सचेतन 106 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- कर्म-संग्रह
हम चार तरीके से कर्म करते हैं:-
- विचारों के माध्यम से
- शब्दों के माध्यम से
- क्रियाओं के माध्यम से जो हम स्वयं करते हैं।
- क्रियाओं के माध्यम से जो हमारे निर्देश पर दूसरे करते है।
“शरीर, वाणी और मन से की गयी क्रिया कर्म है।” मनस, वाचा, कार्मण तीन संस्कृत शब्द हैं। जिसका अर्थ आमतौर पर यह लगाया जाता है कि व्यक्ति को उस स्थिति को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए जहां उसके विचार, वाणी और कार्यों का आपसी संयोग हो।
‘करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसंग्रहः।’ ज्ञान (बोध, जानना, जानकारी), ज्ञेय (जो जाना जा सके) और परिज्ञाता (भली-भांति जाना हुआ) — इन तीनों से कर्म प्रेरणा होती है तथा करण, कर्म और कर्ता — इन तीनों से कर्मसंग्रह होता है।
क्रिया – देखना, सुनना, समझना, स्मरण करना, खाना, पीना आदि को ‘क्रिया’ कहते है। दूसरे शब्दों में ‘करने को’ ‘क्रिया’ कहते है। कर्ता – उपर्युक्त समस्त क्रियाओं को ‘करने वाले’ को ‘कर्ता’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में ‘कर्म करने वाले को’ ‘कर्ता’ कहते है। करण – जिन मन, बुद्धि और इन्द्रियों के द्वारा उपर्युक्त समस्त क्रियाएं की जाती है, उसको ‘करण’ कहते है। दूसरे शब्दों में जिन साधनों से कर्म किया जाये उसे ‘करण’ कहते है।
इन तीनों के संयोग से ही कर्म का संग्रह होता है। गीता के अनुसार “जब मनुष्य ‘मैं करता हूँ।’ ऐसा मानता है।” तो उसके किये गए क्रिया को कर्म कहेंगे। अतएव जब मनुष्य स्वयं कर्ता बनकर अपने मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा क्रिया करके किसी कर्म को करता है, तभी कर्म बनता है और फिर इसी कर्म का संग्रह होता है जिसे कर्म-संग्रह कहते है।
मनुष्य तो कर्म (क्रिया) करता है परन्तु साथी ही “मैं करता हूँ” इस भाव से जो कुछ करता है वो कर्म है। यह कर्म-संग्रह के प्रसंग में कर्म को तीन प्रकारों में विभाजित करते हैं –
संचित कर्म – संचित अर्थात संग्रहित, संग्रहित अर्थात स्टोर। वह कर्म जो स्टोर हो रहे हैं वह संचित कर्म कहे जाते हैं। बार बार एक ही कर्म या कार्य करने से वह कर्म या कार्य स्टोर हो जाता है।
प्रारब्ध कर्म का अर्थ ही है कि पूर्व जन्म अथवा पूर्वकाल में किए हुए अच्छे और बुरे कर्म जिसका वर्तमान में फल भोगा जा रहा हो।क्रियमाण कर्म का अर्थ है – ‘वह जो किया जा रहा है, अथवा वह जो हो रहा है। ‘ इस प्रकार ‘क्रियमाण कर्म’ का अर्थ है – ‘जो कर्म अभी हो रहा है, अथवा जो कर्म अभी किया जा रहा है। ‘ अतएव जो कर्म अभी वर्तमान समय में किए जा रहे हैं उनको “क्रियमाण कर्म” कहते हैं।