तर दिया: देवि! जो युद्ध में सारे शत्रुओं को जीतकर आपके शोक का निवारण करेंगे, वे ककुत्स्थकुलभूषण भगवान् श्रीराम श्रेष्ठ वानरों और भालुओं के साथ शीघ्र ही यहाँ पधारेंगे। मैं मनुष्यों, असुरों अथवा देवताओं में भी किसी को ऐसा नहीं देखता, जो बाणों की वर्षा करते हुए भगवान् श्रीराम के सामने ठहर सके।भगवान् श्रीराम विशेषतः आपके लिये तो युद्ध में सूर्य, इन्द्र और सूर्यपुत्र यम का भी सामना कर सकते हैं।

वे समुद्रपर्यन्त सारी पृथ्वी को भी जीत लेने योग्य हैं। जनकनन्दिनि! आपके लिये युद्ध करते समय श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही विजय प्राप्त होगी।

हनुमान जी का कथन युक्तियुक्त, सत्य और सुन्दर था। उसे सुनकर जनकनन्दिनी ने उनका बड़ा आदर किया और वे उनसे फिर कुछ कहने को उद्यत हुईं।

आज की कहानी यहीं समाप्त होती है। इस अद्भुत प्रसंग के साथ हम विदा लेते हैं।अगले एपिसोड में हम सुनेंगे सीता और हनुमान के बीच के आगे के संवाद। धन्यवाद आपका हमारे साथ जुड़ने के लिए। तब तक के लिए, नमस्कार।

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