सचेतन 141 : श्री शिव पुराण- शिव तत्व आपके विश्वास का नाम है

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शिव तत्व के प्रवेश मात्र से आपको वर्तमान परिस्थित का ज्ञान होता जाएगा। 

शिव तत्व आपके विश्वास का नाम है। जब आप अपने आप को सिर्फ़ कारण या निमित्त मात्र सोच कर विश्वास करते हैं और आप इस विचार मात्र को सत्य मानते हैं की कोई है जो आपको सहयोग करेगा और आप धीरज रखकर नित्य निरन्तर और स्थायी रूप से आप विचार मात्र पर विश्वास करते हैं जो आपको प्रशस्त करता है की कोई श्रेष्ठ या उत्तम या यूँ कहें की अच्छा सा है जो हमारा भला करेगा।

यह शुद्ध और पवित्र दृढ़ भाव आपको स्थिर कर देता है और आप वर्तमान परिस्थित या समय में विद्यमान होना शुरू करते हैं आपको ठीक या उचित समझने में आ जाता है। यह वर्तमान में रहने का जीने का सोच आपको मनोहर और सुंदर लगने लगता है यही सत् है। 

आपका ज्ञान विद्वान् और पंडित की तरह होने लगता है यानी आपका लिया हुआ हरेक विचार, फ़ैसला और प्रतिज्ञा मान्य होता है, आपके आस पास का माहोल पूज्य और आनंदमय बन जाता है। 

सत् वह है जो शाश्वत है नित्य है, सुखस्वरूप महसूस होता है, आनंदस्वरूप का आभास दिलाता है, और ज्ञानस्वरूप बनाता है।

वही असत् का अर्थ है जो नश्वर है यानी नष्ट होनेवाला या यह कहें की जो जो ज्यों का त्यों नहीं रहे जो आपको दुःखरूप में जीवन देता है, जिससे भय लगता है, चिंता होने लगता है की अब क्या होगा, लोग आपसे और आप अपने आस पास के लोगों से  खिन्न रहते है, हर चीज को देखकर राग-द्वेष उत्पन्न होता है आप एक दूसरे को देख करके जलने लगते है और क्लेश का कारण बन जाता है।

शिव तत्व का अर्थ है जब आप उत्तम विचार से सत् का आश्रय लेकर असत् का त्याग कर देते हैं।

जितना आप ‘सत्’ को ब्रह्म यानी उच्च ऊर्जा या कोई है जो विद्यमान है उसका अस्तित्व और सत्ता पर विश्वास करेंगे आपका शिव तत्व आपके आनंद का कारण या निमित्त बनता जाएगा। 

शिव तत्व की ऊर्जा से आपके अंदर साधु भाव और सज्जनता आएगी नित्य निरन्तर और स्थायी रूप से आप धीरज रखना शुरू करने लगेंगे। 

शिव तत्व के प्रवेश मात्र से आप शुद्ध और पवित्र और दृढ़ भाव आएगा हरेक वर्तमान परिस्थित या समय में आपको ठीक या उचित समझने का ज्ञान होता जाएगा। 

शिव तत्व हर पल आपके सोच को मनोहर और सुंदर और प्यार का आभास देगा। शिव तत्व से आपके आस पास का माहोल पूज्य और आनंदमय बन जाता है। आप सत्स्वरूप परमात्मा के विषय में सुनना, सोचना और शांत या कहें को मौन होकर सत्कर्म में लग जाएँगे और अपने आप सुखी बन जाएँगे।

हम यह कहें की शिव तत्व आपको सत् से प्रीति करा कर आपके दुःख का नाश अवश्यंभावी कर देता है।

जो आदि, अंत और मध्य में एकरस है वह सत् है। कल दिन में जाग्रत अवस्था थी, रात्रि हुई सो गये तो स्वप्न आया, फिर गहरी नींद आयी…. खुल गयी आँख तो न स्वप्न रहा, न गहरी नींद रही। अभी न कल की जाग्रत अवस्था है, न स्वप्न अवस्था है और न ही सुषुप्तावस्था है लेकिन इन तीनों अवस्थाओं को देखने वाला, तीनों का साक्षी भी है। यही सत् है, यही ईश्वर है, यही चैतन्य है, यही ज्ञानस्वरूप है और यही आनंदस्वरूप है।

समस्त शास्त्र, तपस्या, यम और नियमों का निचोड़ यही है कि इच्छामात्र दुःखदायी है और इच्छा का शमन मोक्ष है।

प्राणी के हृदय में जैसी-जैसी और जितनी-जितनी इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं उतने ही दुःखों से वह डरता रहता है। विवेक-विचार द्वारा इच्छाएँ जैसे-जैसे शांत होती जाती हैं वैसे-वैसे दुःखरूपी छूत की बीमारी मिटती जाती है। आसक्ति के कारण सांसारिक विषयों की इच्छाएँ ज्यों-ज्यों घनीभूत होती जाती हैं, त्यों-त्यों दुःखों की विषैली तरंगें बढ़ती जाती हैं। अपने पुरुषार्थ के बल से इस इच्छारूपी व्याधि का उपचार यदि नहीं किया जाये तो इस व्याधि से छूटने के लिए अन्य कोई औषधि नहीं है।

एक साथ सभी इच्छाओं का सम्पूर्ण त्याग न हो सके तो थोड़ी-थोड़ी इच्छाओं का धीरे-धीरे त्याग करना चाहिए परंतु रहना चाहिए इच्छा के त्याग के रत में, क्योंकि सन्मार्ग का पथिक दुःखी नहीं होता।

इच्छा के शमन से परम पद की प्राप्ति होती है। इच्छारहित हो जाना यही निर्वाण है।

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