सचेतन 2.92 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – रावण के मन्त्री के सात पुत्रों का वध

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“धर्म युद्ध की गाथा: हनुमानजी का पराक्रम”

आज मानो की वातावरण ऐसा हो रहा हो की धीमी ताल पर बजता हुआ ढोल और शंख की ध्वनि जैसी हो रही है- 

नमस्कार, आप सभी का स्वागत है “धर्म युद्ध की गाथा” में, जहाँ हम आपको ले चलेंगे पौराणिक युद्धों और वीरता की रोमांचक कहानियों के सफर पर। आज के सचेतन के विचार में हम सुनेंगे भगवान हनुमानजी के अद्वितीय पराक्रम की कहानी, जिसमें उन्होंने राक्षसों के राजा रावण के मन्त्री के सात पुत्रों का वध किया। तो चलिए, शुरू करते हैं आज की गाथा।

अशोक वाटिका के द्वार पर युद्ध के नगाड़ों की आवाज जैसी गूंज रही थी- 

राक्षसों के राजा रावण की आज्ञा पाकर मन्त्री के सात बेटे, जो अग्नि के समान तेजस्वी थे, राजमहल से बाहर निकले। उनके साथ बहुत बड़ी सेना थी। वे अत्यन्त बलवान, धनुर्धर, अस्त्रवेत्ताओं में श्रेष्ठ तथा परस्पर होड़ लगाकर शत्रुपर विजय पाने की इच्छा रखने वाले थे। उनके घोड़े जुते हुए विशाल रथ सोने की जाली से ढके हुए थे। उन पर ध्वजा-पताकाएँ फहरा रही थीं और उनके पहियों के चलने से मेघों की गम्भीर गर्जना के समान ध्वनि होती थी।

चारों ओर रथों की घर्घराहट की आवाज गूंज रही है-

ऐसे रथों पर सवार हो वे अमित पराक्रमी मन्त्रिकुमार तपाये हुए सोने से चित्रित अपने धनुषों की टङ्कार करते हुए बड़े हर्ष और उत्साह के साथ आगे बढ़े। उस समय वे सब के-सब विद्युत्सहित मेघ के समान शोभा पाते थे।

तब, पहले जो किंकर नामक राक्षस मारे गये थे, उनकी मृत्यु का समाचार पाकर इन सबकी माताएँ अमङ्गल की आशङ्का से भाई-बन्धु और सुहृदोसहित शोक से घबरा उठीं। तपाये हुए सोने के आभूषणों से विभूषित वे सातों वीर परस्पर होड़-सी लगाकर फाटक पर खड़े हुए हनुमान् जी पर टूट पड़े।

 जैसे वर्षाकाल में मेघ वर्षा करते हुए विचरते हैं, उसी प्रकार वे राक्षसरूपी बादल बाणों की वर्षा करते हुए वहाँ विचरण करने लगे। रथों की घर्घराहट ही उनकी गर्जना थी। तदनन्तर राक्षसों द्वारा की गयी उस बाण-वर्षा से हनुमान जी उसी तरह आच्छादित हो गये, जैसे कोई गिरिराज जल की वर्षा से ढक गया हो।

बाणों की आवाज ही आवाज़ गूंज रही है –

उस समय निर्मल आकाश में शीघ्रतापूर्वक विचरते हुए कपिवर हनुमान् उन राक्षसवीरों के बाणों तथा रथ के वेगों को व्यर्थ करते हुए अपने-आपको बचाने लगे। जैसे व्योममण्डल में शक्तिशाली वायुदेव इन्द्रधनुषयुक्त मेघों के साथ क्रीडा करते हैं, उसी प्रकार वीर पवनकुमार उन धनुर्धर वीरों के साथ खेल सा करते हुए आकाश में अद्भुत शोभा पा रहे थे।

हनुमान जी के आकाश में उड़ने की आवाज सुनाई दे रही है- 

प्रचण्ड पराक्रमी हनुमान् ने राक्षसों की उस विशाल वाहिनी को भयभीत करते हुए घोर गर्जना की और उन राक्षसों पर बड़े वेग से आक्रमण किया। शत्रुओं को संताप देने वाले उन वानरवीर ने किन्हीं को थप्पड़ से ही मार गिराया, किन्हीं को पैरों से कुचल डाला, किन्हीं का घूसों से काम तमाम किया और किन्हीं को नखों से फाड़ डाला। कुछ लोगों को छाती से दबाकर उनका कचूमर निकाल दिया और किन्हीं-किन्हीं को दोनों जाँघों से दबोचकर मसल डाला। कितने ही निशाचर उनकी गर्जना से ही प्राणहीन होकर वहीं पृथ्वी पर गिर पड़े।

इस प्रकार जब मन्त्री के सारे पुत्र मारे जाकर धराशायी हो गये, तब उनकी बची-खुची सारी सेना भयभीत होकर दसों दिशाओं में भाग गयी।

चारों ओर भागती हुई सेना की आवाज सुनाई दे रही है –

उस समय हाथी वेदना के मारे बुरी तरह से चिग्घाड़ रहे थे, घोड़े धरती पर मरे पड़े थे तथा जिनके बैठक, ध्वज और छत्र आदि खण्डित हो गये थे, ऐसे टूटे हुए रथों से समूची रणभूमि पट गयी थी। मार्ग में खून की नदियाँ बहती दिखायी दी तथा लङ्कापुरी राक्षसों के विविध शब्दों के कारण मानो उस समय विकृत स्वर से चीत्कार कर रही थी।

रणभूमि की चीत्कार की आवाज गूंज रही हो 

प्रचण्ड पराक्रमी और महाबली वानरवीर हनुमान् जी उन बढ़े-चढ़े राक्षसों को मौत के घाट उतारकर दूसरे राक्षसों के साथ युद्ध करने की इच्छा से फिर उसी फाटक पर जा पहुँचे।

धन्यवाद दोस्तों, आज की गाथा सुनने के लिए। उम्मीद है कि आपको यह कहानी प्रेरणा और साहस प्रदान करेगी। अगले एपिसोड में फिर मिलेंगे, तब तक के लिए “धर्म युद्ध की गाथा” सुनते रहें और हमारे साथ इस यात्रा में जुड़े रहें। नमस्कार।

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