सचेतन :54 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: पार्वती, सीता और राधा के जन्म शक्ति स्वरूप का वर्णन –
Rudra Samhita: Describing the Birth of Parvati, Sita and Radha
दक्ष की साठ कन्याओं से सृष्टि की उत्पत्ति हुई और उनका विवाह श्रेष्ठ मुनियों के साथ हुआ था। उन कन्याओं में एक स्वधा नाम की कन्या थी, जिसका विवाह उन्होंने पितरों के साथ किया। स्वधा की तीन पुत्रियाँ ‘मैना’, ‘धन्या’ और ‘कलावती’ थीं, जो सौभाग्य- शालिनी तथा धर्म की मूर्ति थीं जो तीनों लोकों में सर्वत्र जा सकने वाली थी। एक समय वे तीनों वहिने भगवान् विष्णुके निवास स्थान श्वेतद्वीप में उनका दर्शन करने के लिये गयीं और भगवान् विष्णुको प्रणाम और भक्ति पूर्वक उनकी स्तुति करके वे उन्हीं की आज्ञा से वहाँ ठहर गयीं। उस समय वहाँ संतों का बड़ा भारी समाज एकत्र हुआ और सनकादि सिद्धगण भी वहाँ गये। वे जब वहाँ आकर खड़े हुए, उस समय श्वेतद्वीप के सब लोग उन्हें देख प्रणाम करते हुए उठकर खड़े हो गये। परंतु ये तीनों बहिनें उन्हें देखकर भी वहाँ नहीं उठीं। इससे सनत्कुमार ने उनको (मर्यादा-रक्षार्थ ) उन्हें स्वर्ग से दूर होकर नर-स्त्री बनने का शाप दे दिया। फिर उनके प्रार्थना करने पर वे प्रसन्न हो गये और बोले जो ज्येष्ठ है, वह भगवान् विष्णु की अंशभूत हिमालय गिरि की पत्नी हो उससे जो कन्या होगी, वह ‘पार्वती’ के नाम से विख्यात होगी। पितरों की दूसरी प्रिय कन्या, योगिनी धन्या राजा जनक की पत्नी होगी। उसकी कन्याके रूपमें महालक्ष्मी अवतीर्ण होंगी, जिनका नाम ‘सीता’ होगा। इसी प्रकार पितरोंकी छोटी पुत्री कलावती द्वापरके अन्तिम भाग में वृषभानु वैश्य की पत्नी होगी और उसकी प्रिय पुत्री ‘राधा’ के नामसे विख्यात होगी।
योगिनी मेनका (मेना) पार्वती जी के वरदान से अपने पतिके साथ उसी शरीर से कैलास नामक परमपद को प्राप्त हो जायगी। धन्या तथा उनके पति, जनक कुल में उत्पन्न हुए जीवन्मुक्त महायोगी राजा सीरध्वज, लक्ष्मीस्वरूपा सीता के प्रभाव से वैकुण्ठधाम में जायेंगे। वृषभानु के साथ वैवाहिक मंगलकृत्य सम्पन्न होने के कारण जीवन्मुक्त योगिनी कलावती भी अपनी कन्या राधा के साथ गोलोकधाम में जायगी-इसमें संशय नहीं है।
अब तुमलोग प्रसन्नतापूर्वक मेरी दूसरी बात भी सुनो, जो सदा सुख देनेवाली है। मेनाकी पुत्री जगदम्बा पार्वतीदेवी अत्यन्त दुस्सह तप करके भगवान् शिवकी प्रिय पत्नी बनेंगी। धन्याकी पुत्री सीता भगवान् श्रीरामजीकी पत्नी होंगी और लोकाचारका आश्रय ले श्रीरामके साथ विहार करेंगी। साक्षात् गोलोकधाममें निवास करनेवाली राधा ही कलावतीकी पुत्री होंगी। वे गुप्त स्नेहमें बँधकर श्रीकृष्णकी प्रियतमा बनेगी। ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! इस प्रकार शापके ब्याजसे दुर्लभ वरदान देकर सबके द्वारा प्रशंसित भगवान् सनत्कुमार मुनि भाइयोंसहित वहीं अन्तर्धान हो गये। तात! पितरोंकी मानसी पुत्री वे तीनों बहिनें इस प्रकार शापमुक्त हो सुख पाकर तुरंत अपने घरको चली गयीं।
पार्वती, उमा या गौरी मातृत्व, शक्ति, प्रेम, सौंदर्य, सद्भाव, विवाह, संतान की देवी हैं।देवी पार्वती कई अन्य नामों से जानी जाती है, वह सर्वोच्च हिंदू देवी परमेश्वरी आदि पराशक्ति (शिवशक्ति) की साकार रूप है और शाक्त सम्प्रदाय या हिन्दू धर्म मे एक उच्चकोटि या प्रमुख देवी है और उनके कई गुण,रूप और पहलू हैं।
पौराणिक ग्रंथों में श्रीराम को ब्रहम का स्वरूप बताया गया है तो सीताजी को शक्ति का। ब्रहम और शक्ति का सम्मिलन ही संपूर्ण सृष्टि है। शक्ति का स्वरूप होने पर भी सीताजी से क्षमा का गुण सीखा जा सकता है।
अथर्ववेदीय ‘सीतोपनिषद्’ में सीताजी के स्वरूप का तात्विक विवेचन करते हुए उनको शक्तिस्वरूपा बताया गया है। उनके तीन स्वरूप हैं – पहले स्वरूप में वे शब्दब्रह्ममयी हैं, दूसरे स्वरूप में महाराज सीरध्वज (जनक) की यज्ञभूमि में हलाग्र (हल के अग्र भाग) से उत्पन्न तथा तीसरे स्वरूप में अव्यक्तस्वरूपा हैं।
राधा अथवा राधिका हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी हैं।वह कृष्ण की प्रेमिका और संगिनी के रूप में चित्रित की जाती हैं। वैष्णव सम्प्रदाय में राधा को भगवान कृष्ण की शक्ति स्वरूपा भी माना जाता है , जो स्त्री रूप मे प्रभु के लीलाओं मे प्रकट होती हैं | एक ही शक्ति के दो रूप है राधा और माधव (श्रीकृष्ण) तथा ये रहस्य स्वयं श्री कृष्ण द्वारा राधा रानी को बताया गया है।
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