सचेतन 120 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता-  पूर्ण संबंध और सर्व होने पर प्रेम होता है

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त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।

त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।।

संसार में लोगों के साथ का सम्बन्ध अनिश्‍चित हैं! एक छण (पल) का भरोसा नहीं। अगर वह आपके अनुकूल रहे, आपके स्वार्थ की सिद्धि करे, तभी सम्बन्ध बना रहेगा। 

यानि संसार में जब तक सम्बन्ध था, वह स्वार्थ के आधार पर ही था। तो ‘सम’ का अर्थ परिपूर्ण और पूर्ण। अतएव संसार का संबंध तो परिपूर्ण हो ही नहीं सकता है। क्योंकि यह स्वार्थ का संबंध है, और पूर्ण नहीं है क्योंकि छणिक (कुछ समय के लिए) है।

सर्व यानी समस्त, आदि से अंत तक, शुरू से आख़िर तक यह पहचान सृष्टीय या  वैश्विक या ब्रह्मांडीय यानी सर्वलोक जैसा समझना और ‘सम्बन्ध’ शब्द सिर्फ़ भगवान पर प्रयोग हो सकता है। भगवान से हमारा (जीवात्मा का) सम्बन्ध अनादि (जिसका प्रारंभ न हो), अनन्त, और सनातन या नित्य (सदा) है।

“भगवान हमारे माता-पिता, भाई सब कुछ है”। चाहे हम किसी भी तरह के हैं “तुम स्त्री, तुम कुमार और कुमारी और तुम बूढ़े हो कर लाठी लेके चलते हो फिर भी आप भगवान से यानी अपनी जीवात्मा के साथ सम्बन्ध बनाये रखें। 

“त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव” यहाँ त्वमेव का अर्थ है ‘तुम ही’, और ‘ही’ का अर्थ होता है ‘तुम्हारे सिवा कोई नहीं’

हम आत्मा हैं इसलिए आत्मा का परमात्मा के साथ संबंध नित्य (सदा) रहता हैं। “भगवान और आत्मा एक साथ एक ही स्थान पर रहते हैं।” 

अगर हम लोग कुत्ते बिल्ली गधे घोड़े बनेंगे तो भगवान भी साथ जायेंगे। आप लोग जानते हैं, एक तरफ ऐसे नास्तिक लोग जो भगवान को गाली देते हैं, और एक तरफ महापुरुष लोग तुलसीदास, मीरा, नानक, प्रह्लाद आदि लोग हैं। भगवान! इन दोनों को इसी पृथ्वी का पानी देते हैं। 

अगर भगवान और आत्म का सम्बन्ध नहीं होता, तो भगवान कहते तुम नास्तिक लोग जैसे पानी पीओगे उसी छण मर जाओगे। परन्तु भगवान ऐसा नहीं करते। क्योंकि उनका और हमारा सम्बन्ध है, इसलिए चाहे नास्तिक हो या आस्तिक दोनों को भगवान इसी पृथ्वी का पानी पिलाते हैं। 

हम लोग भगवान से आपने सम्बन्ध को भूले हुए हैं लेकिन भगवान सर्वज्ञ (सब जानने वाला) हैं। वो कभी भी अपना और जीवात्मा का संबंध नहीं भूलते।

संबंध और सर्व होने का धर्म प्रेम सिखाता हैं। 

हम सभी को यह पता है की कर्म आनंददायक है, भगवान काम द्वारा व्यक्त किया गया है । काम के विपरीत, प्रेम या उन्नत प्रेम से है। अध्यात्म या धर्म में प्रेम संस्कार है। यह उपदेश देता है कि व्यक्ति प्रेम में स्वार्थ को छोड़ देता है, बदले में कुछ भी अपेक्षा नहीं करता।”ईश्वर प्रेम है”। सिर्फ़ ईश्वर ही प्रेम है आप भक्ति का विकास करके महसूस कर सकते हैं।

साहिह मुस्लिम हदीस में, पैगंबर मुहम्मद ने कहा है: “जब तक आप विश्वास नहीं करते तब तक आप स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेंगे, और आप तब तक विश्वास नहीं करेंगे जब तक आप दूसरे मुस्लिम से प्यार नहीं करते हैं।” मुसलमानों को अल्लाह (‘भगवान’) द्वारा निर्देशित किया जाता है कि वे उसके करीब कैसे जाएं और उसका प्यार कैसे हासिल करें।

इस्लाम धर्म में कहा गया है की परमेश्वर उनसे प्रेम करता है जो: अच्छा करता है, शुद्ध और स्वच्छ हैं।धर्मी हैं। न्यायी हैं और ठीक से कार्य करते हैं। जो उस पर यकीन करता है। धैर्यवान हैं। उससे प्यार करो और पैगंबर का पालन करो।उसके कारण में लड़ो। 

कुरान यह भी कहता है कि परमेश्वर ने मूसा से प्रेम किया, और परमेश्वर स्वयं ऐसे लोगों को उत्पन्न करेगा जिन्हें वह प्रेम करेगा।

साहिह मुस्लिम हदीस में, पैगंबर मुहम्मद ने यह भी कहा है की अल्लाह उससे प्यार नहीं करता जो – मुअत्तदीन, जो सीमा या हद पार करते हैं।

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