सचेतन :23. श्री शिव पुराण- भक्ति भक्त की आंतरिक स्थिति है।
सचेतन :23. श्री शिव पुराण- भक्ति भक्त की आंतरिक स्थिति है।
Sachetan:Bhakti is the inner condition of the devotee.
विद्येश्वर संहिता
भक्तिपूर्वक भगवान शिव की पूजा का उत्सव ‘शिवरात्रि’ है। और इस उत्सव के लिए साकार और निराकार रूप दोनों की भावना करनी पड़ती है।
निराकार रूप यानी जिसका कोई आकार न हो, जिसके आकार की भावना नहीं की गई हो। या कुछ छिपा हुआ है छदमयुक्त है जो अभी तक मिला नहीं है। यहाँ तक को जो सीधा सादा, सरल होने की अवस्था को निराकार की संज्ञा दी जाती है। कहते हैं की ब्रह्म, ईश्वर, अल्लाह, आकाश, शिव, सभी निराकार हैं।
भगवान शिव कहते हैं की ‘अगर कोई निरंतर निराकार भक्ति कर सकता है, तो वह भी मुझे पा सकता है।’ जब वह ‘मैं’ कहते हैं, तो वह किसी व्यक्ति के रूप में अपनी बात नहीं करते हैं, वह उस आयाम की बात करते हैं जिसमें साकार और निराकार दोनों शामिल होते हैं।
भक्ति को आमतौर पर मंदिर जाने और पूजा करने से जोड़कर देखा जाता है, ऐसा तथाकथित भक्तों के बाहरी कामों को देखकर सोचा जाता है। भक्ति के उस आयाम के बारे में यह बात कही जा रही जो भक्त की आंतरिक या भीतरी स्थिति है।
भक्ति बुद्धि का ही एक दूसरा आयाम है। बुद्धि सत्य पर जीत हासिल करना चाहती है। भक्ति बस सत्य को गले लगाना चाहती है। भक्ति समझ नहीं सकती मगर अनुभव कर सकती है। बुद्धि समझ सकती है मगर कभी अनुभव नहीं कर सकती। अब व्यक्ति के पास चुनाव का यही विकल्प है।
जब आप किसी चीज या किसी व्यक्ति से अभिभूत होते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से भक्त हो जाते हैं। लेकिन यदि आप भक्ति करने की कोशिश करते हैं, तो इससे समस्याएं पैदा होती हैं क्योंकि भक्ति और छल के बीच बहुत बारीक रेखा है।
आप एक सरल चीज यह कर सकते हैं कि इस अस्तित्व में हर चीज को खुद से ऊंचा समझें। यह ब्रह्मांड वैसे भी, वह आपसे अधिक स्थायी, आपसे अधिक स्थिर है। वह सदियों तक शांत होकर बैठ सकता है। अगर आप अपने आस-पास की हर चीज को खुद से ऊंचा मानना सीख लें, तो आप कुदरती तौर पर भक्त बन जाएंगे।
भक्ति का मतलब यह नहीं है कि आपको मंदिर जाना होगा, पूजा करनी होगी, नारियल तोडऩा होगा। एक भक्त यह समझ लेता है कि अस्तित्व में उसकी जगह क्या है। अगर आपने इसे समझ लिया है और इसे लेकर सचेतन हैं तो आप एक भक्त की तरह व्यवहार करेंगे। फिर आप किसी दूसरे तरीके से रह ही नहीं सकते। यह अस्तित्व में रहने का एक समझदारी भरा तरीका है।
जो शरीरहीन जीव हैं, उनके लिए संभावना मौजूद है क्योंकि उन्हें अपनी बुद्धि के साथ तर्क-वितर्क नहीं करना पड़ता – वे अपने झुकाव और प्रवृत्ति के मुताबिक चलते हैं। अगर वे आध्यात्म की तरफ झुके हुए हैं, तो वे आम तौर पर निराकार की ओर उन्मुख हो जाते हैं। यह उनका सोचा-समझा चयन नहीं होता, बल्कि उनका झुकाव होता है। इसलिए, अशरीरी जीवों के लिए यह ज्यादा उपयुक्त मार्ग है क्योंकि वे पंचतत्वों की सीमाओं से परे होते हैं, बुद्धि और विवेक की सीमाओं से परे होते हैं।
जहां तक निराकार का प्रश्न है, लिंग स्वरूप वास्तव में शिव के अस्तित्वमय तेज पुंज को शिव पुराण में कहा गया है। शिव के तेज पुंज का आदि अंत नहीं है। ब्रह्मा एवं विष्णु के लिए भी जानना संभव नहीं हुआ। इसलिए प्रतीक स्वरूप उस पुंज को लिंग स्वरूप में नमन किया गया। शिव पुराण के अनुसार निराकार ब्रह्म ने अपनी लीला शक्ति से जिस आकार की कल्पना की, वे ज्योति पुंज के स्वरूप परम पुरुष महेश्वर शिव ही थे। उन्होंने अपने विग्रह से जिस शक्ति की सृष्टि की, वह प्रकृति कहलाई।
शिवलिंग वही ज्योतिर्लिंग है जिसका कोई आकार नहीं है तथा आदि-अंत अनंत है। उसी अनंत शक्ति की पूजा शिवलिंग के रूप में अद्यतन श्रद्धा से की जा रही है।
वैज्ञानिक कहते हैं यह दुनिया डार्क मैटर में है और यही डार्क एनर्जी भी है इसी डार्क एनर्जी से आकाश तत्व बनता है और आकाश से हवा और हवा से अग्नि अग्नि से पानी और पानी से पृथ्वी बनती है और इसी तरह से यह पृथ्वी को पानी पानी को अग्नि अग्नि को वायु और वायु आकाश तत्व में और यह सब डार्क एनर्जी में बदल जाता है यही ईश्वर है।
यही डार्क मैटर निराकार से साकार बनता है।