सचेतन 245: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आपके विमर्श-शक्ति से उत्पन्न शब्द आपकी ‘पराशक्ति’ है

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“सर्वोच्च ऊर्जा” या “श्रेष्ठ शक्ति” का संचार आपकी परिकल्पनाओं से एक निश्चित प्रभाव एवं सामर्थ्य के साथ दूसरों तक पहुँचता है।

मंत्र साधना में वर्ण का महत्व सर्वोपरि है और वर्ण साधना हेतु उसमें स्थित शक्ति के स्वरूप, महिमा एवं मण्डल का ध्यान आवश्यक है। वर्ण का ध्वनि या उच्चारण करने से इसका प्रभाव विशेष रूप से आपको और आपसे जुड़े कर्म को प्रभावित करता है। यह मूल रूप से आपके  विमर्श-शक्ति यानी चिंतन से उत्पन्न शब्द और ज्ञान है  जिसको आपकी ‘पराशक्ति’ कहते हैं। पराशक्ति यानी भगवान शिव के पहलुओं में से एक है। इसका अर्थ है की “सर्वोच्च ऊर्जा” या “श्रेष्ठ शक्ति” का संचार और उसकी परिकल्पनाओं के एक निश्चित प्रभाव एवं सामर्थ्य को एक से दूसरे तक पहुँचता है।

वर्णमाला के ‘अ’ से लेकर ‘क्ष’ तक बावन अक्षरों के मातृका वर्णों से बना कोई भी मन्त्र पराशक्ति सर्वव्यापी, शुद्ध चेतना, सर्वोच्च शक्ति है और समस्त वस्तुओं का मूल पदार्थ है जिसको हम मंत्र कहते हैं। उदाहरण के लिए वर्णमाला से महान आध्यात्मिक शक्ति और संपन्न ध्वनियां बनती है जैसे- 

अ से मृत्यु 

आ से आकर्षण

इ से पुष्टि 

ई से आकषंण यानी माया मोह के कारण जीवात्मा सासारिक आकषंण मे लिप्त रहती हैं।

उ से बलदायक 

ऊ से –उच्चाटन यानी किसी चीज से निवारण या नियंत्रण हेतु किया प्रयास 

ऋ से स्तंभन यानी रुकावट, अवरोध

ऋ से मोहन यानी मोह लेनेवाला, मोहित करनेवाला

ए से वशीकरण

ऐ से पुरुष वशीकरण 

ओ से लोक वशीकरण

औ से राज वशीकरण

अं से पशु वश्य 

अः से मृत्युनाशक 

वर्ण और उसके स्वरूप में निहित शक्ति स्वरूप को समझना आवश्यक है। 

क – नवकुंकुंमवर्ण, शूलवज्ञधा री, गजवाहन 

ख – वर्णं, पाशतोम रहस्त-मेषवाहन 

ग – अरुण वर्ण, पाशअंकुश धारिणी, सपंवाहन 

घ – कृष्ण वर्ण, गदाधारिणी, उष्ट्रवाहन 

डः – कृष्ण वर्ण, काकवाहन 

च – श्वेतवर्ण, कपर्दिका भूषणादि मंडित 

छ – श्वेतवर्ण, चतुर्भुज

ज-झ – श्वेतवर्ण, चतुर्बाहु 

ञ – कृष्ण वर्ण, द्विभुज, काकवाहन 

ट – द्विभुज, क्रौंचवाहन 

ठ – उज्ज्वल वर्ण, द्विर्भुज, गजेन्द्र वाहन 

ड – अष्टबाहु, श्वेत कमलासन 

ढ – ज्वलत्‌ कान्तिवर्ण, दशबाहु, अजवाहन 

ण – व्याप्रवाहन, विस्तृत देह 

त – कुंकुम वर्ण, चतुर्बाहु, स्वलंकृत 

थ – पीतवर्ण, चतुर्बाहु, वृषारुढ़ 

द – षडभुज, महिषवाहन 

ध – चतुर्बाहु, सिहवाहन 

न – द्विभुज, काकवाहन 

प – विशभुज , वकवाहन 

फ – दयभूज, श्वेतवर्ण, सिहवाहंन 

ब – अरुणवर्ण, द्विभुज, हंसवाहन 

भ – त्रिहस्त, त्रिमुख, व्याप्रवाहन 

म – चतुर्भुज, विषयुक्तसवंत 

य- धूम्रवर्ण , चतुर्मुख, मृगवाहन 

र- चतुर्भुज, मेषवाहन 

ल- केश रवर्ण, चतुर्भुज, गज वाहन 

व- श्वेतवाहन, द्विवाहन, नक्रवाहन 

श- हेमवर्ण, कमलासन, द्विवर्ण 

स श्वेतवर्ण, द्विभुज, हंसवाहन 

ष- कृष्णवर्ण, द्विभुज

ह- श्वेतवर्ण, त्रिबाहु 

क्ष- दशबाहु, मणिप्रभावसदृश 

मंत्र साधना में वर्ण का महत्व सर्वोपरि है और वर्ण साधना हेतु अगर आप इसका जप करते हैं तो वह प्रभावशील हो जाता है। जप के विचार में कहा जाता है की आप  वाचिक जप कर सकते हैं यानी जप करते समय मन्त्र यदि दूसरा पुरुष सुन सके तो वह वाचिक जप कहलाता है ।

उपांशु जप करना यानी जप करते समय मन्त्र यदि अ

पने आपको ही सुनाई दे तो वह उपांशु जप कहा जाता है ।

मानसिक जप यानी जप करते समय यदि जीभ व होंठ न हिलें तथा मन ही मन ध्यान करते हुए यदि जप किया जाय, तो वह मानसिक जप कहलाता है |

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