सचेतन :21. श्री शिव पुराण- पुरुष-वस्तु और शिव का साकार रूप
सचेतन :21. श्री शिव पुराण- पुरुष-वस्तु और शिव का साकार रूप Sachetan:Purusha-Vastu and Shiva’s corporeal form
विद्येश्वरसंहिता
भगवान शिव की पूजा सब जगह मूर्ति में और लिंग में भी क्यों की जाती है ? तो कहा गया है की शिव से भिन्न जो दूसरे दूसरे देवता हैं, वे साक्षात् ब्रह्म नहीं हैं। इसलिये कहीं भी उनके लिये निराकार लिंग नहीं उपलब्ध होता। शिव के निष्कल निराकार होने के कारण ही उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ है। अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है अर्थात शिव का साकार-विग्रह उनके साकार स्वरूप का प्रतीक होता है। यही कारण है कि सब लोग लिंग (निराकार) को प्रकृति वस्तु और मूर्ति (साकार) को पुरुष वस्तु दोनों रूप में सदा भगवान् शिवकी पूजा करते हैं।
हम मनुष्य और हमारे आस पास के प्राकृतिक संपदा का भी निराकार और साकार स्वरूप है
हमारा शक्ल सूरत ढाँचा साकार प्रकृति वस्तु के स्वरूप है। हमारे गुण अवगुण और सोच द्रष्टा निराकार स्वरूप प्रकृति वस्तु के रूप में है। हम प्रकृति के हर रूप में इसी का दर्शन करते हैं, रिमझिम बरसात किसके कारण होती है, फूलों में किसकी सुगंध होती है, यह तो परमात्मा का विश्वरूप दर्शन है। यह समझना कठिन हो सकता है किन्तु उस दिशा में पहल तो करनी चाहिए। सगुण में ग्राह्यता होती है तो निर्गुण में व्यापकता होती है। सगुण से निर्गुण या साकार से निराकार की ओर जाना ही तो अध्यात्म है। सद्गुरु को ईश्वर तुल्य मानकर भक्ति करने से यह ज्ञान का मार्ग संभव है।
तात्पर्य यह है कि ईश्वर को देखने के लिए एक अलौकिक व दिव्य दृष्टि की आवश्यकता होती जो केवल सद्गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती है।
यह कल्याणमय विषय है जिसे अच्छी तरह समझ में आ जाए तो जीवन सफल हो जाएगा।
कहते हैं की दीर्घकाल तक अविकृत भाव से सुस्थिर रहने वाली वस्तुओं को ‘पुरुष-वस्तु’ कहते हैं और अल्प काल तक ही टिकवल क्षणभंगुर वस्तु ‘प्राकृतिक वस्तु’ कहलाती है। इस तरह वस्तु के ये दो भेद जानने चाहिये।
अविकृत जो विकृत न हो, जो विकार को प्राप्त न हो, जो बिगड़ा न हो वह पुरुष-वस्तु है।
विकृति विज्ञान को पहले समझें, जिन कारणों से शरीर के विभिन्न अंगों की साम्यावस्था, या स्वास्थ्य अवस्था, नष्ट होकर उनमें विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं, उनको हेतु कारक (Etiological factors) और उनके शास्त्र को हेतुविज्ञान (Etiology) कहते हैं। ये कारण अनेक हैं। इन्हें निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है :
1. वंशानुगत, जन्मजात या शरीर रचना संबंधी (Hereditary Congenital or Constitutional), 2. आवश्यक द्रव्यों का अभाव (Deficiency), 3. संक्रामक (infectious) उपसर्ग, 4. अभिघात (Trauma), 5. भौतिक (physical) तथा
6. रासायनिक (chemical)।
अगर हम पुरुष-वस्तु रूप से भगवान शिव का दर्शन कर लें तो किन पुरुष-वस्तुओं से उन्होंने भगवान शिव का पूजन किया, यह बताया जाता है — हार, नूपुर, केयूर, किरीट, मणिमय कुण्डल, यज्ञोपवीत, उत्तरीय वस्त्र, पुष्प – माला, रेशमी वस्त्र, हार, मुद्रिका, पुष्प, ताम्बूल, कपूर, चन्दन एवं अगुरुका अनुलेप, धूप, दीप, श्वेतछत्र, व्यंजन, ध्वजा, चंवर तथा अन्यान्य दिव्य उपहार द्वारा, जिनका वैभव वाणी और मन की पहुँच से परे था, जो केवल पशुपति ( परमात्मा ) – के ही योग्य थे और उन्हें पशु (बद्ध जीव) कदापि नहीं पा सकते थे, उन दोनों ने अपने स्वामी महेश्वर का पूजन किया। सबसे पहले वहाँ ब्रह्मा और विष्णुने भगवान् शंकरकी पूजा की। इससे प्रसन्न हो भक्तिपूर्वक भगवान् शिवने वहाँ नम्र भावसे खड़े हुए उन दोनों देवताओंसे मुसकराकर कहा-
महेश्वर बोले- पुत्रो ! आजका दिन एक महान् दिन है। इसमें तुम्हारे द्वारा जो आज मेरी पूजा हुई है, इससे मैं तुमलोगों पर बहुत प्रसन्न हूँ। इसी कारण यह दिन परम पवित्र और महान-से-महान होगा । आज की यह तिथि ‘शिवरात्रि’ के नाम से विख्यात होकर मेरे लिये परम प्रिय होगी।