सचेतन 144 : श्री शिव पुराण- ईश्वरीय गुण 

शिवरूप सनातन है 

शिवजी कहते हैं ;– मैं सृष्टि, पालन और संहार का कर्ता हूं। मेरा स्वरूप सगुण और निर्गुण है! मैं ही सच्चिदानंद निर्विकार परमब्रह्म और परमात्मा हूं। 

ईश्वरीय गुण आने के बाद आप अपने कर्म व स्वभाव को जानना प्रारंभ कृति हैं जिससे आपका संबंध संसार के साथ और मज़बूत होता है। 

ईश्वर के गुणों की चर्चा करें तो ईश्वर जड़ पदार्थ न होकर वह एक सच्चिदानन्दस्वरूप गुणों वाली सत्ता है। इसका अर्थ यह है कि ईश्वर की सत्ता है, वह चेतन पदार्थ है तथा वह सदा सर्वदा सब दिन व काल में आनन्द में अवस्थित रहता है। उसे कदापि दुःख व अवसाद आदि नहीं होता जैसा कि जीवात्माओं व मनुष्यों को होता है। 

चेतन का अर्थ है कि ज्ञानयुक्त वा संवेदनशील सत्ता। 

सृष्टि के पालन और संहार का कर्ता का अर्थ सृष्टि की रचना, उसकी रक्षा और प्रलयरूप में भी अपने गुणों को नहीं छोड़ना से है जिसके कारण ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र नाम धारण कर तीन रूपों में विभक्त  करके शिव की पहचान है। 

मैं भक्तवत्सल हूं और भक्तों की प्रार्थना को सदैव पूरी करता हूं। मेरे इसी अंश से रुद्र की उत्पत्ति होगी। रुद्र दु:ख का निवारण करनेवाला; दुष्टों को दंड देनेवाला; रोगों का नाशकर्ता; महावीर; सभा का अध्यक्ष, जीव, परमेश्वर, प्राण, तथा राजवैद्य है।

विष्णु, ब्रह्मा और रुद्र तीनों एकरूप होंगे। इनमें भेद नहीं है। 

शिवरूप सनातन है तथा सभी का मूलभूत रूप है। यह सत्य ज्ञान एवं अनंत ब्रह्म है, ऐसा जानकर मेरे यथार्थ स्वरूप का दर्शन करना चाहिए। ‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।

मैं स्वयं ब्रह्माजी की भृकुटि से प्रकट होऊंगा। ब्रह्माजी आप सृष्टि के निर्माता बनो, श्रीहरि विष्णु इसका पालन करें तथा मेरे अंश से प्रकट होने वाले रुद्र प्रलय करने वाले हैं। 

एक अद्भुत सितारा (आत्मा) भृकुटि के बीच सदा चमकता है। व्यक्तित्व अभौतिक है, आप वास्तविक रूप में आत्मा हैं। आप शरीर नहीं है। ये शरीर आपका है पर आप शरीर नहीं हैं। जिस मानव का हार्ट ट्रान्सप्लांट किया जाता है उसका स्वभाव दान किये व्यक्ति जैसा नहीं बन जाता है। हार्ट प्राप्त किये हुए व्यक्ति का व्यक्तित्व ठीक वैसा ही रहता है जैसा कि पहले था। – भारतीय संस्कृति में भृकुटि के मध्य तिलक लगाना अथवा बौद्ध धर्म में तीसरी आँख का उल्लेख, आत्मा का ही प्रतीक हैं हालांकि इन नयनों से आत्मा दिखती नहीं है किन्तु इसकी आंतरिक शक्ति का आभास आप अभ्यास करके जागृत कर सकते हैं।  यही आत्मिक शक्ति हमें सदियों तक बढ़ते रहने में सहायक रहती है


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