सचेतन :27. श्री शिव पुराण- पृथ्वी, शरीर, समाज या राष्ट्र ये सभी लिंग रूप की संकल्पना है।

| | 0 Comments

सचेतन :27. श्री शिव पुराण-  पृथ्वी, शरीर, समाज या राष्ट्र ये सभी लिंग रूप  की संकल्पना है।

Sachetan: Earth, body, society or nation; all these are the concepts of linga roop.

विद्येश्वर संहिता

यह पूरा ब्रह्मांड पूरी पृथ्वी सबसे पहले लिंग रूप से प्रकट होकर बहुत बड़ा हुआ है। अतः उस लिंग के कारण यह भूतल ‘लिंगस्थान’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । जगत के लोग इसका दर्शन और पूजन कर सकें, इसके लिये यह अनादि और अनन्त ज्योतिः स्तम्भ अथवा ज्योतिर्मय लिंग अत्यन्त छोटा हो गया है । यह लिंग सब प्रकार के भोग सुलभ कराने वाला तथा भोग और मोक्ष का एकमात्र साधन है। इसका दर्शन, स्पर्श और ध्यान किया जाए तो यह प्राणियों को जन्म और मृत्यु के कष्ट से छुड़ाने वाला है अग्नि के पहाड़ जैसा जो यह शिवलिंग यहां प्रकट हुआ है इसके कारण यह स्थान अरुणाचल नाम से प्रसिद्ध हुआ है। यहां अनेक प्रकार के बड़े-बड़े तीर्थ प्रकट होंगे इस स्थान में निवास करने या मरने से जीवो का मोक्ष तक हो जाएगा।

लिंग की संकल्पना में पृथ्वी को प्रथम स्थान देते हैं। इस पृथ्वी का आधार क्या है? पृथ्वी किसने धारण की है? पौराणिकों के अनुसार पृथ्वी ‘शेष‘ और ‘उक्ष‘ पर आधारित है। उनकी दृष्टि में शेष सांप है और उक्ष बैल है। ‘शेष‘ का वैदिक अर्थ है- परमात्मा। सृष्टि के प्रलय के बाद भी वह ‘शेष‘ रह जाता है। इस अर्थ में पृथ्वी ‘शेष‘ है। ‘उक्ष‘ का अर्थ है- सूर्य का पृथ्वी द्वारा सेचन। पृथ्वी को सेचन समृद्ध करने की भावना भी उतनी ही महत्त्व की है।

अपना शरीर भी एक लिंग  है। रुधिर, मांस, हड्डियाँ, कई कोश, अवयव, इन्द्रियाँ आदि का समुच्चय ही शरीर कहलाता है और एक तत्त्व है प्राण, जो शरीर को जीवन प्रदान करता है। शरीर की इन्द्रियों को भोग चाहिए तभी वे कार्य करती हैं कार्य करती हैं तभी वे थक भी जाती हैं। ऐसा प्राण (आत्मा) कभी थकता नहीं है। प्राण शरीर के रक्षण के लिए सदा विचरण करता है। विचरण में वह कभी थकता नहीं, वैसे उसे विश्राम की आवश्यकता भी नहीं है। 

हमारा राष्ट्र और समाज भी प्राण की तरह है ।राष्ट्र और समाज के कई अंग हैं- मनुष्य, परिवार, ग्राम, प्रान्त और राष्ट्र। इसके साथ जुड़े हुए गृहप्रमुख, समूहप्रमुख, ग्रामप्रमुख, प्रान्तप्रमुख, राष्ट्रप्रमुख भी आये। उनका अपने-अपने स्तर का शासन प्रचलित हुआ। विभिन्न स्तरों पर कर्मचारी, अधिकारी, मन्त्री, मन्त्री मण्डल, सभापति, राजप्रमुख, राष्ट्रप्रमुख भी जुड़ गये। यह राष्ट्र का पूर्ण स्वरूप है।

चाहे पृथ्वी हो या शरीर हो या फिर समाज या राष्ट्र ये सभी एक लिंग की तरह है। इसके लिए संकल्पना को अपनी धारणा, अपने विचार, और संप्रत्यय यानी सिद्धांत, नियम, विशिष्ट तत्त्व, आचार को अधिक स्पष्ट करना पड़ता है। ‘यत् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे‘ जो पिण्ड में है वही ब्रह्माण्ड में है। मनुष्य देह और राष्ट्र देह को एक मानकर यह निर्देश दिया गया कि हम अपनी मातृभूमि को अपना देह मानें। देह के समान ही राष्ट्र की सुरक्षा करें। यजुर्वेद में यह स्पष्ट है। इस देह में सिर, बाहु, पेट और पांव-ये चार अवयव हैं। उसी तरह राष्ट्र में ज्ञानी, वीर, व्यापारी और सेवा करने वाले कर्मचारी भी हैं। ये चार वर्ण कहलाए गए। ये चार वर्ण गुण-कर्म-स्वभाव-योग्यता के अनुसार हैं। वेद का यह मौलिक चिन्तन कालान्तर में जन्मगत बन गया है और अनेक जातियों का उदय हुआ।

पृथ्वी, शरीर, समाज या राष्ट्र संकल्पना के रूप में पहले लिंग की तरह स्तंभ रूप से प्रकट हुआ फिर अपने साक्षात रूप से।स्तंभ रूप का अर्थ है, ब्रह्म भाव यानी हमारी सोच शिव का निराकार रूप है और महेश्वर भाव जो सोच से प्रकट हुआ सकल रूप। शिव जी कहते हैं की यह दोनों मेरे ही सिद्ध है। ब्रह्म रूप होने के कारण मैं ईश्वर भी हूं। जीवो पर अनुग्रह आदि करना मेरा कार्य है। ब्रह्मा और केशव मैं सबसे वृहत और जगत की वृद्धि करने वाला होने के कारण ब्रह्म कहलाता हूँ । 


Manovikas Charitable Society 2022

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Sachetan Logo

Start your day with a mindfulness & focus boost!

Join Sachetan’s daily session for prayers, meditation, and positive thoughts. Find inner calm, improve focus, and cultivate positivity.
Daily at 10 AM via Zoom. ‍