सचेतन :19. श्रीशिवपुराण- यदि वेदार्थ ज्ञान से श्रवण, कीर्तन तथा मनन की …
नवंबर 22, 2022- ShreeShivPuran
सचेतन :19. श्रीशिवपुराण- यदि वेदार्थ ज्ञान से श्रवण, कीर्तन तथा मनन की साधना करना असम्भव हो तो क्या करें?
Sachetan: What to do if it is impossible to practice hearing, chanting and meditation with Vedarth knowledge?
विद्येश्वरसंहिता
गंगा-यमुना के संगम स्थल परम पुण्यमय प्रयाग में, सत्यव्रतमें तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियों ने एक विशाल ज्ञानयज्ञका आयोजन किया और महाभाग महात्मा मुनियों ने श्री सूत जी से आग्रह किया की हे मुनि! आप हमें वेदान्तसार-सर्वस्वरूप अद्भुत शिवपुराण- की कथा सुनाइये।
सूत जी कहते हैं- मुनीश्वरो ! इस साधन-का माहात्म्य बताने के प्रसंग में मैं आप- लोगों के लिये एक प्राचीन वृत्तांत का वर्णन करूँगा, उसे ध्यान देकर आप सुनें। पहले की बात है, पराशर मुनि के पुत्र मेरे गुरु व्यासदेव- जी सरस्वती नदी के सुन्दर तट पर तपस्या कर रहे थे। एक दिन सूर्य तुल्य तेजस्वी विमान से यात्रा करते हुए भगवान् सनत्कुमार अकस्मात् वहाँ जा पहुँचे। उन्होंने मेरे गुरुको वहाँ देखा। वे ध्यान में मग्न थे । उससे जगने पर उन्होंने ब्रह्मपुत्र सनत्कुमारजीको अपने सामने उपस्थित देखा। देखकर वे बड़े वेग से उठे और उनके चरणों में प्रणाम करके मुनि ने उन्हें अर्घ्य दिया और देवताओंके बैठनेयोग्य आसन भी अर्पित किया। तब प्रसन्न हुए भगवान् सनत्कुमार विनीतभावसे खड़े हुए व्यासजीसे गम्भीर वाणीमें बोले-
‘मुने! तुम सत्य वस्तु का चिंतन करो। वह सत्य पदार्थ भगवान् शिव ही हैं, जो तुम्हारे साक्षात्कार के विषय होंगे। भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन, मनन – ये तीन महत्तर साधन कहे गये हैं। ये तीनों ही वेदसम्मत हैं।
पूर्वकाल में मैं दूसरे दूसरे साधनों के सम्भ्रम में पड़कर घूमता- घूमता मन्दराचल पर जा पहुँचा और वहाँ तपस्या करने लगा। तदनन्तर महेश्वर शिव की आज्ञा से भगवान नन्दिकेश्वर वहाँ आये। उनकी मुझ पर बड़ी दया थी। वे सबके साक्षी तथा शिव गणों के स्वामी भगवान नन्दिकेश्वर मुझे स्नेहपूर्वक मुक्ति का उत्तम साधन बताते हुए बोले- भगवान शंकर का श्रवण, कीर्तन और मनन – ये तीनों साधन वेदसम्मत हैं और मुक्ति के साक्षात् कारण हैं; यह बात स्वयं भगवान शिव ने मुझसे कही है। अतः ब्रह्मन् ! तुम श्रवणादि तीनों साधनों का ही अनुष्ठान करो।’ व्यासजीसे बारंबार ऐसा कहकर अनुगामियों सहित ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार परम सुन्दर ब्रह्मधामको चले गये। इस प्रकार पूर्वकालके इस उत्तम वृत्तान्तका मैंने संक्षेपसे वर्णन किया है।
ऋषि बोले- सूतजी ! श्रवणादि तीन साधनोंको आपने मुक्तिका उपाय बताया है। किंतु जो श्रवण आदि तीनों साधनोंमें असमर्थ हो, वह मनुष्य किस उपायका अवलम्बन करके मुक्त हो सकता है। किस साधनभूत कर्मके द्वारा बिना यत्नके ही मोक्ष मिल सकता है ?
भगवान् शिव लिंग एवं साकार विग्रहकी पूजाके रहस्य तथा महत्त्वका वर्णन
सूतजी कहते हैं- शौनक ! जो श्रवण, कीर्तन और मनन – इन तीनों साधनों के अनुष्ठान में समर्थन हो, वह भगवान् शंकर के लिंग एवं मूर्ति की स्थापना करके नित्य उसकी पूजा करे तो संसार-सागर से पार हो सकता है। वंचना अथवा छल न करते हुए अपनी शक्तिके अनुसार धनराशि ले जाय और उसे शिवलिंग अथवा शिवमूर्तिकी सेवा के लिये अर्पित कर दे। साथ ही निरन्तर उस लिंग एवं मूर्तिकी पूजा भी करे। उसके लिये भक्तिभाव से मंडप, गोपुर, तीर्थ, मठ एवं क्षेत्र की स्थापना करे तथा उत्सव रचाये। वस्त्र, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप तथा पूआ और शाक आदि व्यंजनों से युक्त भाँति-भाँति के भक्ष्य-भोजन अन्न नैवेद्य के रूप में समर्पित करे। छत्र, ध्वजा, व्यजन, चामर तथा अन्य अंगों सहित राजोपचार की भांति सब सामान भगवान् शिव लिंग एवं मूर्ति को चढ़ाये। प्रदक्षिणा, नमस्कार तथा यथाशक्ति जप करे। आवाहन से लेकर विसर्जन तक सारा कार्य प्रतिदिन भक्ति भाव से सम्पन्न करे। इस प्रकार शिवलिंग अथवा शिवमूर्तिमें भगवान् शंकर की पूजा करने वाला पुरुष श्रवणादि साधनों का अनुष्ठान न करे तो भी भगवान् शिव की प्रसन्नता से सिद्धि प्राप्त कर लेता है। पहले के बहुत-से महात्मा पुरुष लिंग तथा शिवमूर्तिकी पूजा करने मात्र से भवबन्धन से मुक्त हो चुके हैं।
ऋषियोंने पूछा- मूर्तिमें ही सर्वत्र देवताओं की पूजा होती है (लिंग में नहीं), परंतु भगवान् शिव की पूजा सब जगह मूर्ति में और लिंग में भी क्यों की जाती है ?