सचेतन 2.8: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अपने तेज, बल और पराक्रम के आवेश और प्राणों को हृदयमें रोककर कार्य की तैयारी करें।

| | 0 Comments

स्वातिक चिन्ह प्रायः साँप के फणों में दिखाई देनेवाली नीली रेखाओं को कहते हैं।

सबने हनुमान जी के विशाल दृश्य का अहसास किया उन्होंने जो संकल्प लिया और उन कार्य को करने के लिए अपने शारीरिक बल का आवाहन किया। 

कहते हैं की वो पर्वत के समान विशालकाय महान वेगशाली पवनपुत्र हनुमान्जी वरुणालय समुद्र को पार करना चाहते हैं। श्रीरामचन्द्रजी और वानरों के कार्य की सिद्धि के लिये दुष्कर कर्म करने की इच्छा रखनेवाले ये पवनकुमार समुद्र के दूसरे तटपर पहुँचना चाहते हैं, जहाँ जाना अत्यन्त कठिन है। 

हनुमान जी ने समुद्र को लांघने की इक्षा से अपने शरीर को बेहद बड़ा कर लिया और अपनी दोनों भुजाओं तथा चरणों से उस मैनाक पर्वत को दवाया। इस प्रकार पर्वतको दबाने के कारण उत्पन्न हुआ वह जीव-जन्तुओं का महान् कोलाहल पृथ्वी, उपवन और सम्पूर्ण दिशाओं में भर गया। कपिवर हनुमान जी के द्वारा दबाये जाने पर तुरंत ही वह पर्वत काँप उठा और दो घड़ी तक डगमगाता रहा। 

पूरे वातावरण में उन सर्प के फणों से विष की भयानक आग उगलते हुए स्वस्तिक चिह्न स्पष्ट दिखायी दे रहे थे। बड़े- बड़े सर्प उस पर्वत की शिलाओं को अपने दाँतों से डसने लगे। क्रोधसे भरे हुए उन विषैले साँपोंके काटनेपर से बड़ी-बड़ी शिलाएँ इस प्रकार जल उठीं, मानो उनमें आग लग गयी हो। उस समय उन सबके सहस्त्रों टुकड़े हो गये।स्वातिक चिन्ह प्रायः साँप के फणों में दिखाई देनेवाली नीली रेखाओं को कहते हैं। कहते हैं की उस पर्वतपर जो बहुत-सी ओषधियाँ उगी हुई थीं, वे विषको नष्ट करनेवाली होनेपर भी उन नागोंके विषको शान्त न कर सकीं ।

हनुमान्जी अब ऊपरकी ओर उछलना ही चाहते थे और उन्होंने क्रमशः गोलाकार मुड़ी तथा रोमावलियोंसे भरी हुई अपनी पूँछको उसी प्रकार आकाश में फेंका, जैसे पक्षिराज गरुड़ सर्पको फेंकते हैं। अत्यन्त वेगशाली हनुमान्जीके पीछे आकाशमें फैली हुई उनकी कुछ-कुछ मुड़ी हुई पूँछ गरुड़के द्वारा ले जाये जाते हुए महान् सर्पक समान दिखायी देती थी। 

उन्होंने अपनी विशाल परिघके समान भुजाओं को पर्वत पर जमाया। फिर ऊपर के सब अंगों को इस तरह सिकोड़ लिया कि वे कटि की सीमा में ही आ गये; साथ ही उन्होंने दोनों पैरों को भी समेट लिया।

तत्पश्चात् तेजस्वी और पराक्रमी हनुमान्जी ने अपनी दोनों भुजाओं और गर्दन को भी सिकोड़ लिया। इस समय उनमें तेज, बल और पराक्रम-सभी का आवेश हुआ। 

उन्होंने अपने लम्बे मार्गपर दृष्टि दौड़ाने के लिये नेत्रोंको ऊपर उठाया और आकाश की ओर देखते हुए प्राणों को हृदयमें रोका।

इस प्रकार ऊपर को छलाँग मारने की तैयारी करते हुए कपिश्रेष्ठ महाबली हनुमान्ने अपने पैरोंको अच्छी तरह जमाया और कानों को सिकोड़कर उन वानरशिरोमणिने अन्य वानरों से इस प्रकार कहा- ‘जैसे श्रीरामचन्द्रजीका छोड़ा हुआ बाण वायुवेगसे चलता है, उसी प्रकार मैं रावण- द्वारा पालित लंकापुरीमें जाऊँगा, ‘यदि लंकामें जनकनन्दिनी सीताको नहीं देखूँगा तो इसी वेगसे मैं स्वर्गलोक में चला जाऊँगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Sachetan Logo

Start your day with a mindfulness & focus boost!

Join Sachetan’s daily session for prayers, meditation, and positive thoughts. Find inner calm, improve focus, and cultivate positivity.
Daily at 10 AM via Zoom. ‍