सचेतन 240: शिवपुराण- वायवीय संहिता – सुस्थिर होना उत्तम तप है

| | 0 Comments

भगवान विष्णु क्षीरसागर के अथाह जल में ही क्यूँ गये?

आपका शून्य होना ही आपका प्राकृतिक गुण है क्योंकि इस गुण के रूप में शिव आपके साथ विराजमान हैं। 

कहते हैं की यह शिव प्रलय काल आने पर भी विराजमान रहते हैं। एक बार जब भयानक प्रलय मची थी उस समय श्रीहरि भगवान विष्णु क्षीरसागर में अथाह जल के बीच शेष शय्या में सो गए। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व या जगत का पालनहार कहा गया है।

हमारी पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा जल से ढका हुआ है और मनुष्य के शरीर का तीन चौथाई भाग पानी से बना हुआ है।हर बच्चा मां के गर्भ में जल में ही अवस्थित होता है।जब हमारे मन में शांति होती है तो हम सत्व गुण से परिपूर्ण और गंभीरता हो जाते हैं और ऐसी अवस्था हमको अथाह सागर यानी इस ब्रह्मांड के किसी भी कोने में हम विचरण कर सकते हैं।हम पूरी तरह से शांति और क्षमा के गुण से ओत-प्रोत होकर इस पृथ्वी पर जन्म लिए हैं। और यह शिव का गुण तो हमको व्यापक बना देता है। विष्णु का उदाहरण हमको सभी प्राणियों में भक्ति और श्रद्धा करना सिखाता है। 

जब भयानक प्रलय का समय का अर्थ है हमारे जीवन का अत्यंत उत्तल पुथल और जब जीवन में हाहाकार मची हो लगे की कुछ भी अब नहीं बचेगा तो हमको सबसे पहले सुस्थिर होना चाहिए और उत्तम तप करना चाहिए यानी जब हम मन मंथन करते हैं तो वही से समस्त कार्यों का साधन बनाना शुरू होता है।

लेकिन यह मन मंथन करने का ज्ञान शिव देते हैं यानी हमारी शून्यता का बोध होने पर ही मन मंथन शुरू हो सकता  है। जो कथा कही जाती है की भगवान शिव के आज्ञा से  भयानक प्रलय काल  में श्रीहरि भगवान विष्णु क्षीरसागर में अथाह जल के बीच शेष शय्या में सो गए। 

इस कथा में विष्णु क्षीरसागर में अथाह जल में ही क्यूँ गये इसका अर्थ है की जब आपके जीवन में संकट हो तो हमको बचाव, रक्षा और जीवन चाहिए जैसे हमारी पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा जल से ढका हुआ है यह जीवन का सूचक है।

भयानक प्रलय का समय यानी हमारे जीवन का अत्यंत उत्तल पुथल के समय आपका सुस्थिर होना और तप करना यानी शांति से मन मंथन करना आपको नया जीवन देगा। जैसे शिव पुराण में वर्णन है कि घनघोर तपस्या के प्रभाववश भगवान विष्णु के श्रीअंगों से अनेक प्रकार की जल धाराएं निकलने लगी। उस जल से सारा आकाश व्याप्त हो गया फिर भगवान विष्णु स्वयं उस जल में शयन करने लगें। जिस कारण वे नारायण कहे जाते हैं।

भगवान नारायण का अर्थ है जिसमें आयन हो यानी तत्व हो और उस तत्व से प्रकृति की रचना हो सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Sachetan Logo

Start your day with a mindfulness & focus boost!

Join Sachetan’s daily session for prayers, meditation, and positive thoughts. Find inner calm, improve focus, and cultivate positivity.
Daily at 10 AM via Zoom. ‍