सचेतन 2.9: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हर कार्य में लक्ष्य और विकल्प दोनों होना चाहिए
हनुमान जी के लक्ष्य में विकल्प था की मैं लंकापुरी जाऊँगा यदि लंका में जनकनन्दिनी सीता को नहीं देखूँगा तो राक्षसराज रावण को बाँधकर लाऊँगा।
हनुमानजी अपने तेजस्वी और पराक्रमी बल से सीताजी के खोज के लिए लम्बे मार्ग पर दृष्टि दौड़ाने के लिये नेत्रोंको ऊपर उठाया और आकाश की ओर देखते हुए प्राणों को हृदयमें रोका और इस प्रकार से वे ऊपरको छलाँग मारने की तैयारी करते अपने शरीर को उस वायुवेग से चलाने की तैयारी किया जैसे श्रीरामचन्द्रजीका छोड़ा हुआ बाण जिस वायुवेग से चलता है।
आप देखेंगे तो पूरे सुंदरकांड में आपके जीवन की रणनीति का सार है। आपने जीवन में जब आपको बड़ा से बड़ा काम करना हो तो लक्ष्य कैसे बनायेंगे रणनीति कैसे निश्चित करेंगे। हनुमान जो का एक सरल और साधारण लक्ष्य था की मुझे तो सीता माता को देखने से ही ख़ुशी मिलेगी। उनसे मिलने का आनंद और हर्ष जो स्वयं से जुड़ा हुआ लक्ष्य है।
फिर अब हनुमान जी की अगली रणनीति को देखें। हनुमान जी ने अपने लक्ष्य का अवलोकन किया और अल्टरनेटिव/वैकल्पिक रणनीति बनाया की।
हनुमान जी रावण- द्वारा पालित लंकापुरीमें जाने से पहले अपने बानर सेना से कहा की लंकापुरी जाऊँगा यदि लंकामें जनकनन्दिनी सीता को नहीं देखूँगा तो इसी वेग से मैं स्वर्गलोक में चला जाऊँगा।यानी लक्ष्य के लिए अंतिम सांस तक परिश्रम करना।
इस प्रकार परिश्रम करने पर यदि मुझे स्वर्ग में भी सीता का दर्शन नहीं होगा तो राक्षसराज रावण को बाँधकर लाऊँगा। लक्ष्य का नतीजा क्या रखा था। सर्वथा कृतकृत्य होकर मैं सीता के साथ ही लौटूंगा अथवा रावण सहित लंकापुरी को ही उखाड़कर लाऊँगा। ऐसा कहकर वेगशाली वानर प्रवर श्रीहनुमान्जी ने विघ्न बाधाओं का कोई विचार न करके बड़े वेग से ऊपर की ओर छलाँग मारी।
यानी काम का शुरुवात यानी आगाज ऐसा था की उस समय उन वानर-शिरोमणि ने अपने को साक्षात् गरुड़ के समान ही समझा, जिस समय वे कूदे, उस समय उनके वेगसे आकृष्ट हो पर्वत पर उगे हुए सब वृक्ष उखड़ गये और अपनी सारी डालियोंको समेटकर उनके साथ ही सब ओर से वेग पूर्वक उड़ चले।
वे हनुमान्जी मतवाले कोयल आदि पक्षियों से युक्त, बहुसंख्यक पुष्पशोभित वृक्षोंको अपने महान् वेगसे ऊपरकी ओर खींचते हुए निर्मल आकाश में अग्रसर होने लगे। उनकी जाँघों के महान् वेग से ऊपर को उठे हुए वृक्ष एक मुहूर्त तक उनके पीछे-पीछे इस प्रकार गये, जैसे दूर-देशके पथपर जानेवाले अपने भाई-बन्धुको उसके बन्धु-बान्धव पहुँचाने जाते हैं।
मुहूर्त एक समय मापन इकाई है। मुहूर्त किसी कार्य को आरम्भ करने की “शुभ घड़ी” को कहने लगे हैं। एक मुहूर्त लगभग दो घड़ी के या 48 मिनट के बराबर होता है।
हनुमान्जी की जाँघों के वेगसे उखड़े हुए साल तथा दूसरे-दूसरे श्रेष्ठ वृक्ष उनके पीछे-पीछे उसी प्रकार चले, जैसे राजा के पीछे उसके सैनिक चलते हैं। जिनकी डालियोंके अग्रभाग फूलों से सुशोभित थे, उन बहुतेरे वृक्षों से संयुक्त हुए पर्वताकार हनुमान्जी अद्भुत शोभासे सम्पन्न दिखायी दिये। उन वृक्षोंमेंसे जो भारी थे, वे थोड़ी ही देरमें गिरकर क्षीर समुद्र में डूब गये। ठीक उसी तरह, जैसे कितने ही पंखधारी पर्वत देवराज इन्द्रके भय से वरुणालय में निमग्न हो गये थे।
आप को विचार करना है की अगर आपका लक्ष्य और रणनीति सही है तो हर कोई आपके साथ चलने को तैयार है और आपको साथ देंगे।