सचेतन :6. श्री शिव पुराण की कथा सुन कर चंचुला पार्वती जी की सखी बन गई
नवंबर 5, 2022- ShreeShivPuran
सचेतन :6. श्री शिव पुराण की कथा सुन कर चंचुला पार्वती जी की सखी बन गई
Sachetan: Chanchula became Parvati’s friend after listening to the story of Shri Shiv Purana..
श्री सूतजी बोले – शौनक! सुनो, मैं तुम्हारे सामने गोपनीय कथावस्तु का भी वर्णन करूँगा, क्योंकि तुम शिव भक्तों में अग्रगण्य तथा वेदवेत्ताओं श्रेष्ट हो। समुद्र के निकट वर्ती प्रदेश में एक वाष्कल नमक ग्राम है , जहाँ वैदिक धर्म से विमुख महा पापी द्विज निवास करते हैं। सब बड़े दुष्ट हैं, उनका मन दूषित विषय भोगों में ही लगा रहता है। वे न देवताओं पर विश्वास रखते हैं न भाग्य पर, वे सभी कुटिल वृत्तिवाले हैं। किसानी करते और भांति भांति के घातक अस्त्र शस्त्र रखते हैं। वे व्यभिचारी और खाल हैं ज्ञान वैराग्य तथा सद्धर्म का सेवन ही मनुष्य के लिए परम पुरुषार्थ है। इस बात को वे बिलकुल नहीं जानते हैं। वे सभी पशु बुद्धि वाले हैं (जहाँ के द्विज ऐसे हों, वहां के अन्य वर्णों के विषय में क्या कहा जाए)अन्य वर्णो के लोग भी उन्ही की भांति कुत्सित विचार रखने वाले, स्वधर्म, विमुख एवं खाल है, वे सदा कुकर्म में लगे रहते हैं। वहां की सब स्त्रियां भी कुटिल स्वभाव की , स्वेच्छाचारिणी , पापसकत , कुतिसत विचारवाली और व्यभिचारिणी हैं। वे सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य हैं इस प्रकार वहां दुष्टों का ही निवास है।
उस वाष्कल नामक ग्राम में किसी समय एक बिन्दुग नामधारी ब्राह्मण रहता था, वह बड़ा अधम था। दुरात्मा और महापापी था यद्यपि उसकी स्त्री बड़ी सुंदरी थी, तो वह भी कुमार्ग पर ही चलता था। उसकी पत्नी का नाम चंचुला था, वह सदा उत्तम धर्म के पालन में लगी रहती थी, तो भी उसे छोड़कर वह दुष्ट ब्राह्मण वैश्यागामी हो गया था। इस तरह कुकर्म में लगे हुए उस बिन्दुग के बहुत वर्ष व्यतीत हो गए। उसकी स्त्री चंचुला काम से पीड़ित होने पर भी स्वधर्मनाश के भय से क्लेश सहकर भी दीर्घ काल तक धरम से भ्रष्ट नहीं हुई। परन्तु दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित हो आगे चलकर वह स्त्री भी दुराचारिणी हो गयी।
इस तरह दुराचार में डूबे हुए उन मूढ़ चित्त वाले पति पत्नी का बहुत सा समय व्यर्थ बीत गया। तदनन्तर शूद्रजातिय वेशका पति बना हुआ वह दूषित बुद्धिवाला दुष्ट ब्राह्मण बिन्दुग समयानुसार मृत्यु को प्राप्त होकर नरक में जा पड़ा। बहुत दिनों तक नरक के दुःख भोगकर वह मूढ़ बुद्धि पापी विन्ध्यपर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ।
इधर उस दुराचारी पति बिन्दुग के घर जाने पर वह भूदड़ दया चंचुला बहुत सम्पत्तिक पुत्रों के बीच अपने घर में ही रही।
एक दिन दैव्य योग से किसी पुण्य वर्थ के आने पर वह स्त्री भाई बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र में गयी। तीर्थ यात्रिओं के सामने उसने भी उस समय जाकर किसी तीरथ के जल में स्नान किया। फिर वह साधार शतक (मेला देखने की दृष्टि से) बन्धुजनो के साथ यत्र तत्र घूमने लगी। घूमती घामती किसी देवमंदिर में गयी और वहां उसने एक दैव्य ब्राह्मण के मुख से भगवान् शिव की परम पवित्र एवं मंगलकारिणी उत्तम पौरणिक कथा सुनी। कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे की जो स्त्रियां परपुरुषों के साथ व्यभिचार करती है वह मरने के बाद जब यमलोक में जाती है. तब यमराज के दूत उनकी योनी में लगे हुए लोडे का पारित डालते हैं। पौराणिक ब्राह्मण के मुख से यह वर्यज्ञ कथा सुन कर चंचुला भय से व्याकुल हो वहां काँपने लगी। जब कथा समाप्त हुई और सुनने वाले वहां से बहार चले गए, तब वह भयभीत नारी एकांत में शिव पुराण की कथा बाँचनेवाले उन ब्राह्मण देवताओं से बोलीं।
चंचुला ने कहा – ब्राह्मण! मैं आपने धरम को नहीं जानती थी इसीलिए मेरे द्वारा बड़ा दुराचार हुआ है। स्वामिन! मेरे ऊपर अनुपम कृपा करके आप मेरा उद्धार कीजिये। आज आपके वैराग्य रास से ओतपोत इस प्रवचन को सुनकर मुझे बड़ा भय लग रहा है। मैं काँप उठी हूँ और मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है। मुझे मूढ़ चित्तवाली पापिनी को धिक्कार है। मैं सर्वधा निंदा के योग्य हूँ कुतिसत विषयों में मैं फसी हुई हूँ और अपने धर्म से विमुख हो गयी हूँ। हाय! न जाने किस किस घोर कष्टदायक दुर्गति में मुझे पड़ना पड़ेगा और वहां कौन बुद्धिमान पुरुष कुमार्ग में मन लगनेवाली मुझ पिशाचिनी का साथ देगा। मृत्युकाल में उन भयंकर यमदूतों को मैं कैसे देखूंगी? जब वे बलपूर्वक मेरे गले में फंदे डालकर मुझे बांधेंगे, तब मैं कैसे धीरज धारण कर सकुंगी? नरक में जब मेरे शरीर के टुकड़े टुकड़े किये जाएंगे , उस समय विशेष दुःख देनेवाली उस महायातना को मैं वहां कैसे सहूंगी? हाय! मैं मारी गयी! मैं जल गयी! मेरा ह्रदय विदीर्ण हो गया और मैं सब प्रकार से नष्ट हो गयी, क्योंकि मैं हर तरह से पाप में डूबी हुई हूँ। ब्राह्मण ! आप ही मेरे गुरु, आप ही माता और आप ही पिता हैं। आपकी शरण में आयी हुई मुझ दीन अबलाका आप ही उद्वार कीजिये, उद्वार कीजिये.
सूतजी कहते हैं, शौनक! इस प्रकार खेद और वैराग्य से युक्त हुई चंचुला ब्राह्मण देवता के दोनों चरणों में गिर पड़ी। तब उन बुद्धिमान ब्राह्मण ने कृपापूर्वक उसे उठाया और इस प्रकार कहा।
चंचुला की प्रार्थना से ब्राह्मण का उसे पूरा शिवपुराण सुनना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिव लोक में जा चंचल का पार्वती जी की सखी एवं सुखी रहने लगी।
ब्राह्मण बोले नारी! सौभाग्य की बात है की भगवान् शंकर की कृपा से शिव पुराण की इस वैराग्ययुक्त कथा को सुनकर तुम्हे समय पर चेत हो गया है। ब्राह्मणपत्नी! तुम डरो मत ! भगवान् शिव की शरण में जाओ! शिव की कृपा से सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। मैं तुमसे भगवान् शिव की कीर्थिक युक्त उस परम वास्तु का वर्णन करूंगा, जिससे तुम्हें सदा सुख देनेवाली उत्तम गति प्राप्त होगी. शिव की उत्तम कथा सुनने से ही तुम्हारी बुद्धि इस तरह पश्चाताप से युक्त एवं शुद्ध हो गयी है. साथ ही तुम्हारे मन में विषयों के प्रति वैराग्य हो गया है। पश्चाताप ही पाप करने वाले पापिओं के लिए ही प्रायश्चित हैं। सत्पुरुषों ने सबके लिए पश्चाताप को ही समस्त पापों का शोधक बताया है, पश्चाताप से ही पापों की शुद्धि होती है. जो पश्चाताप करता है वही वास्तव में पापों का प्रायश्चित करता है, क्योंकि सत्पुरुषों ने समस्त पापों की शुद्धि के लिए जैसे प्रायश्चित का उपदेश किया है वह सब पश्चाताप से संपन्न हो जाता है.