सचेतन :83 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: कामदेव का जन्म

#RudraSamhita  

श्री शिव पुराण के रूद्र संहिता के इस संवाद में ब्रह्माजी ने मुनिश्रेष्ठ नारद जी को अपने मानसपुत्र तथा सप्तर्षियों में से एक मरीचि जो वायु और कश्यप ऋषि के पिता हैं और उन्होंने कामदेव का नाम कैसे रखा उसके बारे में बताया।

ब्रह्मा जी मुनिश्रेष्ठ नारद जी से कहते हैं की हमारे मन की तरह यह कामरूप होने के कारण आप काम नाम से भी विख्यात हो गये। लोगों को मदमत् बना देने के कारण तुम्हारा एक नाम मदन होगा।वे बड़े दर्प से उत्पन्न हुए तो दर्पक कहलाए और संर्दप होने के कारण ही जगत में कंदर्प नाम से भी तुम्हारी ख्याती होगी। दर्प यानी अहंकार, घमंड, गर्व, मन का एक भाव जिसके कारण व्यक्ति दूसरों को कुछ न समझे, अक्खड़पन।कंदर्प नाम का अर्थ “प्यार के देवता, कंदर्प का अर्थ है प्यार के स्वामी” होता है।एक पौराणिक देवता जो काम और वासना के उत्प्रेरक माने जाते हैं; कामदेव; मदन; अनंग; मन्मथ संगीत में रुद्रताल का एक प्रकार या भेद

ब्रह्मा जी ने कहा समस्त देवताओं का सम्मिलित बल पराक्रम भी तुम्हारे साथ समान नहीं होगा। अतः सभी स्थानों पर तुम्हारा अधिकार होगा, सर्वव्यापी होगे। जो आदि प्रजापति हैं वे ही यह पुरुषों में श्रेष्ठ दक्ष तुम्हारी इच्छा के अनुरूप पत्नी स्वयं देंगे। वह तुम्हारी कामिनी अनुराग रखने वाली होगी।

ब्रह्मा जी ने कहा- मुने! तदन्नतर मैं वहां से अदृश्य हो गया। इसके बाद दक्ष मेरी बात का स्मरण करके कंदर्प से बोले- कामदेव मेरे शरीर से उत्पन्न हुई मेरी यह कन्या सुंदर रूप और उत्तम गुणों से सुशोभित है। इसे तुम अपनी पत्नी बनाने के लिए ग्रहण करो। यह गुणों की दृष्टि से सर्वथा तुम्हारी योग्य है। महातेजस्वी मनोभव! यह सदा तुम्हारे साथ रहने वाली और तुम्हारी रूचि के अनुसार चलने वाली होंगी। धर्मतः यह सदा तुम्हारी अधीन रहेगी।

ऐसा कहकर दक्ष ने अपने शरीर के पसीने से उत्पन्न उस कन्या का नाम रति रख कर उसे अपने आगे बैठाया और कंदर्प को संकल्पपूर्वक सौंप दिया। नारद! दक्ष की वह पुत्री रति बड़ी रमणीय और मुनियों के मन को भी मोह लेने वाली थी। उसके साथ विवाह करके कामदेव को भी बड़ी प्रसन्नता हुई। अपनी रती नामक सुंदरी स्त्री को देखकर उसके हाव-भाव आदि से अनुरंजीत हो कामदेव मोहित हो गया। तात उस समय बड़ा भारी उत्सव होने लगा जो सब के सुख को बढ़ाने वाला था। प्रजापति दक्ष इस बात को सोचकर बड़े प्रसन्न थे कि कि मेरी पुत्री इस विवाह से सुखी है। कामदेव को भी बड़ा सुख मिला। उसके सारे दुख दूर हो गए। दक्ष कन्या रती भी कामदेव को पाकर बहुत प्रसन्न हुई।


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *