सचेतन 229: शिवपुराण- वायवीय संहिता – प्राण से ही मानव शरीर में लय और ताल का संचारण हो रहा है।
प्राण से सम्वेदनाओं को समझने का अवसर मिलता है।
अगर आप सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को महसूस करके देखिए तो पायेंगे की हर वस्तु में पूरी तरह से सृष्टि का अस्तित्व उसकी गति एवं क्रिया निरन्तर स्फुरण रहती है यानी हलचल का अनुभाव प्रत्येक वस्तु में है।
छोटे से छोटे परमाणु से लेकर ग्रह, नक्षत्र, सूर्य सभी पिण्ड पदार्थ गतिशील हैं। प्रकृति में कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है। और जो आपको स्थिर दिखायी दे रहा है उस वस्तुओं के अन्तराल में भी प्रचण्ड गति हो रही है जिसकी गति आप ना ही देख पा रहे हैं और अनुभव भी नहीं हो रहा है। जैसे आप इस पृथ्वी के ले लीजिये अगर इसका एक अणु भी यदि गतिहीन हो जाय तो सारी व्यवस्था लड़खड़ा उठेगी। यह अनवरत स्फुरण से ही विश्व चल रहा है।
यह गतिमान क्रिया का चलना या कोई भी पदार्थ शक्ति के द्वारा ही संचालित होती है। अगर संचालन है तो परिवर्तन है और उसके आकर और नया रूप का परिवर्तन है। कोई भी वस्तु नित्य एवं स्थायी नहीं हैं।
इस स्थिति परिवर्तन में, क्रियाशीलता एवं गतिशीलता में सिर्फ़ एक चीज स्थायी है वही मूल तत्व भी है। जिसका नाम प्राण तत्व है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड और सृष्टि में हो रहे परिवर्तन हम सभी के प्राणतत्व की भिन्न-भिन्न अभिव्यक्ति मात्र से समझ सकते हैं।
आप अपने शरीर को ही लें तो पता चलता हैं कि इसमें भी परमाणु और कोशिकाएँ अनवरत स्फुरण कर रहे हैं। थोड़े ही दिनों में पूरा शरीर परिवर्तित हो जाता है। इन सभी प्रकार के स्फुरणों में एक ही प्राण तत्व की क्रमबद्ध ताल चल रहा है।
यह प्राण तत्व आपने आप में सर्वव्यापक है सभी छोटे पिण्डों से लेकर ब्रह्माण्ड में हर जगह कार्य कर रहा है। चाहे वह ग्रहों के सूर्य के चारों और घूमने की महत्ता है या समुद्र के उभरने, ज्वार के उठने, भाटा के बैठने का दृश्य है और तो और वह आपके हृदय की धड़कन ही क्यों ना है। हर पदार्थों के परमाणुओं की फड़कन क्रमबद्ध ताल के नियम से कार्य कर रहा है।
आप जल चक्र, नाइट्रोजन चक्र, ऑक्सीजन चक्र, कार्बन चक्र को सोचें तो सभी में गति और बदलाव है। जैसे सूर्य किरणों का निस्सारण, जलवृष्टि सभी इसी ताल के नियम के अंतर्गत आते हैं।
मानव शरीर में प्राणतत्व से ही ताल-नियम का संचारण हो रहा है। जैसे ग्रहों का सूर्य के चारों ओर घूमना उनकी ज़िम्मेवारी है वैसे ही मानव शरीर में प्राणतत्व के ताल-नियम से हमारी चेतना सजीवता, प्रफुल्लता, स्फूर्ति, सक्रियता जैसी शारीरिक विशेषताओं से हमको जागृत रखने के लिए उत्तरदायी हैं।
मनस्विता, तेजस्विता, चातुर्य, दक्षता, प्रतिभा जैसी मानसिक विभूतियाँ इसी प्राण को समुद्र की प्रचण्ड तरंगों की तरह हैं।
जब आप ध्यान में जब शरीर कि अभिव्यक्त महसूस करते हैं तो वहाँ आपको सहृदयता, करुणा, कर्तव्यनिष्ठा, संयमशीलता, तितीक्षा, श्रद्धा, सद्भावना, समस्वरता जैसी प्राण-सम्वेदनाओं को समझने का अवसर मिलता है।
प्राण और उसका लय-ताल युक्त श्वास प्रक्रिया सृष्टि की सौंदर्य प्रक्रिया है और यह आनन्द आपके भीतर पैदा करता है और यही प्रक्रिया को समझने से एक युग्म यानी योग आपके भीतर जागृत होता है।
हम सभी ध्यान और प्राणायाम तो करते हैं लेकिन किन्तु इन नियमों से अनभिज्ञ हैं जिसके कारण हम उसमें ना ही सौंदर्य को देख पाते हैं और ना हीं आनन्द महसूस कर पाते हैं।