सचेतन 232: शिवपुराण- वायवीय संहिता – मनःशक्ति के लिए प्राण को लय-तालयुक्त करें
श्वास-प्रश्वास की गति को लयबद्ध करना प्राणायाम है।
मनःशक्ति के अभिवर्धन के लिए प्राण-प्रक्रिया को लय-तालयुक्त रखना आवश्यक है। प्रसन्नता, उत्फुल्लता, सरसता और स्फूर्ति की प्राप्ति का यही उपाय है।
इसीलिए अगर आप मनःशक्ति के विकास के आकाँक्षी हैं तो लय-तालयुक्त श्वास-प्रक्रिया का अभ्यास अवश्य प्रारंभ कीजिए।
प्राणायाम की विशिष्टता भी उसके लय-तालबद्ध होने में ही है।
सोऽहम् साधना प्राण-प्रक्रिया की इसी लय-तालबद्धता का विकसित रूप है।
अनायास फूट पड़ने वाली गुनगुनाहट प्राणतत्व की इसी लय-ताल की हठात् अभिव्यक्ति है।
साधकों और उत्कर्ष शीला को इस लय-तालबद्ध श्वास-प्रश्वास का सचेत अभ्यास करना चाहिए। श्वास-प्रश्वास की स्वयं की सामान्य गति निश्चित कर ली जाय और प्रयास किया जाय कि अधिकाधिक समय इस गति में एकतानता, समस्वरता बनी रहे। आरम्भ यहीं से किया जाता है।
आगे इस अभ्यास को सूक्ष्म, उच्चस्तरीय, श्रद्धा सिक्त बनाया जाता है। जिसका सर्वोत्कृष्ट रूप है सोऽहम् की सहज-साधना। उस लक्ष्य की प्राप्ति तो बाद की बात है। किन्तु प्राणतत्व का अधिकाधिक लाभ लेना चाहने वालों को लय-तालयुक्त श्वास-प्रक्रिया का अभ्यास तो आरम्भ कर ही देना चाहिए।
योग-क्रियाओं के तहत प्राणायाम का अतिविशिष्ट महत्व है। श्वास-प्रश्वास , जीवन और प्राणायाम का मुख्य आधार है। प्राणायाम का तात्पर्य एक ऐसी क्रिया से है जिसके द्वारा प्राण का प्रसार विस्तार किया जाता है। उसे नियंत्रण में रखा जाता है।
योगदर्शन में महाऋषि पतंजलि ने कहा है कि सिद्धि होने पर श्वास-प्रश्वास की गति को लयबद्ध करना प्राणायाम है।
प्राणायाम करना केवल श्वाश का लेना और छोड़ना मात्र नहीं होता, वायु के साथ ही प्राण-शक्ति या जीवनी-शक्ति को भी ग्रहण करना होता है। प्राणायाम करने से शरीर की संपूर्ण नस नाड़ियां शुद्ध होती हैं। शरीर तेजस्वी और फुर्तीला बनता है। भूख बढ़ती है। रक्त शुद्ध होता है।
प्राणायाम करने से पहले कुछ सावधानियां भी हैं:
सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है, विश्वास,सत्यभावना, दृढ़ता।
प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए
शरीर एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए।
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।
प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
हर साँस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये।
यदि आँप्रेशन हुआ हो तो, छः महीने बाद ही प्राणायाम का धीरे धीरे अभ्यास करें।
हर साँस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जाप
ओम् का जाप का उपचारण करने से हमारे पूरे शरीर मे (सिर से ले कर पैर के अंगूठे तक ) एक वाइब्रेशन होती है जो हमारे अंदर की नगेस्टिव एनर्जी को बाहर निकल के मन और आत्मा को शुद्ध करती है।