सचेतन 2.59: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – राक्षसियों का सीताजी को समझाना

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जो स्त्री अपने से प्रेम नहीं करती, उसकी कामना करने वाले पुरुष के शरीर में केवल ताप ही होता है और अपने प्रति अनुराग रखने वाली स्त्री की कामना करने वाले को उत्तम प्रसन्नता प्राप्त होती है।

रावण ने विभिन्न राक्षसियों को अनुकूल-प्रतिकूल उपायों से, साम, दान और भेदनीति से तथा दण्ड का भी भय दिखाकर विदेहकुमारी सीता को वश में लाने की चेष्टा करने के लिए कहा। राक्षसियों को इस प्रकार बारम्बार आज्ञा देकर काम और क्रोध से व्याकुल हुआ राक्षसराज रावण जानकीजी की ओर देखकर गर्जना करने लगा। तदनन्तर राक्षसियों की स्वामिनी मन्दोदरी तथा धान्यमालिनी नाम वाली राक्षस-कन्या शीघ्र रावण के पास आयीं और उसका आलिंगन करके बोलीं- महाराज राक्षसराज! आप मेरे साथ क्रीडा कीजिये। इस कान्तिहीन और दीन-मानव-कन्या सीता से आपको क्या प्रयोजन है? महाराज! निश्चय ही देवश्रेष्ठ ब्रह्माजी ने इसके भाग्य में आपके बाहुबल से उपार्जित दिव्य एवं उत्तम भोग नहीं लिखे हैं।

प्राणनाथ! जो स्त्री अपने से प्रेम नहीं करती, उसकी कामना करने वाले पुरुष के शरीर में केवल ताप ही होता है और अपने प्रति अनुराग रखने वाली स्त्री की कामना करने वाले को उत्तम प्रसन्नता प्राप्त होती है।

प्रेम सबसे उत्कृष्ट गुण या अच्छी आदत, सबसे गहरे पारस्परिक स्नेह से लेकर सबसे सरल आनंद तक, मजबूत और सकारात्मक भावनात्मक और मानसिक स्थितियों की एक श्रृंखला को शामिल करता है। प्यार को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों माना जाता है, इसका गुण मानवीय दया , करुणा और स्नेह का प्रतिनिधित्व करता है – “दूसरे की भलाई के लिए निःस्वार्थ, वफादार और परोपकारी चिंता” – और इसका गुण घमंड , स्वार्थ के समान मानवीय नैतिक दोष का प्रतिनिधित्व करता है। , शोक-प्रचार , और अहंभाव , संभावित रूप से लोगों को एक प्रकार के उन्माद , जुनूनीपन , या सह-निर्भरता की ओर ले जाता है ।

 जब राक्षसी ने ऐसा कहा और उसे दूसरी ओर वह हटा ले गयी, तब मेघ के समान काला और बलवान् राक्षस रावण जोर-जोर से हँसता हुआ महल की ओर लौट पड़ा। 

अशोकवाटिका से प्रस्थित होकर पृथ्वी को कम्पितसी करते हुए दशग्रीव ने उद्दीप्त सूर्य के सदृश प्रकाशित होने वाले अपने भवन में प्रवेश किया।तदनन्तर देवता, गन्धर्व और नागों की कन्याएँ भी रावण को सब ओर से घेरकर उसके साथ ही उस उत्तम राजभवन में चली गयीं। इस प्रकार अपने धर्म में तत्पर, स्थिरचित्त और भय से काँपती हुई मिथिलेशकुमारी सीता को धमकाकर काममोहित रावण अपने ही महल में चला गया। 

शत्रुओं को रुलाने वाला राजा रावण सीताजी से पूर्वोक्त बातें कहकर तथा सब राक्षसियों को उन्हें वश में लाने के लिये आदेश दे वहाँ से निकल गया।अशोकवाटिका से निकलकर जब राक्षसराज रावण अन्तःपुर को चला गया, तब वहाँ जो भयानक रूप वाली राक्षसियाँ थीं, वे सब चारों ओर से दौड़ी हुई सीता के पास आयीं।विदेहकुमारी सीता के समीप आकर क्रोध से व्याकुल हुई उन राक्षसियों ने अत्यन्त कठोर वाणी द्वारा उनसे इस प्रकार कहना आरम्भ किया- सीते! तुम पुलस्त्यजी के कुल में उत्पन्न हुए सर्वश्रेष्ठ दशग्रीव महामना रावण की भार्या बनना भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं समझती? 

तत्पश्चात् एकजटा नाम वाली राक्षसी ने क्रोध से लाल आँखें करके कृशोदरी सीता को पुकारकर कहा –विदेहकुमारी! पुलस्त्यजी छ: *प्रजापतियों में चौथे हैं और ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं। इस रूप में उनकी सर्वत्र ख्याति है।
* मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु–ये छः प्रजापति हैं। 

पुलस्त्यजी के मानस पुत्र तेजस्वी महर्षि विश्रवा हैं। वे भी प्रजापति के समान ही प्रकाशित होते हैं।विशाललोचने! ये शत्रुओं के रुलाने वाले महाराज रावण उन्हीं के पुत्र हैं और समस्त राक्षसों के राजा हैं। तुम्हें इनकी भार्या हो जाना चाहिये। सर्वांगसुन्दरी! मेरी इस कही हुई बातका तुम अनुमोदन क्यों नहीं करती? 

इसके बाद बिल्ली के समान भूरे आँखों वाली हरिजटा नाम की राक्षसी ने क्रोध से आँखें फाड़कर कहना आरम्भ किया—’अरी! जिन्होंने तैंतीसों* देवताओं तथा देवराज इन्द्र को भी परास्त कर दिया है, उन राक्षसराज रावण की रानी तो तुम्हें अवश्य बन जाना चाहिये।
* बारह आदित्य, ग्यारह रुद्र, आठ वसु और दो अश्विनीकुमार—ये तैंतीस देवता हैं।

उन्हें अपने पराक्रम पर गर्व है। वे युद्ध से पीछे न हटने वाले शूरवीर हैं। ऐसे बल-पराक्रमसम्पन्न पुरुष की भार्या बनना तुम क्यों नहीं चाहती हो? महाबली राजा रावण अपनी अधिक प्रिय और सम्मानित भार्या मन्दोदरी को भी, जो सबकी स्वामिनी हैं, छोड़कर तुम्हारे पास पधारेंगे। तुम्हारा कितना महान् सौभाग्य है। वे सहस्रों रमणियों से भरे हुए और अनेक प्रकार के रत्नों से सुशोभित उस अन्तःपुर को छोड़कर तुम्हारे पास पधारेंगे (अतः तुम्हें उनकी प्रार्थना मान लेनी चाहिये)।

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