सचेतन 150 : श्री शिव पुराण- आपनी सत्त्विक शक्ति को पहचाने 

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सात्विक शक्ति से आपका स्वभाव अपने आप सकारात्मक हो जाएगा

आपके अंदर तीन प्रकार की शक्तियाँ मौजूद हैं-

सत्त्विक शक्ति- रचनात्मक क्रिया और सत्य का प्रतीक है। 

राजसी शक्ति- लक्ष्यहीन कर्म और जुनून पर केंद्रित है। 

तामासी शक्ति- विनाशकारी क्रिया और भ्रम का प्रतिनिधित्व करता है। 

सात्विक: सात्विक शक्ति के कारण लोग एक अच्छी याददाश्त के साथ बहुत तेज़ दिमाग के बन जाते हैं। सात्विक शक्ति सहजता, स्वच्छता, व्यवस्थित और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बना देता है। सात्विक शक्ति शांत, सभ्य और दूसरों का ध्यान रखने वाले और विनम्र और अच्छे शिष्टाचार के साथ सभी के लिए मददगार होने जैसा है। जब हम स्वयं को सुधारने की कोशिश प्रारंभ करते हैं तो आपका ध्यान काम पर ज़्यादा लगने लगता है, आप आत्म सुधार और बौद्धिक या आध्यात्मिक कार्यों पर विशेष समय लगाते हैं। 

सात्विक शक्ति से आपका स्वभाव अपने आप सकारात्मक हो जाएगा, आप ख़ुद बख़ुद उदार, दयालु, खुले, निष्पक्ष और माफ कर देने वाले स्वभाव के बन जाएँगे। अपनी खुशी-खुशी और हर वो चीज को बांटने लगेंगे जो कुछ भी आपके पास है और आप ऐसा करना पसंद करेंगे, और देने के बदले आप किसी चीज़ की उम्मीद नहीं करते। सात्विक लोग जीवन को एक अनुभव के तौर पर देखते हैं जिससे वो कुछ अच्छा सीख सकें, और वो पद का कभी घमंड नहीं करते, ना ही ईर्ष्या करते हैं।

सात्विक शक्ति  से उच्चारण किए गये शब्दों का एक शक्तिशाली पवित्र प्रभाव है यह आपके विचारधारा और शुद्ध सात्विक भाव से पूरे मानसिक जगत में फैल जाते हैं। पूरा मानसिक वातावरण उसी स्वर और विचार से आच्छादित हो उठता है। शरीर का अणु-अणु उसी शब्द से काँप उठता है, उसी के अनुसार नए सिरे से ढलने लगता है। 

प्रत्येक शब्द एक प्रकार का विचार बीज है। जो शब्द मन में एक बार जम जाता है, वही धीरे-धीरे अपने गुण रूपी अंकुरों को चारों ओर फैलाया करता है। ये जड़ें पुनः पुनः वही शब्द बोलने या व्यवहार में लाने से बढ़ पनप कर वृक्ष बन जाती हैं। पहले आदमी इन शब्दों (विशेष रूप से गालियों) का अर्थ नहीं समझता, पर धीरे-धीरे यह शब्द ही अच्छे या बुरे फल प्रकट करते हैं। 

जो व्यक्ति या असभ्य जातियाँ मुँह से कुशब्द, गालियाँ, क्रोध और घृणा सूचक कुशब्दों का उच्चारण किया करते हैं, उनके बच्चों के चरित्रों को नीचे गिराने में इन कुशब्दों का विशेष हाथ होता है। बच्चा तो कोमल दूध के समान निष्कपट स्वच्छ मन का होता है। वह जो अश्लील या गन्दे शब्द अपने माँ बाप, पास-पड़ोस या निकट वातावरण से सुनता है, वह उन्हें ही उचित समझ कर उन्हें ग्रहण कर लेता है। बड़ा होने पर इन्हीं शब्दों का गन्दा तात्पर्य समझ कर उधर की ओर ढुलक उठता है। इन्हीं शब्दों के अनुसार उनके जीवन ढलने लगते हैं और वे सदा के लिए पतन के मार्ग पर पड़ जाते हैं।

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