सचेतन :46. श्री शिव पुराण- भगवान शिव के दर्शन और पूजा के मुहूर्त का विधान
सचेतन :46. श्री शिव पुराण- भगवान शिव के दर्शन और पूजा के मुहूर्त का विधान
Sachetan:When is the time for darshan and worship of Lord Shiva
शिव जी कहते हैं की मेरा या मेरे लिंगका दर्शन प्रभातकालमें ही – प्रातः और संगव (मध्याह्नके पूर्व ) कालमें करना चाहिये। मेरे दर्शन-पूजन के लिये चतुर्दशी तिथि निशीथ व्यापिनी अथवा प्रदोष व्यापिनी लेनी चाहिये।
निशीथ काल: रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है।
दिन के चार और रात के चार मिलाकर कुल आठ प्रहर। इसी के आधार पर भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रत्येक राग के गाने का समय निश्चित है। प्रत्येक राग प्रहर अनुसार निर्मित है।इसी प्रकार से कोई भी धार्मिक का भी निर्धारित किया जाता है। निशीथ काल पूजा का मुहूर्त- रात 12.30 से 01.05 बजे तक का है।
प्रथम पहर- यह प्रहर हर संध्याकाल 6 से 9 बजे तक होता है। इस पहर को सतोगुणी पहर भी कहते हैं। इस पहर में पूजा उपासना का विशेष महत्व होता है। इस पहर में भोजन करना और सोना वर्जित है। इस पहर में जन्म लेने वालों को आमतौर पर आंखों और हड्डियों की समस्या होती है। इस समय घर में पूजा के स्थान पर घी या तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
द्वितीय पहर – यह पहर रात 9 से 12 बजे तक होता है। ये पहर तामसिक और राजसिक होता है। यानि पूरी तरह से नकारात्मक नहीं होता है।
तृतीय पहर – यह पहर रात 12 से 3 बजे के बीच होता है। इसे मध्यरात्रि भी कहा जाता है। ये पहर शुद्ध रूप से तामसिक है लेकिन इस पहर का कुछ विशेष लाभ भी है।
चतुर्थ पहर – यह पहर रात 3 से 6 के बीच होता है। इसको रात का अंतिम पहर भी कहते हैं। ये पहर शुद्ध रूप से सात्विक होता है, आध्यात्मिक कामों के लिए अच्छा होता है।
पंचम पहर – पंचम पहर सुबह 6 से 9 बजे तक का होता है, इसको दिन का पहला पहर भी कहते हैं। ये पहर आंशिक सात्विक और आंशिक राजसिक होता है, नकरात्मक बिल्कुल नहीं होता है।
छठा पहर – इस पहर की शुरुआत सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक होती है। इस दिन का दूसरा पहर कहते हैं। इसमें कार्य शक्ति बढ़ जाती है, इस पहर में मांगलिक काम करने से बचना चाहिए।
सप्तम पहर – ये पहर दिन के 12 से 3 तक होता है। इसको दिन का तीसरा पहर भी कहते हैं, ये तमोगुणी पहर होता है। इसमें कार्यक्षमता कम होती है।
अष्टम पहर – ये पहर दोपहर 3 से शाम 6 बजे तक होता है। ये दिन का चौथा पहर होता है। ये पहर सात्विक है पर इसमें तमोगुण की प्रधानता होती है। इस पहर में विश्राम कर सकते हैं लेकिन भोजन नहीं करना चाहिए।
प्रदोष काल: सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त का समय प्रदोष काल कहलाता है।
प्रदोष व्रत को त्रयोदशी व्रत भी कहा जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन जो कोई व्रत रखता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. हर महीने में दो प्रदोष व्रत आते हैं- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष. किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है. प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है.
परवर्तिनी तिथि से संयुक्त चतुर्दशीकी ही प्रशंसा की जाती है। पूजा करने वालों के लिये मेरी मूर्ति तथा लिंग दोनों समान हैं, फिर भी – मूर्तिकी अपेक्षा लिंगका स्थान ऊँचा है। इसलिए मुमुक्षु पुरुषों को चाहिए कि वे वेर मूर्ति से भी श्रेष्ठ समझकर लिंग का ही पूजन करें। लिंग का ओमकार मंत्र से और पंचाक्षर मंत्र से पूजन करना चाहिए। शिवलिंग की स्वयं ही स्थापना करके अथवा दूसरों से भी स्थापना करवा कर उत्तम द्रव्यम उपचारों से पूजा करनी चाहिए इससे मेरा पद सुलभ हो जाता है इस प्रकार उन दोनों शिष्य को उपदेश देकर भगवान शिव वही अंतर्धान हो गए।