सचेतन :69 श्री शिव पुराण- श्रीहरि को सृष्टि की रक्षा का भार मिला है
सचेतन :69 श्री शिव पुराण- श्रीहरि को सृष्टि की रक्षा का भार मिला है
#RudraSamhita
‘ॐ तत्वमसि’ महावाक्य के दृष्टिगोचर से हम ब्रह्म को हर जीव, जगत और ईश्वर के बहुत पाते हैं और इस महावाक्य का अर्थ है-‘वह ब्रह्म तुम्हीं हो।’
उसी ब्रह्म को ‘तत्त्वमसि’ कहा गया है। वह शरीर और इन्द्रियों में रहते हुए भी, उनसे परे है। आत्मा में उसका अंश मात्र है। उसी से उसका अनुभव होता है।
धर्म और अर्थ के साधक बुद्धिस्वरूप चौबीस अक्षरीय गायत्री मंत्र, जो पुरुषार्थ रूपी फल देने वाला है। तत्पश्चात मृत्युंजय मंत्र फिर पंचाक्षर मंत्र आदि से दक्षिणामूर्ति व चिंतामणि का साक्षात्कार संभव है।
इन मंत्रों को विष्णु भगवान ने ग्रहण कर जपना आरंभ किया। ईशों के मुकुट मणि ईशान हैं, जो पुरातत्व पुरुष हैं, हृदय को प्रिय लगने वाले, जिनके चरण सुंदर हैं, जो सांप को आभूषण के रूप में धारण करते हैं, जिनके पैर व नेत्र सभी ओर हैं, जो मुझ ब्रह्मा के अधिपति, कल्याणकारी तथा सृष्टिपालन एवं संहार करने वाले हैं। उन वरदायक शिव की मेरे साथ भगवान विष्णु ने प्रिय वचनों द्वारा संतुष्ट चित्त से स्तुति करनी चाहिए।
ब्रह्माजी ने महर्षि नारद जी से कहा की परमेश्वर शिव जी भगवान विष्णु जी से बोले, हे उत्तम व्रत का पालन करने वाले विष्णु! तुम सर्वदा सब लोकों में पूजनीय और मान्य होगे।
ब्रह्माजी के द्वारा रचे लोक में कोई दुख या संकट होने पर दुखों और संकटों का नाश करने के लिए तुम सदा तत्पर रहना। तुम अनेकों अवतार ग्रहण कर जीवों का कल्याण कर अपनी कीर्ति का विस्तार करोगे। मैं तुम्हारे कार्यों में तुम्हारी सहायता करूंगा और तुम्हारे शत्रुओं का नाश करूंगा।
तुममें और रुद्र में कोई अंतर नहीं है, तुम एक दूसरे के पूरक हो। रुद्र का अर्थ है रुत दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है।जो मनुष्य रुद्र का भक्त होकर तुम्हारी निंदा करेगा, उसका पुण्य नष्ट हो जाएगा और उसे नरक भोगना पड़ेगा। मनुष्यों को तुम भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले और उनके परम पूज्य देव होकर उनका निग्रह, अनुग्रह आदि करोगे।
ऐसा कहकर भगवान शिव ने मेरा हाथ विष्णुजी के हाथ में देकर कहा- तुम संकट के समय सदा इनकी सहायता करना तथा सभी को भोग और मोक्ष प्रदान करना तथा सभी मनुष्यों की कामनाओं को पूरा करना । तुम्हारी शरण में आने वाले मनुष्य को मेरा आश्रय भी मिलेगा तथा हममें भेद करने वाला मनुष्य नरक में जाएगा।
ब्रह्माजी कहते हैं ;- देवर्षि नारद! भगवान शिव का यह वचन सुनकर मैंने और भगवान विष्णु ने महादेव जी को प्रणाम कर धीरे से कहा- हे करुणानिधि भगवान शंकर! मैं आपकी आज्ञा मानकर सब कार्य करूंगा। मेरा जो भक्त आपकी निंदा करे, उसे आप नरक प्रदान करें। आपका भक्त मुझे अत्यंत प्रिय है।