सचेतन 2.94 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावणपुत्र अक्षकुमार का पराक्रम और वध

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“धर्म युद्ध की गाथा: हनुमानजी का पराक्रम”

नमस्कार श्रोताओं! स्वागत है आपका हमारे इस सचेतन के विचार के सत्र “धर्मयुद्ध की कहानियाँ” में। आज की हमारी कहानी है ‘रावणपुत्र अक्षकुमार का पराक्रम और वध’। यह कहानी महात्मा हनुमान जी और रावण के वीर पुत्र अक्षकुमार के अद्वितीय संघर्ष की है। आइए, सुनते हैं यह रोमांचक कथा।

जब हनुमान जी ने रावण के पाँच सेनापतियों को सेवकों और वाहनों सहित मार डाला, तो रावण को अत्यंत क्रोध आया। उसने अपने सामने बैठे हुए पुत्र अक्षकुमार की ओर देखा, जो युद्ध के लिए उद्धत और उत्साहित था। पिता के दृष्टिपात मात्र से प्रेरित होकर, वह वीर युद्ध के लिए तैयार हुआ।

अक्षकुमार का धनुष स्वर्ण जटित होने के कारण विचित्र शोभा धारण कर रहा था। जैसे श्रेष्ठ ब्राह्मणों द्वारा यज्ञशाला में आहुति देने पर अग्निदेव प्रज्वलित होते हैं, उसी प्रकार वह भी सभा में उठकर खड़ा हो गया। महापराक्रमी राक्षस शिरोमणि अक्षय  प्रातःकालीन सूर्य के समान कान्तिमान् था और तपाये हुए सुवर्ण के जाल से आच्छादित रथ पर आरूढ़ हो हनुमान जी के पास चल दिया।

रथ के पहियों की गड़गड़ाहट शुरू हो गई- 

वह रथ बड़ी भारी तपस्याओं के संग्रह से प्राप्त हुआ था। उसमें तपे हुए जाम्बूनद सुवर्ण की जाली जड़ी हुई थी। पताका फहरा रही थी और ध्वजदण्ड रत्नों से विभूषित था। उसमें मन के समान वेगवाले आठ घोड़े अच्छी तरह जुते हुए थे। देवता और असुर कोई भी उस रथ को नष्ट नहीं कर सकते थे। उसकी गति कहीं रुकती नहीं थी। वह बिजली के समान प्रकाशित होता और आकाश में भी चलता था। उस रथ को सभी सामग्रियों से सुसज्जित किया गया था। उसमें तरकस रखे गये थे, आठ तलवारें बँधी हुई थीं और अन्य अस्त्र-शस्त्र भी क्रम से रखे गये थे।

अक्षकुमार अपने आवाज में बोलते हैं – “यह रथ मेरे पराक्रम को दर्शाता है। अब मैं इस महाकपि हनुमान को उसकी शक्ति का अहसास कराऊंगा।”

सेना की आवाजें चारों ओर थी – अक्षकुमार अपने तेजस्वी रथ पर बैठकर बड़ी भारी सेना के साथ वाटिका के द्वार पर बैठे हुए शक्तिशाली वीर वानर हनुमान जी के पास जा पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने हनुमान जी को गर्व भरा दृष्टि से देखा। उसने हनुमान जी के वेग और पराक्रम का विचार करके युद्ध का निश्चय किया।

महाबली अक्षकुमार ने अपने रथ से उतरकर हनुमान जी पर आक्रमण किया। दोनों वीरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। 

यह कहानी महावीर हनुमान जी और रावण के पुत्र अक्षकुमार के बीच हुए अद्वितीय संग्राम की है। यह एक अद्वितीय संग्राम था, जिसने देवताओं और असुरों के मन में भी घबराहट पैदा कर दी।

अक्षकुमार ज़ोर से अपनी आवाज में कहते हैं की- “हे वानर! मैं अक्षकुमार, रावण का पुत्र, आज तुझे पराजित करने आया हूँ।”

अक्षकुमार ने अपने विषधर बाणों से हनुमान जी पर प्रहार किया। तीन भयंकर बाण हनुमान जी के मस्तक पर लगे और खून की धारा बहने लगी। हनुमान जी क्रोध और उत्साह से भर गए और अपने शरीर को बढ़ाने लगे।

हनुमान जी की गर्जना शुरू हो गई – हनुमान जी अपने आवाज में कहा – “तूने मुझे घायल किया, अब तुझे मेरे प्रचंड पराक्रम का अनुभव होगा।”

चारों ओर तूफान की आवाजें, पहाड़ों की गड़गड़ाहट हो रही थी 

हनुमान जी ने अपनी भयंकर गर्जना से अक्षकुमार को चुनौती दी। अक्षकुमार ने अपने बाणों की वर्षा से हनुमान जी को घेर लिया। परंतु, हनुमान जी ने अपने अद्भुत कौशल से उन बाणों को व्यर्थ कर दिया।

हनुमान जी ने सोचा की यह राक्षसकुमार पराक्रमी है, परंतु इसे पराजित करना ही उचित है।” हनुमान जी ने अक्षकुमार के रथ को अपने थप्पड़ों की मार से नष्ट कर दिया और उसके घोड़ों को यमलोक पहुँचा दिया। अक्षकुमार ने आकाश में उड़ते हुए हनुमान जी पर बाणों की वर्षा की, लेकिन हनुमान जी ने उसे धराशायी कर दिया।

हनुमान जी की गर्जना, रथ के टूटने की आवाजें अब पूरी लंका में फैल चुकी थी। 

हनुमान जी ने अक्षकुमार को उसके पैरों से पकड़कर आकाश में घुमाया और बड़े वेग से उसे युद्धभूमि में पटक दिया। उसकी भुजाएँ, जाँघ, कमर और छाती के टुकड़े-टुकड़े हो गए। खून की धारा बहने लगी, हड्डियाँ चूर-चूर हो गईं और अक्षकुमार ने प्राण त्याग दिए।

हनुमान जी अब कहते हैं की  “रावण! तेरा पुत्र भी पराजित हो गया। अब कोई नहीं जो मुझे रोक सके।”

इस प्रकार महावीर हनुमान जी ने अक्षकुमार का वध कर रावण के हृदय में भय उत्पन्न कर दिया। देवताओं, महर्षियों, यक्षों, नागों और भूतों ने हनुमान जी का दर्शन कर उनकी वीरता की सराहना की।

आशा है आपको आज की कहानी पसंद आई होगी। अगले एपिसोड में हम एक और अद्भुत कथा के साथ मिलेंगे। तब तक के लिए, नमस्कार!

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