सचेतन :8. श्रीशिवपुराण- पुनरावलोकन – आपके आंतरिक विकास की प्रबल संभावनाए…
नवंबर 9, 2022- ShreeShivPuran
सचेतन :8. श्रीशिवपुराण- पुनरावलोकन – आपके आंतरिक विकास की प्रबल संभावनाएं हैं!
Sachetan: Shri Shiv Puran – You have strong potential for inner growth!
सचेतन में विचार अभिव्यक्ति के द्वारा हम सभी के अंदर आंतरिक विकास की प्रबल संभावनाएं बढ़ती है। हमलोग शिवपुराणकी उत्कृष्ट महिमा सुन रहे हैं । शिवपुराण में सम्पूर्ण सिद्धान्तों और उपायों के ज्ञान का भंडार है जिससे हमारा जीवन मंगलकारी तथा पवित्र हो सकता है।
मैं ने आपको कठोपनिषद से यमराज और नचिकेता के संबाद में कहा था की व्यक्ति अगर जिज्ञासु है तो किसी तरह के मार्ग या सिद्धान्तों और उपायों के ज्ञान का मिलना निश्चित है। जब आप नचिकेता की तरह होते हैं, तो आपका पूरा मकसद उस तीव्रता को पैदा करना होता है, वैसी प्रबल इच्छा होना चाहिए कि ईश्वर आपसे दूर न रह सके और दिव्यता आपको नजरअंदाज न कर पाए।
श्रीशिवपुराण का माहात्म्य आपकी तीव्रता को रूपांतरित कर सकती है। चाहे आप कर्म के पथ पर चलें या ज्ञान, क्रिया या भक्ति के पथ पर, आपकी तीव्रता ही आपको इन रास्तों पर आपको आगे बढ़ाती है, न कि खुद ये रास्ते। अगर तीव्रता न हो, तो कोई क्रिया कुछ नहीं कर सकती। जब तीव्रता इन क्रियाओं में आ जाती है, तो उनमें आपको एक अलग आयाम तक ले जाने की शक्ति होती है।
श्रीशिवपुराण का माहात्म्य आपके इन्द्रिय, अर्थ, मन, बुद्धि, आत्मा, अव्यक्त माया, और पुरुष इन सभी की तीव्रता को रूपांतरित कर सकती है। जैसे जैसे जीवन में शक्ति का रूपांतरण होगा वैसे वैसे ही आपका विकास संभव है।
हमलोग सचेतन में इन उपाय का विशेष रूप से वर्णन कर चुके हैं जिससे ज्ञान और वैराग्य और अनुष्ठान से शीघ्र ही अन्तःकरणकी विशेष शुद्धि हो सकती है।
वैराग्य या क़ुर्बानी (अरबी में उधिय्या) शब्द पर्यावाची है। क़ुर्बानी को हिब्रू में कॉर्बान या “भेंट” और सिरिएक क़ुरबाना “बलिदान”, कहते हैं जो से “एक तरह से या किसी के करीब पहुंचने के साधन” या “निकटता”। जो किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा अल्लाह की ख़ुशनूदी और इनाम की तलाश के लिए विशिष्ट दिनों में पेश किया जाता है। क़ुरबान शब्द कुरान में तीन बार दिखाई देता है: एक बार पशु बलि के संदर्भ में और दो बार किसी भी कार्य के सामान्य अर्थों में। दुनिया की चीज़ों को त्याग या बलिदान करके अल्लाह के करीब हुवा जा सकता है।
वैराग्य का अर्थ है, खिंचाव का अभाव।हम सभी जड़त्व के गुण से जकड़े हुए हैं। जड़त्व का अर्थ है – किसी वस्तु का वह गुण जो उसकी गति की अवस्था में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का विरोध करता है, जड़त्व कहलाता है। जड़त्व के कारण जीवन की गति की अवस्था में परिवर्तन संभव नहीं है।
जीवन में वैराग्य का आना कठिन है। जिससे आपके इन्द्रिय, अर्थ, मन, बुद्धि, आत्मा, अव्यक्त माया, और पुरुष तक पहुँचना कठिन है।
श्रीशिवपुराण से आप साधु पुरुष बन कर अपने काम-क्रोध आदि मानसिक विकारों का निवारण कर सकते हैं। आपका जड़त्व कम या ख़त्म हो सकता है।
श्रीशिवपुराण में जीव समुदाय को शुद्ध शक्ति (दैवी सम्पत्ति से युक्त) बनानेके लिये सर्वश्रेष्ठ उपाय हैं।
ऋषि श्रीशौनकजी के बहुत आग्रह पर महाज्ञानी सूतजी ने श्रीशिवपुराण की कथा सुनाया था। कहते हैं की शौनक जी एक महान वैदिक सप्तऋषि यानी तारामंडल के सात ऋषियों में 1.वशिष्ठ, 2.विश्वामित्र, 3.कण्व, 4.भारद्वाज, 5.अत्रि, 6.वामदेव 7.शौनक जी भी थे। पहली बार नैमिषारण्य में ऋषि श्री शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किये थे।
सूत जी कौन थे
यदि आपने हिन्दू धर्म के किसी भी धर्मग्रन्थ या व्रत कथाओं को पढ़ा है तो आपके सामने पौराणिक “सूत जी” का नाम अवश्य आया होगा। सूत जी का वास्तविक नाम “रोमहर्षण” था। उनका रोमहर्षण नाम इसीलिए पड़ा क्यूंकि उनका सत्संग पाकर श्रोताओं का रोम-रोम हर्ष से भर जाता था। जब महर्षि वेदव्यास ने महापुराणों की रचना की तो उनके मन में चिंता हुई कि इस ज्ञान को कैसे सहेजा जाये। जब सूत जी किशोरावस्था में पहुंचे तो एक योग्य गुरु की खोज करते हुए महर्षि वेदव्यास के पास पहुंचे।
वैदिक परंपरा में कुल अट्ठारह 18 पुराण हैं और उसमें से एक श्री शिव पुराण है। प्रारंभ में शिवमहापुराण की श्लोकों की संख्या एक लाख थी, और अब कुल 24672 श्लोक हैं। सात संहिताओं से युक्त इस दिव्य शिवपुराण में 13 विषय हैं और कुल 464 अध्याय हैं। यह एक विशाल ग्रंथ है।
सूतजी! ने देवराज की कथा सुनाया था और यह पता चला की जो मनुष्य पापी तथा काम क्रोध आदि से निरंतर डूबे रहने वाले हैं, वे भी इस पुराण के श्रवण पठान से अवश्य ही शुद्ध हो जाते हैं। श्री शिव पुराण की कथा सुन कर चंचुला पार्वती जी की सखी बन गई। चंचुला को अपने पति बिन्दुग की जानकारी भी प्राप्त हो हुई ।