सचेतन :89 श्री शिव पुराण- अर्धनारीश्वर पुरुष और प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है

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प्रत्येक प्राणी के भीतर रागात्मक प्रवृत्ति की संज्ञा ही काम है। रागात्मक प्रवृत्ति के लिए  शक्ति और शिव दोनों अभिभाज्य तरह से मौजूद होना चाहिए। राग यानी प्रेम उत्पन्न करने या बढ़ाने वाला प्रेममय प्रीतिवर्धक।

‘राग’ शब्द संस्कृत की ‘रंज्’ धातु से बना है। रंज् का अर्थ है रंगना। जिस तरह एक चित्रकार तस्वीर में रंग भरकर उसे सुंदर बनाता है, उसी तरह संगीतज्ञ मन और शरीर को संगीत के सुरों से रंगता ही तो हैं। रंग में रंग जाना मुहावरे का अर्थ ही है कि सब कुछ भुलाकर मगन हो जाना या लीन हो जाना। संगीत का भी यही असर होता है। जो रचना मनुष्य के मन को आनंद के रंग से रंग दे वही राग कहलाती है।

शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।

शिव कारण हैं तो शक्ति कारक है 

शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी।

शक्ति जागृत अवस्था हैं तो शिव सुसुप्तावस्था है।

शक्ति मस्तिष्क हैं तो  शिव हृदय है 

शिव ब्रह्मा हैं तो शक्ति सरस्वती है 

शिव विष्णु हैं तो शक्त्ति लक्ष्मी है 

शिव महादेव हैं तो  शक्ति पार्वती है 

शिव रुद्र हैं तो  शक्ति महाकाली है 

शिव सागर के जल सामन हैं तो  शक्ति सागर की लहर हैं।

शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहरों के सामान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध। 

अर्धनारीश्वर ब्रह्मांड ( पुरुष और प्रकृति ) की पुलिंग और स्त्री ऊर्जा के संश्लेषण का प्रतिनिधित्व करता है और दिखाता है कि कैसे शक्ति, भगवान का स्त्री सिद्धांत, भगवान के पुरुष सिद्धांत शिव से (या कुछ व्याख्याओं के अनुसार) अविभाज्य है। इन सिद्धांतों के मिलन को सारी सृष्टि के मूल और गर्भ के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। एक अन्य दृष्टिकोण यह है कि अर्धनारीश्वर शिव के सर्वव्यापी स्वभाव का प्रतीक है।

अगर आप अर्धनारीश्वर की कहानी को सृष्टिरचना के प्रतीक के रूप में देखें, तो ये दो आयाम – शिव और पार्वती या शिव और शक्ति ये पुरुष और प्रकृति के रूप में जाने जाते हैं। आजकल, पुरुष शब्द को हम साधारण ढंग से ‘आदमी’ के अर्थ में लेते हैं। पर, ये वैसा नहीं है। प्रकृति का मतलब है सृष्टिरचना या स्वभाव! पुरुष वो है जो सृष्टिरचना का स्रोत है। ये स्रोत था, सृष्टि रचना हुयी और ये अपने स्रोत के साथ एकदम सही ढंग से मिल गयी। जिसे पुरुष कहा जाता है वो कारण है, जो चीजों को मुख्य रूप से आगे बढ़ाता है। जब अस्तित्व में सृष्टि की रचना नहीं हुई थी, जब अस्तित्व उससे पहले के स्तर पर था, तो ‘वो’ क्या था जिसके कारण ये अचानक हो गया? जिससे सृष्टि  की रचना हो गयी, उसे ही पुरुष कहा गया है! चाहे किसी मनुष्य का जन्म हुआ हो या कोई चींटी पैदा हुई हो या फिर ब्रह्मांड की रचना हुई हो, ये सब एक जैसा ही होता है। हमारे समझने के लिये इसे पुरुष या पुरुषत्व कहा जाता है।

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