सचेतन 253: शिवपुराण- वायवीय संहिता – स्पर्श योग करने से जीवन में कोई तनाव या खिंचाव आपके ऊपर एक भी खरोंच नहीं डाल पाएगा

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जीवन की गुणवत्ता भीतरी स्थिति से निर्धारित होती है

स्पर्श योग का अर्थ है आनंदमय कोष को स्पर्श करना और स्पर्श योग करने के लिए सबसे पहले कारण शरीर, सूक्ष्म शरीर और स्थूल या भौतिक शरीर, तीनों शरीर को संरेखित करना चाहिए जब तक आप इन तीनों को एक सीध में नहीं करेंगे तब तक आप कभी इस अंतरतम को स्पर्श नहीं कर सकते। 
योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। योग में भौतिक का स्वयं के भीतर आध्यात्मिक के साथ मिलन है। स्पर्श योग इस मिलन का एक बड़ा माध्यम है। आपका भौतिक/स्थूल शरीर में अनुभव का साधन बनते हुए शरीर के बाहरी और आंतरिक इंद्रियों और क्रिया का उपयोग करते हुए आप अंतरतम तक पहुंच सकें यही स्पर्श योग है। अंतरतम का अर्थ है आनंदमय कोष या  करण-शरीर को स्पर्श करने के बाद, स्वभाव से ही आनंदित हो जाना।
अगर शरीर के तीन स्थूल या भौतिक आयाम सीध में नहीं हैं, तो आप कभी इस अंतरतम को स्पर्श नहीं कर सकते। योग इन तीनों को सीध में लाना है ताकि आप अंतरतम तक पहुंच सकें।आनंदित होना पूरी तरह स्वाभाविक हो जाता है। आप अपनी जिन्दगी के हर क्षण में उत्साहित और आनंदित हो सकते हैं। 
सबसे बढ़कर, स्पर्श योग में जब आप जीवन के अदैहिक आयाम को स्पर्श करते हैं, तभी आप आध्यात्मिक हो सकते हैं। यदि ये तीनों उपयुक्त सीध में हों, तो आपकी जीवन यात्रा पूरी तरह सहज हो जाती है और बिना किसी तनाव या खिंचाव के अपनी पूर्ण संभावना तक पहुंचती है। आप इस जीवन को इस तरह जी सकते हैं कि जीवन की प्रक्रिया आपके ऊपर एक भी खरोंच न डाल पाए। आप जिस रूप में चाहें, जीवन के साथ खेल सकते हैं लेकिन जीवन आपके ऊपर कोई खरोंच नहीं छोड़ सकती। हर मनुष्य इस तरह जीने में समर्थ है।
जब बाहरी हकीकतों की बात होती है, तो हममें से हर कोई अलग-अलग रूप में सक्षम है, लेकिन जब अंदरूनी सच्चाई की बात होती है, तो हम सब बराबर समर्थ हैं। लोग उसका लाभ इसलिए नहीं उठा पाते क्योंकि वे उस दिशा में कोशिश नहीं करते। वे कभी अंतर्मन की ओर ध्यान नहीं देते। वे हमेशा यह मानते हैं कि यदि हम बाहरी चीजों को ठीक कर लें, तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन दुनिया के संपन्नि वर्ग इस बात को साबित करते हैं कि बाहरी चीजों को ठीक करना जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है। आपको अपने लिए भी कुछ करने की जरूरत होती है। अपने अंतरतम को ठीक करने के बाद, बाहरी स्थितियां चाहे जो हों, आप एक पूर्ण जीवन जी सकते हैं। यदि आपका अंतर ठीक नहीं है, तो चाहे बाहरी स्तर पर हम कोई भी उपलब्धि हासिल कर लें, सब कुछ व्यर्थ हो जाता है। लोग बहुत मेहनत से कामयाबी हासिल करते हैं लेकिन फिर उन्हें कामयाबी को सहन करना पड़ता है। वे वहां तक पहुंचने के लिए कितनी मेहनत करते हैं, लेकिन एक बार वहां तक पहुंचने के बाद, वे उसका आनंद नहीं उठा पाते, वे उसे सहन करते हैं क्योंकि अंतर की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता।
यह समझने के लिए मनुष्य को एक खास जागरूकता की जरूरत होती है कि उसके जीवन का मूल तत्व, उसके जीवन की गुणवत्ता बाहरी चीजों से तय नहीं होती बल्कि उसके अंतरतम से निर्धारित होती है। इसका पूरी तरह गलत अर्थ निकाला गया है।
यह समझने के लिए मनुष्य को एक खास जागरूकता की जरूरत होती है कि उसके जीवन का मूल तत्व, उसके जीवन की गुणवत्ता बाहरी चीजों से तय नहीं होती बल्कि उसके अंतरतम से निर्धारित होती है।
लोगों ने यह मान लिया कि यदि आपको आध्यात्मिक राह पर चलना है, तो आपको सभी बाहरी चीजों का त्याग करना होगा। यह छोड़ने या न छोड़ने की बात नहीं है। चाहे आप आध्यात्मिक हों या नहीं, आप सांस लेते हैं, खाना खाते हैं और पानी पीते हैं। आप सिर्फ यही चुन सकते हैं कि आप अच्छा खाना खाते हैं या खराब खाना। इसलिए यह त्यागने या छोड़ने की बात नहीं है। यह अपने ध्यान को दूसरी तरफ ले जाना है, जहां आप देख सकें कि यदि आपने अपने अंतरतम को सही तरीके से नहीं संभाला, तो आपके जीवन की गुणवत्ता अच्छी नहीं हो सकती।
बिना भीतरी आनंद के सब व्यर्थ हो जाता है
आपके जीवन की गुणवत्ता इससे तय नहीं होती कि आप कैसे कपड़े पहनते हैं, कौन सी कार चलाते हैं या किस तरह के घर में रहते हैं। यह इससे तय होती है कि आप अंदर से कितने शांत और आनंदित हैं। यही मूल रूप से आपके जीवन की गुणवत्ता है। बाकी हर चीज वहां पहुंचने के लिए की जाती है। यदि ऐसा नहीं होता, तो बाकी सब कुछ व्यर्थ हो जाता है।

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