सचेतन 153 : श्री शिव पुराण- ‘मनोयोग’ से मन की शक्ति को श्रेष्ठ बना सकते हैं
आत्म संयम करें, इससे बिखरा हुआ मानसिक संस्थान जागेगा।
यह ठीक है कि आज अपनी दशा अच्छी नहीं, कोई विशेष गुण भी दिखाई नहीं देता फिर भी निराशा का कोई कारण नहीं। एक शक्ति अभी भी अपने पास है और वह अन्त तक पास रहेगी। वह है मन। मन की शक्ति को सम्पादन करने का तरीका जानने का प्रयत्न करें। छोटे-छोटे कामों में मनोयोग का प्रयोग किया करें। एक दिन मनोबल इतना बढ़ जायेगा जब ऊँचा से भी ऊँचा कार्य करने में भी हिचक नहीं होगी। और उत्साह पूर्वक, दृढ़तापूर्वक सफलता की मंजिलें पार करते हुये आगे बढ़ सकें। श्रेष्ठतायें अन्दर छिपी पड़ी हैं उनका समर्थन और अभिवर्धन करें, दूसरों की ओर देखें वे किस तरह आगे बढ़े हैं। दूसरों से उदाहरण लें कि उन्होंने कैसे सफलतायें पाई हैं। बिना हाथ पाँव डुलाये किसी के भाग्य देवता ने साथ नहीं दिया। चुप चाप बैठे रहेंगे तो उन्नति का अवसर पास से गुजर कर चला जायगा, आपको केवल हाथ मसलकर रह जाना पड़ेगा।
आत्म संयम करें, इससे बिखरा हुआ मानसिक संस्थान जागेगा। आत्मसंयम का सहज और सरल अर्थ है अपने आप पर, अपने मन पर नियंत्रण। इसका शाब्दिक अर्थ जितना सरल प्रतीत होता है वास्तविक जीवन में इस को प्रयोग में लाना और इस को आत्मसात करना उतना ही कठिन है।
निश्चेष्ट (बेखबर, संज्ञाहीन) मनुष्य इसलिये होता है कि उस की शक्तियाँ इधर उधर बिखरी हुई होती हैं। मामूली सी शक्ति से कोई काम भी नहीं बनता। बिखरती हुई सूर्य की किरणें सारे-शरीर पर असंख्य मात्रा में गिरती हैं तो भी उससे कुछ विशेष हलचल उत्पन्न नहीं होती पर यदि एक-डेढ़ इञ्च जगह की किरणों को आतिशी शीशे से एक जगह पर एकत्रित कर दिया जाय तो इससे दावानल का रूप धारण कर लेगा। एकता की क्षमता से सम्पन्न आग पैदा हो जायेगी। हम अपनी शक्तियों को इधर उधर के बेकार के कार्यों में खर्च करते रहते हैं जिससे जीवन में कोई विशेषता नहीं बन पाती। आत्म संशय से बिखरी हुई शक्ति एक स्थान पर एकत्रित होकर अभिष्ट परिणाम के लिये उपयुक्त वातावरण तैयार करती है। मन की सूक्ष्म शक्तियों का जागरण आत्म-संयम से होता है।
भौतिकी में, शक्ति या विद्युत-शक्ति या पावर, वह दर है जिस पर कोई कार्य किया जाता है या ऊर्जा संचारित होती है, या एक नियत समय में कितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है या उर्जा व्यय होती है। ऊर्जा वस्तुओं का एक गुण है, जो अन्य वस्तुओं को स्थानांतरित किया जा सकता है या विभिन्न रूपों में रूपान्तरित किया जा सकता है लेकिन इसका क्षय नहीं होता है।
ऊर्जा वस्तु नहीं है। इसको हम देख नहीं सकते, यह कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया ही पड़ती है। संक्षेप में, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुधा द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है। फिर भी इसका अस्तित्व उतना ही वास्तविक है जितना किसी अन्य वस्तु का और इस कारण कि किसी पिंड समुदाय में, जिसके ऊपर किसी बाहरी बल का प्रभाव नहीं रहता, इसकी मात्रा में कमी बेशी नहीं होती।
आपके अंदर की शक्ति स्त्री शक्ति के रूप में और परम सत्य के रूप में है और वह ‘निर्गुण’ (बिना आकार के) के रूप में ब्रह्मांड का परम स्रोत है और साथ ही सभी का शाश्वत अंत है। उन्हें शक्तिशाली रचियता और दयालु सर्वव्यापी के रूप में पूजा जाता है।
हिंदुओं का मानना है कि देवी दुर्गा इस ब्रह्मांड की निर्माता है और उन्हें ‘जगतजन-नी’ कहते हैं। इस दिव्य देवी को प्रबुद्ध ज्ञान है जिसके पास समस्याओं से परेशान सभी साहसी देवता मदद के लिए आते हैं और उनकी कृपा पर निर्भर होते हैं क्योंकि उन्हें ब्रह्मांड का संरक्षक माना जाता है। वह अष्टंगी हैं (आठ भुजाएं हैं, प्रत्येक में विभिन्न हथियार पकड़े रखती हैं)।देवी दुर्गा परम शक्ति होने के नाते बुराई/राक्षसों का नाश करती है, मानव जाति की रक्षा करती है और अच्छाई को विकसित करती है।
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