सचेतन :22. श्री शिव पुराण- ‘शिवरात्रि’ के उत्सव के लिए साकार और निराकार…
सचेतन :22. श्री शिव पुराण- ‘शिवरात्रि’ के उत्सव के लिए साकार और निराकार रूप दोनों की भावना करनी पड़ती है।
Sachetan:For the celebration of ‘Shivratri’ both the corporeal and formless forms have to be felt.
विद्येश्वरसंहिता
लोग लिंग (निराकार रूप में) प्रकृति वस्तु की भावना से और मूर्ति (साकार) को पुरुष वस्तु के दोनों रूप में सदा भगवान् शिवकी पूजा करते हैं।
पुरुष-वस्तु अर्थात् अविकृत भाव से साकार स्वरूप में सुस्थिर रहने वाली वस्तु के बारे में कही गई है। यह एक स्वयं के कल्याणमय होने का विषय है जिसे अच्छी तरह समझ में आ जाए तो जीवन सफल हो जाएगा।अगर हम पुरुष-वस्तु रूप से भगवान शिव का दर्शन कर लें जो हार, नूपुर, केयूर, किरीट, मणिमय कुण्डल, यज्ञोपवीत, उत्तरीय वस्त्र, पुष्प – माला, रेशमी वस्त्र, हार, मुद्रिका, पुष्प, ताम्बूल, कपूर, चन्दन एवं अगुरुका अनुलेप, धूप, दीप, श्वेतछत्र, व्यंजन, ध्वजा, चंवर तथा अन्यान्य दिव्य उपहार द्वारा, जिनका वैभव वाणी और मन की पहुँच से परे उतना सुंदर है। कहते हैं की सबसे पहले ब्रह्मा और विष्णुने भगवान् शंकर का दर्शन किया और की पूजा की। इससे प्रसन्न हो भक्तिपूर्वक भगवान शिव ने वहाँ नम्र भाव से खड़े हुए उन दोनों देवताओं से मुसकराकर ‘शिवरात्रि’ के बारे में बताया था।
कल हम लोग यह बात कर रहे थे की अविकृत यानी जो विकृत नहीं हो, जो विकार को प्राप्त न हो, जो बिगड़ा न हो, निर्विकार, ज्यों-का-त्यों, यथावत वह पुरुष-वस्तु है। हम स्वयं को समझने की कोशिश करें तो शिव का साकार रूप समझ सकते हैं।
हमारा ख़ुद का साकार स्वरूप यानी हमारे शरीर के विभिन्न अंगों की साम्यावस्था, या स्वास्थ्य अवस्था, नष्ट होकर उनमें विकृतियाँ उत्पन्न तो नहीं हो रही है। विकृतियाँ उत्पन्न होने का कारक जैसे वंशानुगत, जन्मजात या शरीर रचना संबंधी में कोई दोष तो नहीं है, शरीर में आवश्यक द्रव्यों का अभाव (Deficiency) तो नहीं हो रही है, कोई संक्रामक (infectious) उपसर्ग, या अभिघात (Trauma), या भौतिक (physical) या रासायनिक (chemical) गड़बड़ी तो नहीं हो रही है।
अगर हम पुरुष-वस्तु रूप से भगवान शिव का दर्शन करना चाहते हैं तो पहले हमारे अंदर की विकृत या विकार को सही करना होगा ख़ुद को अविकृत रखना होगा।
शिवपुराण में भगवान शिव के पूजन के बारे में बताया गया है। भक्तिपूर्वक भगवान शिव की पूजा का उत्सव ‘शिवरात्रि’ है। और इस उत्सव के लिए साकार और निराकार रूप दोनों की भावना करनी पड़ती है।
निराकार रूप यानी जिसका कोई आकार न हो, जिसके आकार की भावना नहीं की गई हो। या कुछ छिपा हुआ है छदमयुक्त है जो अभी तक मिला नहीं है। यहाँ तक को जो सीधा सादा, सरल होने की अवस्था को निराकार की संज्ञा दी जाती है। कहते हैं की ब्रह्म, ईश्वर, अल्लाह, आकाश, शिव, सभी निराकार हैं।
जो अव्यक्त और निराकार होता है, उसका आप अनुभव नहीं कर सकते। उसमें आप सिर्फ विश्वास कर सकते हैं। चाहे आप निराकार में विश्वास करते हों, फिर भी जो नहीं है, उसके प्रति गहरी भक्ति और प्रेम को विकसित करते हुए उसे बनाए रखना आपके लिए बहुत मुश्किल होगा। जो है, उसकी भक्ति करना आपके लिए ज्यादा आसान है। इसके साथ ही, वह कहते हैं, ‘अगर कोई निरंतर निराकार की भक्ति कर सकता है, तो वह भी मुझे पा सकता है।’ जब वह ‘मैं’ कहते हैं, तो वह किसी व्यक्ति के रूप में अपनी बात नहीं करते हैं, वह उस आयाम की बात करते हैं जिसमें साकार और निराकार दोनों शामिल होते हैं। ‘यदि कोई वह रास्ता अपनाता है, तो वह भी मुझे प्राप्त कर सकता है मगर उसे बहुत मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी।’ क्योंकि जो चीज नहीं है, उसमें मन लगाना आपके लिए मुश्किल है। अपनी भक्ति में लगातार स्थिर होने के लिए आपको एक आकार, एक रूप, एक नाम की जरूरत पड़ती है, जिससे आप जुड़ सकें।
‘सशरीर जीव के लिए उस रास्ते पर चलना कठिन है।’ इसका मतलब है कि अगर आप शरीर और बुद्धि-विवेक युक्त जीव की तरह, अस्तित्व के एक निराकार आयाम की आराधना करते हैं, तो आपकी बुद्धि रोज आपसे पूछेगी कि आप किसी मंजिल की तरफ बढ़ भी रहे हैं या यूं ही समय बर्बाद कर रहे हैं।