सचेतन 250: शिवपुराण- वायवीय संहिता -विज्ञानमय कोष से रूपांतरण संभव है
यदि आप सूक्ष्म शरीर में जरूरी बदलाव लाते हैं, तो वह हमेशा के लिए होता है।
पिछले विचार के सत्र में हमने पंचकोश के बारे में बात किया था जो मानव का अस्तित्व है और यह स्पर्श योग में आपके रूपांतरण का भी एक आयाम है, जिससे परिवर्तन संभव है! ये पाँच आवरण या परत है जो विभिन्न कोशों में चेतन, अवचेतन तथा अचेतन मन की अनुभूति के लिए आवश्यक होती है। प्रत्येक कोश का एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। वे एक दूसरे को प्रभावित करती और होती हैं।
अन्नमय कोश – अन्न तथा भोजन से निर्मित। शरीर और मस्तिष्क। सम्पूर्ण दृश्यमान जगत, ग्रह-नक्षत्र, तारे और हमारी यह पृथ्वी, आत्मा की प्रथम अभिव्यक्ति है। यह दिखाई देने वाला जड़ जगत जिसमें हमारा शरीर भी शामिल है यही अन्न से बना शरीर अन्न रसमय कहलाता हैं।
प्राणमय कोश – प्राणों से बना। यही हमें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और उत्तम अवस्था में रहता है। इसीलिए प्राणायाम के सतत प्रयोग से प्राणमय कोश को स्वस्थ रखा जा सकता है।
मनोमय कोश – मन से बना। हम जो देखते, सुनते हैं अर्थात हमारी इन्द्रियों द्वारा जब कोई सन्देश हमारे मस्तिष्क में जाता है तो उसके अनुसार वहाँ सूचना एकत्रित हो जाती है, और मस्तिष्क से हमारी भावनाओं के अनुसार रसायनों का श्राव होता है जिससे हमारे विचार बनते हैं, जैसे विचार होंते हैं उसी तरह से हमारा मन स्पंदन करने लगता है और इस प्रकार प्राणमय कोश के बाहर एक आवरण बन जाता है यही हमारा मनोमय कोश होता है l
आज बात करते हैं विज्ञानमय कोश के बारे में जिसकी प्रकृति बिल्कुल अलग है। अंग्रेजी में इसके लिए कोई उपयुक्त शब्द नहीं है, इसलिए इसे आम तौर पर ईथरिक बॉडी (सूक्ष्म शरीर) या आध्यात्मिक काया कहते हैं। यह एक अस्थायी शरीर होता है क्योंकि यह स्थूल से सूक्ष्म प्रकृति में विचरण करता है। मध्यवर्ती स्थान या मध्यवर्ती स्थिति को व्योम या “विज्ञान” कहा जाता है।
विज्ञानमय कोष का रूपांतरण सदा के लिए होता है। यह वह आयाम है, जहां रूपांतरण होने पर वह वास्तव में हमेशा के लिए होता है। मान लीजिए, हमने आपके शरीर को योग करना सिखाया। यदि आप छह महीने तक आसन करें, तो आप शारीरिक, मानसिक और हर रूप में बेहतर महसूस करेंगे। लेकिन यदि आपने आगे के छह महीने उसे छोड़ दिया, तो आप एक बार फिर से अपनी पुरानी स्थिति में लौट आएंगे।
यह वह आयाम है, जहां रूपांतरण होने पर वह वास्तव में हमेशा के लिए होता है। स्थूल शरीर के स्तर पर आप जो भी करेंगे, उसे आसानी से पलटा जा सकता है। यदि आप एक अलग नजरिये से जीवन को देखने के लिए अपने मन को तैयार करें, तो आपको महसूस होगा कि आपका नया जन्म हुआ है। लेकिन आप आसानी से अपने पुराने तरीकों पर लौट सकते हैं। आप शारीरिक और मानसिक स्तर पर जो भी करते हैं, उसे आसानी से पलटा जा सकता है यदि वह व्यक्ति उस दिशा में नहीं जाना चाहता। मान लीजिए आप प्राणायाम या क्रियाओं से प्राण ऊर्जा में बदलाव ले आते हैं, तो यह बदलाव अधिक समय तक चलेगा लेकिन कुछ समय बाद वह भी वापस हो जाएगा।
सिर्फ गुरु विज्ञानमय कोष को स्पर्श करता है, शिक्षक नहीं। यदि आप सूक्ष्म शरीर में जरूरी बदलाव लाते हैं, तो वह हमेशा के लिए होता है। यह जीवन और उसके आगे की दुनिया के लिए होता है, कुछ भी नहीं बदलता। एक गुरु और एक शिक्षक के बीच सिर्फ यही अंतर है, शिक्षक आपको ऐसे तरीके सिखाएगा जिनसे आप अपने अन्नमय कोश, मनोमय कोश और प्राणमय कोश को बदल सकते हैं लेकिन वह आपके विज्ञानमय कोश को स्पर्श नहीं कर सकता। गुरु विज्ञानमय कोश पर काम करता है। इस कोश को स्पर्श करने के बाद, सब कुछ पूरी तरह बदल जाता है क्योंकि यह बदलाव स्थायी होता है। यह शारीरिक आयाम से परे होता है और हमेशा स्थायी होता है।
आगे आनंदमय कोष के बारे में चर्चा करेंगे।