सचेतन 123 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- आध्यात्मिक प्रक्रिया अस्तित्व की खोज का एक आंतरिक मार्ग है
अपने विचारों से दूर न भागें ।
मन को संतुलित करने के लिए हमको एक दृष्टिकोण बनाने की ज़रूरत होती है और हम स्वयं को ठीक करने का प्रयास करना शुरू करते हैं। अपने दृष्टिकोण बदलने की क्यों ज़रूरत है?
जब आप देखते हैं की आप अपने जीवन में पवित्र अनुष्ठान करना प्रारंभ कर देते हैं जिससे आपकी चेतना का शुद्धिकरण होता है तो समझ जायें की आपका दृष्टिकोण बदल रहा है और आप धर्म के मार्ग पर चल पड़े हैं। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। धर्म के धारण का अभ्यास और पालन करने से हमारे पास आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास, इच्छा शक्ति और ऊर्जा के विभिन्न स्तरों का आभास होने लगता है और आप अपने आपको सकारात्मकता के साथ प्रस्तुत करने लगते हैं। यही धर्म का अभ्यास मनुष्य को पूर्ण बनाता है।
हमारे साथ ऐसा अक्सर होता है कि हम काम कुछ कर रहे होते हैं और ध्यान कहीं और होता है। यह इसलिए होता है कि मन में किसी न किसी तरह के विचार हमेशा चलते रहते हैं। मन कभी शांत नहीं रहता है।
शिव की जटाओं को देखे तो जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक महसूस होता है। और आपका मन अंतरिक्ष के समान हलचल मई शिव की जटा के समान है।
अगर आप खुद को देखें तो आपका शरीर पांच तत्वों का बना हुआ है। ये हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश। ये आपस में एक खास तरीके से मिलकर भौतिक शरीर के रूप में प्रकट होते हैं।
जब हम आध्यात्मिक प्रक्रिया के बारे में बात कृति हैं तो यह, भौतिक प्रकृति और इन पंच तत्वों से परे जाने की प्रक्रिया है। इन तत्वों की उन सभी चीज़ों पर बहुत ही मज़बूत पकड़ है जिन्हें आप अनुभव करते हैं।लेकिन इनसे परे जाने के लिए आपको योग का एक बुनियादी अभ्यास करना पड़ता है।
आध्यात्मिक प्रक्रिया को हम एक आंतरिक मार्ग की तरह से देख सकते हैं जो एक व्यक्ति को उसके अस्तित्व के सार की खोज में सक्षम बनाता है; या फिर “गहनतम मूल्य और अर्थ जिसके साथ लोग जीना प्रारंभ कर देते हैं।
आध्यात्मिक व्यवहार, जिसमें ध्यान, प्रार्थना और चिंतन शामिल हैं, एक व्यक्ति के आतंरिक जीवन के विकास के लिए अभिप्रेरणा की ज़रूरत है। ऐसे व्यवहार अक्सर एक बृहद सत्य से जुड़ने की अनुभूति में जोड़ता है, जिससे अन्य व्यक्तियों या मानव समुदाय के साथ जुड़कर एक व्यापक स्व की उत्पत्ति होती है।
प्रकृति या ब्रह्मांड के साथ या दैवीय प्रभुता का अनुभव महसूस होने लगता है। आध्यात्म्य को जीवन में अक्सर प्रेरणा अथवा दिशानिर्देश के एक स्रोत के रूप में अनुभव किया जाता है। इसमें, सारहीन वास्तविकताओं में विश्वास या अंतस्थ के अनुभव या संसार की ज्ञानातीत प्रकृति शामिल हो सकती है।
दक्षिण भारत में पांच भव्य मंदिरों की रचना की गई थी। हर एक मंदिर में एक लिंग स्थापित किया गया था, जो पंचतत्वों में से एक तत्व को दर्शाता है। अगर आप “जल” तत्व के लिए साधना करना चाहते हैं तो आप तिरुवनईकवल जाएं। आकाश तत्व के लिए आप चिदंबरम जाएं, वायु तत्व के लिए कालाहस्ती, पृथ्वी तत्व के लिए कांचीपुरम और अग्नि तत्व की साधना करने के लिए आप थिरुवन्नामलई जा सकते हैं। ये मंदिर पूजा के लिए नहीं, साधना के लिए बनाए गए थे।
ऐसे ही आपको अगर किसी कर्म में धर्म में या ज्ञान में मन लगाना हो तो अपने विचारों से दूर न भागें । बल्कि मन को शांत करने का मतलब है कि हम अपने मन के विचारों से परेशान न हों और इसे एक मानसिक प्रक्रिया समझकर इस पर ज़्यादा ध्यान न दें।लेकिन योग साधना का प्रारंभ ज़रूर कर दें।