सचेतन 2.3: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अंतरात्मा में राम की भक्ति ही हनुमान का रूप है

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राम का इतिहास सनातन और अप्रमेय है जिसके प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है यह हर काल में मौजूद था और रहेगा।

रामभक्त हनुमान जी, माया से मनुष्य रूप में दीखने वाले और  राम कहलाने वाले जगदीश्वर को शांत, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परम् शांति देने वाले महसूस करते हुए, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरन्तर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य समझते हुए, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, जो रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि जैसे बड़े और व्यापक रूप की वंदना करते हुए लंका में त्रिकूटांचल पर्वत शृंखला के सुंदर पर्वत के क्षेत्र की ओर प्रस्थान करते हैं और आगे सुंदरकाण्ड की रचना होती है। 

राम एक जगदीश्वर का प्रतीक है जो सनातन है यानी इस रूप में ईश्वर का वर्णन का इतिहास अप्रमेय है जिसके प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है यह पहले भी था और आज भी है और हमेंशा रहेगा। 

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥

रामभक्त हनुमान जी एक महाशक्ति और असंभव को संभव बनाने वाले कृति के रूप में हैं। इनकी महिमा इनके स्वयं रूप से नहीं है क्योंकि हनुमान जी को भी जब अहसास दिलाया जाता था की आपके पास बल है तभी वे असंभव को संभव कर पाते  थे। सुंदरकाण्ड की रचना में भी यही बखान है।हनुमान जी भी ख़ुद कहते हैं की हे रघुनाथ जी ! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप ही हमारे और सबके अंतरात्मा में हैं आप सब जानते हैं, कि मेरे ह्रदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिये और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिये। यह शक्ति के एहसास का श्रेय भी शांति देने वाले जगदीश्वर के पास है जब तक आप पहले अपनी अंतरात्मा में भक्ति नहीं लेंगे तब तक आपका असंभव कार्य को संभव नहीं कर पायेंगे। 

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं। दनुजवनकृशानु ज्ञानिनामग्रगण्यम ।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।

अगर आपकी अंतरात्मा में भक्ति राम की है तो आप हनुमान जी की तरह ही कार्य कर सकते है और यह अतुलित बलधामं यानी ऐसा बल जिसकी कोई तुलना नही करे, वो बल जो द्रौण गिरी को हिमालय से लंका 3 घंटे में हवा में उड़ा कर ले आये। ऐसा बल जो पंचमुखी रूप धारण कर राम और लक्ष्मण के प्राणों पर आये संकट को दूर कर दे।  

हेमशैलाभदेहं – जिनका शरीर स्वर्णिम पर्वत के समान महा विशाल है | उनका रूप देखने वाले को हनुमान जी का शरीर एक सोने के पहाड़ सा लगे। 

दनुजवनकृशानुं – रावण की सेना में राक्षसों , दैत्यों के वन को आपने अग्नि बनकर स्वाहा कर दिया। यह प्रसंग हमने सुन्दरकाण्ड में देखा था कि कैसे एक वानर ने पूरी लंका में खलबली मचा दी थी।  

ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌ – ज्ञानियों में आप अग्रगण्य है क्योकि आपको सबसे बड़े परमार्थ सुख “राम ” की ही लालसा रही है। इसी कारण हनुमान जी अजर अमर हैं जो अपने बुद्धि बल से कई बार राम लक्ष्मण पर आये संकट हर लिए। सुरसा को आपने जिस बुद्धि कर्म से परास्त किया वो आपके महाज्ञानी होने का घोतक है . 

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं – सम्पूर्ण गुण आप में समाये हुए है और आप वानरों के स्वामी है। 

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि -श्री राम के प्रिय अर्थात रामेष्ट  और  वायु पुत्र हनुमान जी आपको और आपकी भक्ति को बारम्बार प्रणाम है।

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